एक चेहरे पर कई चेहरे लगा लेते हैं लोग..!!

हम इंसान भी विचित्र होते हैं। एक चेहरे में कई चेहरे छुपाकर रखते हैं। नए साल में नए विचार और नए संकल्प लेना भी कुछ इसी तरह का मामला होता है । हाल ही में इंदौर के एक नव निर्मित मॉल के प्ले जोन में बने ऐसे कक्ष में जाने का मौका मिला जिसमें मिरर के जरिए एक ही तस्वीर की कई इमेज रची जा रही थीं,तभी यह ख्याल आया कि वास्तविक जीवन में भी हमें कितनी भूमिकाओं का निर्वाह करना पड़ता है और इसके लिए हमें एक चेहरे में कितने चेहरे लगाने पड़ते हैं। फिल्म दाग़ में साहिर लुधियानवी भी कुछ इसी तरह की बात कह चुके हैं। उन्होंने लिखा है:

‘एक चेहरे पर कई चेहरे लगा लेते हैं लोग,

जब चाहें बना ले अपना किसी को,

जब चाहें अपनों को भी, 

बेगाना बना देते हैं लोग।’

जैसा कि हम जानते हैं कि एक चेहरे में कई चेहरे छुपे होते हैं…का मतलब है कि एक व्यक्ति का बाहरी रूप या व्यक्तित्व उसके अंदर छिपे कई पहलुओं को पूरी तरह से नहीं दर्शाता। हर इंसान के अंदर एक से अधिक रूप, विचार, भावनाएँ और अनुभव होते हैं, जो समय, स्थिति और परिवेश के साथ बदलते रहते हैं। इसका मतलब यह है कि एक व्यक्ति केवल अपनी बाहरी पहचान के आधार पर नहीं पहचाना जा सकता, बल्कि उसके अंदर कई तरह की छुपी हुई सच्चाइयां और पहलू हो सकते हैं। मसलन, इंसान का व्यक्तित्व केवल एक ही रूप में नहीं होता। उसकी सोच, आदतें, भावना और प्रतिक्रियाएँ विभिन्न परिस्थितियों में बदल सकती हैं। एक व्यक्ति अपने परिवार के सामने एक अलग रूप दिखा सकता है, जबकि कार्यस्थल पर या समाज में वह कुछ और हो सकता है। इस तरह, एक चेहरे में कई चेहरे का मतलब है कि हर व्यक्ति के भीतर कई परतें होती हैं, जो समय और संदर्भ के अनुसार प्रकट होती हैं।

व्यक्ति के भीतर खुशियाँ, दुख, क्रोध, घृणा, प्रेम, और अन्य भावनाएँ एक साथ हो सकती हैं। किसी के एक ही चेहरे पर ये सभी भावनाएँ परिलक्षित हो सकती हैं, जो स्थिति के आधार पर बदलती रहती हैं। उदाहरण के लिए, एक व्यक्ति अपनी बाहरी मुस्कान के साथ भी अंदर से दुखी हो सकता है।

एक व्यक्ति के अनेक चेहरे होने का मतलब है कि हम सभी अलग-अलग स्थितियों और लोगों के साथ अलग-अलग तरह से व्यवहार करते हैं। ये हमारे अनुभवों, भावनाओं और सोचने के तरीके पर निर्भर करता है। जैसे घर पर हम अपने परिवार के साथ आरामदायक और सहज होते हैं लेकिन काम पर हम अधिक पेशेवर और गंभीर हो जाते हैं। वहीं,दोस्तों के साथ हम मज़ाकिया और हल्के-फुल्के होते हैं। तो अजनबियों के साथ हम थोड़े संकोची या सावधान रहते हैं।

कई बार सामाजिक अपेक्षाएं हमें व्यवहार बदलने के लिए मजबूर कर देती हैं।  समाज हमसे क्या उम्मीद करता है, इस आधार पर अपना व्यवहार बदलते हैं। कई बार अलग-अलग परिस्थितियों में हम अलग-अलग तरह से प्रतिक्रिया करते हैं।

कई बार, व्यक्ति समाज की अपेक्षाओं और स्वार्थ के कारण अपने असली व्यक्तित्व को छुपाता है। ऐसे में उसका मुखौटा उसकी वास्तविक पहचान से अलग होता है। उदाहरण के लिए, किसी व्यक्ति को अपने सामाजिक रुतबे या प्रतिष्ठा के कारण एक आदर्श और संतुलित व्यक्ति के रूप में प्रस्तुत करना पड़ता है, जबकि वह असल में जटिल और भीतर से अलग विचारों से भरा हो सकता है।

एक व्यक्ति के रिश्ते भी उसके चेहरे के विभिन्न रूपों को दर्शाते हैं। किसी के साथ दोस्ती में एक रूप होता है, तो माता-पिता या ससुराल के साथ दूसरा रूप। किसी के साथ प्रेम संबंध में एक रूप दिख सकता है, जबकि प्रोफेशनल लाइफ में वह व्यक्ति कुछ और तरीके से व्यवहार करता है।

कुल मिलाकर कहने का आशय यह है कि इंसान को केवल उसकी बाहरी पहचान से नहीं आंकना चाहिए। हर व्यक्ति के अंदर अनेक पहलू होते हैं, और उसका असली रूप उसकी परिस्थितियों, विचारों और अनुभवों के आधार पर बदल सकता है। इसलिए, किसी व्यक्ति को समझने के लिए उसके भीतर के कई चेहरों को देखना और समझना जरूरी है।







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