सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न क्यों? उनसे पहले प्रख्यात समाजसेवी और भ्रष्टाचार के खिलाफ अलख जगाने वाले अन्ना हजारे को क्यों नहीं? देश में चुनाव सुधारों की नीव रखने वाले टी एन शेषन,योग के जरिए देश-विदेश में भारत का डंका पीटने वाले स्वामी रामदेव, बांसुरी की सुरीली तान से मन मोह लेने वाले पंडित हरिप्रसाद चौरसिया, अभिनय और फिल्मों से भारतीय सिनेमा की दशा और दिशा तय करने वाले मशहूर अभिनेता राज कपूर-गुरुदत्त, अपनी लेखनी से प्रेम और आग एकसाथ बरसाने वाले गीतकार गुलज़ार,आईटी के क्षेत्र में क्रांति लाकर लाखों नौजवानों को सम्मानजनक दर्ज़ा दिलाने वाले उद्योगपति नारायण मूर्ति-अज़ीम एच प्रेमजी, देश के लिए सर्वत्र न्योछावर कर देने वाले शहीद भगत सिंह-चंद्रशेखर आज़ाद, दुनिया भर में ज्ञान और चेतना का पर्याय स्वामी विवेकानंद,पुलिस से लेकर समाजसेवा तक में सबसे आगे किरण बेदी, विविध स्वरों की सम्राज्ञी आशा भोंसले जैसे तमाम ऐसे नाम हैं जो न केवल इस सम्मान के हक़दार हैं बल्कि इस सम्मान को और भी गौरवान्वित करने का माद्दा रखते हैं.लेकिन इन तमाम नामों के लिए कोई विधानसभा या कोई संगठन प्रस्ताव पारित नहीं कर रहा.
दरअसल मीडिया की ‘हल्ला ब्रिगेड’ को दिन भर न्यूज़ चैनलों पर बौद्धिक जुगाली करने के लिए कोई न कोई विषय या विवाद चाहिए.विश्व कप क्रिकेट के बाद बेस्वाद लग रहे न्यूज़ चैनलों पर टीआरपी की आग तापने के लिए उन्हें सचिन को भारत रत्न के रूप में एक नया मुद्दा हाथ लग गया है.आज वे भारत रत्न के नाम पर हो-हल्ला मचा रहे हैं.यदि सरकार दवाब में आ गयी(जिसकी संभावना लग रही है) तो कल शायद किसी क्रिकेटर को ‘परमवीर चक्र’ देने की मांग करने लगे? सचिन तेंदुलकर के नाम पर अपनी दुकान जमाने में लगे इन बाइट-वीरों और मौकापरस्त नेताओं को शायद यह भी नहीं पाता होगा कि भारत रत्न हमारे देश का वह सर्वोच्च नागरिक सम्मान है जो कला,विज्ञान और साहित्य के क्षेत्रों में असाधारण उपलब्धियों और सर्वोत्कृष्ट लोकसेवा के लिए दिया जाता है.इसकी शुरुआत २ जनवरी १९५४ से हुई और अब तक ४१ अतिविशिष्ट हस्तियों को यह सम्मान दिया जा चुका है उनमें से कोई भी खिलाड़ी नहीं है. सर्वप्रथम तो खिलाड़ी इस सम्मान के दायरे में ही नहीं आते. हर क्षेत्र के लिए सरकार अलग-अलग सम्मान देती है मसलन खेलों के लिए राजीव गाँधी खेल रत्न है तो सर्वोच्च वीरता के लिए परमवीर चक्र.वैसे भी खेलों केनाम पर पहले ही अनेक पुरूस्कार है.आज यदि सचिन को भारत रत्न दिया गया तो कल कोई परमवीर चक्र भी मांग सकता है या कोई सैनिक भारत रत्न या खेल रत्न की मांग कर सकता है. फिर भी यदि सभी नियम-कानूनों को ताक पर रखकर यदि किसी खिलाड़ी को यह सम्मान दिया जाता है तो उड़न सिख मिल्खा सिंह ,पी टी ऊषा,पहली बार विश्व कप जीतने वाले कपिल देव,हाकी के जादूगर मेजर ध्यान चंद,टेनिस की सनसनी लिएंडर पेस,बैडमिंटन की दिग्गज सायना नेहवाल या इसीतरह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम रोशन करने वाले किसी और खिलाडी से शुरुआत क्यों न की जाए? उसके बाद सचिन का भी नंबर आये. इसमें कोई शक नहीं है कि सचिन बेमिसाल हैं लेकिन देश ने भी उनके लिए पलक-पांवड़े बिछाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है.वैसे भी सचिन हो या सहवाग या कोई और क्रिकेटर,उनके प्रदर्शन पर हम सरकारी खज़ाना खोल देते हैं.अभी विश्व कप जीतते ही उन पर नोटों,सुविधाओं और उपहारों की बरसात हो रही है.अब तक हर क्रिकेटर को करोड़ों रूपए अलग-अलग सरकारें बाँट चुकी हैं और जो पीछे छूट गई हैं वे भी आम जनता के खून-पसीने की कमाई को अपनी बपौती समझकर इन पर न्योछावर करने के बहाने तलाश रही हैं.मुद्दे की बात यह है कि हमारे क्रिकेटरों को क्रिकेट खेलने के लिए पहले ही अनुबंध के नाम पर अतुलनीय पैसा मिल रहा है और वे विज्ञापनों,आईपीएल के जरिए भी बेशुमार पैसा कूट रहे हैं सो अलग.
दरअसल खामी सचिन में नहीं बल्कि क्रिकेट में है.दर्जन भर से भी कम देशों का यह समय खपाऊ और कामचोरी को बढ़ावा देने वाला खेल अपने पैसों के बल पर दूसरे खेलों को बर्बाद कर रहा है.अब देश की नई पीढ़ी कबड्डी,कुश्ती,मुक्केबाज़ी,बास्केटबाल और फ़ुटबाल जैसे वैश्विक खेलों को छोड़कर क्रिकेट की तरफ भागने लगी है.यदि हम क्रिकेटरों को इसीतरह बढ़-चढ़कर महिमामंडित करते रहे तो ओलिंपिक और एशियाई खेलों के लिए हमें ढंग के खिलाड़ी तक नहीं मिलेंगे और १६१ करोड़ की आबादी में से आधे से ज्यादा लोग टीवी-रेडियो से चिपककर अपना और देश का कीमती समय इसीतरह व्यर्थ लुटाते नज़र आयेंगे.