हरे,पीले,नीले लाल,गुलाबी रंग,भांग का नशा,ढोल की मदमस्त थाप,रंग भरे पानी से भरे हौज,बदन से चिपके वस्त्रों में मादकता बिखेरती महिला पात्र और छेड़खानी करते पुरुष....इसे हमारी हिंदी फिल्मों का ‘डेडली कम्बीनेशन’ कहा जा सकता है क्योंकि इसमें ‘सेक्स-रिलेक्स-सक्सेस’ का फार्मूला है और उस पर “होली खेले रघुबीरा बिरज में होली खेले रघुबीरा....” या फिर “रंग बरसे भीगे चुनर वाली रंग बरसे..” जैसे गाने....... हमें अहसास होने लगता है कि होली का त्यौहार आ गया है और जब मनोरंजक चैनलों के साथ-साथ न्यूज़ चैनलों पर भी “रंग दे गुलाल मोहे आई होली आई रे..” गूंजने लगता है तो फिर कोई शक ही नहीं रह जाता.आखिर किसी भी त्यौहार को जन-जन में लोकप्रिय बनाने में फिल्मों और फ़िल्मी संगीत की महत्वपूर्ण भूमिका से कौन इनकार कर सकता है.
रक्षाबंधन,दीपावली,ईद,स्वतंत्रता दिवस,गणतंत्र दिवस जैसे पर्वों पर फिल्मी गानों की गूंज ही हमें समय से पहले उत्साह,उमंग और जोश से शराबोर कर देती है.फिल्मों का ही प्रभाव है कि करवा चौथ एवं वेलेन्टाइन डे जैसे आयोजन भी राष्ट्रीय पर्व का रूप लेते जा रहे हैं. ‘जय संतोषी माँ’ फिल्म से मिले प्रचार के बाद घर-घर में शुक्रवार की पूजा का मुख्य आधार बन गए इस व्रत का आज भी महत्त्व बरक़रार है.कहने का आशय यही है कि सिनेमा समाज का आईना है और अब तो यह आईना हमारे उस तक चेहरा ले जाने के पहले ही हमें समाज का रूप दिखाने लगता है.
एक बार बात फिर होली की.दरअसल होली तो है ही मौज-मस्ती का पर्व इसलिए इस त्यौहार को मनाने में हमारी फिल्मों ने भी जमकर उत्साह दिखाया है.अधिकतर लोकप्रिय फ़िल्में होली के रंग में रंगी होती हैं.आलम यह है कि कई बड़ी फ़िल्में कमाई के लिहाज़ से तो फ्लॉप मानी गयीं पर उनके होली गीत आज भी दिलों-दिमाग पर छाये हुए हैं और हर साल इस त्यौहार को नई गरिमा देने का आधार बनते हैं.क्या आप फिल्म कोहिनूर के मशहूर गीत “तन रंग लो जी आज मन रंग लो..” या फिर कटी पतंग के गीत “आज न छोड़ेंगे हमजोली खेलेंगे हम होली..”जैसे गानों के बिना होली मना सकते हैं.इसीतरह मदर इंडिया के “होली आई रे कन्हाई...”,फिल्म डर के “अंग से अंग लगाना सजन मोहे ऐसे रंग लगाना..”,शोले के “होली के दिन दिल मिल जाते हैं..”,बागवान के “होली खेले रघुबीरा...”,सिलसिला के “रंग बरसे भीगे चुनर वाली...”,फागुन के लोकप्रिय गीत “फागुन आयो रे...”,मशाल के गीत “होली आई होली आई देखो...” और आखिर क्यों के “सात रंग में खेल रही है दिलवालों की...” को क्या भुला सकते हैं.ऐसे ही सुमधुर,कर्णप्रिय,सुरीले और मस्ती भरे गीत नवरंग,कामचोर,ज्वार भाटा,मंगल पांडे,मोहब्बतें, दामिनी,वक्त,ज़ख्मी,धनवान और मुंबई से आया मेरा दोस्त जैसी तमाम फिल्मों में थे.यदि मैं यह कहूँ कि होली के गीतों के बिना मुम्बईया फिल्मों की और इस फिल्मों के गानों के बिना हमारी देशी होली अधूरी है तो कोई अतिसंयोक्ति नहीं होगी. वैसे भी जब तक फिल्म की हीरोइन रंग और पानी में भीगकर मादकता का अहसास न कराये तो फिर हिंदी फिल्म किस काम की.यह काम या तो अभिनेत्री को नहलाकर किया जा सकता है या फिर होली के बहाने गीला कर.नहलाने पर तो सेंसर बोर्ड को आपत्ति हो सकती है परन्तु होली पर कोई अंगुली नहीं उठा सकता इसलिए हर नई फिल्म में हीरोइन को रंग में भीगने दीजिए तभी तो हमें होली मनाने के लिए नए-नए गीत मिलेंगे.
नोट:(दरअसल यह लेख जागरण ब्लाग पर चल रहे होली कांटेस्ट के लिए लिखा गया है परन्तु मैं इसे अपने ब्लाग पर पोस्ट करने का मोह नहीं त्याग पाया इसलिए कुछ पाठकों को यह विलम्ब से लिखा हुआ लग सकता है.)