हम भारतीय लोग दिखावे के मामले में शायद दुनिया में सबसे अव्वल हैं तभी तो बेटी को तो पैदा होते ही या जन्म लेने के पहले ही मार देते हैं और मदर्स डे इतनी धूमधाम से मानते हैं मानो हमसे बड़ा माँ का भक्त कोई और नहीं है.मेरे इस बात से शायद अधिकतर लोग इत्तेफाक रखते होंगे की दिल्ली सहित पंजाब,हरियाणा और उन तमाम राज्यों में जहाँ पुरुष-महिलाओं के बीच अंतर सबसे ज्यादा है और जहाँ सबसे ज्यादा भ्रूण हत्या का मामले सामने आ रहें हैं वाही के लोग बढ-चढ़कर मदर्स डे मना रहे हैं. हमारी साड्डी दिल्ली में तो कार्ड और गिफ्ट गैलरिओं में बीते कई दिनों से मेला सा लगा है ..हर मॉल में दुकाने सजी हैं ..होटलों में उस माँ के नाम पर नई-नई डिशे परोसी और भकोसी जा रहे हैं जिसे शायद सामान्य दिनों में पानी के लिए भी नहीं पूछते.पूरा बाज़ार ममतामय है माँ की ममता में .वही दूसरी और घर लौटते ही इनमे से कई लोग अपनी पत्नी (माँ का इक और रूप ) को कोसने,गरियाने और लतियाने में पीछे नहीं रहते . कुछ ऐसे भी हैं जो शायद मदर्स डे के दिन ही अपनी पत्नी को डॉक्टर को दिखाकर ये सुनिश्चित कर आयें हो की उसके पेट में बेटा ही है और यदि बाती है तो डॉक्टर से उसके सफाई का समय निर्धारित करवा आयें होंगे.ये सब करने के बाद भी वे मदर्स डे मनाने में कई कमी नहीं छोड़ रहे होंगे?आखिर माँ आती कहाँ से है-आसमान से ,पहाड़ से या फिर समुद्र से निकलती है ?अरे आज की बेटी ही तो कल किसी की माँ होगी ?तो फिर हम कौन होते हैं सृष्टि के इस चक्र को बदलने वाले?यदि हम्मरे पूर्वजों ने भी यही किया होता तो आज हमारा अस्तित्व ही नहीं होता?जब हमने माँ का पूरा लाड-प्यार पाया है तो नई पीढी को इससे वंचित रखने वाले हम कौन होते हैं?
मदर्स डे तो हमने धूमधाम से मना लिया लेकिन यह जानने की कोशिश भी की है की हम्मरे देश में हर १००००० प्रसव के दौरान २५४ माएं धाम तोड़ देती हैं क्यूकि उन्हें समय पर इलाज नहीं मिल पता .इसका मतलब है की हर आठवे मिनट में बच्चे को जन्म देते समय इक माँ की मौत!इस तरह देश में हर साल ६५००० महिलाओं की जान चली जाती है .विश्व स्वास्थ्य संगठन का मानना है की भारत में इस स्थिति में सुधार की २०७६ तक कोई सम्भावना नहीं है क्यूकि हमारी सरकार के पास हथियार खरीदने के लिए तो पैसा है पर इन महिलाओं की बेहतरी के लिए नहीं है.हमारे पास भी मदर्स डे की तरह हर छोटा-बड़ा पर्व मनाने के लिए तो समय और भरपूर पैसा है पर माँ के इलाज के नाम पर जेब खाली है .तो फिर मदर्स डे के नाम पर ये ढकोसला क्यों?
“जुगाली” समाज में आमतौर पर व्याप्त छोटी परन्तु गहराई तक असर करने वाली बुराइयों, कुरीतियों और समस्याओं पर ‘बौद्धिक विलाप’ कर अपने मन का बोझ हल्का करने और अन्य जुगाली-बाज़ों के साथ मिलकर इन बुराइयों को दूर करने के लिए एक अभियान है. आप भी इस मुहिम का हिस्सा बनकर बदलाव के इस प्रयास में भागीदार बन सकते हैं..
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