शनिवार, 15 जून 2024

धधकते भोपाल को चाहिए हर घर में भगीरथ..!!

शाम के साढ़े सात बज रहे हैं। आकाशवाणी भोपाल के न्यूज रूम से बाहर निकलते ही ऐसा लग रहा है जैसे किसी भट्टी के पास से गुजर रहे हैं। शाम ढलते ही सूरज को भले ही रात के अंधेरे ने अपने आगोश में समेट लिया पर उसके तेवर झेलना न तो अंधेरे के वश में है और न ही आम लोगों के। ताल तलैयों का शहर भोपाल इन दिनों धधक रहा है। अपनी हरियाली पर इतराने वाला भोपाल अब गर्मी से लाल हो रहा है और यहां रहने वालों का हाल बेहाल।


हरियाली और स्वच्छता की राजधानी में तापमान 44 डिग्री सेल्सियस को भी पार कर गया है। न्यूनतम तापमान भी 31 डिग्री सेल्सियस से नीचे नहीं सरक रहा है। अब, जब रात का सबसे कम तापमान ही 31 डिग्री सेल्सियस हो तो पंखे आग उगलेंगे ही और फाइबर के कूलरों का लड़खड़ाना लाज़िमी है। जंबो और घर के बाहर की गरम हवा को ठंडा कर अंदर भेजने वाले फौलादी कूलर खुद पानी मांग रहें हैं। कूलर का क्या कहें, पुराने एसी ही गर्मी से हांफने लगे हैं और नए रंग-बिरंगे विज्ञापनी एसियों (ACs) को भी अपनी औकात समझ में आ गई है।


सड़कों पर बेवजह चहलकदमी करती छोटी कारें सांझ ढलने का इंतज़ार करती हैं तो दिनभर सड़कों पर हुंदराने वाले बाइक और स्कूटी सवार घरों में दुबक गए हैं। लू के थपेड़ों ने घर से बाहर निकलना मुश्किल कर दिया है। सूर्योदय के बाद मॉर्निंग वॉक करने वालों की सुबह 5 बजे होने लगी है क्योंकि इसके बाद वॉक मॉर्निंग नहीं टार्चर वॉक हो जाती है। ऐसा लग रहा है मानो दुश्मन देश की सेना आग के गोले बरसा रही है। ठंडा पानी प्यास बुझाने की बजाए पेट भरने का काम ज्यादा कर रहा है।


कभी अपने खुशनुमा तेवर,मौसम और लोगों के लिए मशहूर भोपाल ‘सिटी ऑफ लेक’ से बदलकर ‘सिटी ऑफ हीट’ बन रहा है। शहर को स्मार्ट बनाने की खातिर भेंट चढ़ गए हजारों छायादार वृक्षों की आशीष भरी ठंडक पहले ही छिन गई है और अब हर साल सैंकड़ों नए लोगों को बसाने के नाम पर लाक्षागृह के साथ साथ कांक्रीट के जंगल बोकर अपनी तिजौरियां भर रहे लोगों को न शहर के बाशिंदों की परवाह है और न ही हीटर बनते इस खूबसूरत शहर के भविष्य की। 


अभी भी वक्त है क्योंकि अभी नहीं चेते तो भोपाल के जयपुर, हैदराबाद और दिल्ली बनते देर नहीं लगेगी। कुछ कदम तो अनिवार्य रूप से उठाने की जरुरत है मसलन पेड़ काटने की मनमानी खत्म हो और बिना रेन वॉटर हार्वेस्टिंग/वर्षा जल संग्रहण की सुविधा के किसी को भी घर बनाने की मंजूरी नहीं दी जाए। आवासीय कालोनियों और सड़कों के किनारे चंपा, गुलमोहर और यूकेलिप्टस जैसे रूपवान तथा सजावटी पेड़ों के स्थान पर नीम, आम जामुन,पीपल, वट जैसे धीर-गंभीर,छायादार और फलदार वृक्ष लगाएं जाएं। बिना पार्किंग व्यवस्था के कार खरीदने पर पूरी तरह रोक लगाई जाए और घर-घर बिजली बनाने के लिए सौर ऊर्जा की सूर्योदय जैसी योजनाओं को खूब प्रोत्साहित किया जाए। व्यवहारिक तौर पर सोचे तो इन कामों  के लिए सरकारी नियमों के साथ साथ हमारे आपके स्तर पर भी भगीरथी प्रयासों की जरूरत है और बिना घर घर में भगीरथ तैयार किए अपने शहर को बचाना मुश्किल है। 


कुछ आप भी बताइए…कैसे अपने शहरों के प्राकृतिक गुण सहेजे जाएं? कैसे उन्हें आग का गोला बनने से रोका जाए और कैसे,आखिर कैसे गर्मी की अकड़ ठिकाने लगाई जाए…बताइए जरूर!!

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