मंगलवार, 20 फ़रवरी 2024

बहुजन हिताय बहुजन सुखाय

रेडियो अपनी स्थापना के बाद से ही सूचना, शिक्षा और मनोरंजन का सबसे बड़ा माध्यम रहा है। समय के साथ रेडियो ने भले ही अपने रूप, आकार,प्रकार और नाम बदले हो लेकिन उसके मूल में हमेशा ही यह तीन सिद्धांत कायम रहे हैं । फिर चाहे 8 फुट के एंटीना से चलने वाला रेडियो हो या फिर जेब में मौजूद मोबाइल के जरिए हर व्यक्ति तक पहुंच रहा रेडियो। आकाशवाणी हो या ऑल इंडिया रेडियो या कोई और चैनल, रेडियो ने हमेशा ही बहुजन हिताय बहुजन सुखाय

की नीति पर चलते हुए सूचना और शिक्षा के साथ मनोरंजन का बीड़ा उठाया है। जब हम बहुजन हिताय बहुजन सुखाय की बात करते हैं तो इसमें बच्चों से लेकर परिवार के सबसे बड़े बुजुर्ग सदस्य तक शामिल होते हैं। यही कारण है कि रेडियो या यूं कहें कि आकाशवाणी ने हमेशा ही अपने विविधता भरे कार्यक्रमों और तथ्य परक समाचारों के जरिए सही सूचना और मनोरंजन पहुंचाने का दायित्व निभाया है।  दशकों से लेकर हाल में हुई कुछ घटनाओ के संदर्भ में देखें तो रेडियो हमेशा ही जनमानस का सबसे बड़ा साथी बनकर उभरा है। चाहे असम सहित पूर्वोत्तर के राज्यों में आने वाली बाढ़ हो या फिर देश भर को सदमे में डालने वाली बीमारी कोविड 19 आकाशवाणी ने आगे बढ़कर लोगों को सही सूचनाये देने में सबसे अहम भूमिका निभाई है। भोपाल में गैस त्रासदी के दौरान तो आकाशवाणी की टीम  ने संजीवनी बनकर लोगों का जीवन बचाने के लिए स्वयं की परवाह भी नहीं की थी। इसी तरह कोरोना संक्रमण के दौर में भी, जब लोग घरों में कैद  थे तब भी आकाशवाणी ने हर घंटे प्रसारित समाचारों,  सटीक जानकारी,  सूचना परक कार्यक्रमों और पूरे परिवार के मनोरंजन के साधन उपलब्ध कराकर लोगों को न केवल घरों में बांधे रखा बल्कि उन्हें किसी भी अफवाह से बचा कर भी रखा। कुल मिलाकर देखें तो आकाशवाणी ने हमेशा ही राष्ट्रीय प्रसारक की अपनी जिम्मेदारी को बखूबी निभाया है। आप हम भोपाल में यह जिम्मेदारी निभा रहे हैं और दिल्ली सहित देशभर में मौजूद हमारे साथी  अपने अपने क्षेत्रों में कुछ इसी तरह की भूमिका रहे हैं। एक बार फिर आप सभी को विश्व रेडियो दिवस की अनेक शुभकामनाएं..सुनते रहिए रेडियो,सुनते रहिए आकाशवाणी।

गीता के मानस, मानस के श्रीराम

 सठ सुधरहिं सत्संगति पाई। पारस परस कुघात सुहाई।। 

अर्थ: जिस प्रकार पारस के स्पर्श पाकर लोहा भी सोना बन जाता है, ठीक उसी प्रकार संत की संगति पाकर अपने अंदर की कुबुद्धि भाग जाती, जिससे जीवन अनमोल बन जाता है।


वैसे तो भगवान श्रीराम की लीलाओं का बखान करने वाले ढेरों धार्मिक ग्रंथ मौजूद हैं पर जब भी राम लला की स्तुति होती है रामायण और रामचरित मानस के उल्लेख के बिना आराधना पूरी नहीं हो सकती। संस्कृत निष्ठ और विद्वानों परिवारों में जहां महर्षि बाल्मिकी रचित रामायण को  पूजा जाता है तो आम भारतीय परिवारों में यह गौरव रामचरित मानस को प्राप्त है। देश में देवाधिदेव भगवान राम की महिमाओं की चर्चा हो और रामचरितमानस का उल्लेख न हो यह संभव ही नहीं है। 

सही मायनों में रामचरितमानस ही वह पवित्र और लोकप्रिय ग्रंथ है जिसने भगवान राम की लीलाओं को घर-घर और जन-जन तक पहुंचाने का महत्वपूर्ण काम किया है। किसी भी सनातनी परिवार में रामचरितमानस ग्रंथ की पूजा घर में मौजूदगी एक अनिवार्य संस्कार है । शायद, यह दुनिया की इकलौती धार्मिक पुस्तक है जो आराध्य राम की तरह ही पवित्र मानी जाती है और घर घर में पूजी जाती है। यह ग्रंथ हर उम्र के लोगों को जीवन संस्कार, परंपरा, गौरव और उत्तम जीवन की सीख देने वाला है।  रामचरित मानस भगवान राम की तरह हमारे जीवन का अटूट हिस्सा है । आमतौर पर भारतीय घरों में प्रतिदिन इस ग्रंथ का पाठ होना सामान्य बात है। इसी तरह, साप्ताहिक तौर पर और कई जगह नियमित आधार पर होने वाला सुंदरकांड  का पाठ भी दिनचर्या का अटूट हिस्सा है। रामचरित मानस की बात करें तो इस महान ग्रंथ में भगवान श्रीराम शब्द 1 हजार 443 बार और सीता शब्द 147 बार आता है। इस ग्रंथ में चौपाई की संख्या 4 हजार 608, दोहों की संख्या 1 हजार 74, सोरठों की संख्या 207 तथा श्लोकों की संख्या 86 है। ऐसा माना जाता है कि रामचरितमानस के पाठ से से सभी प्रकार की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.

 ऐसा नहीं है कि रामचरितमानस एक दिन में हम सबके घर-घर तक पहुंच गई । इस पवित्र पुस्तक को हर घर और हर व्यक्ति तक पहुंचने में गोरखपुर की गीता प्रेस की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका है। गीता प्रेस ने इस महान पुस्तक को महज ₹70 से लेकर₹1600 तक की सर्व सुलभ कीमत में उपलब्ध कराकर जन-जन तक पहुंचा दिया है। कीमत के साथ साथ गीता प्रेस ने भाषा की सरलता, भावार्थ, मुद्रण की शुद्धता,स्वच्छ मुद्रण और कागज की गुणवत्ता का विशेष रूप से ध्यान रखकर रामचरित मानस को लोकप्रियता के शिखर पर पहुंचा दिया है। 

वैसे गीता प्रेस की ओर से केवल रामचरित मानस भर का प्रकाशन नहीं किया जाता बल्कि यह संस्थान सैकड़ों शास्त्र प्रमाणित धार्मिक पुस्तकों के प्रकाशन के लिए देश ही नहीं दुनिया भर में मशहूर है। करीब 100 साल पहले 1923 में स्थापित गीता प्रेस ने अब तक 95 करोड़ से ज्यादा धार्मिक पुस्तकों का प्रकाशन किया है और जिस गति से रामचरितमानस सहित भगवान राम के जीवन से जुड़ी उनकी लीलाओं को बताने वाली और मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में उन्हें जन-जन में स्थापित करने वाली अयोध्या दर्शन, रामांक और अयोध्या महात्म्य जैसी पुस्तकों की मांग बढ़ रही है, उसे देखकर लगता है कि गीता प्रेस से प्रकाशित धार्मिक पुस्तकों का आंकड़ा जल्दी ही 100 करोड़ पुस्तकों की विशिष्ट उपलब्धि को हासिल कर लेगा। यह उपलब्धि किसी भी संस्थान के लिए गौरव का विषय है। दरअसल, गीता प्रेस में पुस्तकों का प्रकाशन शुद्धता, सत्यता, पवित्रता का ध्यान रखते हुए और लाभ कमाने की लालसा के बिना किया जाता है । यही कारण है कि गीता प्रेस से छपने वाली पुस्तक शास्त्र प्रमाणित होती हैं और उनके वर्णन पर आंख बंद करके भरोसा किया जा सकता है। गीता प्रेस से करीब 15 भाषाओं में 1800 पुस्तकों का प्रकाशन होता है।  यह प्रेस अपने सबसे लोकप्रिय ग्रंथ श्री रामचरित मानस की अब तक पौने चार करोड़ से ज्यादा प्रतियां प्रकाशित कर चुका है। अयोध्या में राम लाल की प्राण प्रतिष्ठा के साथ ही रामचरितमानस की मांग और बढ़ गई है इसलिए अब गीता प्रेस को प्रति माह रामचरितमानस की 75  हजार से लेकर 1 लाख प्रतियों  तक का प्रकाशन करना पड़ रहा है। उल्लेखनीय बात यह है कि अन्य प्रकाशनों और संसाधनों की कमी के कारण गीता प्रेस रामचरित मानस की इससे ज्यादा  प्रतियां चाहकर भी प्रकाशित नहीं कर  सकता। गीता प्रेस के देश भर में ढाई हजार से ज्यादा विक्रेता है। इसके अलावा कई व्यक्तिगत विक्रेता भी है जो अपने स्तर पर इन किताबों को खरीद कर ट्रेन, बस, साप्ताहिक बाजारों और अन्य माध्यमों से उनकी बिक्री करते हैं।

रामचरित मानस के महत्व और गीता प्रेस की उपयोगिता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि प्राण प्रतिष्ठा समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से वीवीआईपी अतिथियों को 300 चित्रों वाली रामचरितमानस पुस्तक उपहार के रूप में भेंट की गई । इसके अलावा, करीब 10 हजार आमंत्रित अतिथियों को प्रसाद के साथ अयोध्या दर्शन पुस्तक प्रदान की गई है । वहीं कुछ अन्य खास मेहमानों के लिए गीता प्रेस की चार पुस्तकों अयोध्या दर्शन, रामांक, अयोध्या महात्म्य और गीता दैनंदिनी के 51 सेट भेंट किए गए हैं।


देश और दुनिया में रामचरितbमानस की बढ़ती लोकप्रियता और मांग को देखते हुए गीता प्रेस ने कुछ समय के लिए इस पवित्र ग्रंथ को ऑनलाइन उपलब्ध कराने का निर्णय भी लिया जिससे प्राण प्रतिष्ठा समारोह के दौरान आम लोग सहजता से इस पवित्र ग्रंथ का पाठ कर सकें।

रामलला को समर्पित सबसे अलग-सबसे अनूठा

रमानाथ जहँ राजा सो पुर बरनि कि जाइ। अनिमादिक सुख संपदा रहीं अवध सब छाइ।।

 भावार्थ:स्वयं लक्ष्मीपति भगवान्‌ जहाँ राजा हों, उस नगर का कहीं वर्णन किया जा सकता है? अणिमा आदि आठों सिद्धियाँ और समस्त सुख-संपत्तियाँ अयोध्या में छा रही हैं

अयोध्या में रामलला के नए भव्य और दिव्य मंदिर में विराजमान होने के बाद दुनिया भर में उत्साह का माहौल है। लोगों की खुशियों का पारावार नहीं है और वे रामलला पर सर्वत्र न्यौछावर करने को तत्पर हैं। हर आम ओ खास इतना उल्लासित है कि वह अपने आराध्य को अपनी ओर से कुछ अलग,कुछ अनूठा और कुछ नया समर्पित करने के प्रयास में जुटा है। हर व्यक्ति अपनी हैसियत के मुताबिक अपने प्रभु और आराध्य को तन मन धन और अंतर आत्मा की गहराइयों से अपना अगाध प्रेम,श्रद्धा एवं समर्पण को भाव रूप में अर्पित करने के लिए आतुर है। कुछ लोग अपना भक्तिभाव समर्पित कर चुके हैं, कुछ कर रहे हैं और कुछ लोग तैयारियों में जुटे हैं। आम लोगों ने श्रद्धा पूर्वक दिए गए चंदे से पहले ही मंदिर ट्रस्ट का खज़ाना लबालब भर दिया है इसलिए अब कुछ अलग और कुछ अनूठा समर्पित करने की बारी है इसलिए दुनिया भर के सनातनी अपने आराध्य को एक से बढ़कर एक अनूठे और अचंभित करने वाले उपहार भेंट कर रहे हैं।

अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा समारोह से पहले राम मंदिर के लिए भेजे गये विशेष उपहारों में गुजरात के बड़ोदरा से समर्पित की गई 108 फुट लंबी अगरबत्ती, उत्तरप्रदेश के जलेसर से आया 21 सौ किलो का घंटा, गुजरात से आया पंचधातु का बना 11 सौ किलो का भारी भरकम विशाल दीपक, हैदराबाद से चल्ला श्रीनिवास शास्त्री के साथ आए सवा किलो सोने चांदी के बने खड़ाऊं, चेन्नई से बनकर आया ढाई किलो सोने चांदी से बना धनुष, अलीगढ़ से भेंट किया गया खास प्रकार का 10 फुट का ताला चाबी, अहमदाबाद में बना 500 किलो का नगाड़ा, मध्य प्रदेश में उज्जैन के महाकाल मंदिर और तिरुपति से विशेष रूप से प्रसाद के लिए आए लाखों लड्डू और एक साथ आधा दर्जन देशों का समय एक साथ बताने वाली घड़ी प्रमुख हैं. श्रीराम को समर्पित उपहारों की श्रृंखला इतनी लंबी है कि गिनाते गिनाते कई पन्ने भर जाएंगे और सूची पूरी हो पाएगी। इसके अलावा, नेपाल से आए आभूषण और विशेष वस्त्र सहित विभिन्न वस्तुएं भी हैं।

उपहारों की सूची में सबसे प्रमुख श्रीलंका स्थित अशोक वाटिका से लाई गई विशेष शिला हैं। रामचरित मानस के अनुसार रामायण के अनुसार रावण ने माता सीता का अपहरण करने के बाद उन्हें अशोक वाटिका में ही रखा था और ऐसी मान्यता है कि सीता जी इसी शिला पर बैठती थी।

आइए, अब एक नजर कुछ खास उपहारों और उनके जन आकर्षण बनने की वजह पर डालते हैं। सबसे ज्यादा चर्चा में रही 108 फुट लंबी अगरबत्ती को तैयार करने में करीब छह माह का समय लगा है। अगरबत्ती का वजन लगभग 36 सौ किलो और चौड़ाई 3.5 फीट है. अगरबत्ती तैयार करने वाले वडोदरा निवासी विहा भरवाड का कहना है कि यह अगरबत्ती पर्यावरण के अनुकूल है और लगभग डेढ़ महीने तक जलेगी और कई किलोमीटर तक अपनी सुंगध फैलाएगी. इस अगरबत्ती को बनाने में तकरीबन 376 किलोग्राम गूगल, लगभग इतनी ही मात्रा में नारियल गोला, 190 किलो घी, 14 सौ किलो गाय का गोबर, 420 किलो जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल किया गया है. 

दुनिया भर में तालों के मशहूर अलीगढ़ से भेजा गया ताला दुनिया का सबसे बड़ा ताला है। ताला बनाने वाले सत्य प्रकाश शर्मा का कहना है कि 10 फीट ऊंचा, 4.6 फीट चौड़ा और 9.5 इंच मोटा यह ताला और चाबी 400 किलो का  है। अष्टधातु से बना 21 सौ किलो वजन का घंटा भी दो साल में बनकर तैयार हुआ है।

भारत के साथ साथ जापान, रूस,यूएई, चीन, सिंगापुर, मेक्सिको, अमेरिका का समय बताने वाली अनूठी देशी घड़ी भी अब भगवान राम के खजाने का हिस्सा है। इसी तरह, सूरत से भेजा गया अमेरिकी हीरे और चांदी से बना राम मंदिर की थीम हार भी खास है। इसे बनाने में चालीस कारीगर और  लगभग एक महीने का समय लगा है। वडोदरा से आया 11 सौ किलो का दीपक भी अनूठा है। यहां के किसान अरविंदभाई मंगलभाई पटेल ने पंच धातु सोना, चांदी, तांबा, जस्ता और लोहे से यह दीपक बनवाया है। 





84 सेकेंड की माया

 जोग लगन ग्रह बार तिथि सकल भए अनुकूल।

चर अरु अचर हर्षजुत राम जनम सुखमूल॥

भावार्थ:योग, लग्न, ग्रह, वार और तिथि सभी अनुकूल हो गए। जड़ और चेतन सब हर्ष से भर गए। (क्योंकि) श्री राम का जन्म सुख का मूल है॥


अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के साथ ही देश में उल्लास और उत्सव का वातावरण है लेकिन भगवान श्रीराम की प्रतिमा की स्थापना के पहले से ही कई लोगों के मन में यह सवाल कौंध रहा है कि आखिर राम लला की प्राण प्रतिष्ठा के लिए 22 जनवरी की ही तारीख क्यों तय की गई? भारतीय सामाजिक-सांकृतिक परंपराओं और पौराणिक ग्रंथों में शुभ मुहूर्त का खास महत्व है। वैसे भी सनातन धर्म में कोई भी शुभ कार्य पंचांग के अनुसार, शुभ मुहूर्त देखकर ही किया जाता है। यही वजह है कि राम लला को विराजमान करने के लिए तिथि तय करते समय काफी विचार विमर्श किया गया और देश के तमाम प्रमुख पंडितों,ज्योतिषियों और सनातन धर्म के विद्वानों ने भारतीय पंचाग और प्राचीन ग्रंथों के अध्ययन के बाद यह तिथि तय की ।

आइए, अब जानते हैं कि 22 जनवरी को ऐसा क्या खास है जिस वजह से यह तारीख भारतीय सनातन संस्कृति के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज हो गई है। दरअसल, 22 जनवरी को तीन शुभ योगों का अद्भुत संयोग था. 22 जनवरी को पौष शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि और मृगशिरा नक्षत्र था. इसके अलावा, सोने पर सुहागा यह था कि सूर्योदय से लेकर पूरे दिन सवार्थ सिद्धि योग और अमृत सिद्धि योग भी था। वहीं,दिन खत्म होने के साथ ही रवि योग भी लग गया था. इन सब योगों में अभिजीत मुहूर्त के अंतर्गत उन सबसे खास 84 सेकेंड में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का कार्य संपन्न किया गया. इस दिन चंद्रमा भी अपनी उच्च राशि वृषभ में रहा.

जनवरी की 22 तारीख को अभिजीत मुहूर्त दोपहर 12 बजकर 17 मिनट से शुरू होकर 12 बजकर 59 मिनट तक रहा. उसमें से भी अति शुभ या सर्वोत्तम मुहूर्त दोपहर 12 बजकर 29 मिनट 8 सेकंड से 12 बजकर 30 मिनट 32 सेकंड का था. सनातन धर्म में शुभ कार्य के लिए अभिजीत मुहूर्त सबसे उत्तम माना जाता है.

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार त्रेता युग में प्रभु श्री राम का जन्म भी अभिजीत मुहूर्त में हुआ था. पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान राम का जन्म अभिजीत मुहूर्त, मृगशीर्ष नक्षत्र, अमृत सिद्धि योग और सर्वार्थ सिद्धि योग के संगम पर हुआ था. ये सारे शुभ योग 22 जनवरी 2024 को पुनः एक साथ थे इसलिए यह अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के लिए सबसे आदर्श दिन बन गया। यह  भी कहा जा रहा है कि इस शुभ मुहूर्त में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा हो जाने से प्रभु श्री राम सदैव मूर्ति में विराजमान रहेंगे.


एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, यह तब है जब भगवान शिव ने राक्षस त्रिपुरासुर का वध किया था। इस प्रकार यह मुहूर्त किसी के जीवन से किसी भी नकारात्मक ऊर्जा को हटाने से जुड़ा है।

 ज्योतिषियों के अनुसार 22 जनवरी को कर्म द्वादशी थी। यह द्वादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित है। धर्म ग्रंथों के अनुसार इसी दिन भगवान विष्णु ने कछुए का अवतार लेकर समुद्र मंथन में सहायता की थी। भगवान श्री राम वास्तव में भगवान विष्णु के ही अवतार हैं, इसलिए इस दिन को राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के लिए बेहद शुभ माना गया।

 ज्योतिषियों के मुताबिक अभिजीत मुहूर्त, सर्वार्थ सिद्धि योग, अमृत सिद्धि योग और रवि योग किसी भी शुभ कार्य को करने के लिए बहुत शुभ हैं । इन योगों में कोई भी कार्य करने से व्यक्ति को सभी प्रकार के कार्यों में सफलता मिलती है। इन सभी तथ्यों,तर्कों और अध्ययन मनन के बाद यह तिथि चुनी गई।

शनिवार, 6 जनवरी 2024

जब गांधी जी ने पहनी ब्रिटिश सेना की वर्दी…!!

 ‘यह आश्चर्यजनक लग सकता है लेकिन सच है कि वर्ष 1899 में महात्मा गांधी ने ब्रिटिश सैन्य वर्दी पहनी थी।’ रक्षा मंत्रालय की सौ साल से प्रकाशित हो रही आधिकारिक पत्रिका ‘सैनिक समाचार’  के मुताबिक गांधी जी ने बोएर युद्ध के दौरान ब्रिटिश सेना की वर्दी पहनी थी। पत्रिका के हिंदी संस्करण में ‘जब गांधी ने सैनिक की वर्दी पहनी’ शीर्षक वाला यह लेख 9 अक्टूबर, 1977 को प्रकाशित हुआ था और जे पी चतुर्वेदी के इस लेख को सैनिक समाचार के प्रकाशन के सौ साल पूरे होने पर 2 जनवरी 2009 को प्रकाशित शताब्दी अंक और कॉफी-टेबल बुक में पुनः स्थान दिया गया था । रक्षा मंत्रालय द्वारा प्रकाशित की जा रही यह पत्रिका फिलहाल हिंदी और अंग्रेजी सहित तेरह भाषाओँ में नयी दिल्ली से प्रकाशित हो रही है। इस पत्रिका के पाठकों में सभी सैन्य मुख्यालय, अधिकारी, पूर्व सैनिक और दूतावास सहित तमाम अहम् संसथान शामिल हैं.


    वैसे, जनवरी माह का गाँधी जी और सैनिक समाचार दोनों के साथ करीबी रिश्ता है. इस पत्रिका का प्रकाशन देश को मिली स्वतंत्रता से काफी पहले 2 जनवरी 1909 को शुरू हुआ था. तब इसकी कमान ब्रिटिश हाथों में थी और इसका उद्देश्य अंग्रेजी साम्राज्य के अंतर्गत आने वाले भारत सहित विभिन्न मोर्चो की सैन्य गतिविधियों को साझा करना था. उस दौर में भी पत्रिका को भरपूर पाठक मिलते थे और सम्पादकीय कुशलता का यह आलम था कि विश्व युद्ध के दौरान सैनिक समाचार (तब फौजी अखबार) की टीम ने ‘जवान’ और ‘सैनिक’ के नाम से विशेष परिशिष्ट भी निकले थे. पत्रिका के बारे में विस्तार से जानना इसलिए जरुरी है क्योंकि गांधीजी से सम्बंधित किसी भी बात के उल्लेख से पहले उस बात के सोर्स का पुष्ट होना जरुरी है.

          खैर, यह तो हुई सैनिक समाचार की बात, अब आते हैं मूल विषय पर. सैनिक समाचार के ‘जब गांधी ने सैनिक की वर्दी पहनी’ शीर्षक वाले लेख में यह दावा किया गया है कि महात्मा गांधी ने दूसरे बोएर युद्ध (1899-1902) के दौरान ब्रिटिश सैन्य वर्दी पहनी थी। गांधी जी को ब्रिटिश फौज में क्यों शामिल होना पड़ा और इसके पीछे उनका क्या उद्देश्य था, इस बारे में ‘सैनिक समाचार’ में कहा गया है कि बोएर के दो गणराज्यों में ब्रिटिश सत्ता से आजादी के लिए जब जंग छिड़ी तो वहां अंग्रेज कमजोर स्थिति में थे और अफ्रीकी बोएर की करीब 48 हजार की फौज के सामने उनके पास महज 27 हजार सैनिक ही थे। ऐसे में ब्रिटिश सरकार को अपने सर्वश्रेष्ठ जनरलों को लड़ाई में उतारना पड़ा। इसी दौरान गांधी जी ने एम्बुलेंस यूनिट के गठन की बात सोची । उस समय भारतीय लोगों और ब्रिटिश सैनिकों के कंधे से कंधा मिलाकर लड़ने की बात सोची भी नहीं जा सकती थी। गांधी जी की मानवीय मदद की पेशकश को स्वीकार कर लिया गया और इस यूनिट का गठन हो गया। 


         इस एम्बुलेंस यूनिट में  गांधी जी सहित 11सौ भारतीय थे जिनमें 800 गिरमिटिया मजदूर थे। इस यूनिट ने बेहद बहादुरी से काम किया था और ब्रिटेन की सेना के कमांडर इन चीफ ने भी इस यूनिट के शौर्य की गाथाएं दर्ज की थीं। अंग्रेज-बोएर जंग की समाप्ति पर  गांधी जी की यूनिट को उत्कृष्ट सेवाओं के लिए पदक से भी सम्मानित किया गया था। लेख में कहा गया है कि गांधीजी ने बोअर युद्ध को अंग्रेजों की मदद करके भारत के लिए आजादी हासिल करने के सुनहरे अवसर के रूप में देखा था। 


       खास बात यह है मुझे भी इस पत्रिका के संपादन का अवसर मिला था और शताब्दी अंक के लिए बनी संपादकीय टीम में भी शामिल होने का गौरव हासिल हुआ था। जब हम लोग शताब्दी अंक तैयार करने के लिए रिसर्च कर रहे थे तब सैनिक समाचार के तमाम पुराने अंकों को खंगालते हुए यह लेख हमारे हाथ लगा। लेख हमारे लिए भी चौंकाने वाला था लेकिन यह गांधी जी की मानवीय संवेदनाओं को उजागर करने वाला था क्योंकि जब गांधी जी महात्मा नहीं बने थे। एक तरह से हम कह सकते हैं कि यह लेख गांधी जी के व्यक्तित्व के उन पहलुओं को हमारे सामने लाता है जिनसे यह पता चलता है कि मोहन दास करमचंद गांधी से महात्मा गांधी और राष्ट्रपिता तक का सम्मान हासिल करने के लिए गांधीजी को किन परिस्थितियों का सामना करना पड़ा और कैसे उनके व्यक्तित्व में मानव से महामानव की आभा जुड़ती गई। सैनिक समाचार से इतर भी जब मैंने इस विषय पर अपना शोध जारी रखा तो कुछ और पहलू भी सामने आए। गांधी जी की आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग’ के पृष्ठ 273 पर जुलू विद्रोह नामक चैप्टर में खुद गांधी जी ने लिखा है कि ‘मैंने ही नेटाल के गवर्नर को पत्र लिखकर कहा था कि यदि आवश्यकता हो तो घायलों की सेवा करने वाले हिंदुस्तानियों की एक टुकड़ी लेकर सेवा के लिए जाने को तैयार हूं। तुरंत ही गर्वनर की स्वीकृति सूचक उत्तर मिला।’ गांधी जी ने आगे लिखा है कि ‘स्वाभिमान की रक्षा के लिए और अधिक सुविधा के साथ काम कर सकने के लिए तथा वैसी प्रथा होने के कारण चिकित्सा विभाग के मुख्य पदाधिकारी ने मुझे  सार्जेंट मेजर का मुद्दती पद दिया और मेरी पसंद के तीन साथियों को सार्जेंट का तथा एक साथी को कॉर्पोरल का पद दिया। वर्दी भी सरकार की ओर से मिली और इस टुकड़ी ने छह सप्ताह तक सतत सेवा की।’ गांधी जी ने लिखा है कि ‘स्वयं मुझे गोरे सिपाहियों के लिए भी दवा लाने और उन्हें दवा देने का काम सौंपा गया था।’  इस सेवा के एवज में एंबुलेंस कोर को पदक भी दिए गए थे।


        एक मजेदार तथ्य यह भी है कि जब हमने शताब्दी अंक में यह गांधीजी के सैन्य वर्दी पहनने वाला लेख शामिल किया तो कुछ अखबारों ने इसे हाथों हाथ ले लिया और उन्होंने इस पर इतिहासकारों से बातचीत भी की । तब जाने-माने इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने सैनिक समाचार के इस दावे को खारिज कर दिया था कि गांधी जी एक ब्रिटिश सैनिक थे। उन्होंने कहा कि गाँधी जी को कभी भी ब्रिटिश सेना द्वारा नियुक्त नहीं किया गया था। उन्होंने केवल ब्रिटिश सैनिकों को चिकित्सा सहायता प्रदान करने के लिए एक स्वैच्छिक एम्बुलेंस कोर का गठन किया था जिसमें पूरी तरह से गैर-लड़ाके शामिल थे। यह कहना गलत है कि उन्होंने ब्रिटिश सेना की सेवा की। एक अन्य इतिहासकार  प्रोफेसर बिपिन चंद्र का भी यही मानना था कि गांधी कभी भी ब्रिटिश सेना का हिस्सा नहीं थे और उन्होंने केवल एक स्वैच्छिक एम्बुलेंस कोर का गठन किया था।  कुल मिलाकर जितना यह लेख आश्चर्यजनक है उतनी ही इस पर मिली प्रतिक्रियाएं। वैसे भी गांधी जी का व्यक्तित्व  न तो आज किसी सुबूत या क्रिया प्रतिक्रिया का मोहताज है और न ही उस समय था। गांधी जी महान थे,हैं और रहेंगे।



गुरुवार, 4 जनवरी 2024

ये मौसम का जादू है मितवा...


ये कौन जादूगर आ गया..जिसने हमारे शहर के सबसे बेशकीमती नगीने को गायब कर दिया…साल के दूसरे दिन ही उस जादूगर ने ऐसी करामात दिखाई कि न तो ‘तालों में ताल’ भोपाल का बड़ा तालाब बचा और न ही शान-ए-शहर वीआईपी रोड….राजा भोज भी उसके आगोश में समा गए। जादूगर ने अपनी धूसर-सफेद आभा में हमारा बोट क्लब भी समाहित कर लिया तो वन विहार के जानवरों को भी संभलने का मौका तक नहीं दिया। जादूगर के जलवे से बड़े तालाब की एक अन्य पहचान जीवन वाटिका मंदिर और पवनपुत्र भी नहीं बचे।…बस, वहां से हनुमान चालीसा पढ़ने की आवाज़ तो आती रही लेकिन लोग गायब रहे और ‘मेरी आवाज ही पहचान है..’ की तर्ज पर हम यह कोशिश करते रहे कि मंदिर में कौन कौन स्वर मिला रहा है। 


ये प्रकृति का जादू है…मौसम की माया है। आखिर,प्रकृति से बड़ा जादूगर कौन हो सकता है जिसने हमें हजारों रंग के फूलों, खुशबू,पक्षियों और अनुभूतियों से भर दिया है उसके लिए क्या बड़ा तालाब और क्या वीआईपी लोग। हम बात कर रहे हैं भोपाल में आज छाए घने कोहरे की…इतने घने कि सुबह के कुछ घंटों में मानो सब कुछ गुम हो गया…वीआईपी रोड की घमंड से ऊंची होती इमारतें, अदालती फैसले से वजूद के संकट से जूझ रहा एकमात्र क्रूज, मछलियों सी लहराती छोटी बड़ी नाव, पानी पर दिनभर अठखेलियां करने वाले वॉटर स्पोर्ट्स के खिलाड़ी, अपने श्वेत रंग से भी तालाब को रंगीन बनाती बतख,कलरव से सुकून का संगीत रचते देशी विदेशी पंछी, समोसे,जलेबी और बिस्किट के स्वाद के आदी हो रहे मोर,बंदर…सब नतमस्तक हो कर प्रकृति की अधीनता स्वीकार कर चुके थे। 


इस पर हवा के साथ आलिंगन करती पानी की अदृश्य सी नन्हीं बूंदे जब हमारे चेहरे को चूमते हुए गुजर रही थी तो लग रहा था कि हम शायद शिमला,मनाली या नैनीताल आ गए हैं…अगर आप पर्यटकों की भीड़ के कारण या फिर किसी वजह से शिमला,मनाली या नैनीताल नहीं जा पाए हैं तो दुःखी मत रहिए…आप गांठ से एक दमड़ी खर्च किए बिना भी इन हिल स्टेशनों का आनंद उठा सकते हैं और ये सरकार की कोई लोकलुभावन योजना भी नहीं है। बस, इसके लिए सुबह करीब साढ़े छह बजे से साढ़े आठ नौ बजे के दरम्यान आपको रजाई/कंबल का मोह त्यागने का दुस्साहस कर भोपाल के बड़े तालाब तक पहुंचना होगा।


कोहरे से ढके इस इलाक़े में मौसम की मेहरबानी से सहजता से हिल स्टेशन का मजा मिल रहा है। हवा में उड़कर सिहरन पैदा करता कोहरा आपको न केवल अपनी बाहों में जकड़ लेता है बल्कि कान-नाक के जरिए शरीर में अंदर तक उतर जाता है। हाथ तो इतने ठंडे हो जाते हैं कि मोबाइल भी पकड़ से छूटने लगता है और सायं सायं चलती शीतलहर इसे 'परफेक्ट कोल्ड डे' बनाने में पूरा सहयोग करती है। आखिर,पहाड़ों पर भी तो यही देखने और महसूस करने हम जाते हैं। वहां की झुरझुरी पैदा करती हवा,झील,पहाड़ और पेड़ों की स्मृतियों को संजोकर हम अपने शहर लौट आते हैं लेकिन ध्यान से देखे तो अपने शहर में ही मौसम के मुताबिक ये सब उपलब्ध हैं। यही मौसम का मज़ा है,यही भोपाल का आनंद और यही प्रकृति का हमारे शहर को मिला वरदान…तभी तो हम ठंड,गर्मी और बरसात जैसे हर मौसम को उसकी पूरी सच्चाई के साथ जी पाते हैं और भीग पाते हैं कभी कोहरे में,कभी बारिश में और कभी पसीने में…बचाकर रखिए शहर को मिली प्रकृति की इस नेमत को और फिलहाल आनंद लीजिए ठंड का,कोहरे का और कभी कभी सिहरन का भी।






सोमवार, 1 जनवरी 2024

जी हां,ये गन्ने के फूल हैं...??

 


गन्ने के फूल (Sugarcane flowers)..जी हां,ये गन्ने के फूल हैं । मेरी तरह गन्ने को केवल गुड़ और ‘गन्ने के रस’ के लिए जानने वालों के लिए यह जानकारी नई हो सकती है। कस्बाई पृष्ठभूमि में बचपन गुजारने के दौरान गन्ना,रस और गरमा गरम लिक्विड गुड़ से लेकर हमारे आपके घर तक पहुंचने वाले गुड़ की समूची प्रक्रिया से कई बार रूबरू होने का मौका मिला है और दोस्तों के सहयोग से खेत पर धनिया, पुदीना और नीबू के साथ ताज़ा गन्ने का रसपान भी सालों साल किया है लेकिन गन्ने का फूल देखने या इसके बारे में जानने का कभी मौका ही नहीं मिला। सोशल मीडिया पर फोटो डालने पर कई मित्रों ने इसे कांस बताया तो कुछ ने ज्वार और बाजरा।

आमतौर पर, किसी भी पेड़ पौधे के लिए फूल सबसे ज़रूरी और कीमती अवस्था होती है जिससे फल और उस पौधे की अगली पीढ़ी के सृजन का मार्ग प्रशस्त होता है लेकिन गन्ने (स्थानीय बोलचाल में सांटे) के फूल के साथ ऐसा नहीं है। बताया जाता है कि गन्ने पर फूल आना सौभाग्य नहीं बल्कि दुर्भाग्य माना जाता है। प्रगतिशील युवा और कृषि में गहरी रुचि रखने वाले एवं मेरे भांजे अंकुर ने इस जिज्ञासा का बहुत विस्तार से समाधान किया। अंकुर ने बताया कि गन्ने में फूल आने का मतलब है कि गन्ने के उस बीज की आयु पूरी हो गई है और वह परिपक्वता की अवस्था में है।
सीधे शब्दों में कहें तो ये तीसरे साल का गन्ना है जिसमें फूल आ गया है और गन्ने में फूल आना इस बात का संकेत है कि इस गन्ने की अब उम्र पूरी हो गई है। आमतौर पर गन्ने के एक बीज/ गांठ की उम्र या परिपक्वता तीन साल ही होती है। इसके बाद उस बीज से गन्ने की पैदावार नहीं होती या फिर मरियल सी,रसहीन और कुपोषित फसल होगी। इसलिए, किसान इसकी कलम नहीं करते इसे काटकर नया गन्ना ही लगाया जाता है । स्थानीय भाषा में इस फूल आए गन्ने को त्रिजड़ी कहा जाता है। कहीं-कहीं अच्छे पोषण और रोगमुक्त स्वस्थ वैरायटी की वजह से फूल चौथे साल में आता है तब उस गन्ने को 'मड़ी' बोलते हैं। ऐसे बीज चार साल तक उपयोगी रहते हैं।
तो यह थी गन्ने के फूल की गाथा…। (29 Dec 2023)

अलौलिक के साथ आधुनिक बनती अयोध्या

कहि न जाइ कछु नगर बिभूती।  जनु एतनिअ बिरंचि करतूती॥ सब बिधि सब पुर लोग सुखारी। रामचंद मुख चंदु निहारी॥ तुलसीदास जी ने लिखा है कि अयोध्या नगर...