सोमवार, 7 मार्च 2011

महिला दिवस नहीं राष्ट्रीय शर्म दिवस मनाइए!

हर दिन होने वाले दर्ज़नों बलात्कार,तार-तार होते रिश्ते,बस से सड़क तक और घर से बाज़ार तक महिला की इज्ज़त से होता खिलवाड़,बढ़ती छेड़छाड़,दहेज के नाम पर प्रताड़ना,प्रेम के नाम पर यौन शोषण,अपनी नाक की खातिर माँ-बहन-बेटी की हत्या,कन्या जन्म के नाम पर पूरे परिवार में मातम और बूढी माँ को दर-दर की ठोकरे खाने के लिए छोड़ देना और यहाँ तक की आम बोलचाल में भी बात-बात पर महिलाओं के अंगों की लानत-मलानत हमारे रोजमर्रा के व्यवहार का हिस्सा है तो फिर एक दिन के लिए महिला दिवस मनाकर महिलाओं के प्रति आदर का दिखावा क्यों?इसे अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस कहने की बजाए ‘राष्ट्रीय शर्म दिवस’ कहना ज़्यादा उचित होगा....क्योंकि हमें इस दिन को गर्व की बजाए “राष्ट्रीय शर्म” दिवस के रूप में मनाना चाहिए.आखिर हम गर्व किस बात पर करें?
क्या यह गर्व की बात है कि हमारे देश में आज भी 56 फीसदी लड़कियों में खून की कमी है और वे एनीमिया की शिकार हैं.इस मामले में हम दुनिया के सबसे पिछड़े देशों मसलन कांगो,बुर्किना फासो और गुएना के बराबर हैं.हमारे मुल्क में 15-19 साल की उम्र वाली 47 फीसदी लड़कियां औसत से कम वजन की हैं और इस मामले में हम दुनिया भर में सबसे निचले पायदान पर हैं.देश में 43 फीसदी लड़कियां विवाह के लिए सरकार द्वारा निर्धारित 18 बरस की आयु पूरी करने के पहले ही ब्याह दी जाती हैं और इनमें से 22 फीसदी तो इस उम्र में माँ तक बन जाती हैं.क्या यह गर्व की बात है?इस मामले में हम से बेहतर तो पाकिस्तान और बंगलादेश हैं जहाँ व्याप्त कुरीतियों को हम पानी पी-पीकर कोसते हैं.महिलाओं की सेहत के प्रति हमारी सजगता का अंदाज़ा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि आज भी 6000 महिलाएं हर साल बच्चे को जन्म देने के साथ ही मर जाती हैं.
क्या हम इस बात पर गर्व करे कि देश की 86 प्रतिशत बेटियां प्राइमरी स्तर पर ही स्कूल छोड़ देती हैं और 64 फीसदी सेकेण्डरी से आगे की पढ़ाई तक पूरी नहीं कर पाती.आधी आबादी कही जाने के बाद भी 77 फीसदी महिलाएं साक्षर हैं और मात्र 23 प्रतिशत को रोज़गार मिल पाया है.राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक देश में हर 30 मिनट में एक महिला बलात्कार का शिकार बन रही है,हर घंटे 18 महिलाएं यौन हिंसा का सामना कर रही हैं और बलात्कार के मामलों में अब तक 678 प्रतिशत का इजाफा हो चुका है.देश में आज भी महिलाओं को डायन और चुड़ैल बताकर पत्थरों से मार डाला जाता है.उन्हें ज़िंदा जलाकर ‘सती’ के नाम पर महिमा मंडित किया जाता हो,फिर भी यदि हम महिला दिवस मनाकर ये साबित करना चाहते हैं कि हम महिलाओं का बड़ा आदर करते हैं तो यह दिखावा ही होगा.
अब तो यह लगने लगा है कि साल में एक बार मनाए जाने वाले आधुनिक त्योहारों की श्रृंखला में अब महिला दिवस भी शामिल हो गया है.भारत की प्रेममयी और समरसता भरी संस्कृति के बाद भी साल में एक बार प्रेम दिवस यानि वैलेंटाइन्स डे तो हम धूमधाम से मना ही रहे हैं.इसीतरह रक्षा बंधन एवं भाईदूज की जगह मदर डे,फादर डे,सिस्टर-ब्रदर डे जैसे तमाम विदेशी सांचे में ढले पर्व हमारे समाज में जगह बनाने लगे हैं...और हम भी यही सोचकर इन्हें अपनाते जा रहे हैं कि चलो इसी बहाने रिश्तों का एक दिन तो सम्मान कर ले.इस सम्मान के नाम पर हम करते भी क्या है-उस रिश्ते के नाम एक बुके या ग्रीटिंग कार्ड देकर होटल में जाकर खाना खा लेते हैं और फिर दूसरे दिन से सब भूलकर बहन-बेटिओं को छेड़ने में जुट जाते हैं या इसीतरह फिर किसी नए ज़माने के त्यौहार की भावनात्मक की बजाय औपचारिक तैयारी करने लगते हैं ....बीते कुछ सालों से हम ऐसा ही करते आ रहे हैं और धीमे-धीमे रिश्तों का यह दिखावा हमारी वर्षों पुरानी और ह्रदय से जुडी परम्पराओं का स्थान लेता जा रहा है.फिर भी हम रिश्तों के नाम पर गर्व करने में पीछे नहीं हैं!





मंगलवार, 15 फ़रवरी 2011

ब्लागिंग में गुटबाजी उचित नहीं:ब्लागर


वैलेंटाइन-डे के मौके पर   लक्ष्मीनगर में कई ब्लागर्स एकत्र हुए. इस दिन का सदुपयोग करते हुए सभी ब्लागर्स ने एक दूसरे को प्रेम-दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं देते हुए इस दिन की सार्थकता पर चर्चा की. चर्चा के दौरान हिंदी ब्लाग जगत में फ़ैल रही गुटबाजी जैसी समस्याओं पर चिंता ज़ाहिर की गई. सभी ने एकमत से यह राय जाहिर की, कि ब्लागर समाज की समस्याओं को सामने लाते हैं, इसलिए उन्हें किसी गुट में शामिल न होकर हिंदी के प्रचार-प्रसार की मूल भावना के लिए काम करना चाहिए. आज वेलेंटाइन डे पर कई जगह प्रेम का विरोध करने वालों द्वारा अपनाए जा रहे हिंसक और असामाजिक तौर-तरीकों को ब्लागरों ने गलत ठहराया. ब्लागर्स का कहना है कि प्रेम में बढती उच्चश्रृंखलता का विरोध भी प्रेम से ही करना चाहिए. सभी ब्लागर्स ने निश्चय किया कि वे संत वेलेंटाइन के प्रेम के सन्देश को हिंदी ब्लागिंग के ज़रिये देशभर में फैलाएंगे. ताकि सभी जन आपस के भेदभाव भुलाकर विश्वबंधुत्व की ओर अग्रसर हों. बैठक में यह भी तय किया गया कि इन मुद्दों पर विस्तार से विचार-विमर्श के लिए ब्लागर साथियों की एक बड़ी बैठक जल्द बुलाई जायेगी. इस मौके पर एड़ी-चोटी के उपदेश सक्सेना, जुगाली के संजीव शर्मा, सुमित के तड़के वाले सुमित प्रताप सिंह, सुनील वाणी के सुनील कुमार, मगध एक्सप्रेस के अजीत झा, हरियाणा मेल के सतीश कुमार सहित कई पत्रकार और ब्लागिंग जगत में रूचि रखने वाले लोग मौज़ूद थे.



शनिवार, 12 फ़रवरी 2011

पपी लव या लव,सेक्स और धोखा.....


अब इसे प्रेम का बाज़ार कहें या बाज़ार का प्रेम या फिर ‘लव,सेक्स और धोखा’ क्योंकि आज के दौर के प्रेम ने तो प्यार को दिनों में बाँट दिया है.तभी तो वेलेन्टाइन डे के दौरान फ़रवरी माह की 7 तारीख को रोज डे, 8 को प्रपोस डे, 9 को चाकलेट डे,10 को टेडी डे,11 को प्रोमिस डे,12 को हग डे,13 को किस डे और फिर 14 को वेलेन्टाइन डे....यानि पूरे पखवाड़े भर का इंतजाम.वैसे अब कही-कहीं तो इसके बाद ‘ब्रेक-अप डे’ भी सेलिब्रेट होने लगा है क्योंकि आज की पीढ़ी अपने साथी को इससे ज़्यादा बर्दाश्त ही नहीं कर सकती? रही बाकी “डे” (दिनों) की बात तो उनके लिए बाजार ने भरपूर इंतजाम कर दिए हैं बस आपकी जेब में पैसा होना चाहिए फिर माशूक या माशूका तो अपने आप चली आएगी.अब प्रेम दिल से नहीं दौलत से होता है अर्थात जितनी भारी जेब होगी उतना ही ‘स्ट्रोंग’ प्यार होगा और वह भी एक से नहीं दो-चार से एक साथ. खास बात यह है कि सभी साथ जीने-मरने की कसमें खायेंगे.यह बात अलग है कि प्यार(दौलत) खत्म होते ही बिना किसी गिले-शिकवे के अलग भी हो जायेंगे.यही तो नई पीढ़ी का प्यार है.
मैंने कुछ दिन पहले एक कविता पढ़ी थी उसकी चन्द पंकितयां इसप्रकार हैं:
“स्कूल-कालेज से शुरू होता है
पार्क-लाईब्रेरी में पलता है
मैकडी-पिज्ज़ा हट में बढ़ता है
वेलेन्टाइन डे तक चलता है
ब्रेक-अप पर खत्म होता है
नई पीढ़ी पर इसी का खुमार है
दोस्तों यह नई पीढ़ी का प्यार है”
इस प्यार को आजकल की भाषा में “पपी लव” कहा जाता है.हालाँकि आम बोलचाल की भाषा में ‘पपी’ का मतलब ‘कुत्ते का बच्चा’ होता है तो फिर ‘पपी लव’ का मतलब यही हुआ न कि ‘कुत्ते के बच्चे के बच्चे रहने तक का प्यार’ और जैसे ही बच्चे बड़े हो जाये उन्हें भूलकर फिर दूसरे बच्चे तलाश करो और फिर उनसे प्यार करो मतलब किसी के साथ भी ज़्यादा वक्त बिताने की ज़रूरत नहीं है.आजकल हो भी तो यही रहा है! यदि कामदेव आज होते तो शायद घबराकर आत्महत्या कर लेते क्योंकि अब तो गली-गली में कामदेव हैं और वे भी किस्म-किस्म के जैसे लिव-इन वाले कामदेव,सिक्स पैक वाले कामदेव,मर्सीडीज़-बीएमडब्ल्यू वाले कामदेव,हायबुसा वाले कामदेव,रोमिओ टाइप कामदेव और सबसे अंत में मुफ़्तखोर कामदेव.ये वही कामदेव हैं जो प्यार में अश्लील एसएमएस भेजते हैं,अपनी माशूका के इश्क की सबके बीच बयानबाज़ी से नहीं चूकते और प्यार करते हुए न केवल एमएमएस बनाते हैं बल्कि खुद ही उसे बांटते/बेचते तक हैं.एक दूसरे को समझने के लिए लिव-इन को ज़िन्दगी का फलसफा बनाते हैं पर शादी का ज़िक्र आते ही सम्बन्ध तोड़ने में ज़रा सी देर भी नहीं लगाते.
इन्हीं कामदेवों में कुछ ऐसे भी हैं जो अपने घरों-गांव-शहरों से आते तो कलेक्टर/एसपी बनने के लिए हैं लेकिन महानगरों की संस्कृति की हवा में बहने में भी देर नहीं करते.यह हवा उन्हें एकतरफा प्यार करने के लिए मज़बूर कर देती है और फिर अपनी नाकामी को छिपाने के लिए प्रेमिका की जान लेने में भी पीछे नहीं रहते.परिणामस्वरूप बेचारे माँ-बाप जेल में बंद या फरार बच्चे को बचाने/तलाशने के लिए उस पूँजी को लुटाने पर मज़बूर हो जाते हैं जो उन्होंने उसी बच्चे को आईएएस-आईपीएस बनाने के लिए जोड़कर रखी थी.क्या यही प्यार है?एक बात मैं यहाँ स्पष्ट करना चाहता हूँ कि न तो मैं प्यार के खिलाफ़ हूँ और न ही नई पीढ़ी के प्रेमियों की आलोचना करना मेरा मकसद है.बस में प्यार के फर्जीवाड़े को उजागर करना चाहता हूँ क्योंकि प्यार जात-पात,धर्म,धन-दौलत,रूप-रंग और बाज़ार से परे बिल्कुल आध्यात्मिक एवं भावनात्मक अनुभूति है.प्यार हमारी वासना,नफ़रत,ईर्ष्या,धोखा जैसी बुराइयों को दूरकर ऐसी दुनिया में ले जाता है जहाँ इन बुराइयों के लिए कोई जगह ही नहीं है इसलिए तमाम आगा-पीछा भूलकर सभी को भरपूर प्यार बांटिये और दिल से प्यार करिये क्योंकि प्यार है तभी तक यह दुनिया है वरना इंसान और जानवर के बीच का फर्क ही खत्म हो जायेगा.जानी-मानी शायरा लता‘हया’ ने बिल्कुल ठीक फ़रमाया है:
"हैं जिनके पास अपने तो वो अपनों से झगड़ते हैं
नहीं जिनका कोई अपना वो अपनों को तरसते हैं
मगर ऐसे भी हैं कुछ पाक और बेग़रज़ से रिश्ते
जिन्हें तुमसे समझते हैं जिन्हें हमसे समझते हैं "





अलौलिक के साथ आधुनिक बनती अयोध्या

कहि न जाइ कछु नगर बिभूती।  जनु एतनिअ बिरंचि करतूती॥ सब बिधि सब पुर लोग सुखारी। रामचंद मुख चंदु निहारी॥ तुलसीदास जी ने लिखा है कि अयोध्या नगर...