मंगलवार, 20 फ़रवरी 2024

मंदिर नहीं आस्था की यशगान…!!

नभ दुंदुभीं बाजहिं बिपुल गंधर्ब किंनर गावहीं।

नाचहिं अपछरा बृंद परमानंद सुर मुनि पावहीं॥

भरतादि अनुज बिभीषनांगद हनुमदादि समेत ते।


गहें छत्र चामर ब्यजन धनु असिचर्म सक्ति बिराजते॥


आकाश में नगाड़े बज रहे हैं। गन्धर्व और किन्नर गा रहे हैं। अप्सराएं नाच रही हैं। देवता और मुनि परमानंद प्राप्त कर रहे हैं। भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न, विभीषण, अंगद, हनुमान्‌ और सुग्रीव आदि सहित छत्र, चँवर, पंखा, धनुष, तलवार, ढाल और शक्ति लिए हुए सुशोभित हैं।


भगवान श्रीराम अपने नए महल में विराजमान हो गए हैं। महल यानि श्रीराम का नया मंदिर धार्मिक, आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, बुनियादी ढांचे और वास्तुकला के लिहाज से दुनिया में अनूठा और अपनी तरह का इकलौता मंदिर है। आखिर जनमानस की 500 साल की पीड़ा,वेदना, अवहेलना और आस्था को पहुंची चोट के बाद मिले अधिकार को बहुसंख्यक वर्ग ने पूरे आनंद के साथ दूर किया है। खुशी, न्याय और अधिकार जितनी देर से मिलता है उसका आनंद भी उतना ही बढ़ जाता है और यही इन दिनों में अयोध्या में, उप्र में और पूरे देश के साथ दुनिया भर में नजर आ रहा है। लोग उमंग में हैं,उत्साहित हैं,उल्लासित हैं और मुदित भी।


उत्तर प्रदेश सरकार से मिली आधिकारिक जानकारी के अनुसार भगवान राम का मंदिर 57,400 वर्ग फीट क्षेत्र में निर्मित किया जा रहा है। यह मंदिर 360 फीट लंबा 235 फीट चौड़ा और 161 फीट ऊंचा है। मंदिर में कुल तीन तल बनाए गए हैं और प्रत्येक तल 20 फीट ऊंचा है। यहां आने वाले श्रद्धालुओं को मंदिर में शिखर को मिलाकर कुल पांच मंडप नजर आएंगे ।


अयोध्या में मुख्य मंदिर का एरिया करीब पौने तीन एकड़ यानि 2.77 एकड़ के फैला है । मंदिर को भव्य और आकर्षक साज सज्जा वाले स्तंभों से सजाया गया है जो मंदिर की सुंदरता बढ़ाने के साथ साथ इसकी मजबूती में भी सहभागी है। मंदिर में पहली मंजिल पर 131 और दूसरी मंजिल पर 74 स्तंभ बनाए गए हैं, जबकि सबसे नीचे की मंजिल पर 160 खंबे होंगे। संक्षेप में समझे तो मंदिर निर्माण के लिए नींव का काम 2021 में पूरा हुआ था जबकि 2022 में पत्थर लगाने का काम पूरा हुआ और  मंदिर निर्माण समिति ने 2023 में ग्राउंड फ्लोर का काम पूरा कर लिया गया। अब रामलला 22 जनवरी को अपने नए मंदिर में विराजमान हो गए हैं।


 बताया जाता है कि मंदिर में गर्भ गृह की लंबाई और चौड़ाई 20-20 फीट है । यहां एक साथ 1000 श्रद्धालु खड़े हो सकेंगे। मंदिर में अंदर जाने के लिए दो स्वर्ण जड़ित द्वार हैं । मंदिर के आसपास के 3 किलोमीटर के इलाके को सुरक्षा की दृष्टि से रेड जोन नाम दिया गया है। नवनिर्मित अयोध्या धाम रेलवे स्टेशन से मंदिर की दूरी करीब डेढ़ किलोमीटर है जबकि महर्षि वाल्मीकि अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से मंदिर तक पहुंचने के लिए 10 किलोमीटर का फासला तय करना पड़ेगा।


जैसा कि हम सब जानते हैं कि अयोध्या का विवाद करीब 500 साल पहले शुरू हुआ था और 40 दिन तक लगातार सुनवाई के बाद सर्वोच्च न्यायालय के पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने 9 नवम्बर 2019 को 1045 पृष्ठों में मंदिर के पक्ष में फैसला सुनाया था। वही, मुस्लिम पक्ष को मस्जिद निर्माण के लिए 5 एकड़ जमीन अलग से दी गई है। कहा जाता है न कि देर आए दुरुस्त आए…अयोध्या को देर से ही सही उसका हक मिल गया है और अब दुनिया आने वाले हजार सालों और उसके बाद तक पुण्यभूमि अयोध्या का सांस्कृतिक वैभव,आध्यात्मिक उत्थान और इतिहास से वर्तमान तक की समृद्धि का विस्तार और विकास देखेगी।


श्रीराम के विश्वकर्मा

सोभा दसरथ भवन कइ को कबि बरनै पार।

जहाँ सकल सुर सीस मनि राम लीन्ह अवतार॥ 


भावार्थ-दशरथ के महल की शोभा का वर्णन कौन कवि कर सकता है, जहाँ समस्त देवताओं के शिरोमणि राम ने अवतार लिया है॥ 



क्या आप कल्पना भी कर सकते हैं कि अयोध्या के जिस भव्य और दिव्य भारतीय नागर शैली के मंदिर को देखने के लिए दुनिया भर के करोड़ों लोगों की निगाहें तड़प रही हैं और हजारों लोग दर्शन के पहुंच रहें हैं उसे शुरुआती तौर पर उच्च तकनीक, एआई और अन्य आधुनिकतम संसाधनों से नहीं बल्कि एक अनुभवी व्यक्ति ने तीन दशक पहले 1987-88 में पैरों से जमीन नापकर नक्शा तैयार कर दिया था। एक बार जमीन की पैमाइश होने के बाद उन्होंने अपने हुनर,अनुभव और कुशलता का ऐसा समां बांधा कि आज दुनिया चकित होकर देख रही है। मंदिर प्रबंधन समिति द्वारा निर्धारित समय सीमा पर जब मंदिर और इसका पूरा परिसर सज धज कर पूरी तरह से तैयार हो जाएगा तो देखने वालों के सिर सम्पूर्ण श्रद्धा से झुक जाएंगे।


हम सभी की आस्था के केंद्र भगवान श्रीराम के इस नए घर (राम मंदिर) को इतने आकर्षक और भव्यतम ढंग से डिजाइन करने का दायित्व और सौभाग्य मशहूर वास्तुकार और गुजरात के अहमदाबाद के रहने वाले चंद्रकांत सोमपुरा को मिला है। सबसे अनूठी बात यह है कि चंद्रकांत सोमपुरा के पास वास्तुकला की न तो कोई डिग्री है और न ही उन्होंने अपने इस पेशे के लिए किसी संस्थान से प्रशिक्षण हासिल किया है।


ज़ाहिर सी बात है इस बात को सुनकर कोई भी चौंक सकता है लेकिन जिस शख्स ने देश और दुनिया के सबसे शानदार करीब 130 मंदिरों को तैयार किया हो,उसे किसी डिग्री या संस्थान से औपचारिक प्रशिक्षण की भला क्या आवश्यकता होगी। श्री सोमपुरा स्वयं एक स्कूल हैं,संस्थान हैं और वास्तुकला के सबसे बड़े आचार्य हैं। उन्होंने अक्षरधाम और बिड़ला मंदिर जैसे सर्वोत्कृष्ट मंदिरों को डिजाइन किया है। चंद्रकांत सोमपुरा के दादाजी ने सोमनाथ मंदिर का नक्शा तैयार किया था जो नागर शैली का सर्वोत्तम उदाहरण है। उनका परिवार पीढ़ियों से यह काम कर रहा है इसलिए राम मंदिर के इस सबसे बड़े और सबसे सम्मानित उत्तरदायित्व में उनके दोनों बेटे निखिल सोमपुरा और आशीष सोमपुरा उनका साथ दे रहे हैं। पिता पुत्र की इस तीन सदस्यीय टीम ने ऐसी बेजोड़ रचना रची है जिसका फिलहाल तो कोई सानी नहीं है क्योंकि करीब 100 से 120 एकड़ भूमि पर पांच गुंबदों वाला तीन मंजिला मंदिर दुनिया में कहीं नहीं है। वहीं, सोमपुरा परिवार के इस उत्कृष्ट डिजाइन को अमली जामा पहनाने का जिम्मा लार्सन एंड टूब्रो ने लिया है।


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 5 अगस्त को जब अयोध्या में मौजूदा राम मंदिर का भूमि पूजन किया था तब भी मंदिर का मूल नक्शा बनकर तैयार था और मामूली सुधारों के साथ उसी नक्शे की बुनियाद पर यह मंदिर बना है। हालांकि, राम मंदिर का शिलान्यास लगभग तीस साल पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी की अनुमति से 9 नवंबर 1989 को किया गया था और तब शिलान्यास की पहली ईंट दलित समुदाय से आने वाले कामेश्वर चौपाल ने रखी थी।


चंद्रकांत सोमपुरा को यह महती ज़िम्मेदारी विश्व हिंदू परिषद के तत्कालीन अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक सिंघल ने सौंपी थी। अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए नक्शा बनाने का काम वाकई चुनौती भरा था। एक तो उस दौरान निर्माण स्थल पर बाबरी मस्जिद का मलवा पड़ा था इसलिए उन्होंने पूरी भूमि को अपने पैरों से मापकर सटीक अनुमान लगाया। इसी अनुमान के आधार पर चंद्रकांत सोमपुरा के बने नक्शा को देख सभी दंग रह गए थे। श्री सोमपुरा ने तीन डिजाइन तैयार किए थे जिसमें से एक को सर्व सम्मति से स्वीकार कर लिया गया। फिर इस डिजाइन के आधार पर लकड़ी के मंदिर का मॉडल तैयार किया गया । 


 मंदिर के निर्माण में एक अन्य चुनौती वे लाखों करोड़ों ईंटें भी थी जो पूरे देश से आस्था का सैलाब बनकर अयोध्या में घर घर से पहुंची थी। श्री सोमपुरा की डिजाइन में इनका बखूबी इस्तेमाल किया गया है।



आराध्य की आराधना


रामो विग्रहवान् धर्मः साधुः सत्य पराक्रमः।

राजा सर्वस्य लोकस्य देवानाम् इव वासवः॥


भगवान श्रीराम धर्म के मूर्त स्वरूप हैं। वे बड़े साधु और सत्य पराक्रमी हैं। जिस प्रकार इंद्र देवताओं के नायक हैं, उसी प्रकार भगवान राम हम सभी के नायक हैं।


अयोध्या में राम लला की प्राण प्रतिष्ठा की गाथा घर घर पहुंच गई है। एक तरह से सनातन ही नहीं अन्य धर्मों के लोग भी वैदिक पूजा पद्धति और प्रतिमा की स्थापना तक की तमाम विधियों को जानने समझने लगे हैं। प्राण प्रतिष्ठा समारोह के साथ ही कई जैसे नए और अनूठे शब्द सामने आए हैं जो धार्मिक रीति रिवाजों से जुड़े विद्वानों को छोड़कर जनमानस को विस्मित करने वाले हैं। इसलिए, हम अध्याय में इन शब्दों की गुत्थी को सुलझाने और उसे सहज बनाने का प्रयास करते हैं। 


जैसा की हम आमतौर पर जानते हैं कि प्रतिष्ठा का अर्थ है स्थापना और प्राण प्रतिष्ठा का शाब्दिक अर्थ हुआ -जीवन शक्ति की स्थापना करना या देवता को जीवन में लाना। सनातन धर्म में प्राण प्रतिष्ठा से पहले किसी भी मूर्ति पूजा के योग्य नहीं मानी जाती है बल्कि उसे निर्जीव मूर्ति माना जाता है। प्राण प्रतिष्ठा के जरिए उनमें प्राण शक्ति का संचार करके उन्हें पूजनीय बनाया जाता है. इसके बाद ही वह प्रतिमा पूजा और भक्ति के योग्य बन जाती है.


रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के दौरान प्रायश्चित पूजा,कर्म कुटी पूजन,जलाधिवास,गंधाधिवास, घृताधिवास, फलाधिवास, मध्याधिवास और शय्याधिवास जैसे कई नए पूजा संस्कार आम लोगों ने सुने हैं। वैदिक परंपरा के मुताबिक प्रायश्चित और कर्म कुटी पूजन किसी मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की शुरुआत में किया जाने वाला सबसे पहला पूजन है. यह पूजा, जाने-अनजाने में जीवन के किसी भी क्षण में होने वाली प्रत्येक गलतियों या पाप का प्रायश्चित है. इस पूजा में शारीरिक, आंतरिक, मानसिक और वाह्य तरीकों से प्रायश्चित किया जाता है। कई बार हम जाने अनजाने में कई प्रकार की ऐसी गलतियां कर लेते हैं, जिसका हमें तनिक भी आभास नहीं हो पाता है इसलिए ऐसे में शुद्धिकरण होना बेहद जरूरी होता है।


 यही वजह है कि प्राण प्रतिष्ठा से पहले प्रायश्चित पूजा की जाती है.  अयोध्या में इस पूजा के ज़रिए रामलला से और पूजन शुरू करने के पहले सभी गलतियों के लिए माफी मांगी गयी। राम लला से इसलिए क्योंकि यह माना गया कि रामलला की प्रतिमा बनाने में छेनी और हथौड़े के इस्तेमाल के चलते उन्हें चोट पहुंची होगी. वहीँ, कर्म कुटी पूजा का मतलब होता है यज्ञशाला पूजन। यज्ञशाला शुरू होने से पहले हवन कुंड अथवा वेदी का पूजन करते हैं। इस पूजा में जगत के पालनहार भगवान विष्णु की आराधना की जाती है। ऐसा करने से भगवान विष्णु मंदिर में जाने का आदेश करते हैं। इसके बाद ही प्राण प्रतिष्ठा के लिए मंदिर में प्रवेश किया जाता है।


इसके बाद, भगवान राम की प्रतिमा को वैदिक मंत्रोचार के बीच गर्भ गृह में रखा गया. इस दौरान ‘प्रधान संकल्प’, ट्रस्ट के सदस्य अनिल मिश्रा ने लिया। ‘प्रधान संकल्प' की भावना यह है कि भगवान राम की 'प्रतिष्ठा' सभी के कल्याण के लिए, राष्ट्र के कल्याण के लिए, मानवता के कल्याण के लिए और उन लोगों के लिए भी की जा रही है जिन्होंने इस कार्य में अपना योगदान दिया है। श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने भी आधिकारिक तौर पर बताया कि अयोध्या में जन्म भूमि स्थित राम- मन्दिर में 18 जनवरी को दिन में 12:30 बजे के बाद भगवान राम की मूर्ति का प्रवेश हुआ. दोपहर 1:20 बजे यजमान द्वारा ‘प्रधान संकल्प’ लिया गया। मूर्ति के जलाधिवास तक के विधान इसी दिन संपन्न हुए। 19 जनवरी शुक्रवार को प्रातः नौ बजे अरणी मन्थन से अग्नि प्रकट की गई। उसके पूर्व गणपति सहित अन्य देवताओं का पूजन हुआ।


अब कई पाठक सोच रहे होंगे कि अरणी मंथन क्या पहेली है। दरअसल, यज्ञ में आहुति के लिए या यज्ञ के निमित्त वैदिक पद्धति से अग्नि प्रकट करने की विधि को अरणी मंथन कहते हैं। इसमें शमी या खेजड़ी और पीपल की लकड़ी का उपयोग किया जाता है। शमी को शास्त्रों में अग्नि का स्वरूप कहा गया है जबकि पीपल को भगवान का स्वरूप माना गया।  इसीलिए इस वृक्ष से अरणी मंथन काष्ठ बनाया जाता है। फिर अग्रि मंत्र का उच्चारण करते हुए अग्रि प्रज्वलित की जाती है। अग्नि प्रकट करने के लिए शमी की लकड़ी से बने छेद युक्त तख्ते को लकड़ी की ही छड़ी से मथा जाता है। इस प्रक्रिया में मथनी को इतनी तेजी से चलाया जाता है कि उससे चिंगारी उत्पन्न होने लगती है, जिसे नीचे रखी घास और रूई में लेकर यज्ञ में उपयोग किया जाता है। अरणी में छड़ी के टुकड़े को उत्तरा और तख्ते को अधरा कहते हैं।


राम लला की प्राण प्रतिष्ठा से पहले उन्हें जलाधिवास कराया गया। इस विधि के तहत राम लला की मूर्ति को जल से भरे हुए विशाल पात्र में शयन कराया गया । इसी तरह, गंधाधिवास विधि के अंतर्गत मूर्ति पर सुगंधित द्रव्यों का लेप लगाया गया। औषधाधिवास की प्रक्रिया में मूर्ति को औषधि में रखा गया और फिर क्रमशः केसराधिवास में मूर्ति को केसर में, घृताधिवास में मूर्ति को घी में और धान्याधिवास में मूर्ति को कई तरह के धान्यों यानी अनाजों में रखा गया। 20 जनवरी की सुबह शर्कराधिवास और फलाधिवास संस्कार हुए । इनमें राम लला को शक्कर और फलों के बीच रखा गया. इसके बाद इसी दिन शाम को पुष्पाधिवास में मूर्ति को रंग बिरंगे और सुगंधित फूलों के साथ रखा गया।


प्राण प्रतिष्ठा के एक दिन पहले 21 जनवरी को मध्याधिवास और शय्याधिवास नामक अनुष्ठान हुए।  मध्याधिवास मूर्ति को शहद के साथ रखा गया जबकि शय्याधिवास में मूर्ति को शय्या पर लिटाया गया। सामान्य भाषा में समझे तो तमाम द्रव्यों,औषध,सुगंध,पुष्प,शहद जैसी सामग्री से स्नान और शुद्धिकरण के बाद भगवान को आराम कराया गया जिससे वे भक्तों को पूरी आभा, दिव्यता और भव्यता के साथ दर्शन देने के लिए तैयार हो सकें। जैसा की हम सभी जानते हैं कि राम लला की मूर्ति का वजन करीब 150 किलो और कमल के पुष्प सहित ऊंचाई काफी ज्यादा हो गई है इसलिए इन तमाम वैदिक परंपराओं के पालन के लिए भगवान राम की रजत प्रतिमा का उपयोग किया गया। इन सभी संस्कारों,विधियों और पद्धतियों के बाद भगवान अपने आसन पर विधि विधान के साथ प्रतिष्ठित हुए।


 







एक भारत श्रेष्ठ भारत

राम राज बैठें त्रैलोका। हरषित भए गए सब सोका॥बयरु न कर काहू सन कोई। राम प्रताप बिषमता खोई॥

 रामचंद्रजी के राज्य पर प्रतिष्ठित होने पर तीनों लोक हर्षित हो गए, उनके सारे शोक जाते रहे। कोई किसी से वैर नहीं करता। श्री रामचंद्रजी के प्रताप से सबकी विषमता यानि आंतरिक भेदभाव मिट गया ॥


कश्मीर में बर्फ से ढकी ऊंची चोटियों से लेकर कन्याकुमारी में धूप से सराबोर समुद्र तटों तक,राम नाम की गूंज ने पूरे भारत में भक्ति का माहौल बना दिया है। अब यह भक्ति अयोध्या में ऐतिहासिक राम मंदिर के रूप में मूर्त रूप ले रही है। यह गौरवमय मंदिर भारत की एकता और भक्ति के प्रतीक के रूप में खड़ा है, न केवल भव्यता में, बल्कि देश-विदेश से मिले योगदान के रूप में भी यह मंदिर अद्वितीय है। 'एक भारत श्रेष्ठ भारत 'पहल इस मंदिर के साथ गहराई से जुड़ी दिखती है। यह मंदिर उस अटूट विश्वास और उदारता का प्रमाण है जो किसी सीमा से परे किसी मंदिर के तीर्थाटन के लिए पूरे देश को जोड़ती है।

मंदिर का मुख्य भाग राजसी ठाठ-बाट लिए हुए है। यह राजस्थान के मकराना संगमरमर की प्राचीन श्वेत शोभा से सुसज्जित है। पीआईबी के एक लेख के मुताबिक इस मंदिर में देवताओं की उत्कृष्ट नक्काशी कर्नाटक के चर्मोथी बलुआ पत्थर पर की गई है। जबकि, प्रवेश द्वार की भव्य आकृतियों में राजस्थान के बंसी पहाड़पुर के गुलाबी बलुआ पत्थर का उपयोग किया गया है। गर्भ गृह को मजबूती देने का काम मध्य प्रदेश के छतरपुर और रीवा के पत्थरों ने किया है। भगवान राम की मूर्ति बनाने में इस्तेमाल किया गया काला पत्थर कर्नाटक से आया है। हिमालय की तलहटी से अरुणाचल प्रदेश और त्रिपुरा ने जटिल नक्काशीदार लकड़ी के दरवाजे और हस्तनिर्मित संरचना पेश किए हैं,जो दिव्य क्षेत्र के प्रवेश द्वार के रूप में खड़े हैं।

इस भव्य और दिव्य मंदिर के लिए योगदान की सूची यहीं ख़त्म नहीं होती। पीतल के बर्तन उत्तर प्रदेश से तो पॉलिश की हुई सागौन की लकड़ी महाराष्ट्र से आई है। इस राम मंदिर की कहानी सिर्फ सामग्री और उसकी भौगोलिक उत्पत्ति के बारे में नहीं है। यह उन अनगिनत हजारों प्रतिभाशाली शिल्पकारों और कारीगरों की कहानी है जिन्होंने मंदिर निर्माण के इस पवित्र प्रयास में अपना दिल, आत्मा और कौशल डाला है।

राम मंदिर अयोध्या में सिर्फ एक स्मारक नहीं है; यह विश्वास की एकजुट शक्ति का जीवंत प्रमाण है। हर पत्थर,हर नक्काशी और हर संरचना 'एक भारत, श्रेष्ठ भारत' की कहानी कहती है। यह भौगोलिक सीमाओं से परे सामूहिक आध्यात्मिक यात्रा में दिलों को जोड़ता है।


अंग्रेज़ी चोला उतारकर 'भारतीय' हो रही है हमारी वायुसेना

आज़ादी के अमृतकाल में भारतीय वायुसेना अंग्रेज़ी चोला उतारकर पूरी तरह से भारतीयता में ढल रही है। अक्तूबर माह की 8 तारीख को जब भारतीय वायुसेना ने अपना 91वा स्थापना दिवस मनाया तो वह अपने नए ध्वज के साथ सामने आई जो संपूर्ण रूप से भारतीय रंग में रंगा था। इस वायुसेना दिवस पर हमारी इस हवाई ताकत ने करीब सात दशक से जारी गुलामी के प्रतीकों से पूरी तरह से छुटकारा पा लिया गया है। अब वायुसेना ध्वज में हमारी आन बान शान और भारतीय गौरव तथा आत्मसम्मान का प्रतीक राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा, अशोक चिन्ह के साथ चमकने  लगा है। देश के मंत्र 'सत्यमेव जयते' और वायुसेना के मंत्र 'नभ: स्पृशं दीप्तम्'  को एक ध्वज पर लाकर भारतीय वायुसेना ने नई आभा हासिल की है। इसका लोकार्पण वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल वी आर चौधरी ने प्रयागराज में आयोजित वायुसेना दिवस पर किया।


भारतीय वायुसेना ने केवल ध्वज ही नहीं बदला है बल्कि बहुत कुछ पहली बार किया है। देश के लोगों में अपनत्व का भाव जगाने के लिए वायुसेना ने दिल्ली की सरहद पार कर देश के दिल तक पहुंचने की कवायद शुरू की है इसलिए इस बार वायुसेना दिवस का आयोजन दिल्ली से बाहर प्रयागराज में हुआ। बीते साल यह आयोजन चंडीगढ़ में हुआ था। इस साल वायुसेना दिवस की थीम “IAF – Airpower Beyond Boundaries” अर्थात् सीमाओं से परे हवाई ताकत' थी। इसे हमारी हवाई ताकत ने कई बार साबित भी किया है।


वायुसेना दिवस को दिल्ली से बाहर मनाने का यह सिलसिला यहीं नहीं रुकेगा बल्कि भविष्य में और भी कई शहरों को वायुसेना दिवस की मेजबानी का अवसर मिल सकता है। भारतीयकरण के साथ साथ वायुसेना जनभागीदारी और जन सहयोग के भाव को भी चरितार्थ कर रही है इसलिए वायुसेना दिवस के पहले भोपाल सहित कई शहरों में फ्लाईपास्ट का आयोजन हुआ ताकि आम लोग भी वायुसेना की इलीट क्लास वाली छवि के स्थान पर इसके वास्तविक रूप से रूबरू हो सके।

वायुसेना में चाहे पूरी तरह से भारतीय तेजस लड़ाकू विमान को शामिल करना हो या फिर ध्रुव हेलीकाप्टर या फिर स्वदेशी ब्रम्होस मिसाइल को या फिर अग्निवीरों को, इस तरह के हर फैसले से यह साफ जाहिर होता है कि भारतीय वायुसेना अब भारतीय संस्कृति,सपने और सरोकारों को साकार करने में जुटी है। वायुसेना में महिलाओं की बढ़ती भूमिका भी इसी दिशा में एक सकारात्मक कदम है। महिलाओं ने भी वायुसेना के विश्वास को कभी कम नहीं होने दिया है।नर्सिंग से लेकर लड़ाकू विमान तक वे पुरुष सह कर्मियों के साथ कंधे से कन्धा मिलाकर कदमताल कर रही हैं।


अगर हम भारतीय वायुसेना के इतिहास पर नजर डाले तो इसका गठन 8 अक्तूबर 1932 को ब्रिटिश सरकार द्वारा 'रॉयल इंडियन एयरफोर्स' के रुप में किया गया था । इसलिये 8 अक्तूबर को प्रतिवर्ष 'भारतीय वायुसेना दिवस' मनाया जाता है। इस दिन न सिर्फ भारतीय वायुसेना के गौरवमयी इतिहास को याद किया जाता है बल्कि इसके सुनहरे भविष्य के लिए रणनीतियों पर भी विचार किया जाता है। 


 भारतीय वायुसेना का द्वितीय विश्वयुद्ध से लेकर आज तक वीरता,बलिदान और जांबाजी का स्वर्णिम इतिहास है। स्वतंत्रता के बाद भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान और चीन के खिलाफ लड़े गए विभिन्न  युद्धों  और 1999 में कारगिल युद्ध तक में शानदार प्रदर्शन करते हुए न केवल दुश्मन को धूल चटाई है बल्कि अपने बलिदान और शौर्य से नया इतिहास भी रचा है।


कभी भारतीय वायुसेना के मुखिया रहे और अदम्य साहस के धनी एयर चीफ मार्शल अर्जन सिंह को असाधारण नेतृत्व क्षमता के लिए फाइव स्टार जनरल का ओहदा दिया गया। वे भारतीय वायुसेना के इकलौते अफसर थे जिनको फील्ड मार्शल के बराबर फाइव स्टार रैंक मिली थी। 

 

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि वायुसेना दिवस पर भारतीय वायुसेना अपने पराक्रम, सैन्य क्षमता, आधुनिक अस्त्र शस्त्रों का प्रदर्शन तो करती ही है,साथ ही इस अवसर पर वायुसेना में योगदान देने वाले हर व्यक्ति की सराहना की जाती है। सफल मिशनों को पूरा करने और मध्य वायु कमान को उच्च स्तर की परिचालन तैयारियों को प्रदर्शित करने में सक्षम बनाने के लिए उनकी प्रशंसा की जाती है। पिछले साल की उपलब्धियों को ध्यान में रखते हुए वायु योद्धाओं को विभिन्न पुरस्कार और सम्मान पदक प्रदान किए जाते हैं।


वायुसेना अपने स्थापना दिवस पर देश वासियों को यह विश्वास भी दिलाती है कि वे पूरी तरह सुरक्षित हैं और वायुसेना के अत्याधुनिक विमान दुश्मन की आंख में आंख डालकर उसे नेस्तनाबूद करने का माद्दा रखते हैं। वायुसेना का आश्वासन ही हमें आर्थिक मोर्चे से लेकर हर क्षेत्र में विकास का हौंसला दे रहा है। हमें अपनी वायुसेना पर नाज है।


 


कण कण में राम,जन जन में राम


बंदउँ अवध पुरी अति पावनि,

रजू सरि कलि कलुष नसावनि।प्र

नवउँ पुर नर नारि बहोरी,

ममता जिन्ह पर प्रभुहि न थोरी।।


भावार्थ- मैं अति पवित्र श्री अयोध्यापुरी और कलियुग के पापों का नाश करने वाली श्री सरयू नदी की वन्दना करता हूँ। फिर अवधपुरी के उन नर-नारियों को प्रणाम करता हूँ, जिन पर प्रभु श्री रामचन्द्रजी की बहुत ममता है।



देश की नई देश की आध्यात्मिक और धार्मिक राजधानी अयोध्या भगवान श्री राम की जन्म भूमि के लिए दुनिया भर में मशहूर है। जाहिर सी बात है जहां साक्षात रामलला का जन्म हुआ हो उसे स्थान से बढ़कर और क्या हो सकता है। लेकिन सजती संवरती और नई अयोध्या को देखने के लिए यहां आने वाले श्रद्धालुओं और पर्यटकों को अयोध्या में रामलला विराजमान या श्री राम जन्मभूमि के अलावा और भी बहुत कुछ देखने को मिलेगा । 

अयोध्या प्राचीन काल से ही साधु संतों और मठ मंदिरों की नगरी रही है। यहां करीब 6000 से ज्यादा मंदिरों की मौजूदगी मानी जाती है। स्कंद पुराण में भी इस बात का उल्लेख है और कई ब्रिटिश इतिहासकारों ने भी अपने लेखन में अयोध्या में इतनी बड़ी संख्या में मंदिरों की मौजूदगी का उल्लेख किया है । अयोध्या विकास प्राधिकरण के अनुसार अयोध्या में आज भी 5000 से ज्यादा साधु संत रहते हैं और उतनी ही संख्या में मठ मंदिर भी मौजूद हैं। अयोध्या के बढ़ते धार्मिक प्रभाव के कारण मठों और साधु संतों की संख्या लगातार बढ़ भी रही है । पहले से मौजूद मठ मंदिरों के अलावा यहां देश के साथ-साथ दुनिया के कई देशों के प्रतिनिधि केंद्र बनाने की तैयारी भी शुरू हो गई है। इन केंद्रों के निर्माण से वहां से भी बड़ी संख्या में धार्मिक और भगवान राम में आस्था रखने वाले अनुयायी यहां आएंगे। 

दुनिया के सबसे प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक अयोध्या में पर्यटन विभाग ने फिलहाल 60 मंदिरों का चयन किया है। इन मठ मंदिरों को नए सिरे से सजाया संवारा जा रहा है। इसके अलावा, यहां मौजूद अखाड़ों की रंगत भी निखारी जा रही है । यदि हम अयोध्या के कुछ प्रमुख पर्यटन स्थलों और धार्मिक स्थलों की चर्चा करें तो यहां राम जन्मभूमि के अलावा कनक मंदिर, हनुमान गढ़ी, नागेश्वर नाथ मंदिर, कालेश्वर मंदिर, मणि पर्वत गुलाब बाड़ी, दशरथ महल, सीता रसोई, राम कथा पार्क और तुलसी स्मारक संग्रहालय जैसे दर्शनीय स्थल हैं।  हनुमान गढ़ी के बारे में तो यह कहा जाता है कि साक्षात हनुमान जी यहां रहते हैं। वहीं, कनक भवन मंदिर अपनी सुंदरता और दशरथ महल अपनी भव्यता के कारण बहुत लोकप्रिय है । अयोध्या में बहु बेगम का मकबरा भी हमेशा से ही पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहा है।  खास बात यह है कि कनक भवन, हनुमानगढ़ी और दशरथ महल की दूरी श्री राम जन्मभूमि से ज्यादा नहीं है और श्रद्धालु कुछ ही समय में इन सभी प्रमुख तीर्थ स्थलों के दर्शन कर सकते हैं। 

अयोध्या से जुड़े कुछ तथ्यों पर गौर करें तो यहां करीब साढ़े 12 सौ गांव है और आबादी कुल मिलाकर 24 लाख से ज्यादा है। यहां विधानसभा की पांच और लोकसभा की एक सीट है। अयोध्या की मुख्य भाषा अवधी मिश्रित हिंदी है । अयोध्या की एक अन्य पहचान पवित्र और पूजनीय सरयू नदी भी है।  भगवान राम का बचपन इसी सरयू नदी के किनारे बीता है इसलिए आज भी सरयू नदी को देश की पवित्रम नदियों में से एक माना जाता है । सरकार सरयू नदी की भी नए सिरे से साज संवार कर रही है । यहां घाट के किनारे रिवर फ्रंट तैयार किया जा रहा है ताकि श्रद्धालु इस महान जीवनदायिनी नदी की महिमा से रूबरू हो सकें। सरयू नदी पर बने अयोध्या के प्रमुख घाटों की बात करें तो श्रद्धालु यहां राम की पौड़ी, रामघाट, गोलाघाट, जानकी घाट, लक्ष्मण घाट जैसे विभिन्न स्थानों के जरिए सरयू नदी की भव्यता,विशालता और पवित्रता के दर्शन कर सकते हैं।

‘सजन रेडियो बजईओ-बजईओ जरा..’

हाल ही के वर्षों में रेडियो पर केंद्रित दो गाने खूब बजे। इनमें से एक शायद 2009 में आया था जिसमें मन का रेडियो बजाने की बात थी:

‘मन का रेडियो बजने दे ज़रा

गम को भूल कर जी ले तू ज़रा

स्टेशन कोई नया ट्यून कर ले ज़रा

फुल्टू ऐटिटूड दे दे तू ज़रा..’


इसके बाद 2017 में सलमान खान की फिल्म ट्यूबलाइट में सजन रेडियो ने धूम मचाई:

‘सजन रेडियो बजईओ बजईओ

बजईके सभी को नचईओ जरा..’ 


कहा जाता है फिल्में समाज का आइना होती हैं।समाज में जो चल/दौड़ रहा होता है वह फिल्मों में भी दिखने लगता है। इसका मतलब रेडियो चल रहा है…दौड़ रहा है, तभी तो फिल्मों में रेडियो पर गाने लिखे जा रहे हैं। वाकई, रेडियो फिर अपनी पूरी रफ्तार से चल पड़ा है। बीच में कुछ वक्त ऐसा था जब बुद्धू बक्से की आंधी में रेडियो को रफ्तार धीमी पड़ गई थी लेकिन लोगों को जल्दी ही समझ आ गया कि टीवी/छोटे परदे का जन्म उनको बुद्धू बनाने के लिए हुआ है। इसलिए, गलती समझ आते ही लोग वापस रेडियो की राह पर लौटने लगे।इस दौरान, रेडियो ने भी रंग रूप बदले और अपने आपको मोबाइल में समेट लिया। रेडियो कभी ट्रांजिस्टर बना तो कभी कारवां में बदला…कभी पॉडकास्ट बनकर छाया तो कभी कम्युनिटी रेडियो में,कभी मोबाइल में ऐप बनकर समाया, कभी कार में गूंजा तो कभी सुबह की सैर करने वालों की जेब में। रंग,रूप,आवाज और अंदाज बदलते हुए रेडियो एक बार फिर हमारे आसपास सुरीली तान छेड़ने लगा है ।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब देशवासियों से अपने मन की बात कहने सुनने का विचार किया तो उन्होंने रेडियो को ही चुना और हर माह के अंतिम रविवार को प्रसारित होने वाला यह कार्यक्रम सौ एपिसोड को भी पार कर गया है और इसकी लोकप्रियता लगातार बढ़ रही है। रेडियो और प्रधानमंत्री के गठजोड़ ने रेडियो का तो पुनर्जन्म किया ही,खादी से लेकर स्थानीय उत्पादों तक की काया पलट कर रख दी…ये रेडियो की लोकप्रियता का ही कमाल थे। प्रधानमंत्री की राह पर चलते हुए कुछ और प्रयोग हुए जैसे मध्य प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने दिल से कार्यक्रम के जरिए रेडियो से राज्य के लोगों से संवाद किया। वहीं, अभी केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी नई सोच नई कहानी कार्यक्रम के माध्यम से इस सिलसिले को आगे बढ़ा रही हैं।

रेडियो की साख और हैसियत को इस बात से भी समझा जा सकता है कि कई बड़े मीडिया समूह एफएम और पॉडकास्ट के जरिए रेडियो की दुनिया में कूद रहे हैं। रेडियो का पर्याय आकाशवाणी तो है ही हरफनमौला जो हर दौर में पूरी मुस्तैदी से डटा हुआ है और गीत,संगीत,समाचार,विचार जैसे विविध कार्यक्रमों के साथ सूचना,शिक्षा और मनोरंजन प्रदान करते हुए बहुजन हिताय बहुजन सुखाय की कसौटी पर खरा उतर रहा है। विश्व रेडियो दिवस एक बार फिर रेडियो को एक सशक्त माध्यम के रूप में अपनाने की याद दिलाता है। इस बार विश्व रेडियो दिवस की थीम ‘रेडियो: सूचना देने, मनोरंजन करने और शिक्षित करने वाली एक सदी’ है। आपदा से लेकर अवसर उपलब्ध कराने में रेडियो लगातार यह भूमिका निभाते आ रहा है। कोरोना संक्रमण के भयंकर दौर में हमने भी आपदा को अवसर में बदलकर रेडियो समाचारों को घर से प्रसारित कर और अच्छी खबर जैसी शुरुआत की थीं जिनको खूब सराहना मिली। ऐसे ही छोटे छोटे प्रयासों से रेडियो हमसे,समाज से संवाद करता है इसलिए फिलहाल तो मन का रेडियो बजाने का दौर है इसलिए वेलेंटाइन सप्ताह में बह रही प्रेम की हवा में आप भी सनम के साथ रेडियो पर प्यार लुटाइए और हमारे साथ गुनगुनाइए..‘सजन रेडियो बजईओ बजईओ

बजईके सभी को नचईओ जरा..।’

अलौलिक के साथ आधुनिक बनती अयोध्या

कहि न जाइ कछु नगर बिभूती।  जनु एतनिअ बिरंचि करतूती॥ सब बिधि सब पुर लोग सुखारी। रामचंद मुख चंदु निहारी॥ तुलसीदास जी ने लिखा है कि अयोध्या नगर...