गुरुवार, 3 फ़रवरी 2011

काश हम सब भी गब्बर ही होते...

हम सब शोले के खलनायक गब्बर सिंह को एक दुर्दान्त,क्रूर,वहशी दरिंदे के रूप में जानते हैं बिलकुल वैसे ही जैसे रामचरित्र मानस में रावण,जबकि असलियत में रावण कुछ ओर ही था.ऐसे ही हमारे एक विद्वान साथी ने गब्बर सिंह पर नए अंदाज़ में प्रकाश डाला है.आइये आप सब भी गब्बर पुराण में शराबोर हो जाइये...
1. सादा जीवन, उच्च विचार: उसके जीने का ढंग बड़ा सरल था. पुराने और मैले
कपड़े, बढ़ी हुई दाढ़ी, महीनों से जंग खाते दांत और पहाड़ों पर खानाबदोश
जीवन. जैसे मध्यकालीन भारत का फकीर हो. जीवन में अपने लक्ष्य की ओर इतना
समर्पित कि ऐशो-आराम और विलासिता के लिए एक पल की भी फुर्सत नहीं और
विचारों में उत्कृष्टता के क्या कहने! “जो डर गया, सो मर गया” जैसे
संवादों से उसने जीवन की क्षणभंगुरता पर प्रकाश डाला था.
२. दयालु प्रवृत्ति: ठाकुर ने उसे अपने हाथों से पकड़ा था. इसलिए उसने
ठाकुर के सिर्फ हाथों को सज़ा दी. अगर वो चाहता तो गर्दन भी काट सकता था.
पर उसके ममतापूर्ण और करुणामय ह्रदय ने उसे ऐसा करने से रोक दिया.
3. नृत्य-संगीत का शौकीन: 'महबूबा-महबूबा' गीत के समय उसके कलाकार
ह्रदय का परिचय मिलता है. अन्य डाकुओं की तरह उसका ह्रदय शुष्क नहीं था.
वह जीवन में नृत्य-संगीत एवं कला के महत्त्व को समझता था. बसन्ती को
पकड़ने के बाद उसके मन का नृत्यप्रेमी फिर से जाग उठा था. उसने बसन्ती के
अन्दर छुपी नर्तकी को एक पल में पहचान लिया था. गौरतलब यह कि कला के
प्रति अपने प्रेम को अभिव्यक्त करने का वह कोई अवसर नहीं छोड़ता था.
4. अनुशासनप्रिय नायक: जब कालिया और उसके दोस्त अपने प्रोजेक्ट से नाकाम
होकर लौटे तो उसने कतई ढिलाई नहीं बरती. अनुशासन के प्रति अपने अगाध
समर्पण को दर्शाते हुए उसने उन्हें तुरंत सज़ा दी.
5. हास्य-रस का प्रेमी: उसमें गज़ब का सेन्स ऑफ ह्यूमर था. कालिया और
उसके दो दोस्तों को मारने से पहले उसने उन तीनों को खूब हंसाया था. ताकि
वो हंसते-हंसते दुनिया को अलविदा कह सकें. वह आधुनिक युग का 'लाफिंग
बुद्धा' था.
6. नारी के प्रति सम्मान: बसन्ती जैसी सुन्दर नारी का अपहरण करने के बाद
उसने उससे एक नृत्य का निवेदन किया. आज-कल का खलनायक होता तो शायद कुछ और करता
7. भिक्षुक जीवन: उसने हिन्दू धर्म और महात्मा बुद्ध द्वारा दिखाए गए
भिक्षुक जीवन के रास्ते को अपनाया था. रामपुर और अन्य गाँवों से उसे जो
भी सूखा-कच्चा अनाज मिलता था, वो उसी से अपनी गुजर-बसर करता था. सोना,
चांदी, बिरयानी,चिकन या मलाई टिक्का की उसने कभी इच्छा ज़ाहिर नहीं की.
(यह सामग्री मुझे मेरे करीबी मित्र गीत दीक्षित ने भेजी थी.इसके असली रचनाकार कौन हैं मुझे नहीं पता पर इसमें गब्बर का चरित्र चित्रण इतने अनूठे अंदाज़ में किया गया है की मैं इसे आप सबके साथ साझा करने से आपने आपको नहीं रोक पाया.गब्बर को नए अंदाज़ रूप में सामने लाने के लिए लेखक को साधुवाद)

शुक्रवार, 28 जनवरी 2011

आप ब्लागर हैं..तो बन सकते हैं मंत्री-प्रधानमंत्री


सलीम अमामाऊ
 यदि आप शौकिया तौर पर ब्लागिंग करते हैं तो अब गंभीर हो जाइये और चलताऊ विषयों की बजाय ज्वलंत मुद्दों पर लिखना शुरू कर दीजिए क्योंकि ब्लागिंग से अब आप न केवल भरपूर पैसा और नाम कमा सकते हैं बल्कि मंत्री तथा प्रधानमंत्री जैसे पदों पर भी पहुँच सकते हैं. मुझे पता है आपको यह ‘मंत्री’ बनने की बात हजम नहीं हो रही होगी और मेरी कपोल-कल्पना लग रही होगी ,पर यह वास्तविकता है और चौबीस कैरेट सोने सी खरी है. हमारे एक ब्लागर भाई तो मंत्री पद तक पहुँच भी गए हैं.
हालाँकि हो सकता है आप में से कई लोग ऐसे उदाहरण देने लगे जो उन लोगों के हों जो मंत्री पद के साथ-साथ ब्लागिंग भी कर रहे हैं. मैं खुद भी लालकृष्ण आडवाणी,लालू प्रसाद जैसे तमाम नाम बता सकता हूँ जिन्होंने सरकारी उत्तरदायित्व सँभालते हुए भी ब्लागिंग की लेकिन ये लोग नेता/मंत्री/प्रभावशाली पहले थे और बाद में ब्लागर बने.मैं जिस व्यक्ति का उल्लेख कर रहा हूँ वह पहले आम ब्लागर था फिर मंत्री बना और भविष्य में शायद प्रधानमंत्री भी बन सकता है और अभी भी नियमित रूप से ब्लागिंग कर रहा है. इस शख्स का नाम है-सलीम अमामाऊ...सलीम ट्यूनीशिया के नागरिक हैं और हाल ही में इन्हें इस देश का युवा और खेल मंत्री बनाया गया है.ऐसा नहीं है कि सलीम को यह पद सरकार की चापलूसी से मिल गया है बल्कि उन्होंने खुलेआम सरकार से लोहा लिया.सलीम के आग उगलते लेखों के कारण ट्यूनीशिया में सरकार के खिलाफ विद्रोह का माहौल बन गया. इसके लिए सलीम को जेल जाना पड़ा,पुलिसिया यातनाएं सहनी पड़ी और वे तमाम कष्ट उठाने पड़े जो किसी भी देश में सरकार की गलत नीतियों का विरोध करने वालों को उठाने पड़ते हैं. पर धीरे-धीरे सलीम के साथ अन्य ब्लागर भी जुड़ते गए.फिर ट्विटर और फेसबुक जैसी लोकप्रिय सोशल नेटवर्किंग वेबसाइटों ने भी उनका भरपूर साथ दिया.स्थिति यह बन गई कि यहाँ की सरकार के मुखिया को देश छोड़कर भागना पड़ा और ट्यूनीशिया में अंतरिम सरकार का गठन हुआ जिसमें सलीम अमामाऊ को भी शामिल कर मंत्री बनाया गया.अब यह अंतरिम सरकार चुनाव कराकर नई सरकार का गठन करेगी.सलीम की ट्यूनीशिया में लोकप्रियता को देखकर लगता है कि वे भविष्य में यदि यहाँ के प्रधानमंत्री बन जाये तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी. खास बात यह है कि सलीम अमामाऊ ने अभी भी ब्लागिंग बंद नहीं की है.उनका कहना है कि वे सरकार में रहकर भी ब्लागिंग के जरिये सरकार की कमज़ोरियों को आम लोगों के बीच ले जाते रहेंगे.
सलीम अमामाऊ को ब्लागरों के लिए आदर्श माना जा सकता है क्योंकि उनसे प्रेरणा लेकर ट्यूनीशिया के पड़ोसी मुल्क मिश्र सहित कई अन्य देशों के ब्लागर भी तानाशाह सरकारों के खिलाफ आवाज़ उठाने लगे हैं और वहाँ भी सत्ता परिवर्तन की आहट सुनाई दे रही है....तो फिर देर किस बात की है....आप भी उठाइए कलम/चलाइए कीबोर्ड पर अंगुलियां और बता दीजिए देश को अपनी बात, इससे आप भले ही मंत्री-प्रधानमंत्री न बन पाए कम से कम ब्लागर जगत को तो एक और संजीदा ब्लागर मिल जायेगा.

सोमवार, 24 जनवरी 2011

एक हत्यारी माँ का बेटी के नाम पत्र

प्रिय बेटी,
आज जब से मैंने यह समाचार पढ़ा है कि ‘देश में हर साल सात लाख लड़कियां गर्भ में ही माता-पिता द्वारा मार दी जाती हैं’,मेरा मन अत्यधिक व्याकुल है. मैं चाह कर भी अपने आप को रोक नहीं पा रही हूँ इसलिए यह खत लिख रही हूँ ताकि अपने मन की पीड़ा को कुछ हद तक शांत कर सकूँ.....बस मेरी तुमसे एक गुज़ारिश है कि मेरा पत्र पढकर नाराज़ नहीं होना. लगता है कि जैसे मैं बौरा गई हूँ तभी तो यह कह बैठी कि पत्र पढकर मुझसे नाराज़ नहीं होना?हकीकत तो यह है कि मैंने तुमसे इस पत्र को पढ़ने तक का अधिकार छीन लिया है. मैं चाहती तो पत्र की शुरुआत में तुम्हें मुनिया,चंदा,गरिमा या फिर मेरे दिल के टुकड़े के नाम से भी संबोधित कर सकती थी परन्तु मैंने तो नाम रखने का अधिकार तक गवां दिया.बेटा मैं भी उन अभागन माँओं में से एक हूँ जिन्होंने अपनी लाडली को अपने पति और परिवार के ‘पुत्र मोह’ में असमय ही ‘सजा-ए-मौत’ दे दी.तुम्हारे कोख में आते ही मेरा दिल उछाले मारने लगा था और मुझे भी माँ होने पर गर्व का अहसास हुआ था.पहली बार तुमने ही मुझे यह मधुर अहसास और गर्व की अनुभूति कराई थी परन्तु मुझे क्या पता था कि यही गर्व मेरे लिए अभिशाप बन जायेगा और मैं भविष्य में तुम्हें, तुम्हारे नाम से भी पुकारने का अधिकार खो दूंगी.जैसे ही डॉक्टर मैडम ने तुम्हारे होने की सूचना दी और मैंने तुम्हारे भविष्य के सपने बुनने शुरू कर दिए.मैं तुम्हें कल्पना चावला,मदर टेरेसा,इंदिरा गाँधी जैसा कुछ बनाना चाहती थी पर यदि तुम ऐश्वर्य राय,प्रियंका चोपड़ा या सानिया/सायना जैसी भी बनाना चाहती तो भी मुझे कोई आपत्ति नहीं होती क्योंकि इनके जरिये भी कम से कम तुम मेरे दबे कुचले अरमानों को पूरा करती.तब तक मुझे नहीं पता था कि तुम्हारे लिए बुने जा रहे मेरे ये ख़्वाब बस सपने ही बनकर रह जायेंगे और तुम्हारे दादा-दादी और पापा के मान की खातिर मुझे तुम्हारा चेहरा देखना तक नसीब नहीं होगा.हाँ, मैं इतना दावा तो कर ही सकती हूँ कि तुम बिलकुल मेरी परछाईं होती-मेरी तरह ही बेहद खूबसूरत.वैसे तुम पिता का अक्स होती तब भी काफी सुंदर लगती. दरअसल लंबे-चौड़े कारोबार के कारण पिता और दादा वारिस चाहते थे और हमारे समाज में आज तक बेटी को वारिस नहीं माना जाता.परंपरा की मारी दादी भी उनके साथ खड़ी नज़र आई तो मेरा रहा-सहा मनोबल भी टूट गया.आखिर कम पढ़ी-लिखी और गरीब परिवार से अमीरों में ब्याहकर आई तुम्हारी माँ न तो घर छोड़ने का साहस दिखा सकती थी और न अपने गरीब माँ-बाप पर बुढ़ापे में बोझ बन सकती थी.अन्तः वही हुआ जो घर के सभी सदस्य (तब बहू को सदस्य नहीं माना जाता था) चाहते थे और तुम अजन्मी ही रह गई.आज जब सात लाख बेटिओं को मार डालने का समाचार पढ़ा तो मेरा दिल जार-जार रोने लगा क्योंकि मैं भी तो इन हत्यारी माँओं में से एक हूँ. आज इतनी हिम्मत जुटाकर यह पत्र इसलिए लिख रही हूँ कि मैं तो शायद चाहकर भी तुम्हें न बचा पाई पर इस पत्र के माध्यम से अपनी जैसी माँओं के दिल का हाल सबके सामने ला सकूँ और उनके परिवारों को शर्मिन्दिगी का अहसास कराकर तुम जैसी कुछ बेटिओं को जीने का अधिकार दिला सकूँ ताकि भविष्य में और कोई कल्पना/प्रियंका/इंदिरा उम्मीदों पर खरी उतरने और आसमान में अपने हिस्से की उड़ान पूरी करने के पहले ही विदा न हो सके...

                                                                                                                      तुम्हारी हत्यारी/अभागन माँ

अलौलिक के साथ आधुनिक बनती अयोध्या

कहि न जाइ कछु नगर बिभूती।  जनु एतनिअ बिरंचि करतूती॥ सब बिधि सब पुर लोग सुखारी। रामचंद मुख चंदु निहारी॥ तुलसीदास जी ने लिखा है कि अयोध्या नगर...