संदेश

लू से भी बचिए और लू उतारने से भी..!!

चित्र
आमतौर पर परस्पर बोलचाल में लू या लपट से जुड़े एक मुहावरे का बहुत ज्यादा इस्तेमाल होता है। यह मुहावरा है ‘लू उतारना’। कहीं भी, विवाद बढ़ने पर यह कहा जाता है कि हम ‘दो मिनट में तुम्हारी लू उतार’ देंगे। इस मुहावरे में लू से आशय निश्चित तौर पर घमंड उतारने या बेइज्जती करने से है, लेकिन तकनीकी तौर पर देखें तो यह मुहावरा भी लू से जुड़ी गर्मी की वजह से ही रचा गया होगा । दिमाग पर गर्मी चढ़ना भी एक तरह से लू लगने जैसा ही  है । हम सब जानते हैं कि गर्मी के दिनों में लू किस हद तक खतरनाक होती है। अब आपके दिमाग में यह सवाल जरूर आ सकता है कि विदा लेते मानसून और ठंडक के आगमन के बीच लू का क्या काम? लू, बेमौसम बरसात की तरह अभी कैसे टपक पड़ी तो इसकी जरूरत इसलिए पड़ी है क्योंकि मध्य प्रदेश सरकार ने हाल ही में लू को लेकर एक बड़ा फैसला किया है।  इस फैसले में लू को प्राकृतिक आपदा में शामिल कर लिया गया है । यह कदम उठाने वाला मप्र देश का संभवतः तीसरा या चौथा राज्य है।  अब तक केरल या दक्षिण के गंभीर लू ग्रस्त राज्यों ने ही इस दिशा में पहल की है। इस फैसले का फायदा यह होगा कि अब लू से होने वाली मृत्य...

मीठा राजमार्ग…जहां बन रहे है मदहोश करने वाले फूल !!

चित्र
मीठा राजमार्ग, पढ़कर अचंभा सा लगता है न क्योंकि अब तक मीठी गली, ठंडी सड़क जैसे नाम तो अमूमन सुनने को मिलते रहे हैं लेकिन ‘मीठा राजमार्ग’ कुछ अलग है। तो, आइए चलते हैं प्रदेश के एक ऐसे मीठे राजमार्ग के सफ़र पर, जहां यदि आप कुछ देर ठहर गए तो यहां बन रहे फूल की खुशबू से शर्तिया मदहोश होकर ही आगे बढ़ पाएंगे।  तो यह है मप्र का राजमार्ग क्रमांक 45 । इन दिनों, जैसे ही आप भोपाल से बरेली होते हुए नरसिंहपुर जिले की ओर बढ़ते हैं तो आप को एक मीठी, मादक सी और जानी पहचानी सी खुशबू अपनी ओर खींचने लगती है। जैसे जैसे आप नरसिंहपुर के क़रीब पहुंचने लगते हैं राजमार्ग पर मिठास और बढ़ जाती है तथा आपको रुककर इसे महसूस करने के लिए खींचती है। यदि रुक गए तो तय है कि जुबान पर फूल की मिठास लिए बिना आगे नहीं बढ़ सकते और नहीं रुके तब भी दिल ओ दिमाग पर छा गई इस मीठी सी मदहोश कर देने वाली खुशबू से पीछा नहीं छुड़ा सकते।  राजमार्ग क्रमांक 45 पर हर साल इन दिनों में यह मिठास और मदहोशी छाई रहती है और अब तो यह मीठापन यहां के लोगों के स्वभाव और तासीर का हिस्सा बन गया है। तभी तो ओशो यानि आचार्य रजनीश की वाणी और आज के ...

कब तक हमसे बचोगे धुस्का..!!

चित्र
इतनी शिद्दत से यदि भगवान को भी याद किया होता तो शायद वे भी पसीज जाते लेकिन ‘धुस्का’ को मुझ पर कोई दया नहीं आई।  धुस्का की तलाश में हमने रांची के वे सभी इलाके छान मारे, जहां आमतौर पर धुस्का की मौजूदगी पाई जाती है लेकिन तलाश पूरी नहीं हो पाई। धुस्का और इसकी उपलब्धता के इलाकों के जानकार साथियों की सहायता भी ली लेकिन उनमें से अधिकतर ने हाथ खड़े कर दिए। यहां तक कि वापिसी में एयरपोर्ट के रास्ते में हमने सभी संभावित ठिकानों पर छापेमारी की लेकिन जैसे ईडी, सीबीआई या पुलिस के डर से अपराधी छिप जाते हैं,इसी तरह धुस्का भी जैसे गायब हो गया था।  आखिर,हमने ही हार मान ली और दिल पक्का कर अगली बार धुस्का के लिए ही झारखंड की यात्रा करने की प्रतिज्ञा के साथ वापसी की उड़ान पकड़ ली।  झारखंड-बिहार से बाहर के मित्रों के लिए धुस्का कुछ उसी तरह की अबूझ पहेली है जैसे महानगरों के लोगों और शायद नई पीढ़ी के लिए टपका।  धुस्का और टपका वैसे तो अलग अलग विषय हैं और इनमें कोई समानता भी नहीं है।  लेकिन,हमने फिर भी एक समानता तलाश ही नहीं…पानी। टपका आमतौर पर बारिश में पैदा होता है और घर के कोने कोने म...

यह ठेठ मालवी अंदाज़ बनाए रखिए मुख्यमंत्री जी!!

आमतौर पर राजनीतिक पत्रकार वार्ताएं नीरस होती हैं क्योंकि नेता या तो पत्रकार वार्ता के पहले ही सब बता चुके होते हैं या फिर कुछ बताना नहीं चाहते। ऐसे में यदि पत्रकार वार्ता निवेश और आर्थिक विषय पर हो तो उसके और भी बोझिल होने के खतरे रहते हैं क्योंकि हजारों लाखों करोड़ रुपए के आंकड़े और उनका घिसा पिटा सा प्रस्तुतीकरण खबर के केंद्र होता है जो रुचिकर तो नहीं हो सकता । इसलिए जब यूनाइटेड किंगडम (यूके) और जर्मनी की यात्रा से लौटने के बाद मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव की पत्रकार वार्ता की सूचना मिली तो यही उम्मीद थी कि रोज छप रहे निवेश प्रस्तावों और आंकड़ों के अलावा कुछ नहीं होगा। वैसे भी पत्रकार वार्ता का विषय भी इन देशों की यात्रा से जुटाए गए निवेश की जानकारी देना था इसलिए बिना कोई उम्मीदें पाले अपन भी मुख्यमंत्री निवास पहुंच गए।  मुख्यमंत्री निवास का सभागार ठसाठस भरा था। दर्जनों कैमरे मशीनगन की तर्ज पर सीधे उस स्थान पर निशाना साधे थे जहां मुख्यमंत्री को बैठना था। वहीं, रिवॉल्वर और बंदूकों जैसे छोटे मोटे हथियारों की तरह यूट्यूबर्स और पोर्टल वीरों के कैमरे सभागार में यत्र तत्र सर्वत्र बिखरे पड़...

मैंने नहीं कहा रेस्ट इन पीस..!!

चित्र
मैंने नहीं कहा RIP या भगवान तुम्हारी आत्मा को शांति दे या न ही मैंने दी विनम्र श्रद्धांजलि..क्यों दे, श्रद्धांजलि या क्यों करें तुम्हारी आत्मा की शांति की प्रार्थना…तुमने ऐसा कौन सा तीर मार दिया जो शांति की कामना करें। अरे, कोई ऐसे अपने परिवार को बीच मँझधार में छोड़कर जाता है क्या?  मासूम से प्रांजल का दिल कब तुम्हारी सेवा करते करते कड़ा हो गया,तुम्हें तो ढंग से पता भी नहीं है...भाभी महीनों से कैसे तुमसे अपने आंसू छिपाकर तुम्हें हौंसला देती थी और तुमने एक बार में ही उनके विश्वास को, उनकी तपस्या को तार तार कर दिया। बिटिया प्रियम तो अब तक ठीक से समझ भी नहीं पाई कि तुमने उसके सर से अपने स्नेह की छाया दूर कर दी है । वह आज भी तुम्हारे सभी दोस्तों से वैसे ही आगे बढ़कर मिल रही थी जैसे तुम्हारे सामने मिलती थी। जब तुम एंबुलेंस में अपने पैतृक निवास ललितपुर की यात्रा के लिए लेटे थे और भाभी का करुण क्रंदन बाहर तक द्रवित कर रहा था लेकिन तुम मजबूत कलेजा किए लेटे रहे!! उस चीत्कार पर तुम्हें उठ बैठना था,दिलासा देना था भाभी को,प्रांजल को..लेकिन तुम अपनी ही दुनिया में मगन थे तो हम क्यों तुम्हारी आत्...

रावण के बहाने समाज की बात…!!

चित्र
समाज में एक बार फिर रावण ‘आकार’ लेने लगा है। हर साल इन्हीं दिनों में देश के तमाम शहरों में रावण जन्म लेने लगता है और धीरे-धीरे उसका आकार विशाल और रूप भयंकर होता जाता है। आमतौर पर मानव जीवन में बच्चों के जन्म में 9 महीने का समय लगता है लेकिन रावण तो रावण है इसलिए वह 9 महीने का सफर महज 9 दिन में पूरा कर लेता है। वैसे भी बुरी प्रवृत्तियों के विस्तार में समय कहां लगता है। अच्छाइयों को जरूर आदत बनने में कई कसौटियों से गुजरना पड़ता है।   फिलहाल, रावण का धड़ बन गया है। इसमें अहम तथ्य यह है कि जन्म के साथ ही रावण फूलना शुरू कर देता है। यह फुलाव घमंड का हो सकता है,असीमित शक्ति का और शायद संपन्नता का भी। जैसे-जैसे रावण दहन का समय नजदीक आता जाएगा रावण का शरीर और सिर घमंड से बढ़ते जाएंगे। एक सिर वाला रावण दस सिर का हो जाएगा।…और फिर जैसा कि कहावतों/मुहावरों में कहा जाता है कि ‘पाप का घड़ा भर गया है’,’बुराई का अंत निकट है’ या फिर ‘बुराई का अंत अच्छाई से होता है,’ वाले अंदाज में तमाम बड़े आकार प्रकार के बाद भी रावण को अंततः जलना पड़ता है।    वैसे, इन दिनों समाज में समय के साथ-...

हिंदी के हत्यारे…आप/हम,और कौन!!

चित्र
' हिंदी के हत्यारे’…पढ़कर आप चौंक गए न और हो सकता है कुछ लोग शायद नाराज भी हो गए होंगे क्योंकि हमारी अपनी सर्वप्रिय और मीठी हिंदी भाषा के साथ हत्यारे जैसा क्रूर शब्द सुनना अच्छा नहीं लगता । लेकिन, जब मैं यह कहूं कि मैं,आप और हम सभी हिंदी के हत्यारे हैं तो शायद आपको और भी ज्यादा बुरा लग सकता है और लगना भी चाहिए क्योंकि जब तक बुरा नहीं लगेगा तब तक हम अपनी गलतियों को सुधारने या खुद को बेहतर बनाने के लिए प्रयास नहीं करेंगे। किसी भाषा में मिलावट, व्याकरण बिगाड़कर,उसकी अनदेखी करना और उसकी बनावट एवं बुनावट से छेड़छाड़ करते जाना उसे तिल तिल कर मारना ही तो है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी कहा कि ‘मातृभाषा का अनादर मां के अनादर के समान है।जो मातृभाषा का अनादर करता है वह देशभक्त कहलाने के लायक नहीं है।’ जब गांधी जी जैसी संजीदा और संयम वाली शख्सियत मातृभाषा का सम्मान नहीं करने वालों को देशद्रोही जैसा मानने की हद तक कट्टर हो सकती है तो हमारी हिंदी भाषा को बर्बाद करने वालों को हिंदी के हत्यारे कहने में क्या बुराई है।  हम सब हिंदी की हत्यारे हैं। यहां हम सब का मतलब मैं/हम/आप/ मीडिया/ सिनेमा/ ब...