समाज में फैले इन ‘सुपरबगों’ से कैसे बचेंगे...!


                     इन दिनों सुपरबग ने अखबारी चर्चा में समाजसेवी अन्ना हजारे और घोटालेबाज़ राजा तक को पीछे छोड़ दिया है.सब लोग ‘ईलू-ईलू क्या है...’ की तर्ज़ पर पूछ रहे हैं ‘ये सुपरबग-सुपरबग क्या है?...और यह सुपरबग भी अपनी कथित पापुलर्टी पर ऐसे इठला रहा है जैसे सुपरफ्लाप ‘गुज़ारिश’ हिट हो गयी हो या सरकार ने सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न से भी आगे बढ़कर ‘दुनिया रत्न’ से सम्मानित कर दिया हो.वैसे भारत के स्वास्थ्य पर्यटन या हेल्थ टूरिज्म से जलने वाले देश सुपरबग के डर को फैलाकर वैसे ही आनंदित हो रहे हैं जैसे किसान अपने लहलहाते खेत देखकर,नेता अपना वोट बैंक देखकर और व्यवसायी काले धन का भण्डार देखकर खुश होता है.इस (दुष्)प्रचार से एक बात तो साफ़ हो गयी है कि किसी भी शब्द के आगे ‘सुपर’ लगा दिया जाए तो वह हिट हो जाता है जैसे सुपरस्टार,सुपरहिट,सुपरकंप्यूटर,सुपरफास्ट,सुपरनेचुरल और सुपरबग इत्यादि. मुझे तो लगता है कि विदेशियों ने जान-बूझकर इसका नाम सुपरबग रखा है ताकि यह कुछ इम्प्रेसिव सा लगे.आखिर सुपरबग कहने/सुनने में जो मजा है वह केवल ‘बग’ में कहाँ!ऐसे समय हमें एक बार फिर अपने एक पूर्व प्रधानमंत्री याद आने लगे हैं जो हर मामले में विदेशी हाथ होने की बात करते थे.यदि वे आज होते तो दम के साथ कह पाते कि सुपरबग मामले में विदेशी हाथ है और यह बात उतनी ही सही है जितना कि काले धन के खिलाफ बाबा रामदेव का अभियान और माडल मोनिका पांडे का ‘न्यूड’ होने का एलान.
                            एक बात मेरी समझ के परे है कि इस सुपरबग को लेकर इतनी घबराहट क्यों?अरे हमारे देश के पानी का स्वाद ऐसे कई बग बरसों से बढ़ा रहे हैं...और फिर पानी तो क्या हमारी तो आवोहवा में ऐसे बगों की भरमार है.इनसे भी बच गए तो भ्रष्टाचार के सुपरबग से कैसे बचेंगे? यह सुपरबग तो देश के हर कार्यालय,मंत्रालय,सचिवालय और तमाम प्रकार के ‘लयों’ में मज़बूती से जड़े जमाये बैठा है और हर आमो-खास के भीतर घुसपैठ करता जा रहा है.इस से किसी तरह बच भी गए तो काले धन के सुपरबग से कैसे बचेंगे.यह तो दिन-प्रतिदिन अपना भार और संख्या बढ़ा रहा है.अब तो यह दूसरे मुल्कों में भी तेज़ी से ‘जमा’ होने लगा है.दशकों के परिश्रम के बाद भी हम महंगाई के सुपरबग का इलाज नहीं तलाश पायें हैं.अब तो यह गरीबों के साथ-साथ अन्य वर्गों का भी खून चूसने लगा है.इस सुपरबग की एक विशेषता यह है कि यह अपनी खुराक सरकारी बयानों से हासिल करता है.जब-जब भी हमारे नेता/मंत्री/सन्तरी और प्रधानमंत्री इस पर काबू पा लेने का बयान देते हैं महंगाई नामक यह सुपरबग और भी सेहतमंद हो जाता है.कई बार तो यह नमक,प्याज,टमाटर और दाल जैसी रोजमर्रा में भरपूर मात्रा में उपलब्ध वस्तुओं को संक्रमित कर उन्हें भी आम आदमी की पहुँच से बाहर कर देता है.कन्या भ्रूण ह्त्या और बेटियों को पैदा नहीं होने देने वाला सुपरबग तो भविष्य में महिला-पुरुष का अंतर ही बिगाड़ने पर तुला है और देश के कुंवारों को शायद विवाह-सुख से ही वंचित कर देगा.इस सुपरबग को निरक्षरता,अन्धविश्वास,कुरीतियों और रुढियों के सुपरबगों ने इतना शक्तिशाली बना दिया है कि हम चाहकर भी इसका समूल नाश नहीं कर पा रहे हैं.इसके अलावा जातिवाद,साम्प्रदायिकता,ऊंच-नीच,भेदभाव,बाल विवाह,अशिक्षा,बेरोज़गारी,प्रतिभाओं का पलायन,गरीबी,छुआछूत जैसे अनेक सुपरबग वर्षों से हमारी जड़ों को खोखला बना रहे हैं और हम पानी में मौजूद एक अदने से सुपरबग से घबरा रहे हैं.अरे जब हमारी रग-रग में व्याप्त ये घातक सुपरबग हमारा कुछ नहीं बिगाड़ पाए तो इस नए नवेले एवं अनजान से सुपरबग की क्या बिसात...!



टिप्पणियाँ

  1. विचारणीय व्यंग्य . आभार. कृपया यहाँ भी पधारें -
    'लूट-मार जनरल स्टोर '
    swaraj-karun.blogspot.com

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  2. विचारोत्तेजक आलेख। धन्यवाद|

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  3. संजीव जी, व्यंग्य के जरिये भी सामाजिक कुरीतियों को प्रदर्शित किया जा सकता है, यह आपने साबित कर दिया है.कथित नया सुपरबग तो दिखाई नहीं देता मगर सामाजिक "सुपरबग" जो खाकी और खादी पहने यहाँ-वहाँ घूम रहे हैं इनसे बचना भी जरूरी है. इनका कोई ईलाज भी खोजा जाए.शानदार प्रस्तुति.

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