मंगलवार, 20 फ़रवरी 2024

आराध्य की आराधना


रामो विग्रहवान् धर्मः साधुः सत्य पराक्रमः।

राजा सर्वस्य लोकस्य देवानाम् इव वासवः॥


भगवान श्रीराम धर्म के मूर्त स्वरूप हैं। वे बड़े साधु और सत्य पराक्रमी हैं। जिस प्रकार इंद्र देवताओं के नायक हैं, उसी प्रकार भगवान राम हम सभी के नायक हैं।


अयोध्या में राम लला की प्राण प्रतिष्ठा की गाथा घर घर पहुंच गई है। एक तरह से सनातन ही नहीं अन्य धर्मों के लोग भी वैदिक पूजा पद्धति और प्रतिमा की स्थापना तक की तमाम विधियों को जानने समझने लगे हैं। प्राण प्रतिष्ठा समारोह के साथ ही कई जैसे नए और अनूठे शब्द सामने आए हैं जो धार्मिक रीति रिवाजों से जुड़े विद्वानों को छोड़कर जनमानस को विस्मित करने वाले हैं। इसलिए, हम अध्याय में इन शब्दों की गुत्थी को सुलझाने और उसे सहज बनाने का प्रयास करते हैं। 


जैसा की हम आमतौर पर जानते हैं कि प्रतिष्ठा का अर्थ है स्थापना और प्राण प्रतिष्ठा का शाब्दिक अर्थ हुआ -जीवन शक्ति की स्थापना करना या देवता को जीवन में लाना। सनातन धर्म में प्राण प्रतिष्ठा से पहले किसी भी मूर्ति पूजा के योग्य नहीं मानी जाती है बल्कि उसे निर्जीव मूर्ति माना जाता है। प्राण प्रतिष्ठा के जरिए उनमें प्राण शक्ति का संचार करके उन्हें पूजनीय बनाया जाता है. इसके बाद ही वह प्रतिमा पूजा और भक्ति के योग्य बन जाती है.


रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के दौरान प्रायश्चित पूजा,कर्म कुटी पूजन,जलाधिवास,गंधाधिवास, घृताधिवास, फलाधिवास, मध्याधिवास और शय्याधिवास जैसे कई नए पूजा संस्कार आम लोगों ने सुने हैं। वैदिक परंपरा के मुताबिक प्रायश्चित और कर्म कुटी पूजन किसी मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की शुरुआत में किया जाने वाला सबसे पहला पूजन है. यह पूजा, जाने-अनजाने में जीवन के किसी भी क्षण में होने वाली प्रत्येक गलतियों या पाप का प्रायश्चित है. इस पूजा में शारीरिक, आंतरिक, मानसिक और वाह्य तरीकों से प्रायश्चित किया जाता है। कई बार हम जाने अनजाने में कई प्रकार की ऐसी गलतियां कर लेते हैं, जिसका हमें तनिक भी आभास नहीं हो पाता है इसलिए ऐसे में शुद्धिकरण होना बेहद जरूरी होता है।


 यही वजह है कि प्राण प्रतिष्ठा से पहले प्रायश्चित पूजा की जाती है.  अयोध्या में इस पूजा के ज़रिए रामलला से और पूजन शुरू करने के पहले सभी गलतियों के लिए माफी मांगी गयी। राम लला से इसलिए क्योंकि यह माना गया कि रामलला की प्रतिमा बनाने में छेनी और हथौड़े के इस्तेमाल के चलते उन्हें चोट पहुंची होगी. वहीँ, कर्म कुटी पूजा का मतलब होता है यज्ञशाला पूजन। यज्ञशाला शुरू होने से पहले हवन कुंड अथवा वेदी का पूजन करते हैं। इस पूजा में जगत के पालनहार भगवान विष्णु की आराधना की जाती है। ऐसा करने से भगवान विष्णु मंदिर में जाने का आदेश करते हैं। इसके बाद ही प्राण प्रतिष्ठा के लिए मंदिर में प्रवेश किया जाता है।


इसके बाद, भगवान राम की प्रतिमा को वैदिक मंत्रोचार के बीच गर्भ गृह में रखा गया. इस दौरान ‘प्रधान संकल्प’, ट्रस्ट के सदस्य अनिल मिश्रा ने लिया। ‘प्रधान संकल्प' की भावना यह है कि भगवान राम की 'प्रतिष्ठा' सभी के कल्याण के लिए, राष्ट्र के कल्याण के लिए, मानवता के कल्याण के लिए और उन लोगों के लिए भी की जा रही है जिन्होंने इस कार्य में अपना योगदान दिया है। श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने भी आधिकारिक तौर पर बताया कि अयोध्या में जन्म भूमि स्थित राम- मन्दिर में 18 जनवरी को दिन में 12:30 बजे के बाद भगवान राम की मूर्ति का प्रवेश हुआ. दोपहर 1:20 बजे यजमान द्वारा ‘प्रधान संकल्प’ लिया गया। मूर्ति के जलाधिवास तक के विधान इसी दिन संपन्न हुए। 19 जनवरी शुक्रवार को प्रातः नौ बजे अरणी मन्थन से अग्नि प्रकट की गई। उसके पूर्व गणपति सहित अन्य देवताओं का पूजन हुआ।


अब कई पाठक सोच रहे होंगे कि अरणी मंथन क्या पहेली है। दरअसल, यज्ञ में आहुति के लिए या यज्ञ के निमित्त वैदिक पद्धति से अग्नि प्रकट करने की विधि को अरणी मंथन कहते हैं। इसमें शमी या खेजड़ी और पीपल की लकड़ी का उपयोग किया जाता है। शमी को शास्त्रों में अग्नि का स्वरूप कहा गया है जबकि पीपल को भगवान का स्वरूप माना गया।  इसीलिए इस वृक्ष से अरणी मंथन काष्ठ बनाया जाता है। फिर अग्रि मंत्र का उच्चारण करते हुए अग्रि प्रज्वलित की जाती है। अग्नि प्रकट करने के लिए शमी की लकड़ी से बने छेद युक्त तख्ते को लकड़ी की ही छड़ी से मथा जाता है। इस प्रक्रिया में मथनी को इतनी तेजी से चलाया जाता है कि उससे चिंगारी उत्पन्न होने लगती है, जिसे नीचे रखी घास और रूई में लेकर यज्ञ में उपयोग किया जाता है। अरणी में छड़ी के टुकड़े को उत्तरा और तख्ते को अधरा कहते हैं।


राम लला की प्राण प्रतिष्ठा से पहले उन्हें जलाधिवास कराया गया। इस विधि के तहत राम लला की मूर्ति को जल से भरे हुए विशाल पात्र में शयन कराया गया । इसी तरह, गंधाधिवास विधि के अंतर्गत मूर्ति पर सुगंधित द्रव्यों का लेप लगाया गया। औषधाधिवास की प्रक्रिया में मूर्ति को औषधि में रखा गया और फिर क्रमशः केसराधिवास में मूर्ति को केसर में, घृताधिवास में मूर्ति को घी में और धान्याधिवास में मूर्ति को कई तरह के धान्यों यानी अनाजों में रखा गया। 20 जनवरी की सुबह शर्कराधिवास और फलाधिवास संस्कार हुए । इनमें राम लला को शक्कर और फलों के बीच रखा गया. इसके बाद इसी दिन शाम को पुष्पाधिवास में मूर्ति को रंग बिरंगे और सुगंधित फूलों के साथ रखा गया।


प्राण प्रतिष्ठा के एक दिन पहले 21 जनवरी को मध्याधिवास और शय्याधिवास नामक अनुष्ठान हुए।  मध्याधिवास मूर्ति को शहद के साथ रखा गया जबकि शय्याधिवास में मूर्ति को शय्या पर लिटाया गया। सामान्य भाषा में समझे तो तमाम द्रव्यों,औषध,सुगंध,पुष्प,शहद जैसी सामग्री से स्नान और शुद्धिकरण के बाद भगवान को आराम कराया गया जिससे वे भक्तों को पूरी आभा, दिव्यता और भव्यता के साथ दर्शन देने के लिए तैयार हो सकें। जैसा की हम सभी जानते हैं कि राम लला की मूर्ति का वजन करीब 150 किलो और कमल के पुष्प सहित ऊंचाई काफी ज्यादा हो गई है इसलिए इन तमाम वैदिक परंपराओं के पालन के लिए भगवान राम की रजत प्रतिमा का उपयोग किया गया। इन सभी संस्कारों,विधियों और पद्धतियों के बाद भगवान अपने आसन पर विधि विधान के साथ प्रतिष्ठित हुए।


 







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