शनिवार, 15 जून 2024

धधकते भोपाल को चाहिए हर घर में भगीरथ..!!

शाम के साढ़े सात बज रहे हैं। आकाशवाणी भोपाल के न्यूज रूम से बाहर निकलते ही ऐसा लग रहा है जैसे किसी भट्टी के पास से गुजर रहे हैं। शाम ढलते ही सूरज को भले ही रात के अंधेरे ने अपने आगोश में समेट लिया पर उसके तेवर झेलना न तो अंधेरे के वश में है और न ही आम लोगों के। ताल तलैयों का शहर भोपाल इन दिनों धधक रहा है। अपनी हरियाली पर इतराने वाला भोपाल अब गर्मी से लाल हो रहा है और यहां रहने वालों का हाल बेहाल।


हरियाली और स्वच्छता की राजधानी में तापमान 44 डिग्री सेल्सियस को भी पार कर गया है। न्यूनतम तापमान भी 31 डिग्री सेल्सियस से नीचे नहीं सरक रहा है। अब, जब रात का सबसे कम तापमान ही 31 डिग्री सेल्सियस हो तो पंखे आग उगलेंगे ही और फाइबर के कूलरों का लड़खड़ाना लाज़िमी है। जंबो और घर के बाहर की गरम हवा को ठंडा कर अंदर भेजने वाले फौलादी कूलर खुद पानी मांग रहें हैं। कूलर का क्या कहें, पुराने एसी ही गर्मी से हांफने लगे हैं और नए रंग-बिरंगे विज्ञापनी एसियों (ACs) को भी अपनी औकात समझ में आ गई है।


सड़कों पर बेवजह चहलकदमी करती छोटी कारें सांझ ढलने का इंतज़ार करती हैं तो दिनभर सड़कों पर हुंदराने वाले बाइक और स्कूटी सवार घरों में दुबक गए हैं। लू के थपेड़ों ने घर से बाहर निकलना मुश्किल कर दिया है। सूर्योदय के बाद मॉर्निंग वॉक करने वालों की सुबह 5 बजे होने लगी है क्योंकि इसके बाद वॉक मॉर्निंग नहीं टार्चर वॉक हो जाती है। ऐसा लग रहा है मानो दुश्मन देश की सेना आग के गोले बरसा रही है। ठंडा पानी प्यास बुझाने की बजाए पेट भरने का काम ज्यादा कर रहा है।


कभी अपने खुशनुमा तेवर,मौसम और लोगों के लिए मशहूर भोपाल ‘सिटी ऑफ लेक’ से बदलकर ‘सिटी ऑफ हीट’ बन रहा है। शहर को स्मार्ट बनाने की खातिर भेंट चढ़ गए हजारों छायादार वृक्षों की आशीष भरी ठंडक पहले ही छिन गई है और अब हर साल सैंकड़ों नए लोगों को बसाने के नाम पर लाक्षागृह के साथ साथ कांक्रीट के जंगल बोकर अपनी तिजौरियां भर रहे लोगों को न शहर के बाशिंदों की परवाह है और न ही हीटर बनते इस खूबसूरत शहर के भविष्य की। 


अभी भी वक्त है क्योंकि अभी नहीं चेते तो भोपाल के जयपुर, हैदराबाद और दिल्ली बनते देर नहीं लगेगी। कुछ कदम तो अनिवार्य रूप से उठाने की जरुरत है मसलन पेड़ काटने की मनमानी खत्म हो और बिना रेन वॉटर हार्वेस्टिंग/वर्षा जल संग्रहण की सुविधा के किसी को भी घर बनाने की मंजूरी नहीं दी जाए। आवासीय कालोनियों और सड़कों के किनारे चंपा, गुलमोहर और यूकेलिप्टस जैसे रूपवान तथा सजावटी पेड़ों के स्थान पर नीम, आम जामुन,पीपल, वट जैसे धीर-गंभीर,छायादार और फलदार वृक्ष लगाएं जाएं। बिना पार्किंग व्यवस्था के कार खरीदने पर पूरी तरह रोक लगाई जाए और घर-घर बिजली बनाने के लिए सौर ऊर्जा की सूर्योदय जैसी योजनाओं को खूब प्रोत्साहित किया जाए। व्यवहारिक तौर पर सोचे तो इन कामों  के लिए सरकारी नियमों के साथ साथ हमारे आपके स्तर पर भी भगीरथी प्रयासों की जरूरत है और बिना घर घर में भगीरथ तैयार किए अपने शहर को बचाना मुश्किल है। 


कुछ आप भी बताइए…कैसे अपने शहरों के प्राकृतिक गुण सहेजे जाएं? कैसे उन्हें आग का गोला बनने से रोका जाए और कैसे,आखिर कैसे गर्मी की अकड़ ठिकाने लगाई जाए…बताइए जरूर!!

अयोध्या पर देश का पहला दस्तावेज

अयोध्या 22 जनवरी, पुस्तक रामलला की प्राणप्रतिष्ठा और मंदिर निर्माण की जानकारियों को समाहित करके लाया गया संभवतः देश का प्रथम दस्तावेज है। ये सच है कि #राममंदिर का प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया ने जरूरत से ज्यादा कवरेज किया। लेकिन इस कवरेज में अधिकतर, जरूरत का था ही नहीं। यह पुस्तक राम मंदिर और 22 जनवरी की ऐतिहासिक घटना का विस्तारपूर्वक विवरण आपको देती है। 

इसमें दर्ज घटनाएं, जानकारियां, विवरण, उनकी पृष्ठभूमि पढ़ते पढ़ते आप रोमांचित भी होते हैं और यदा कदा आश्चर्यचकित भी। 


पुस्तक को चार भागों उल्लास, विकास, इतिहास और दृष्टि पर्व नामक चार अध्यायों में विभाजित किया गया है, जो आपके विचारों को तारतम्य देते हैं। उल्लास पर्व में अधिकतर सामग्री प्राण प्रतिष्ठा उत्सव से जुड़ी हैं, विकास पर्व में मंदिर और अयोध्या में आए बदलावों को शामिल किया गया है। इतिहास पर्व में ऐतिहासिक घटनाओं, दस्तावेजों का चित्रण साथ ही इस आयोजन पर भी प्रकाश डाला गया है। दृष्टि पर्व में विशिष्ट व्यक्तियों द्वारा इस आयोजन के बारे में की गई टिप्पणियों को समावेश है।


लेखक संजीव शर्मा

एक संयमित और जिम्मेदार लेखक हैं, ये उनकी इस वर्ष ही दूसरी कृति है। वे अतिरेक से बचते हुए अपने सम्पूर्ण लेखन को प्रामाणिक बनाए रखने में सफल रहे। सुघड़ भाषा, शब्द, विन्यास पढ़ते हुए आने वाले दबाव को संतुलित करते हैं। कुल मिलाकर एक बेहतरीन श्रेणी की पुस्तक है। यह पुस्तक उनके लिए भी है, को इस आयोजन उस दौरान नहीं देख सके और वे भी जो अगले एक दो सालों में अयोध्या जाने वाले हैं। इस पुस्तक को पढ़ने के बाद आप आयोजन और नई अयोध्या को एक दूसरे व्यापक नजरिए से भी देख सकेंगे। 


इसके प्रकाशक #लोक_प्रकाशन भोपाल हैं। जिन्होंने विषय को गरिमामय अंदाज से ही प्रस्तुत किया। कागज, प्रिंटिंग, कवर, फॉन्ट, लेआउट सभी कुछ शानदार है। इसके प्रमुख  Manoj Kumar  जी अपने हर पुस्तक के हर पक्ष को पूरा समय देते हैं। जिससे चीजें और भी बेहतर होती हैं। लेखन और प्रकाशक की इस जोड़ी ने वाकई कमाल किया है। उन्हें इस उपलब्धि पर बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं। पुस्तक अमेजन पर भी उपलब्ध है, प्रकाशक से भी मंगा सकते हैं। जरूर पढ़िए। 


पुस्तक समीक्षा : अयोध्या 22 जनवरी

लेखक : श्री संजीव शर्मा

प्रकाशक : लोक प्रकाशन, भोपाल

मूल्य: 300 रुपए मात्र

समीक्षक: संजीव परसाई


लेखक के बारे में: 

संजीव शर्मा आकाशवाणी भोपाल, मप्र में समाचार संपादक हैं और भारतीय सूचना सेवा के अधिकारी है। अयोध्या 22 जनवरी आपकी दूसरी पुस्तक है। इससे पहले विभिन्न देशों की यात्राओं पर केंद्रित ‘चार देश चालीस कहानियां’ पुस्तक भी काफी लोकप्रिय हुई थी। आपको माधवराव सप्रे समाचार पत्र संग्रहालय और शोध संस्थान भोपाल और जनसंपर्क सोसायटी ऑफ इंडिया मप्र सहित कई प्रतिष्ठित पुरस्कार मिल चुके हैं।


समीक्षक के बारे में:

संजीव परसाई जाने माने संचार कर्मी और व्यंग्यकार हैं। आप मप्र में स्वच्छ भारत मिशन शहरी के टीम लीडर हैं और कई अभिनव पहल के लिए जाने जाते हैं।


#Ayodhya #RamMandir

रिश्तों की गुल्लक सी है- ‘डायरी का मुड़ा हुआ पन्ना’

हम सभी के जीवन में बचपन से दो चीज अनिवार्य तौर पर शामिल रही हैं- एक है गुल्लक और दूसरी डायरी। गुल्लक का काम माता-पिता और रिश्तेदारों से मिले पैसों को सहेजना था तो डायरी का काम इन सभी के साथ अपने रिश्ते के तानेबाने,सुख-दुख और जीवन में घट रही घटनाओं को सहेजना। 

वरिष्ठ पत्रकार, व्यंग्यकार और लेखक संजय सक्सेना की पुस्तक ‘डायरी का मुड़ा हुआ पन्ना’ रिश्तों की गुल्लक के समान है। जैसे-जैसे आप इसके पन्ने पलटते हैं,आपको अपने आसपास के किरदार, आपके साथ घटी घटनाएं और रिश्तों को सहजने-समेटने का प्रयास अपना सा नजर आता है और आप इसके सहज प्रवाह में बहने लगते हैं। लेखक ने भले ही यह कहा है कि उनकी किताब फेसबुक पर लिखे हुए पोस्ट का संकलन है लेकिन हकीकत यह है कि यह किताब रिश्तों का संकलन है, उनके आसपास के किरदारों का संग्रहण है और कई सारे भावनात्मक पहलुओं का सम्मिश्रण है।


‘डायरी का मुड़ा हुआ पन्ना’ पुस्तक की छोटी-छोटी कहानी हमें हंसाती भी हैं और कई बार गंभीर भी करती हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हर लेखा हमें कोई न कोई सीख देकर जाता है.. चाहे फिर वह ‘हंसता हुआ नीम का पेड़ हो’, जो हमारी जीवन शैली का मजाक उड़ाता नजर आता है  या फिर ‘काम से लौट कर भी काम पर लौटती है’ लेख में घर में मां, पत्नी, बहन और बेटी की भूमिका। ‘चौपाल…’ जहां दोस्तों की महफिल सजाती है तो ‘कौन सा मेंढक न है’ लेख जीवन की कुछ और हकीकतों से रूबरू कराता है।


 ‘डायरी का मुड़ा हुआ पन्ना’ हमें मालवा निमाड़ की सौंधी खुशबू से जोड़ती है तो साथ ही आदिवासी संस्कृति की झलक भी पेश करती है। ‘भगोरिया’ और ‘गलचूल’ पर्वों पर केंद्रित लेख जहां हमें आदिवासियों की सहज संस्कृति से जोड़ देते हैं तो ‘नमकीन सत्तू’, ‘लंगोटिया यारी का जमघट’, ‘अटल जी का एकाकीपन’ और ‘आसान नहीं है बशीर भद्र हो जाना’... जैसे लेख समाज के आदर्शों ,उसूलों और  जीवन से जुड़ी घटनाओं से हमें जोड़ते हैं। 


सहज, सरल और आम बोलचाल की भाषा में लिखी गई है पुस्तक  डायरी का मुड़ा हुआ पन्ना वाकई रिश्तों की मजबूत गुल्लक की तरह है जिसे हर घर के महत्वपूर्ण कोने में स्थान मिलना चाहिए ताकि आप अपने रिश्तों को, भावनात्मक पहलुओं को और अपने आसपास के किरदारों को उसमें सहजेते रहें जो आज नहीं तो आने वाले कुछ सालों बाद आपके जीवन के एकाकीपन में रंग भरने का काम करेंगे। लेखक ने खुद लिखा है:


‘काग़ज की ये महक...ये नशा रूठने को है,

ये आख़िरी सदी है...किताबों से इश्क़ की।’


पुस्तक का कवर बेहद खूबसूरत है और उतना ही खूबसूरत है अधिकतर लेखों में जाने-माने शायरों के कुछ चुनिंदा शेर । पुस्तक का प्रकाशन भोपाल के लोक प्रशासन ने किया है। यह प्रकाशन अपनी साफ सुथरी, त्रुटि रहित प्रिंटिंग,पठनीय फॉन्ट  और दर्शनीय कवर के लिए तेजी से लोकप्रिय हो रहा है। यह पुस्तक अमेजन से लेकर इंटरनेट की तमाम लोकप्रिय साइट पर मौजूद है। महज ₹200 में उपलब्ध 155 पन्नों में फैली रिश्तों की यह गुल्लक आपको और आपकी आने वाली पीढ़ी को परस्पर संबंधों के महत्व का पाठ पढाने के लिए  वाकई जरूरी है।


पुस्तक : ‘डायरी का मुड़ा हुआ पन्ना’

लेखक : श्री संजय सक्सेना

मूल्य : 200 रुपए

पृष्ठ संख्या : 155

प्रकाशन : लोक प्रकाशन








मोदी मंत्र: तनाव नहीं उत्सव है परीक्षा

परीक्षा का नाम सुनते ही शरीर में एक फुरफुरी उठना स्वाभाविक प्रक्रिया है। जरूरी नहीं है कि परीक्षा केवल बोर्ड परीक्षा हो बल्कि संघ लोक सेवा आयोग द्वारा ली जाने वाली परीक्षाओं के दौरान भी होनहार से होनहार परीक्षार्थी भी इस तनाव के दौर से गुजरते हैं। दरअसल, सालों से चले आ रहे सामाजिक दबाव, पीढ़ियों से चली आ रही पारिवारिक प्रतिस्पर्धा, अभिभावकों की अज्ञानता एवं लालसा, शिक्षकों की नाम कमाने की चाह और कोचिंग संस्कृति ने बच्चों में हमेशा सबसे अव्वल रहने की ऐसी कामना जगा दी है जिसने समय के साथ परीक्षा के तनाव को जन्म दे दिया है। साल दर साल यह तनाव हमारी आदत और विद्यार्थियों की आदत में घुलता मिलता रहा और अब यह सुस्थापित संस्कृति बन गया है।

परीक्षा और खासकर बोर्ड परीक्षाओं के दौरान आप किसी ऐसे घर में जाकर वहां का वातावरण देखें तो आप आसानी से समझ सकते हैं कि परीक्षा का तनाव कैसे और कहां से उत्पन्न होता है और फलता फूलता है। परीक्षा के दौरान घर को कुरुक्षेत्र का मैदान बना देना अभिभावकों का सामान्य स्वभाव बन गया है। यह स्थिति परीक्षा ही नहीं, परिणामों तथा उसके बाद तक बनी रहती है। किसी दौर में 60 प्रतिशत आना घर ही नहीं शहर में सम्मान की बात होती थी क्योंकि ये प्रतिशत प्रथम श्रेणी कहलाते थे और आज 60 प्रतिशत क्या 75 से 80 प्रतिशत आने पर भी अभिभावक ऐसे मायूस लगते हैं जैसे उनका बच्चा परीक्षा में फेल हो गया है। नब्बे प्रतिशत से अधिक की दौड़ ने घर घर में परीक्षा के तनाव को लोक संस्कृति का रूप दे दिया है। देश के मुखिया को यदि किसी विषय पर अवाम को लगातार संबोधित करना पड़े तो यह बात आसानी से समझी जा सकती है कि वह विषय कितना गंभीर है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सालाना परीक्षा पे चर्चा कार्यक्रम इसी दिशा में किया जा रहा एक उत्कृष्ट एवं सराहनीय प्रयास है। संभवतः दुनिया के किसी देश में प्रधानमंत्री ने इस तरह की अनूठी तथा अनुकरणीय पहल नहीं की है। श्री मोदी सात साल से अपने इस मुहिम को आगे बढ़ा रहे हैं और हर साल उनके इस कार्यक्रम से जुड़ने वाले विद्यार्थियों, अभिभावकों और शिक्षकों की संख्या बढ़ रही है। परीक्षा पे चर्चा कार्यक्रम 2018 में शुरू हुआ  था। इस कार्यक्रम में देश-विदेश के छात्र, शिक्षक और अभिभावक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ परीक्षाओं और स्कूली जीवन से संबंधित चिंताओं पर चर्चा करते हैं। परीक्षा पे चर्चा कार्यक्रम पहली बार साल 2018 में मनाया गया था। इस कार्यक्रम में देश-विदेश दोनों के ही छात्र, शिक्षक और अभिभावक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ परीक्षाओं और स्कूली जीवन से संबंधित चिंताओं पर चर्चा करते हैं। परीक्षा पे चर्चा 2024 के लिए 2 करोड़ से ज्यादा छात्रों, अभिभावकों और शिक्षकों ने रजिस्ट्रेशन करवाया है। केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के मुताबिक, 2.26 करोड़ छात्रों ने श्री मोदी के बहुप्रतीक्षित कार्यक्रम पीपीसी 2024 के लिए पंजीकरण करवाया। MyGov पोर्टल पर उपलब्ध जानकारी के मुताबिक, छात्रों के अलावा 14 लाख से ज्यादा शिक्षकों और 5 लाख अभिभावकों ने परीक्षा पे चर्चा 2024 के लिए पंजीकरण किया है. इस खास प्रोग्राम के दौरान 4 हजार लोगों ने सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बात की। इस साल परीक्षा के दौरान तनाव प्रबंधन पर चर्चा करते हुए श्री मोदी ने कहा कि ये तो नहीं कह सकते कि switch off, प्रेशर बंद, ऐसा तो नहीं कह सकते, तो हमने अपने आप को एक तो किसी भी प्रकार के प्रेशर को झेलने के लिए सामर्थ्यवान बनाना चाहिए, रोते बैठना नहीं चाहिए। मान के चलना चाहिए कि जीवन में आता रहता है, दबाव बनता रहता है। तो खुद को तैयार करना पड़ता है। वहीं, प्रतिस्पर्धा से तनाव की चिंता पर प्रधानमंत्री ने कहा कि अगर जीवन में चुनौतियां न हो, स्पर्धा न हो, तो फिर जीवन बहुत ही प्रेरणाहीन बन जाएगा, चेतनाहीन बन जाएगा, competition होनी ही चाहिए।  परंतु कभी भी हमें ईर्ष्या भाव कतई अपने मन में नहीं आने देना चाहिए। हम अपने दोस्‍तों से स्‍पर्धा और ईर्ष्या के भाव में न डूबें और मैंने तो ऐसे लोग देखे हैं कि खुद फेल हो जाएं, लेकिन अगर दोस्‍त सफल हुआ है तो मिठाई वो बांटता है। मैंने ऐसे भी दोस्‍त देखे हैं कि जो बहुत अच्‍छे नंबर से आए हैं, लेकिन दोस्‍त नहीं आया, इसलिए उसने अपने घर में पार्टी नहीं की, फेस्टिवल नहीं मनाया। परीक्षा के समय तनाव के कारण होने वाली गलतियों पर उन्होंने विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि कुछ गलतियां यानी रोजमर्रा को हम थोड़ा observe करें तो पता चलेगा। कुछ गलतियां पेरेंट्स के अति उत्साह के कारण होती हैं। कुछ गलतियां स्टूडेंट्स की अति से sincerity से होती है। मैं समझता हूं, इससे बचा जाए। जैसे मैंने देखा है कि कुछ मां बाप को लगता है कि आज एग्जाम है तो बेटे को नई पेन लाकर के दो। जरा कपड़े अच्छे पहनाकर के भेजो, तो उसका काफी समय तो उसमें एडजस्ट होने में ही निकल जाता है। शर्ट ठीक है कि नहीं है, यूनिफॉर्म ठीक पहना है कि नहीं पहना है। मां बाप से मेरा आग्रह है जो पेन रोज उपयोग करता है न वही दीजिए आप। या वहां पेन दिखाने थोड़ी जा रहा है वो, और परीक्षा के समय किसी को फुर्सत नहीं है आपका बच्चा नया पहनकर के आया, पुराना पहन के आया है। तो इस साइकी से उनको बाहर आना चाहिए। दूसरा कुछ ऐसी चीजें खिलाकर के भेजेंगे कि एग्जाम है ये खाकर जाओ, एग्जाम है ये खाकर जाओ, तो उसको और मुसीबत होती है कि उसका वो comfort नहीं है। आवश्यकता से अधिक उस दिन खाना फिर मां कहेगी कि अरे तुम्हारा तो एग्जाम सेंटर इतना दूर है। तुम रात आते-आते 7 बज जाएगा, ऐसा करो कुछ खाकर जाओ फिर कहेगी कुछ लेकर जाओ। वो resist करने लगता है नहीं, मैं नहीं ले जाऊंगा। वहीं से तनाव शुरू हो जाता है, घर से निकलने से पहले हो जाता है। तो मेरी सभी पेरेंट्स से अपेक्षा है और मेरा सुझाव है कि आप उसको अपनी मस्ती में जीने दीजिए। एग्जाम देने जा रहा है तो उत्साह उमंग के साथ चला जाए बस। जो विद्यार्थियों में लिखने,लिखकर अभ्यास करने और सोशल मीडिया टूल से तैयारी को लेकर प्रधानमंत्री सबसे ज्यादा चिंतित दिखे। उन्होंने कहा कि आजकल यह सबसे बड़ी समस्या है । उन्होंने पूछा कि आप मुझे बताइये, आप exam देने जाते हैं, मतलब आप physically क्या करते हैं। आप physically पेन हाथ में पकड़कर के लिखते हैं, यही करते है न? दिमाग अपना काम करता है लेकिन आप क्या करते हैं, लिखते हैं। आज के युग में आईपेड के कारण, कम्प्यूटर के कारण, मोबाइल के कारण मेरी लिखने की आदत धीरे-धीरे कम हो गई है। जबकि एग्जाम में लिखना होता है। इसका मतलब हुआ कि मुझे अगर एग्जाम के लिए तैयार करना है तो मुझे अपने आपको लिखने के लिए भी तैयार करना है। आजकल बहुत कम लोग हैं, जिनको लिखने की आदत है। अब इसलिए daily जितना समय आप अपने पठन पाठन में लगाते हैं स्कूल के बाद। उसका minimum 50% time, minimum 50% time आप खुद अपनी नोटबुक के अंदर कुछ न कुछ लिखेंगे। हो सके तो उस विषय पर लिखेंगे। और तीन बार चार बार खुद का लिखा हुआ पढ़ेंगे और खुद का लिखा हुआ करेक्ट करेंगे। तो आपका जो improvement होगा किसी की मदद बिना इतना बढ़िया हो जाएगा कि आपको बाद में लिखने की आदत हो जाएगी। तो कितने पेज पर लिखना, कितना लिखने में कितना समय जाता है, ये आपकी मास्टरी हो जाएगी। श्री मोदी ने विद्यार्थियों से आग्रह किया कि आपके एग्जाम में एक बड़ा चैलेंज होता है लिखना। कितना याद रहा, सही रहा, गलत रहा, सही लिखते हैं, गलत लिखते हैं तो वो तो बाद का विषय है। आप अपना ध्यान प्रैक्टिस में इस पर कीजिए। अगर ऐसी कुछ चीजों पर अगर आप ध्यान केंद्रित करेंगे, मुझे पक्का विश्वास है कि एग्जाम हॉल में बैठने के बाद जो uncomfort  या pressure फील करते हैं वो आपको लगेगा ही नहीं क्योंकि आप आदि हैं। अगर आपको तैरना आता है तो पानी में जाने से डर नहीं लगता है आपको क्योंकि आप तैरना जानते हैं। आपने किताबों में तैरना ऐसे होता है और आप सोचते हैं हां मैंने तो पढ़ा था भई हाथ पहले ऐसे करते हैं, फिर दूसरा हाथ फिर तीसरा हाथ फिर चौथा हाथ तो फिर आपको लगता है कि हां पहले हाथ पहले पैर। दिमाग से काम कर लिया, अंदर जाते ही फिर मुसीबत शुरू हो जाती है। लेकिन जिसने पानी में ही प्रैक्टिस शुरू कर दी, उसको कितना ही गहरा पानी क्यों न हो उसको भरोसा होता है मैं पार कर जाऊंगा। और इसलिए प्रैक्टिस बहुत आवश्यक है, लिखने की प्रैक्टिस बहुत आवश्यक है। और लिखना जितना ज्यादा होगा, शार्पनेस ज्यादा आएगी। आपके विचारों में भी शार्पनेस आएगी। और अपनी लिखी हुई चीज को तीन बार, चार बार पढ़कर खुद करेक्ट कीजिए। जितना ज्यादा खुद करेक्ट करोगे, आपकी उस पर ग्रिप बहुत ज्यादा आएगी। तो आपको अंदर बैठकर के कोई प्रॉबल्म नहीं होगी। दूसरा अगल-बगल में वो बड़ी स्पीड से लिख रहा है। मैं तो तीसरे question पर अड़ा हुआ हूं, वो तो सातवें पर चला गया। दिमाग इसमें मत खपाईये बाबा। वो 7 में पहुंचे, 9 में पहुंचे, करे न करे, पता नहीं वो सिनेमा की स्टोरी लिखता होगा, तुम अपने पर भरोसा करो, तुम अपने पर भरोसा करो। अगल-बगल में कौन क्या करता है छोड़ो। जितना ज्यादा अपने आप पर फोकस करोगे उतना ही ज्यादा आपका question paper पर फोकस होगा। जितना ज्यादा question paper पर फोकस होगा इतना ही आपके answer एक-एक शब्द पर हो जाएगा, और ultimately आपको परिणाम उचित मिल जाएगा । प्रधानमंत्री की पहल और नीतियों पर अमल करते हुए सीबीएसई (केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड) ने 9वीं से 12वीं कक्षा तक के विद्यार्थियों के लिए किताबें और नोट्स खोलकर परीक्षा देने की शुरुआत करने का एलान  किया है । जानकारी के अनुसार नेशनल करिकुलम फ्रेमवर्क (एनएफसी) की सिफारिशों के तहत ओपन बुक एग्जाम (ओबीई) को पायलट प्रोजेक्ट के रूप में इसी साल नवंबर-दिसंबर से शुरू किए जाने की संभावना है। हालांकि, ओपन बुक एग्जाम को 10वीं और 12वीं बोर्ड की परीक्षाओं में लागू नहीं किया जाएगा। उम्मीद है कि इससे  छात्रों में परीक्षा के प्रति अनावश्यक तनाव और चिंताओं में कमी आएगी। शुरुआत में पायलट प्रोजेक्ट के अंतर्गत कुछ स्कूलों में ओपन बुक एग्जाम होगा। सभी पक्षों द्वारा आकलन करने के बाद इसे देशभर में लागू किया जाएगा। दुनिया के कई प्रमुख देशों में मसलन नॉर्वे, फिनलैंड, स्वीडन और डेनमार्क के स्कूलों में, अमेरिका लॉ कॉलेज, जर्मनी के इंजीनियरिंग कोर्स, ऑस्ट्रेलिया में मेडिकल की परीक्षाएं और ब्रिटेन में इकोनॉमिक्स के ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स में परीक्षाएं ओपन बुक एग्जाम पद्धति से होती हैं। तकनीकी और गैजेट के बढ़ते इस्तेमाल पर प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारे यहां शास्‍त्रों में भी कहा गया है और सहज जीवन में भी कहा गया है...किसी भी चीज की अति किसी का भला नहीं करती है। हर चीज, उसका एक मानदंड होना चाहिए, उसके आधार पर होता है। मैं समझता हूं कि परिवार में कुछ नियम होने चाहिए, जैसे खाना खाते समय डाइनिंग टेबल पर कोई इलेक्ट्रॉनिक गजट नहीं होगा, मतलब नहीं होगा। उन्होंने कहा कि टेक्‍नोलॉजी को बोझ नहीं मानना चाहिए, टेक्‍नोलॉजी से दूर भागना नहीं चाहिए, लेकिन उसका सही उपयोग सीखना उतना ही अनिवार्य है। अगर आप टेक्‍नोलॉजी से परिचित हैं...आपके माता-पिता को पूरी नॉलेज नहीं है...सबसे पहला आपका काम है आज मोबाइल पर क्‍या-क्‍या available है, उनसे चर्चा कीजिए...उनको एजुकेट कीजिए...और उनको विश्‍वास में लीजिए कि देखिए, मैथ में मुझे ये चीजें यहां मिलती हैं, केमिस्ट्री में मुझे ये मिलती हैं, हिस्ट्री में ये मिलती हैं, और मैं इसको देखता हूं, आप भी देखिए। तो वो भी थोड़ी रुचि लेंगे, वरना क्‍या होगा...हर बार उनको लगता होगा कि मोबाइल मतलब ये दोस्‍तों के साथ चिपका हुआ है। मोबाइल मतलब रील देख रहा है। यदि हम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस पहल को देश की सामाजिक, सांस्कृतिक और भौगोलिक परिस्थितियों के लिहाज से देखें तो यह स्पष्ट नजर आता है कि परीक्षा से तनाव किसी एक घर, स्कूल, शहर या राज्य  की समस्या नहीं है बल्कि राष्ट्रीय समस्या है और इसका निवारण केवल और केवल किसी विशिष्ट व्यक्ति की बातचीत से ही निकल सकता है क्योंकि उस व्यक्ति की बात विद्यार्थियों के साथ साथ अभिभावक और शिक्षक भी सुन रहे होते हैं। श्री मोदी की बात उन परिवारों तक भी पहुंचती है जिनके बच्चे परीक्षा नहीं दे रहे हैं। इससे समाज के स्तर पर बदलाव की शुरुआत होती है। यह बदलाव पीयर प्रेसर कम करता है जिसका असर अभिभावकों के माध्यम से बच्चों तक पहुंचता है। धीरे धीरे ही सही यह बदलाव अपना असर दिखाएगा और हम अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए तनाव रहित परीक्षा का वातावरण तैयार कर पाएंगे ताकि फिर किसी परिवार का होनहार बच्चा आत्महत्या जैसा जघन्य कदम न उठाए और किसी परिवार को अपने मासूम लाडले से दूर न होना पड़े।











मिशन दिव्यास्त्र: हर दुश्मन तक सटीक निशाना

छोटे पर्दे पर धार्मिक कथाओं पर आधारित धारावाहिकों एवं फिल्मों में हम देखते हैं कि युद्ध के दौरान कोई भी अस्त्र शस्त्र अदृश्य हो जाता है और कभी स्मरण करते ही योद्धा के हाथ में आ जाता है, कोई बाण आग बरसाने लगता है तो कोई पानी से उसे बुझाने की क्षमता रखता है,कोई तीर एकसाथ सैकड़ों तीरों की बारिश कर देता है तो कोई पत्थरों की। ये सभी दिव्यास्त्र हैं। 'दिव्यास्त्र' मतलब दिव्य अस्त्र…ऐसे अस्त्र, जो, उनका इस्तेमाल करने वाले के इशारों पर काम करते हों और एक ही बार में दुश्मन के तमाम ठिकानों को नेस्तनाबूद करने की क्षमता रखते हों। ‘दिव्यास्त्र’ शब्द का उल्लेख आमतौर पर प्राचीन भारतीय पौराणिक ग्रंथों और कथाओं विशेषकर महाभारत और रामायण में मिलता है। नई पीढ़ी को इस शब्द से रूबरू कराने में इन ग्रंथों पर बने धारावाहिकों ने अहम भूमिका निभाई है। 


ऐसा बताया जाता है कि देवताओं और ऋषियों द्वारा प्रदत्त ये अस्त्र विशिष्ट देवताओं से जुड़े होते थे और दिव्य शक्तियों से सज्जित ये हथियार काम पूरा करने के बाद ही वापस लौटते थे। एक बार दिव्यास्त्र छोड़ने के बाद उन्हें रोकना भी मुश्किल होता था इसलिए दिव्यास्त्र का उपयोग निर्धारित नीति के अनुरूप, दिशा निर्देश का पालन करते हुए और पूरी  जिम्मेदारी के साथ किया जाता था। सामान्य भाषा में समझे तो ऐसे अकाट्य अस्त्र शस्त्र जो किसी भी व्यक्ति के सर्वशक्तिशाली होने का पर्याय होते हैं।


अब बात भारत के ‘मिशन दिव्यास्त्र’ की। दरअसल,दुनिया के चुनिंदा देशों के इलीट क्लब में शामिल होने के लिए और आर्थिक एवं वैश्विक पटल पर अपनी धमक बनाने के लिए अपनी ताक़त का प्रदर्शन करना भी जरूरी है। संपूर्ण विकास के लिए देश का सर्व शक्तिशाली होना भी उतना ही जरूरी है इसलिए भारत ने ‘मिशन दिव्यास्त्र’ की शुरुआत की। इसका उद्देश्य एक ऐसा अस्त्र तैयार करना था जो एक साथ कई अस्त्र शस्त्रों की अकल ठिकाने लगाने का माद्दा रखता हो। सबसे खास बात यह है कि दिव्यास्त्र के विकास का जिम्मा शक्ति स्वरूपा महिला वैज्ञानिकों को सौंपा गया। वैसे भी, हमारी पौराणिक कथाओं के अनुसार शक्ति के हाथ में ही देवताओं ने अपनी तमाम दिव्य शक्तियां सौंप दी थी ताकि वे शत्रुओं का सर्वमूल विनाश कर सकें।


भारत ने इस साल 11 मार्च को न्यूक्लियर बैलेस्टिक मिसाइल अग्नि-5 का पहला सफल फ्लाइट परीक्षण कर इतिहास रच दिया है। अग्नि-5 मिसाइल को मेक इन इंडिया पहल के तहत रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन -डीआरडीओ द्वारा विकसित किया गया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अग्नि-5 मिसाइल को 'मिशन दिव्यास्त्र' नाम दिया है। 


डीआरडीओ ने सफल प्रक्षेपण के बाद आधिकारिक रुप से बताया कि ‘मिशन दिव्यास्त्र’ नामक यह उड़ान परीक्षण ओडिशा के डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम द्वीप से किया गया। विभिन्न टेलीमेट्री और रडार स्टेशनों ने अनेक री-एंट्री व्हीकल्‍स को ट्रैक और मॉनिटर किया। इस मिशन ने निर्दिष्‍ट मानकों को सफलतापूर्वक पूरा किया।


इस मिसाइल के सफल परीक्षण के साथ ही अब भारत की पहुँच चीन और पाकिस्तान सहित विश्व के लगभग आधे देश या आधी दुनिया तक हो चुकी है। यह मिसाइल 5 हजार किलोमीटर से भी अधिक दूर के लक्ष्य को भेद सकती है। यह, मल्टीपल इंडिपेंडेंटली टारगेटेबल री-एंट्री व्हीकल- एमआईआरवी तकनीक के साथ स्वदेशी रूप से विकसित अग्नि-5 मिसाइल का पहला उड़ान परीक्षण था। इस मिसाइल के सफल परीक्षण के साथ ही भारत ने एक ही मिसाइल के माध्यम से विभिन्न स्थानों पर कई लक्ष्यों को भेद सकने की क्षमता विकसित कर ली है। आमतौर पर एक मिसाइल में एक ही वॉरहेड होता है और ये एक ही लक्ष्य को मार करता है जबकि अग्नि 5 इस मामले में सबसे अलग है और कई लक्ष्यों को साध सकती है ।


एमआईआरवी एक ऐसी अत्याधुनिक तकनीक है जो किसी मिसाइल को एक ही बार में एक से अधिक परमाणु हथियार ले जाने की क्षमता प्रदान करती है। इससे दुश्मन के विभिन्न लक्ष्यों को एक साथ निशाने पर लेकर नष्ट किया जा सकता है।एमआईआरवी तकनीक का विकास सबसे पहले अमेरिका ने 1970 के आसपास किया था। इसके बाद सोवियत संघ ने यह प्रौद्योगिकी हासिल कर ली। 20वीं सदी  तक अमेरिका और सोवियत संघ दोनों ही इस प्रौद्योगिकी से सुसज्जित कई  अंतर महाद्वीपीय और पनडुब्बी से मार करने वाली बैलिस्टिक मिसाइलें विकसित कर लीं थीं।​​​​​ 


अग्नि सीरीज की यह पांचवी मिसाइल 5000 किलोमीटर से अधिक दूरी की मारक क्षमता वाली है। अग्नि 5 मिसाइल को देश की दीर्घकालिक सुरक्षा जरूरतों को देखते हुए विकसित किया गया है। यह मिसाइल यूरोप के कुछ क्षेत्रों सहित लगभग पूरे एशिया तक  मारक क्षमता रखती है। 


अग्नि 5 जमीन से जमीन पर मार करने वाली और करीब डेढ़ टन तक न्यूक्लियर हथियार  ले जाने में सक्षम मिसाइल है। इस मिसाइल की रफ्तार आवाज की रफ्तार से करीब 24 गुना अधिक है। दिव्यास्त्र यानि इस भारतीय मिसाइल की एक अन्य खासियत यह है कि इसके लॉन्चिंग सिस्टम में कैनिस्टर टेक्नोलॉजी का उपयोग किया गया है। इस प्रौद्योगिकी के फलस्वरूप मिसाइल को कहीं भी आसानी से ले जाया सकता है। गौरतलब है कि भारत के पास पहले से ही अग्नि 1 से अग्नि 4 तक की मिसाइलों का जखीरा है। इन विभिन्न मिसाइलों की मारक क्षमता 700 किलोमीटर से 3,500 किलोमीटर तक है और ये पहले ही देश की सुरक्षा में अहम भूमिका निभा रही हैं। अब भारत, पृथ्वी की वायुमंडलीय सीमा के अंदर और बाहर दुश्मन देशों की बैलिस्टिक मिसाइलों को रोकने की क्षमता भी विकसित कर रहा है। मिशन दिव्यास्त्र की सफलता भारत की बढ़ती तकनीकी शक्ति की प्रतीक है और इसने भविष्य में और उन्नत प्रौद्योगिकी के विकास का रास्ता प्रशस्त किया है ।

 

मिशन दिव्यास्त्र ने देश में विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं की बढ़ती भूमिका को दर्शाते हुए, कार्यक्रम निदेशक शीना रानी के नेतृत्व में मिशन दिव्यास्त्र की सफलता में बड़ी संख्या में महिला वैज्ञानिक शामिल थीं। वरिष्ठ वैज्ञानिक शीना रानी पहले भी कई सफल मिसाइल परीक्षणों में शामिल रही हैं। कार्यक्रम की परियोजना निदेशक डॉ. शंकरी एस ने इस मिशन की सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अग्नि-5 मिसाइल के लिए मल्टीपल इंडिपेंडेंट टारगेटेबल री-एंट्री व्हीकल तकनीक विकसित करने में उनकी और उनकी टीम की महत्वपूर्ण भूमिका है। इस कार्यक्रम में बड़ी संख्या में अन्य महिला वैज्ञानिकों ने भी भरपूर सहयोग किया है । इनमें उषा वर्मा, नीरजा, विजय लक्ष्मी और वेंकटमणि जैसे नाम प्रमुख हैं। 


उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने मिशन दिव्यास्त्र की सफलता पर बधाई दी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस जटिल मिशन के संचालन में भाग लेने वाले डीआरडीओ के वैज्ञानिकों के प्रयासों की सराहना की है। प्रधानमंत्री ने कहा कि, ‘मिशन दिव्यास्त्र के लिए डीआरडीओ के हमारे वैज्ञानिकों पर गर्व है ।’ वहीं, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी इसे असाधारण कामयाबी बताते हुए संबंधित वैज्ञानिकों और पूरी टीम को बधाई दी है। उन्होंने कहा कि डीआरडीओ की यह अभूतपूर्व उपलब्धि भारत के समग्र विकास पथ के अनुरूप है। मल्टीपल इंडिपेंडेंटली टारगेटेबल री-एंट्री व्हीकल तकनीक के साथ अग्नि-5 मिसाइल का पहला उड़ान परीक्षण भारत की स्वदेशी रक्षा क्षमताओं और नवाचार की भावना का प्रमाण है।


कुल मिलाकर कहा जाए तो मिशन दिव्यास्त्र की सफलता ने भारत को उपलब्धियों के ऐसे नए पंख प्रदान कर दिए हैं जो भविष्य में नित नई ऊंचाइयों को छूने का अवसर दे दिया है। इससे दुनिया के सामने देश की सशक्त छवि बनी है और उसे विश्व के चुनिंदा देशों के क्लब में शामिल होने का मौका मिला है। इससे देश का सम्मान बढ़ा है और वैज्ञानिक पथ पर आगे कदम बढ़ाने का रास्ता खुल गया है जो भविष्य में ऐसे और भी दिव्यास्त्रों के निर्माण का मार्ग प्रशस्त करेगा।




बदलाव का भी लीजिए भरपूर आनंद…!!

पीपल लाल-गुलाबी हो रहा है। अब यह बगल में खड़ी हरी भरी जामुन का असर है या फिर फागुन का…होली और रंग पंचमी का..जो भी इन दिनों पीपल महाराज रंग बदल रहे है, जवान हो रहे हैं। आखिर मौसम के बदलाव से पीपल भी कैसे अछूता रह सकता है..चारों तरफ आम की बौर की मादक गंध फैल रही है..सुनहरी रंगत में बौराये आम के वृक्ष ‘..यों गंधी कुछ देत नहीं,तो भी बास सुबास’ की तर्ज पर पूरे वातावरण को अपनी गंध से महका रहे हैं तो पीपल कैसे इस आनंद से पीछे रह सकता है। रही-सही कसर कोयल की कूक से पूरी हो जा रही है..मीठी तान गूंज रही हो,मादक हवा हो तो पीपल का झूमना,नए रंग में रंगना लाज़िमी है..और पीपल ही क्यों, कहीं पतझड़ और कहीं हरे भरे पेड़ों के बीच पलाश भी तो दहक रहा है। अपने सुर्ख लाल रंग से पेड़ों के बीच वह ऐसा दिखाई देता है जैसे विवाह की जमघट में भी कोई नई नवेली दुल्हन अपने सुर्ख जोड़े के कारण दूर से ही नज़र आ जाती है। जहां पलाश का प्रभाव कम होता है वहां गुलमोहर अपने केसरिया पीले रंगों का जादू फैला देता है…वहीं,पीले,लाल, नीले,सफेद,केसरिया जैसे तमाम रंगों से सजी धजी गुलदाऊदी की लताएं दुल्हन की सहेलियों की तरह अपनी सुंदरता से सब का ध्यान खींच रही हैं तो कहीं अपराजिता के मोरपंखी फूल,परिजात और मधु मालती की भीनी भीनी खुशबू परिवेश को महका रही है…ऐसे में पीपल महाराज पर प्रकृति का रंग क्यूं न चढ़े। 


कहने का आशय यह है कि समय के साथ बदलाव जरूरी है और प्राकृतिक भी। फिर चाहे वह धार्मिक कथाओं में संत सा स्थान पाने वाला पीपल हो या अपनी पत्तियों के वंदनवार से घर को शुद्ध करने वाल आम या भगवान विष्णु को प्रिय अपराजिता या फिर होली में सबसे उपयोगी पलाश…सब बदलते हैं और बदलना भी चाहिए क्योंकि जो बदलाव के प्रति निरपेक्ष हो जाते हैं..वे या तो वक्त के दौर में पीछे रह जाते हैं या फिर बदलाव की गर्त में दबकर समाप्त हो जाते हैं। कोई भी इससे अछूता नहीं है…न व्यक्ति, न संस्थान और न राजनीतिक दल।


 बजाज ने स्कूटर से भरपूर माल बनाने के बाद बदलती हवा को भांप लिया और मोटर साइकिल में नया इतिहास रच दिया लेकिन वेस्पा ने सबक नहीं लिया और आज उसका कोई नामलेवा नहीं है। अब वह किस्से कहानियों तक सिमट गई है। भोपाल में नब्बे के दशक तक एक अख़बार की तूती बोलती थी लेकिन उसने वक्त के साथ करवट नहीं ली और वह नए दौर की कदमताल में पीछे रह गया। 


हमारे आपके आसपास ऐसे अनेक उदाहरण मिल जाएंगे जो किसी समय प्रसिद्धि के चरम पर थे,सफलता के शिखर को छू रहे थे, पर दबे पांव आकर उनके पास से गुजर रहे बदलाव को नहीं समझ सके और अब इतिहास का हिस्सा हैं। इसलिए,खुद को समय के साथ रखिए,मांझते रहिए, तराशिये और मजबूत कदमों से आगे बने रहिए क्योंकि पतझड़ के बाद ही कोपल आती हैं और फिर फूल-फल…साथ ही प्रकृति के बदलाव का भी भरपूर आनंद लीजिए…रंगों का, विविध खुशबुओं का,फूलों-पत्तियों का,फलों का और पूरे वातावरण का,गुलाबी होते पीपल का,लाल होते पलाश का और पीले गुलमोहर का, बौर के कैरी और फिर आम बनने का और सबसे ज्यादा खुद का,अपने अंदर-बाहर के बदलावों का…क्योंकि, जीना इसी का नाम है।

आइए, मेघा रे मेघा रे...के कोरस से करें मानसून का स्वागत

मेघा रे मेघा रे...सुनते ही आँखों के सामने प्रकृति का सबसे बेहतरीन रूप साकार होने लगता है, वातावरण मनमोहक हो जाता है और पूरा परिदृश्य सुहाना लगने लगता है। भीषण गर्मी और भयंकर तपन, उमस, पसीने की चिपचिपाहट के बाद मानसून हमारे लिए ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण प्रकृति,जीव जंतु और पक्षियों के लिए एक सुखद अहसास लेकर आता है। मई की चिल्चालाती गर्मी के साथ ही पूरा देश मानसून की बात जोहने लगता है और जैसे जैसे मानसून के करीब आने का संदेशा मिलता है मन का मयूर नाचने लगता है। पहली बारिश की ठंडक भरी फुहारों में भीगते लोग, पानी में धमा-चौकड़ी करती बच्चों की टोली, झमाझम बारिश के बीच गरमागरम चाय पकौड़े, कोयले की सौंधी आंच पर सिकते भुट्टे....क्या हम इससे अच्छे और मनमोहक दृश्य की कल्पना कर सकते हैं। वैसे भी,भारत में मानसून आमतौर पर 1 जून से 15 सितंबर तक 45 दिनों तक सक्रिय रहता है और देश के ज्यादातर राज्यों में दक्षिण-पश्चिम मानसून ने दस्तक दे दी है।

 समुद्र की ओर बढ़ते मेघ जल की लहरों के साथ मिल जाते हैं, जो एक स्थल की खूबसूरती को दोगुना कर देते हैं। उनके संगम पर सूरज की किरणों का खेल, उनकी तेज रोशनी और चांद की रोशनी के साथ एक अद्वितीय और अविस्मरणीय दृश्य बनाता है। मेघों की सुंदरता को वर्णित करना कठिन है, क्योंकि वे प्राकृतिक रूप से बेहद आकर्षक, खूबसूरत और चमकीले होते हैं। मेघों का गगन में आवरण, उनकी बृहत्ता, और उनके रूपांतरण की रौनक देखकर आत्मा को अद्वितीय सुंदरता का अनुभव होता है। मेघों की उच्चता, गहराई, और उनकी चलने की गति से हमें व्यापकता का अनुभव होता है, जो हमें अद्भुतता का अनुभव देता है।मेघों के रंग, आकार और आकृति उन्हें एक अनूठी पहचान देती है। मेघों की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व भी है, क्योंकि वे वर्षा की सूचना देते हैं और प्राकृतिक प्रक्रियाओं का एक अभिन्न हिस्सा हैं। इसके अलावा, मेघों शांति और संतोष की भावना पैदा करता है।

 मानसून के आगमन से धरती का चेहरा बदल जाता है। यह एक ऐसा अवसर होता है जब वायु में ठंडक आ जाती है और वातावरण प्राकृतिक सौंदर्य से भर जाता है। मानसून भारतीय समाज के लिए एक महत्वपूर्ण प्राकृतिक प्रक्रिया है, जो जीवन को नई ऊर्जा और उत्साह से भर देती है। मानसून के दौरान  धरती खूबसूरत हो जाती है क्योंकि वर्षा से प्राकृतिक रंग-बिरंगी वनस्पतियों की खूबसूरती और बढ़ जाती है। पेड़-पौधों का हरा रंग और फूलों की विविधता धरती को विशेष रूप से आकर्षक बनाती है। इसके साथ ही, मानसून के समय में धरती पर बरसने वाली वर्षा से प्राकृतिक जल स्रोतों की चमक बढ़ जाती है, जो नदियों और झीलों को जीवंत करती है। इस प्रकार, मानसून के समय में धरती की सुंदरता और जीवनशैली में विविधता बढ़ जाती है।

 मानसून हमेशा ही फिल्मों,कवियों और संगीतकारों का पसंदीदा विषय रहा है। हिंदी फिल्मों में किसी समय में बारिश के गीत के बिना फिल्म पूरी ही नहीं होती थी। सुपर स्टार अमिताभ बच्चन से लेकर हेमा मालिनी तक और माधुरी दीक्षित-श्रीदेवी से लेकर रवीना टंडन तक ने बारिश पर केन्द्रित सुपरहिट गीत प्रस्तुत किये हैं। इन गीतों ने मानसून के उल्हास व उन्माद को सुन्दर शैली में प्रदर्शित किया है। उनमें प्रदर्शित भावनाएं हमारे हृदय को छू जाती हैं। बचपन में वर्षा के बीच छप-छप से लेकर प्रेम में सराबोर प्रेमीजोड़ों की एक दूसरे से मिलने की तड़प तक और  मानसून की बाट जोहते किसानों के बूंदे देखते ही उल्हास में परिवर्तित होते भावों को हिंदी फिल्मों के गीतों में मनमोहक चित्रण देखने को मिलता है।

इन सदाबहार गीतों से तन के साथ-साथ मन भी भीग जाता है। जैसे गीत प्यार हुआ इकरार हुआ..., हाय हाय ये मजबूरी ये मौसम और ये दूरी..,इक लड़की भीगी भागी..,जिंदगी भर नहीं भूलेगी वो बरसात की रात..., काटे नहीं कटते, ये दिन ये रात...,लगी आज सावन की फिर वो झड़ी है.., रिमझिम रिमझिम, रूमझुम रूमझुम...,कोई लड़की है जब वो हंसती है .., अब के सावन.., घनन घनन जब घिर आये बदरा.., बरसों रे मेघा मेघा..., आज रपट जाएं तो हमें न उठइयो..., भीगी भीगी रातों में..., टिप टिप बरसा पानी.. और जो हाल दिल का, इधर हो रहा है.. जैसे लोकप्रिय, कर्णप्रिय, दर्शनीय और मनमोहक गीतों के बिना इन फिल्मों की कल्पना की जा सकती है।

बारिश पर कविताएँ हमेशा ही रोमांटिक होती हैं और तमाम नामी कवि भी बारिश के आकर्षण से बच नहीं सके हैं जैसे हरिवंश राय बच्चन ने बादल घिर आए कविता में लिखा है:

बादल घिर आए, गीत की बेला आई।

आज गगन की सूनी 

छाती भावों से भर आई, 

चपला के पांवों की आहट 

आज पवन ने पाई, 

बादल घिर आए, गीत की बेला आई।


वहीं,बारिश की बूंदे कविता में कंचन अग्रवाल लिखती हैं:

छम छम पड़ती बारिश की बूंदे,

भले ही बैरंग होती हैं l

लेकिन जब धरती पर पड़ती हैं,

तो उसका रंग निखार देती हैं l

टप टप पड़ता बारिश का पानी,

जब धरती की मिट्टी को गले लगाता है l

इस अदृश्य मिलाप से धरती का रंग,

कुछ ही दिनों में हरा भरा हो जाता है।


वहीँ, सुप्रसिद्ध गीतकार कवि गुलज़ार बारिश होती है तो कविता में कहते हैं:

बारिश होती है तो 

पानी को भी लग जाते हैं पाँव

दर-ओ-दीवार से टकरा के गुज़रता है गली से

और उछलता है छपाकों में

किसी मैच में जीते हुए लड़कों की तरह

मानसून भारतीय मौसम का एक महत्वपूर्ण अवधारणा है। यह वर्षा के मौसम को संदर्भित करता है जो भारतीय उपमहाद्वीप में जुलाई से सितंबर तक चलता है। मानसून भारत जैसे कृषि प्रधान देश के लिए तो और भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह फसलों के लिए पानी प्रदान करता है और खेती को समृद्धि प्रदान करता है। मानसून देश के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग समय में प्रारंभ होता है और उसकी उस इलाके के हिसाब से अलग अलग विशेषताएं भी होती हैं। मानसून के आने से पहले, हवा ऊपरी समुद्री सतह पर संग्रहित गर्म होती है, और जब यह हवा स्थलीय तापमान से ठंडी होती है, तो वह वर्षा के रूप में गिरती है। मानसून दो प्रकार के होते हैं: उत्तरी मानसून और दक्षिणी मानसून। भारत में, उत्तरी मानसून गर्मियों में होता है जबकि दक्षिणी मानसून शीतकाल में होता है। भारत में बारिश की मात्रा क्षेत्र और समय के आधार पर भिन्न होती है। कुछ क्षेत्रों में अधिक बारिश होती है जबकि कुछ में कम। विभिन्न क्षेत्रों में वर्षा की सामान्य मात्रा 500 मिमी से 3000 मिमी तक हो सकती है। उत्तर पश्चिमी और पूर्वी भारत में, बारिश का समय और मात्रा भी अलग-अलग होता है।

हालांकि, मानसून के साथ हादसे भी आते हैं, जैसे की बाढ़ और चक्रवात। इन हादसों से नुकसान होता है, जिससे लोगों को पीड़ा और परेशानी का सामना करना पड़ता है। पूर्वी भारत और खासतौर पर बिहार,असम में तो मानसून जीवन मरण का कारण बन जाता है। लेकिन मानसून के न होने से खेतों में पानी की कमी हो सकती है, जिससे फसलों का प्रभावित हो सकता है और खेती पर असर पड़ सकता है। इसी तरह, मानसून के न होने से पानी की कमी हो सकती है, जो पीने के पानी और सामान्य उपयोग के लिए अधिकतम विपरीत प्रभाव डाल सकती है। मानसून के न होने से जलवायु परिवर्तन हो सकता है, जैसे कि तापमान में वृद्धि, सूखा, और वनों में पेड़ों की असामयिक मृत्यु। मानसून के न होने से सबसे ज्यादा असर अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है, क्योंकि खेती, पर्यटन, उत्पादन और अन्य क्षेत्रों में व्यापार पर नकारात्मक प्रभाव हो सकता है। जिसका असर देश की अर्थव्यवस्था और विकास पर भी पड़ सकता है...इसलिए मानसून हमारे लिए सबसे जरुरी है तो आनंद लीजिये मानसून का,रिमझिम फुहारों का और प्रकृति के बदलते नजारों का।

आइए, मेघा रे मेघा रे...के कोरस से करें 'मानसून' का स्वागत

मेघा रे मेघा रे...सुनते ही आँखों के सामने प्रकृति का सबसे बेहतरीन रूप साकार होने लगता है, वातावरण मनमोहक हो जाता है और पूरा परिदृश्य सुहाना ...