क्या अमीर दाल-रोटी नहीं खाते..?
एक पुरानी नैतिक कथा है-एक राजा धन का बहुत लालची था(हालाकि अब यह कोई असामान्य बात नहीं है).उसका खजाना सम्पदा से भरा था,फिर भी वह और धन इकट्ठा करना चाहता था.उसने जमकर तपस्या भी की.तपस्या से खुश होकर भगवान प्रकट हुए और उन्होंने पूछा -बोलो क्या वरदान चाहिए? राजा ने कहा -मैं जिस भी चीज़ को हाथ से स्पर्श करूँ वह सोने में बदल जाये. भगवान ने कहा-तथास्तु . बस फिर क्या था राजा की मौज हो गयी. उसने हाथ लगाने मात्र से अपना महल-पलंग,पेड़ -पौधे सभी सोने के बना लिए. मुश्किल तब शुरू हुई जब राजा भोजन करने बैठा. भोजन की थाली में हाथ लगाते ही थाली के साथ-साथ व्यंजन भी सोने के बन गए! पानी का गिलास उठाया तो वह भी सोने का हो गया. राजा घबराकर रानी के पास पहुंचा और उसे छुआ तो रानी भी सोने की हो गयी. इसीतरह राजकुमार को भूलवश गोद में उठा लिया तो वह भी सोने में बदल गया. अब राजा को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने पश्चाताप में स्वयं को ही हाथ लगाकर सोने की मूर्ति में बदल लिया. कहानी का सार यह है कि लालच हमेशा ही घातक होता है और संतोषी व्यक्ति सदैव सुखी रहता है.
लेकिन हाल ही में दो अलग-अलग अध्ययन सामने आये हैं जो "संतोषी सदा सुखी" की चिरकालीन भावना को गलत ठहराते से लगते हैं.एक अध्ययन में बताया गया है कि संपन्न व्यक्ति दाल-रोटी जैसा मूलभूत भोजन नहीं करते इसलिए यदि देश में महंगाई को कम करना है तो सम्पन्नता बढ़ानी होगी क्योंकि जैसे-जैसे अमीरी बढ़ेगी लोग दाल-रोटी-सब्जी खाना कम करते जायेंगे और जब इनकी मांग घट जाएगी तो इनकी कीमतें भी अपने आप कम हो जाएँगी! इस अध्ययन के मुताबिक देश की आर्थिक वृद्धि की रफ्तार जितनी तेज़ होगी अनाज की खपत उतनी ही कम होगी। सुनने में यह अटपटा लगता है लेकिन रिपोर्ट कहती है कि लोगों की मासिक आमदनी जितनी ज्यादा होगी अर्थात उनकी जेब में जितना ज्यादा पैसा होगा वे उतना ही पारंपरिक दाल -रोटी के बजाए फल, मांस जैसे अधिक प्रोटीन वाले दूसरे व्यंजन खाएंगे और उससे खाद्यान्न मांग घटेगी। नेशनल काउंसिल आफ एप्लायड इकोनामिक रिसर्च (एनसीएईआर) के इस शोध मे कहा गया है, आर्थिक वृद्धि दर यदि नौ फीसद सालाना रहती है तो खाद्यान की सकल मांग जो कि 2008-09 में 20.7 करोड़ टन पर थी 2012 तक 21.6 करोड़ टन और 2020 तक 24.1 करोड़ टन तक होगी। यदि आर्थिक वृद्धि 12 फीसद तक पहुंच जाती है तो अनाज की खपत 2020 तक कम होकर 23 करोड़ टन से भी कम रह जाएगी। अगर आर्थिक वृद्धि घटकर 6 फीसद रह जाती है तो 2012 तक खाद्यान्न मांग बढ़कर 22 करोड़ टन और 2020 तक 25 करोड़ टन हो जाएगी। मूल बात यह है कि खाद्यान्न की मांग-आपूर्ति के बीच संतुलन अनुमान से संबंधित इस रिपोर्ट को कृषि मंत्रालय के उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग ने तैयार करवाया है।
दूसरी रिपोर्ट में बताया गया है कि देश में करोड़पतियों की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है. इस अध्ययन के मुताबिक अब देश में सवा लाख से ज्यादा करोड़पति हो गए हैं. यह बात अलग है कि संपन्न लोगों की संख्या बढ़ने के बाद भी महंगाई तो जस की तस बनी हुई है-उल्टा दाम घटने की बजाय बढ़ने की ही ख़बरें ज्यादा आ रही हैं. रही दाल-रोटी खाने की बात तो अभी तक मैंने तो अमीरों मसलन अंबानी,टाटा,मित्तल या फिर फ़िल्मी दुनिया के बड़े सितारों (जिनकी फीस ही प्रति फिल्म करोड़ों में है)जैसे शाहरुख़ खान,आमिर खान,अमिताभ बच्चन,एश्वर्या राय,काजोल इत्यादि के जितने भी साक्षात्कार(interview)पढ़े हैं उनमें इन सभी ने अपनी दैनिक खुराक में दाल-रोटी का जिक्र अवश्य किया है.फ़िल्मी दुनिया में सबसे कमनीय काया की मालकिन शिल्पा शेट्टी भी भोजन में दाल-रोटी के महत्त्व को खुलकर स्वीकार करती हैं अपनी आय बढ़ाना तो अच्छी बात है लेकिन यह बात कहाँ से आ गयी कि अमीर लोग दाल-रोटी नहीं खाते या सम्पन्नता बढ़ने से दाल-रोटी की मांग घट जाएगी? यहाँ तक कि डॉक्टर भी अपने अमीर-गरीब मरीजों को दाल-रोटी,दलिया या खिचड़ी खाने की सलाह देते हैं.इस तरह के सर्वे की मंशा कहीं आम लोगों को उनके पारंपरिक भोजन से दूर करने की तो नहीं है? या यह महंगाई घटाने का कोई नया नुस्खा है? आप क्या सोचते हैं..?
लेकिन हाल ही में दो अलग-अलग अध्ययन सामने आये हैं जो "संतोषी सदा सुखी" की चिरकालीन भावना को गलत ठहराते से लगते हैं.एक अध्ययन में बताया गया है कि संपन्न व्यक्ति दाल-रोटी जैसा मूलभूत भोजन नहीं करते इसलिए यदि देश में महंगाई को कम करना है तो सम्पन्नता बढ़ानी होगी क्योंकि जैसे-जैसे अमीरी बढ़ेगी लोग दाल-रोटी-सब्जी खाना कम करते जायेंगे और जब इनकी मांग घट जाएगी तो इनकी कीमतें भी अपने आप कम हो जाएँगी! इस अध्ययन के मुताबिक देश की आर्थिक वृद्धि की रफ्तार जितनी तेज़ होगी अनाज की खपत उतनी ही कम होगी। सुनने में यह अटपटा लगता है लेकिन रिपोर्ट कहती है कि लोगों की मासिक आमदनी जितनी ज्यादा होगी अर्थात उनकी जेब में जितना ज्यादा पैसा होगा वे उतना ही पारंपरिक दाल -रोटी के बजाए फल, मांस जैसे अधिक प्रोटीन वाले दूसरे व्यंजन खाएंगे और उससे खाद्यान्न मांग घटेगी। नेशनल काउंसिल आफ एप्लायड इकोनामिक रिसर्च (एनसीएईआर) के इस शोध मे कहा गया है, आर्थिक वृद्धि दर यदि नौ फीसद सालाना रहती है तो खाद्यान की सकल मांग जो कि 2008-09 में 20.7 करोड़ टन पर थी 2012 तक 21.6 करोड़ टन और 2020 तक 24.1 करोड़ टन तक होगी। यदि आर्थिक वृद्धि 12 फीसद तक पहुंच जाती है तो अनाज की खपत 2020 तक कम होकर 23 करोड़ टन से भी कम रह जाएगी। अगर आर्थिक वृद्धि घटकर 6 फीसद रह जाती है तो 2012 तक खाद्यान्न मांग बढ़कर 22 करोड़ टन और 2020 तक 25 करोड़ टन हो जाएगी। मूल बात यह है कि खाद्यान्न की मांग-आपूर्ति के बीच संतुलन अनुमान से संबंधित इस रिपोर्ट को कृषि मंत्रालय के उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग ने तैयार करवाया है।
दूसरी रिपोर्ट में बताया गया है कि देश में करोड़पतियों की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है. इस अध्ययन के मुताबिक अब देश में सवा लाख से ज्यादा करोड़पति हो गए हैं. यह बात अलग है कि संपन्न लोगों की संख्या बढ़ने के बाद भी महंगाई तो जस की तस बनी हुई है-उल्टा दाम घटने की बजाय बढ़ने की ही ख़बरें ज्यादा आ रही हैं. रही दाल-रोटी खाने की बात तो अभी तक मैंने तो अमीरों मसलन अंबानी,टाटा,मित्तल या फिर फ़िल्मी दुनिया के बड़े सितारों (जिनकी फीस ही प्रति फिल्म करोड़ों में है)जैसे शाहरुख़ खान,आमिर खान,अमिताभ बच्चन,एश्वर्या राय,काजोल इत्यादि के जितने भी साक्षात्कार(interview)पढ़े हैं उनमें इन सभी ने अपनी दैनिक खुराक में दाल-रोटी का जिक्र अवश्य किया है.फ़िल्मी दुनिया में सबसे कमनीय काया की मालकिन शिल्पा शेट्टी भी भोजन में दाल-रोटी के महत्त्व को खुलकर स्वीकार करती हैं अपनी आय बढ़ाना तो अच्छी बात है लेकिन यह बात कहाँ से आ गयी कि अमीर लोग दाल-रोटी नहीं खाते या सम्पन्नता बढ़ने से दाल-रोटी की मांग घट जाएगी? यहाँ तक कि डॉक्टर भी अपने अमीर-गरीब मरीजों को दाल-रोटी,दलिया या खिचड़ी खाने की सलाह देते हैं.इस तरह के सर्वे की मंशा कहीं आम लोगों को उनके पारंपरिक भोजन से दूर करने की तो नहीं है? या यह महंगाई घटाने का कोई नया नुस्खा है? आप क्या सोचते हैं..?
kiya likhate ho bhai saheb
जवाब देंहटाएंbhut badhiya post ki hai.. sampnnta badhana mahgaai kam krne ka sahi upaay nahi balki iske like dhan sampatti ka sahi bantvaara va mahgaai kam karne k thos upaaye dundhna hai.
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