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कण कण में राम,जन जन में राम

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बंदउँ अवध पुरी अति पावनि, स रजू सरि कलि कलुष नसावनि। प्र नवउँ पुर नर नारि बहोरी, ममता जिन्ह पर प्रभुहि न थोरी।। भावार्थ- मैं अति पवित्र श्री अयोध्यापुरी और कलियुग के पापों का नाश करने वाली श्री सरयू नदी की वन्दना करता हूँ। फिर अवधपुरी के उन नर-नारियों को प्रणाम करता हूँ, जिन पर प्रभु श्री रामचन्द्रजी की बहुत ममता है। देश की नई देश की आध्यात्मिक और धार्मिक राजधानी अयोध्या भगवान श्री राम की जन्म भूमि के लिए दुनिया भर में मशहूर है। जाहिर सी बात है जहां साक्षात रामलला का जन्म हुआ हो उसे स्थान से बढ़कर और क्या हो सकता है। लेकिन सजती संवरती और नई अयोध्या को देखने के लिए यहां आने वाले श्रद्धालुओं और पर्यटकों को अयोध्या में रामलला विराजमान या श्री राम जन्मभूमि के अलावा और भी बहुत कुछ देखने को मिलेगा ।  अयोध्या प्राचीन काल से ही साधु संतों और मठ मंदिरों की नगरी रही है। यहां करीब 6000 से ज्यादा मंदिरों की मौजूदगी मानी जाती है। स्कंद पुराण में भी इस बात का उल्लेख है और कई ब्रिटिश इतिहासकारों ने भी अपने लेखन में अयोध्या में इतनी बड़ी संख्या में मंदिरों की मौजूदगी का उल्लेख किया है । अयोध्या वि...

‘सजन रेडियो बजईओ-बजईओ जरा..’

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हाल ही के वर्षों में रेडियो पर केंद्रित दो गाने खूब बजे। इनमें से एक शायद 2009 में आया था जिसमें मन का रेडियो बजाने की बात थी: ‘मन का रेडियो बजने दे ज़रा गम को भूल कर जी ले तू ज़रा स्टेशन कोई नया ट्यून कर ले ज़रा फुल्टू ऐटिटूड दे दे तू ज़रा..’ इसके बाद 2017 में सलमान खान की फिल्म ट्यूबलाइट में सजन रेडियो ने धूम मचाई: ‘सजन रेडियो बजईओ बजईओ बजईके सभी को नचईओ जरा..’  कहा जाता है फिल्में समाज का आइना होती हैं।समाज में जो चल/दौड़ रहा होता है वह फिल्मों में भी दिखने लगता है। इसका मतलब रेडियो चल रहा है…दौड़ रहा है, तभी तो फिल्मों में रेडियो पर गाने लिखे जा रहे हैं। वाकई, रेडियो फिर अपनी पूरी रफ्तार से चल पड़ा है। बीच में कुछ वक्त ऐसा था जब बुद्धू बक्से की आंधी में रेडियो को रफ्तार धीमी पड़ गई थी लेकिन लोगों को जल्दी ही समझ आ गया कि टीवी/छोटे परदे का जन्म उनको बुद्धू बनाने के लिए हुआ है। इसलिए, गलती समझ आते ही लोग वापस रेडियो की राह पर लौटने लगे।इस दौरान, रेडियो ने भी रंग रूप बदले और अपने आपको मोबाइल में समेट लिया। रेडियो कभी ट्रांजिस्टर बना तो कभी कारवां में बदला…कभी पॉडकास्ट बनकर छाया तो कभी...

बहुजन हिताय बहुजन सुखाय

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रेडियो अपनी स्थापना के बाद से ही सूचना, शिक्षा और मनोरंजन का सबसे बड़ा माध्यम रहा है। समय के साथ रेडियो ने भले ही अपने रूप, आकार,प्रकार और नाम बदले हो लेकिन उसके मूल में हमेशा ही यह तीन सिद्धांत कायम रहे हैं । फिर चाहे 8 फुट के एंटीना से चलने वाला रेडियो हो या फिर जेब में मौजूद मोबाइल के जरिए हर व्यक्ति तक पहुंच रहा रेडियो। आकाशवाणी हो या ऑल इंडिया रेडियो या कोई और चैनल, रेडियो ने हमेशा ही बहुजन हिताय बहुजन सुखाय की नीति पर चलते हुए सूचना और शिक्षा के साथ मनोरंजन का बीड़ा उठाया है। जब हम बहुजन हिताय बहुजन सुखाय की बात करते हैं तो इसमें बच्चों से लेकर परिवार के सबसे बड़े बुजुर्ग सदस्य तक शामिल होते हैं। यही कारण है कि रेडियो या यूं कहें कि आकाशवाणी ने हमेशा ही अपने विविधता भरे कार्यक्रमों और तथ्य परक समाचारों के जरिए सही सूचना और मनोरंजन पहुंचाने का दायित्व निभाया है।  दशकों से लेकर हाल में हुई कुछ घटनाओ के संदर्भ में देखें तो रेडियो हमेशा ही जनमानस का सबसे बड़ा साथी बनकर उभरा है। चाहे असम सहित पूर्वोत्तर के राज्यों में आने वाली बाढ़ हो या फिर देश भर को सदमे में डालने वाली बीमारी को...

गीता के मानस, मानस के श्रीराम

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  सठ सुधरहिं सत्संगति पाई। पारस परस कुघात सुहाई ।।  अर्थ: जिस प्रकार पारस के स्पर्श पाकर लोहा भी सोना बन जाता है, ठीक उसी प्रकार संत की संगति पाकर अपने अंदर की कुबुद्धि भाग जाती, जिससे जीवन अनमोल बन जाता है। वैसे तो भगवान श्रीराम की लीलाओं का बखान करने वाले ढेरों धार्मिक ग्रंथ मौजूद हैं पर जब भी राम लला की स्तुति होती है रामायण और रामचरित मानस के उल्लेख के बिना आराधना पूरी नहीं हो सकती। संस्कृत निष्ठ और विद्वानों परिवारों में जहां महर्षि बाल्मिकी रचित रामायण को  पूजा जाता है तो आम भारतीय परिवारों में यह गौरव रामचरित मानस को प्राप्त है। देश में देवाधिदेव भगवान राम की महिमाओं की चर्चा हो और रामचरितमानस का उल्लेख न हो यह संभव ही नहीं है।  सही मायनों में रामचरितमानस ही वह पवित्र और लोकप्रिय ग्रंथ है जिसने भगवान राम की लीलाओं को घर-घर और जन-जन तक पहुंचाने का महत्वपूर्ण काम किया है। किसी भी सनातनी परिवार में रामचरितमानस ग्रंथ की पूजा घर में मौजूदगी एक अनिवार्य संस्कार है । शायद, यह दुनिया की इकलौती धार्मिक पुस्तक है जो आराध्य राम की तरह ही पवित्र मानी जाती है और घर घर में...

रामलला को समर्पित सबसे अलग-सबसे अनूठा

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रमानाथ जहँ राजा सो पुर बरनि कि जाइ। अनिमादिक सुख संपदा रहीं अवध सब छाइ।।  भावार्थ: स्वयं लक्ष्मीपति भगवान्‌ जहाँ राजा हों, उस नगर का कहीं वर्णन किया जा सकता है? अणिमा आदि आठों सिद्धियाँ और समस्त सुख-संपत्तियाँ अयोध्या में छा रही हैं ॥ अयोध्या में रामलला के नए भव्य और दिव्य मंदिर में विराजमान होने के बाद दुनिया भर में उत्साह का माहौल है। लोगों की खुशियों का पारावार नहीं है और वे रामलला पर सर्वत्र न्यौछावर करने को तत्पर हैं। हर आम ओ खास इतना उल्लासित है कि वह अपने आराध्य को अपनी ओर से कुछ अलग,कुछ अनूठा और कुछ नया समर्पित करने के प्रयास में जुटा है। हर व्यक्ति अपनी हैसियत के मुताबिक अपने प्रभु और आराध्य को तन मन धन और अंतर आत्मा की गहराइयों से अपना अगाध प्रेम,श्रद्धा एवं समर्पण को भाव रूप में अर्पित करने के लिए आतुर है। कुछ लोग अपना भक्तिभाव समर्पित कर चुके हैं, कुछ कर रहे हैं और कुछ लोग तैयारियों में जुटे हैं। आम लोगों ने श्रद्धा पूर्वक दिए गए चंदे से पहले ही मंदिर ट्रस्ट का खज़ाना लबालब भर दिया है इसलिए अब कुछ अलग और कुछ अनूठा समर्पित करने की बारी है इसलिए दुनिया भर के सनातनी अपने ...

84 सेकेंड की माया

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  जोग लगन ग्रह बार तिथि सकल भए अनुकूल। चर अरु अचर हर्षजुत राम जनम सुखमूल॥ भावार्थ:योग, लग्न, ग्रह, वार और तिथि सभी अनुकूल हो गए। जड़ और चेतन सब हर्ष से भर गए। (क्योंकि) श्री राम का जन्म सुख का मूल है॥ अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के साथ ही देश में उल्लास और उत्सव का वातावरण है लेकिन भगवान श्रीराम की प्रतिमा की स्थापना के पहले से ही कई लोगों के मन में यह सवाल कौंध रहा है कि आखिर राम लला की प्राण प्रतिष्ठा के लिए 22 जनवरी की ही तारीख क्यों तय की गई? भारतीय सामाजिक-सांकृतिक परंपराओं और पौराणिक ग्रंथों में शुभ मुहूर्त का खास महत्व है। वैसे भी सनातन धर्म में कोई भी शुभ कार्य पंचांग के अनुसार, शुभ मुहूर्त देखकर ही किया जाता है। यही वजह है कि राम लला को विराजमान करने के लिए तिथि तय करते समय काफी विचार विमर्श किया गया और देश के तमाम प्रमुख पंडितों,ज्योतिषियों और सनातन धर्म के विद्वानों ने भारतीय पंचाग और प्राचीन ग्रंथों के अध्ययन के बाद यह तिथि तय की । आइए, अब जानते हैं कि 22 जनवरी को ऐसा क्या खास है जिस वजह से यह तारीख भारतीय सनातन संस्कृति के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज...

जब गांधी जी ने पहनी ब्रिटिश सेना की वर्दी…!!

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 ‘यह आश्चर्यजनक लग सकता है लेकिन सच है कि वर्ष 1899 में महात्मा गांधी ने ब्रिटिश सैन्य वर्दी पहनी थी।’ रक्षा मंत्रालय की सौ साल से प्रकाशित हो रही आधिकारिक पत्रिका ‘सैनिक समाचार’  के मुताबिक गांधी जी ने बोएर युद्ध के दौरान ब्रिटिश सेना की वर्दी पहनी थी। पत्रिका के हिंदी संस्करण में ‘जब गांधी ने सैनिक की वर्दी पहनी’ शीर्षक वाला यह लेख 9 अक्टूबर, 1977 को प्रकाशित हुआ था और जे पी चतुर्वेदी के इस लेख को सैनिक समाचार के प्रकाशन के सौ साल पूरे होने पर 2 जनवरी 2009 को प्रकाशित शताब्दी अंक और कॉफी-टेबल बुक में पुनः स्थान दिया गया था । रक्षा मंत्रालय द्वारा प्रकाशित की जा रही यह पत्रिका फिलहाल हिंदी और अंग्रेजी सहित तेरह भाषाओँ में नयी दिल्ली से प्रकाशित हो रही है। इस पत्रिका के पाठकों में सभी सैन्य मुख्यालय, अधिकारी, पूर्व सैनिक और दूतावास सहित तमाम अहम् संसथान शामिल हैं.      वैसे, जनवरी माह का गाँधी जी और सैनिक समाचार दोनों के साथ करीबी रिश्ता है. इस पत्रिका का प्रकाशन देश को मिली स्वतंत्रता से काफी पहले 2 जनवरी 1909 को शुरू हुआ था. तब इसकी कमान ब्रिटिश हाथों में...

ये मौसम का जादू है मितवा...

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ये कौन जादूगर आ गया..जिसने हमारे शहर के सबसे बेशकीमती नगीने को गायब कर दिया…साल के दूसरे दिन ही उस जादूगर ने ऐसी करामात दिखाई कि न तो ‘तालों में ताल’ भोपाल का बड़ा तालाब बचा और न ही शान-ए-शहर वीआईपी रोड….राजा भोज भी उसके आगोश में समा गए। जादूगर ने अपनी धूसर-सफेद आभा में हमारा बोट क्लब भी समाहित कर लिया तो वन विहार के जानवरों को भी संभलने का मौका तक नहीं दिया। जादूगर के जलवे से बड़े तालाब की एक अन्य पहचान जीवन वाटिका मंदिर और पवनपुत्र भी नहीं बचे।…बस, वहां से हनुमान चालीसा पढ़ने की आवाज़ तो आती रही लेकिन लोग गायब रहे और ‘मेरी आवाज ही पहचान है..’ की तर्ज पर हम यह कोशिश करते रहे कि मंदिर में कौन कौन स्वर मिला रहा है।  ये प्रकृति का जादू है…मौसम की माया है। आखिर,प्रकृति से बड़ा जादूगर कौन हो सकता है जिसने हमें हजारों रंग के फूलों, खुशबू,पक्षियों और अनुभूतियों से भर दिया है उसके लिए क्या बड़ा तालाब और क्या वीआईपी लोग। हम बात कर रहे हैं भोपाल में आज छाए घने कोहरे की…इतने घने कि सुबह के कुछ घंटों में मानो सब कुछ गुम हो गया…वीआईपी रोड की घमंड से ऊंची होती इमारतें, अदालती फैसले से वजूद के स...

जी हां,ये गन्ने के फूल हैं...??

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  गन्ने के फूल (Sugarcane flowers)..जी हां,ये गन्ने के फूल हैं । मेरी तरह गन्ने को केवल गुड़ और ‘गन्ने के रस’ के लिए जानने वालों के लिए यह जानकारी नई हो सकती है। कस्बाई पृष्ठभूमि में बचपन गुजारने के दौरान गन्ना,रस और गरमा गरम लिक्विड गुड़ से लेकर हमारे आपके घर तक पहुंचने वाले गुड़ की समूची प्रक्रिया से कई बार रूबरू होने का मौका मिला है और दोस्तों के सहयोग से खेत पर धनिया, पुदीना और नीबू के साथ ताज़ा गन्ने का रसपान भी सालों साल किया है लेकिन गन्ने का फूल देखने या इसके बारे में जानने का कभी मौका ही नहीं मिला। सोशल मीडिया पर फोटो डालने पर कई मित्रों ने इसे कांस बताया तो कुछ ने ज्वार और बाजरा। आमतौर पर, किसी भी पेड़ पौधे के लिए फूल सबसे ज़रूरी और कीमती अवस्था होती है जिससे फल और उस पौधे की अगली पीढ़ी के सृजन का मार्ग प्रशस्त होता है लेकिन गन्ने (स्थानीय बोलचाल में सांटे) के फूल के साथ ऐसा नहीं है। बताया जाता है कि गन्ने पर फूल आना सौभाग्य नहीं बल्कि दुर्भाग्य माना जाता है। प्रगतिशील युवा और कृषि में गहरी रुचि रखने वाले एवं मेरे भांजे अंकुर ने इस जिज्ञासा का बहुत विस्तार से समाधान किया।...

मैं आकाशवाणी भोपाल हूं…साढ़े छह दशकों से आपके सुख दुख का साथी…!!

मैं, आकाशवाणी भोपाल हूं। हमारे राज्य #मध्यप्रदेश का बड़ा भाई…वैसे तो हम जुड़वा भी हो सकते थे लेकिन मप्र की स्थापना से महज एक दिन पहले मैं अस्तित्व में आ गया। शायद, हमारे प्रदेश के जन्म और फिर इसकी विकास यात्रा से आप सभी को रूबरू कराने के लिए मुझे जुड़वा की बजाए चंद घंटे ही सही बड़ा बनना पड़ा। बस, तब से हम साथ साथ अपने अपने सफर पर हैं। आमतौर पर छोटा प्रगति करे तो बड़े को ईर्ष्या होने लगती है लेकिन हमारा मामला अलग है। हम कुछ कुछ अकबर बीरबल या फिर विजयनगर साम्राज्य के कृष्णदेव राय और तेनालीराम जैसे हैं। मेरा काम राज्य के लोगों का मनोरंजन करने के साथ सही गलत की जानकारी देना भी है। एक दौर था जब मेरी तूती बोलती थी। मेरे मुंह से अपना नाम सुनने के लिए नेताओं और कलाकारों की लाइन लगी रहती थी।आम लोगों की दिनचर्या का मैं अटूट हिस्सा था। रेडियो के सबसे लोकप्रिय श्री रामचरित मानस गान की शुरुआत का श्रेय मुझे ही जाता है। तो, फ़ोन इन कार्यक्रम को लाइव प्रसारित कर आपके पसंदीदा और फरमाइशी कार्यक्रम प्रस्तुत करने की शुरुआत भी मैंने ही की थी। मेरे सुरीले कंठ से निकले गीत, समसामयिक कार्यक्रम और बिना किसी...