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बिग बी का बच्चा.....!

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' पूत के पाँव पालने में ' और ' वो तो मुँह में चांदी की चम्मच लेकर पैदा हुआ है ' जैसे कुछ   बड़े ही प्रचलित मुहावरें हैं जो बच्चों के भविष्य की ओर इशारा करते हैं.बिग बी यानि सदी के महानायक अमिताभ बच्चन के घर भी नया मेहमान आने वाला है.वैसे किसी महिला का गर्भवती होना या किसी घर में नया मेहमान आना निश्चित ही पूरे परिवार के लिए खुशी और उल्लास का अनूठा अवसर होता है....आखिर इससे एक नई पीढ़ी का सृजन होता है और सृष्टि की अबूझ पहेलियों को साकार होते देखने का अवसर मिलता है लेकिन जब बात बिग बी के परिवार के बच्चे की हो तो इन चीज़ों को देखने के मायने ही बदल जाते हैं.जब से बिग बी ने एश्वर्या राय बच्चन के गर्भवती होने की खबर दी है तब से मीडिया से लेकर विज्ञापन जगत में यह खबर सरगर्मी से छाई हुई है.बाज़ार की भाषा में कहा जाए तो हर कोई इसको भुनाने में जुटा है.इस मामले में न तो खुद बिग बी पीछे हैं,न इस होने वाले बच्चे के पिता अभिषेक बच्चन और न ही खबरची.अब तो सट्टा कारोबारियों की नज़र-ए-इनायत भी इस बच्चे पर हो गई है.कहा जा रहा है इस नन्ही सी अजन्मी जान के लिंग (लड़का होगा...

कमज़ोर ‘पेट’ वाले इसे जरुर पढ़ लें...वरना पछताएंगे

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मामू आमिर खान और भांजे इमरान खान द्वारा रचा “डेली वेली” नामक तमाशा देखा.यह गालियों,फूहड़ता,अश्लीलता और छिछोरेपन के मिश्रण से रची एक चुस्त, तेज-तर्रार और सटीक रूप से सम्पादित रियल लाइफ से जुडी कामेडी फिल्म है. जिन लोगों ने छोटे परदे पर फूहडता के प्रतीक ‘एम टीवी’ पर शुरूआती दौर में साइरस ब्रोचा द्वारा बनाये गए विज्ञापन और कार्यक्रम देखे हैं तो उन्हें यह फिल्म उसी का विस्तार लगेगी और शुचितावादियों को हमारी संस्कृति के मुंह पर करारा तमाचा. यदि उदाहरण के ज़रिये बात की जाए तो हाजमा दुरुस्त रखने के लिए हाजमोला की एक-दो गोली खाना तो ठीक है लेकिन यदि पूरा डिब्बा ही दिन भर में उड़ा दिया जाए तो फिर हाजमे और पेट का भगवान ही मालिक है.मामा-भांजे की जोड़ी ने इस फिल्म के जरिये यही किया है.अब यदि आप का पेट पूरा डिब्बा हाजमोला बर्दाश्त कर सकता है तो जरुर देखिये काफी मनोरंजक लगेगी और यदि कमज़ोर पेट के मालिक हैं तो डेली वेली को देखने की बजाये समीक्षाओं से ही काम चला ले. हाँ, जैसे भी-जहाँ भी देखे कम से कम परिवार(माँ,बहन,बेटी-बेटा,पिता,भाई और पत्नी भी) को साथ न ले जाएँ वरना साथ बैठकर न तो वे फिल्म का आनंद उठ...

अन्ना हजारे और हमारे चरित्र का दोगलापन!

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शुरुआत एक किस्से से-एक सेठ प्रतिदिन दुकान बंदकर एक संत के प्रवचन सुनने जाते थे और सभी के सामने उस संत का गुणगान कुछ इसतरह करते थे कि मानो उनके समान कोई और संत है ही नहीं और सेठ जी के समान संत का कोई अनुयायी. सेठ जी प्रवचन स्थल पर संत की हर बात का आँख मूंदकर पालन करते थे. संत अपने प्रवचनों में आमतौर पर प्रत्येक जीव से प्रेम करने की बात कहते और मूक जीव-जंतुओं के साथ मारपीट नहीं करने की सीख देते थे. एक दिन सेठ जी प्रवचन में अपने बेटे को भी लेकर गये.बेटे ने श्रद्धापूर्वक संत की बातें सुनी और उन पर अमल की बात मन में गाँठ बाँध ली. कुछ दिन बाद सेठ जी दुकान बेटे के भरोसे छोड खुद प्रवचन सुनने जाने लगे. एक दिन दुकान में एक गाय घुस गयी और दुकान में रखा सामान खाने लगी। यह देखकर सेठ जी का बेटा गाय के पास बैठ गया और उसे सहलाने लगा। थोडी देर बाद जब सेठजी दुकान पहुंचे तो यह दृश्य देखकर आग बबूला हो गए और बेटे को भला-बुरा कहने लगे. इस पर बेटे ने संत के प्रवचनों का उल्लेख करते हुए कहा कि गाय को कैसे हटाता, वह तो अपना पेट भर रही थी और उसे मारने पर जीवों पर हिंसा होती. इस पर सेठ ने कहा ‘बेटा प्रवचन सिर्फ ...

क्या सलमान-शाहरूख तय करेंगे सत्याग्रह का भविष्य!

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                                अपनी ऊल-जलूल हरकतों और गैर क़ानूनी आचरण के लिए चर्चित सलमान खान इन दिनों टीवी चैनलों पर बता रहे है कि भ्रष्टाचार रोकने के लिए स्वामी रामदेव को धरना/अनशन/सत्याग्रह जैसा कदम नहीं उठाना चाहिए? वही अपने सिद्धांतों से ज्यादा पैसे को तरजीह देने वाले एक और कलाकार या मीडिया और चापलूसों के ‘किंग खान’ शाहरूख भी देश में भ्रष्टाचार की रोकथाम और काले धन को वापस लाने के लिए स्वामी रामदेव द्वारा शुरू किये गए सत्याग्रह की मुखालफत कर रहे हैं.वैसे इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि शाहरूख और सलमान उम्दा कलाकार हैं.उनकी फिल्में जनमानस को गहरे तक प्रभावित करती हैं.इन फिल्मों से समाज में कोई बदलाव भले ही नहीं हो पर इनमे मनोरंजन का तत्व तो होता ही है.चंद घंटों के “अभिनय” के लिए करोड़ों रुपये कमाने वाले ये दोनों कलाकार फिल्मी दुनिया के सैकड़ों लोगों का पेट भरने का माध्यम तो हैं ही.समाज के प्रति उनके इस योगदान को भी नकारा नहीं ...

छी,हम इंसान हैं या हाड़-मांस से बनी मशीनें

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हम कैसे समाज में जी रहे हैं?यह इन्सानों की बस्ती है या फिर हाड़-मांस की बनी मशीनों का संसार! यदि समाज में मानवीय सरोकार न हों,मतलबपरस्ती बैखोफ पसरी हो और एक-दूसरे के प्रति संवेदनाएं दम तोड़ चुकी हों तो फिर उसे मानवीय समाज कैसे माना जा सकता है.इंसान तो इंसान जानवर भी किसी अपने की आवाज़ सुनकर उसमें सुर मिलाने लगते हैं,कुत्ते एक दूसरे की रक्षा में दौड़ने लगते हैं और कम ताक़तवर परिंदे भी अपने साथी पर ख़तरा भांपते ही चीत्कार करने लगते हैं और हम महानगरीय सांचे में सर्व-संसाधन प्राप्त लोग अपने से इतर सोचने की कल्पना भी नहीं करते.तभी तो दिल्ली जैसे जीवंत और मीडिया की चौकस नज़रों से घिरे महानगर में दो जीती-जागती,नौकरीपेशा और पारिवारिक युवतियां हड्डियों के ढांचे में तब्दील हो जाती हैं और हमारे कानों पर जूं भी नहीं रेंगती.वे छह माह तक अपने घर में कैदियों की रहती हैं पर पड़ोसियों को तनिक भी चिंता नहीं होती, उनका अपना सगा भाई उन बहनों की सुध लेना भी गंवारा नहीं समझता जिन्होंने उसको अपने पैरों पर खडा करने के लिए खुद का जीवन होम कर दिया.            ...

समाज में फैले इन ‘सुपरबगों’ से कैसे बचेंगे...!

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                     इन दिनों सुपरबग ने अखबारी चर्चा में समाजसेवी अन्ना हजारे और घोटालेबाज़ राजा तक को पीछे छोड़ दिया है.सब लोग ‘ईलू-ईलू क्या है...’ की तर्ज़ पर पूछ रहे हैं ‘ये सुपरबग-सुपरबग क्या है?...और यह सुपरबग भी अपनी कथित पापुलर्टी पर ऐसे इठला रहा है जैसे सुपरफ्लाप ‘गुज़ारिश’ हिट हो गयी हो या सरकार ने सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न से भी आगे बढ़कर ‘दुनिया रत्न’ से सम्मानित कर दिया हो.वैसे भारत के स्वास्थ्य पर्यटन या हेल्थ टूरिज्म से जलने वाले देश सुपरबग के डर को फैलाकर वैसे ही आनंदित हो रहे हैं जैसे किसान अपने लहलहाते खेत देखकर,नेता अपना वोट बैंक देखकर और व्यवसायी काले धन का भण्डार देखकर खुश होता है.इस (दुष्)प्रचार से एक बात तो साफ़ हो गयी है कि किसी भी शब्द के आगे ‘सुपर’ लगा दिया जाए तो वह हिट हो जाता है जैसे सुपरस्टार,सुपरहिट,सुपरकंप्यूटर,सुपरफास्ट,सुपरनेचुरल और सुपरबग इत्यादि. मुझे तो लगता है कि विदेशियों ने जान-बूझकर इसका नाम सुपरबग रखा है ताकि यह कुछ इम्प्रेसिव सा लगे.आखिर सुपरबग कहने/स...

आज ‘भारत रत्न’ तो कल शायद ‘परमवीर चक्र’ भी!

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              सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न क्यों? उनसे पहले प्रख्यात समाजसेवी और भ्रष्टाचार के खिलाफ अलख जगाने वाले अन्ना हजारे को क्यों नहीं? देश में चुनाव सुधारों की नीव रखने वाले टी एन शेषन,योग के जरिए देश-विदेश में भारत का डंका पीटने वाले स्वामी रामदेव, बांसुरी की सुरीली तान से मन मोह लेने वाले पंडित हरिप्रसाद चौरसिया, अभिनय और फिल्मों से भारतीय सिनेमा की दशा और दिशा तय करने वाले मशहूर अभिनेता राज कपूर-गुरुदत्त, अपनी लेखनी से प्रेम और आग एकसाथ बरसाने वाले गीतकार गुलज़ार,आईटी के क्षेत्र में क्रांति लाकर लाखों नौजवानों को सम्मानजनक दर्ज़ा दिलाने वाले उद्योगपति नारायण मूर्ति-अज़ीम एच प्रेमजी, देश के लिए सर्वत्र न्योछावर कर देने वाले शहीद भगत सिंह-चंद्रशेखर आज़ाद, दुनिया भर में ज्ञान और चेतना का पर्याय स्वामी विवेकानंद,पुलिस से लेकर समाजसेवा तक में सबसे आगे किरण बेदी, विविध स्वरों की सम्राज्ञी आशा भोंसले जैसे तमाम ऐसे नाम हैं जो न केवल इस सम्मान के हक़दार हैं बल्कि इस सम्मान को और भी गौरवान्वित करने का माद्दा रखते हैं.लेकिन इन ...