बराक घाटी: अभिशप्त लोग/मौत की सड़क और मूक मीडिया
...और 25 परिवारों ने अपने घर के मुखिया खो दिए. किसी की आँखों का तारा नहीं रहा तो किसी की रोजी-रोटी का सहारा. कहीं परिवार में शादी के सपने मातम में बदल गए तो किसी परिवार में पिता के चले जाने से बिटिया की शादी का संकट आ गया. एक साथ इतने निर्दोष लोगों की जान चले जाना कोई मामूली घटना नहीं है लेकिन ‘कथित’ राष्ट्रीय मीडिया और बाईट-वीरों को इसमें ज़रा भी टीआरपी नजर नहीं आई. किसी भी ऐरे-गैरे नेता के फालतू के बयान पर दिनभर चर्चा/बड़ी बहस कराकर देश के अवाम का कीमती वक्त बर्बाद करने वाले चैनलों को 25 लोगों की मौत में कोई बड़ी खबर नजर नहीं आई. किसी ने रस्म अदायगी कर दी तो किसी ने इतना भी जरुरी नहीं समझा.चैनल तो चैनल हिंदी-अंग्रेजी के अधिकतर राष्ट्रीय समाचार पत्रों ने भी इसे पहले पृष्ठ के लायक समाचार नहीं माना और अखबारी भाषा में ‘सिंगल कलम’ छापकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली. क्या असम में 25 लोगों का बस दुर्घटना में मरना दिल्ली में किसी बस हादसे में एक-दो व्यक्तियों की मौत से छोटी घटना है. मेरे कहने का यह आशय कतई नहीं है कि कम या ज्यादा संख्यामें मौत से खबर बड़ी या छोटी होती है बल्कि मैं य