शनिवार, 15 जून 2024

उपलब्धियों का गढ़ है डीआरडीओ

अपनी गर्जना और मारक क्षमता से दुश्मन के कलेजे में सिहरन पैदा करने वाला लड़ाकू विमान ‘तेजस’ हो या जमीन पर अपनी आवाज़ और सटीक गोलाबारी से शत्रु को नेस्तनाबूद करने वाला मुख्य युद्धक टैंक 'अर्जुन एमके-I' या फिर दुश्मन के विमानों को सूंघने में सक्षम ‘अवाक्स’ प्रणाली या शत्रु पर ताबड़तोड़ रॉकेट बरसाने वाला ‘पिनाका’....जब भी किसी नवीनतम हथियार प्रणाली या अत्याधुनिक तकनीक का जिक्र होता है तो डीआरडीओ का नाम हमेशा सबसे प्रमुखता से सामने आता है। डीआरडीओ का अर्थ है - डिफेन्स रिसर्च एंड डेवलपमेंट आर्गेनाईजेशन, इसे हम हिंदी में रक्षा अनुसंधान एवं विकास विभाग के नाम से जानते हैं। छः दशक से ज्यादा समय से भारतीय रक्षा और सुरक्षा तंत्र का मुख्य आधार डीआरडीओ ने हाल ही में अपना 66 वां स्थापना दिवस मनाया है। इन छियासठ सालों में डीआरडीओ ने अस्त्र-शस्त्रों और तकनीक के मामले में भारतीय सेनाओं को इतना दिया है कि यदि उनके केवल नामों का ही यहाँ उल्लेख किया जाए तो कई पन्ने भर जाएंगे। फिर भी कुछ अहम् संसाधनों की बात करें तो  सेना और वायु सेना के लिए पृथ्वी मिसाइल, सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल 'ब्रह्मोस', रिमोट संचालित वाहन 'निशांत', पायलट रहित लक्ष्य विमान 'लक्ष्य-I',  बख्तरबंद इंजीनियर रेकी वाहन, एनबीसी रेकी वाहन, ब्रिजिंग सिस्टम 'सर्वत्र',एकीकृत सोनार प्रणाली, हथियार का पता लगाने वाला रडार 'स्वाति, 3डी निगरानी रडार 'रेवती', नौसेना के लिए इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणाली 'संग्रह' ,इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणाली 'दिव्य दृष्टि', टॉरपीडो 'वरुणास्त्र' उल्लेखनीय नाम हैं। डीआरडीओ का खजाना उपलब्धियों से भरा हुआ है।

डीआरडीओ का गठन 1958 में भारतीय सेना के तकनीकी विकास प्रतिष्ठान और रक्षा विज्ञान संगठन के साथ तकनीकी विकास एवं उत्पादन निदेशालय को मिलाकर किया गया था। इसका उद्देश्य रक्षा प्रौद्योगिकी के मामले में एकीकृत रवैया अपनाना था। डीआरडीओ तब 10 प्रतिष्ठानों या प्रयोगशालाओं वाला एक छोटा संगठन था। वर्षों से, यह विषयों की विविधता, प्रयोगशालाओं की संख्या, उपलब्धियों और कद के मामले में एक पौधे से वट वृक्ष बन गया है। आज, डीआरडीओ के पास लगभग 41 प्रयोगशालाओं और 5 डी आर डी ओ युवा वैज्ञानिक प्रयोगशालाओं का विशाल नेटवर्क है, जो भारतीय सेनाओं के जरूरी हर प्रकार की रक्षा प्रौद्योगिकियों को विकसित करने में लगे हुए हैं, इनमें वैमानिकी, आयुध, इलेक्ट्रॉनिक्स, लड़ाकू वाहन, इंजीनियरिंग सिस्टम, इंस्ट्रूमेंटेशन, मिसाइल, उन्नत कंप्यूटिंग और सिमुलेशन जैसी तम प्रणालियाँ शामिल हैं ।

सामान्य भाषा में समझे तो डीआरडीओ भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय की अनुसन्धान और विकास शाखा है, जो अत्याधुनिक रक्षा प्रौद्योगिकियों और महत्वपूर्ण रक्षा प्रौद्योगिकियों और प्रणालियों में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए काम कर रही है। इस संगठन का आदर्श वाक्य "बलस्य मूलम् विज्ञानम्" - विज्ञान ही शक्ति का स्रोत है । डीआरडीओ ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी विशेषकर सैन्य प्रौद्योगिकियों के क्षेत्र में राष्ट्र को मजबूत और आत्मनिर्भर बनाने में कोई कसार नहीं छोड़ी है ।

डीआरडीओ का मूल उद्देश्य विश्व स्तरीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी आधार की स्थापना द्वारा भारत को समृद्ध बनाना और उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धी प्रणालियों और समाधान से सुसज्जित कर हमारी रक्षा सेवा को निर्णायक बढ़त प्रदान करना है । यदि हम इसके ध्येय की बात करें तो इसमें हमारी सुरक्षा सेवाओं के लिए अत्याधुनिक सेंसर, आयुद्ध प्रणाली, प्लेटफॉर्म और संबद्ध उपकरण के उत्पादन का डिजाइन विकास और नेतृत्व करना, युद्ध  के प्रभाव का मुकाबला करने के लिए सेनाओं को प्रौद्योगिकी समाधान प्रदान करना और सैन्य दल के कल्याण को बढ़ावा देना तथा बुनियादी सुविधाओं और प्रतिबद्ध योग्य जनशक्ति का विकास करना तथा मजबूत स्वदेशी प्रौद्योगिकी आधार का निर्माण करना है ।

रक्षा अनुसंधान एवं विकास विभाग के 66 वें स्थापना दिवस पर सचिव एवं  डीआरडीओ के अध्यक्ष डॉ. समीर वी. कामत ने डीआरडीओ की विभिन्न उपलब्धियों पर प्रकाश डाला । उन्होंने इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त की कि इस वर्ष 1 लाख 42 हजार करोड़ रुपये से अधिक मूल्य की डीआरडीओ की कई विकसित प्रणालियों को शामिल करने हेतु आवश्यकता की स्वीकृति भी प्रदान की गई है। यह किसी भी वर्ष में डीआरडीओ द्वारा विकसित प्रणालियों के लिए दी गई अब तक की सबसे अधिक राशि है। यह रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भरता का एक महत्वपूर्ण घटक है।

गौरतलब है कि डीआरडीओ ने इस साल 141 से अधिक पेटेंट दाखिल किए और 212 पेटेंट प्रदान किये हैं और उम्मीद है कि आने वाले वर्षों में यह संख्या उल्लेखनीय रूप से बढ़ेगी। डीआरडीओ द्वारा 2019 में शुरू की गई पांच युवा वैज्ञानिक प्रयोगशालाओं ने भी अब प्रभाव दिखाना शुरू कर दिया है । खास बात यह है कि अब डीआरडीओ की परीक्षण सुविधाएं उद्योग जगत के उपयोग के लिए खोल दी गई हैं। इसी तरह, अब तक डीआरडीओ द्वारा विकसित 1650 टीओटी भारतीय उद्योगों को सौंपे जा चुके हैं। वर्ष 2023 के दौरान, डीआरडीओ उत्पादों के लिए भारतीय उद्योगों के साथ 109 प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के लिए लाइसेंसिंग समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए। कुल मिलकर हम कह सकते हैं कि भारतीय सेनाओं और रक्षा तंत्र की रीढ़ यह संस्थान आत्मनिर्भरता के जरिये देश की बहुमूल्य राशि तो बचा ही रहा है साथ ही अन्य देशों पर निर्भरता घटाकर स्वदेशी तकनीक के जरिये देश को अलग पहचान,सुरक्षा और विदेशी मुद्रा दिलाने में भी अहम् भूमिका निभा रहा है।

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