मंगलवार, 20 फ़रवरी 2024

सृजनकर्ता के सृजक


बंदउँ बालरूप सोइ रामू। सब सिधि सुलभ जपत जिसु नामू॥
मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवउ सो दसरथ अजिर बिहारी॥

भावार्थ- मैं उन्हीं राम के बाल रूप की वंदना करता हूँ, जिनका नाम जपने से सब सिद्धियाँ सहज ही प्राप्त हो जाती हैं। मंगल के धाम, अमंगल के हरनेवाले और दशरथ के आँगन में खेलने वाले (बालरूप) राम मुझ पर कृपा करें

महीनों तक बस एक ही धुन…राम नाम की धुन, न भोजन की परवाह और न ही आराम की। परिवार को तो वह लगभग भूल ही गए थे। दिन नहीं, हफ्तों तक परिवार से बात नहीं की। बस ध्यान में था तो यही कि पूर्ण पवित्रता का पालन करते हुए भगवान श्रीराम की ऐसी दिव्य,अलौकिक,मनमोहक और अद्भुत मूर्ति का निर्माण करना था जो पहले कभी नहीं बनी हो। हम बात कर रहे हैं अयोध्या में प्रतिष्ठित हुई राम लला की प्रतिमा को बनाने वाले मूर्तिकार अरुण योगीराज की।

भगवान श्रीराम के बालरूप वाली इस मूर्ति की ऊंचाई 51 इंच अत्यधिक चिंतन,मनन और अध्ययन के बाद रखी गई है। दरअसल, हमारे देश में 5 वर्षीय बच्चे की लंबाई औसतन लंबाई 51 इंच के आसपास होती है। भारतीय पूजा पद्धति में 51 अंक बहुत शुभ माना जाता है। इन्हीं सब बातों के मद्देनजर  गर्भगृह में स्थापित होने वाली मूर्ति का आकार भी 51 इंच रखा गया है। राम लला की इस मूर्ति का निर्माण खासतौर पर पवित्र और भारतीय देवी देवताओं के निर्माण में होने वाले शालीग्राम पत्थर को तराशकर किया गया है। शालीग्राम एक प्रकार का जीवाश्म पत्थर है, जो आमतौर पर नदियों की तलहटी में पाया जाता है। 

अयोध्या में राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के लिए चयनित रामलला की दिव्य, अलौकिक और मनमोहक श्याम रंग की मूर्ति को मूर्तिकार अरुण योगीराज ने बनाया है। दरअसल,श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने व्यापक सर्वेक्षण और चर्चा के बाद, प्राण प्रतिष्ठा के लिए तीन अलग अलग कलाकारों से तीन मूर्तियों का निर्माण कराया गया था। मूर्तिकार सत्यनारायण पांडेय ने राजस्थानी संगमरमर शिला से प्रतिमा बनाई थी। वहीं, मूर्तिकार गणेश भट्ट और मूर्तिकार अरुण योगीराज ने शालीग्राम शिला से मूर्तियों का निर्माण किया था। तीनों ही मूर्तियां बेहद ही अलौकिक, मनमोहक और अद्वितीय हैं।  ट्रस्ट के विशेषज्ञों की टीम ने तीनों मूर्तियों को हर पैमाने पर देखने और परखने के बाद, गर्भगृह में स्थापना के लिए अरुण योगीराज की बनाई मूर्ति का चयन  किया। इस प्रतिमा का वजन करीब 200 किलो है। ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने भी प्राण प्रतिष्ठा से कुछ दिन पहले ही पत्रकारों से बातचीत में अरुण योगीराज की मूर्ति के चयन की जानकारी दी थी। उन्होंने यह भी बताया था कि बाकी दोनों मूर्तिकारों की प्रतिमाओं का भी यथोचित उपयोग किया जाएगा। 

खूबसूरत और दिव्य प्रतिमाओं के निर्माण में अरुण योगीराज का कोई मुकाबला नहीं है। वे पहले भी कई अनूठी और सजीव प्रतिमाओं का निर्माण कर चुके हैं फिर चाहे वह केदारनाथ धाम में स्थापित आदि शंकराचार्य की प्रतिमा हो, रामकृष्ण परमहंस की या फिर दिल्ली में कर्तव्य पथ पर स्थापित की गई नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा।  अरुण योगीराज के परिवार में पांच पीढ़ियों से मूर्तिकला को  पेशे के तौर पर अपनाया जाता रहा है। अरुण के पिता योगीराज और उनके दादा बसवन्ना शिल्पी भी मशहूर मूर्तिकार हैं। कर्नाटक मूल के अरुण मैसूर के प्रसिद्ध मूर्तिकारों की पांच पीढ़ी से ताल्लुक रखते हैं। अरुण योगीराज के हुनर की सराहना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी की है । नेताजी की प्रतिमा के निर्माण के दौरान उन्होंने प्रधानमंत्री को इसकी एक छोटी प्रतिकृति भेंट की थी। एमबीए की पढ़ाई कर चुके अरुण योगीराज का मन कारपोरेट जगत में नहीं लगा और निजी कंपनी की नौकरी छोड़कर वापस अपने पारिवारिक पेशे में लौट आए और फिर उनके हाथ ने ऐसी कमाल की मूर्तियां सृजित की कि लोग वाह वाह कर उठे।  

योगीराज की मां सरस्वती ने कहा कि यह बहुत खुशी की बात है कि उनके बेटे द्वारा बनाई गई मूर्ति को चुन लिया गया है। अरुण योगीराज की पत्नी विजेता भी अपने पति की इस उपलब्धि से बहुत खुश हैं। उन्होंने बताया कि  मूर्ति बनाते समय पत्थर का एक टुकड़ा अरुण की आंख में चला गया था और उसे आपरेशन से बाहर निकाला गया लेकिन उन्होंने अपने काम पर आंच नहीं आने दी। लगातार बारह-12 घंटे काम करके उन्होंने इस जिम्मेदारी को पूरा किया है। देश भले ही अरुण की उपलब्धि पर झूम रहा है लेकिन अरुण को देश से फीडबैक का इंतजार है। उन्होंने कहा कि मूर्ति के चयन से ज्यादा मेरे लिए यह महत्वपूर्ण है कि ये लोगों को पसंद आनी चाहिए. सच्ची खुशी मुझे तब होगी जब लोग इसकी सराहना करेंगे.''

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