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बदल रही है हवा, इसके आंधी बनने से पहले सुधर जाओ मेरे यारो

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सूचनार्थ: जुगाली के इसी लेख को 'सादरब्लागस्ते ' द्वारा आयोजित प्रतियोगिता में राजधानी की प्रतिष्ठित संस्था शोभना वेलफेयर सोसाइटी द्वारा "ब्लाग रत्न" सम्मान से सम्मानित किया गया है....आप सभी सुधी पाठकों के लिए पेश है यह पुरस्कृत  आलेख..... *******                                          ********                                  *******                       ******         महिलाओं के साथ बेअदबी और बदसलूकी से भरे विज्ञापनों के बीच छोटे परदे पर इन दिनों प्रसारित हो रहा एक विज्ञापन बरबस ही अपनी और ध्यान खींच रहा है.वैसे तो यह विज्ञापन किसी पंखे का है लेकिन इसकी पंचलाइन “हवा बदल रही है” चंद शब्दों में ही सामाजिक बदलाव की कहानी कह जाती है. विज्ञापन में एक युवा जोड़ा कोर्ट मैरिज के लिए आवेदन करता सा नजर आता है ...

क्या किसी समाज का इससे अधिक नैतिक पतन हो सकता है?

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अभी हाल ही में दो परस्पर विरोधाभाषी खबरें पढ़ने को मिली. पहली यह कि केरल के कुछ  स्कूलों में पढाने वाली महिला शिक्षकों को प्रबंधन ने साडी या सलवार सूट के ऊपर कोट या एप्रिन नुमा कोई वस्त्र पहनने की हिदायत दी ताकि कक्षा में बच्चों का शिक्षिकाओं की शारीरिक संरचना को देखकर ध्यान भंग न हो, साथ ही वे कैमरे वाले मोबाइल का दुरूपयोग कर चोरी-छिपे महिला शिक्षकों को विभिन्न मुद्राओं में कैद कर उनकी छवि से खिलवाड़ न कर सकें. वहीं दूसरी खबर यह थी कि एक निजी संस्थान ने अपनी एक महिला कर्मचारी को केवल इसलिए नौकरी छोड़ने के निर्देश दे दिए क्योंकि वह यूनिफार्म में निर्धारित स्कर्ट पहनकर आने से इंकार कर रही थी. कितने आश्चर्य की बात है कि संस्कारों की बुनियाद रखने वाले शिक्षा के मंदिर की पुजारी अर्थात शिक्षिका के पारम्परिक भारतीय वस्त्रों के कारण बच्चों का मन पढ़ाई में नहीं लग रहा और दूसरी और निजी संस्थान अपनी महिला कर्मचारियों को आदेश दे रहा है कि वे छोटे से छोटे वस्त्र मसलन स्कर्ट पहनकर कार्यालय में आयें ताकि ज्यादा से ज्यादा ग्राहकों का मन शोरूम में लग सके. जिस पाठशाला में शील,संस्कार, सद्व्य...

सुशीला,मुनिया और गूंगों का दफ़्तर

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कुछ साल पहले की ही बात होगी जब उसने राष्ट्रपति भवन से सटे और आम लोगों के लिए लगभग निषिद्ध हमारे कार्यालय परिसर में कदम रखा था और सरकारी दफ़्तर के विशुद्ध औपचारिक वातावरण में पायल की रुनझुन सुनकर हम सभी चौंक गए थे.चौकना लाजमी था क्योंकि सहकर्मी महिला साथियों के लिए खनकती पायल गुजरे जमाने की बात हो गयी थी और बाहर से पायल की छनछन के साथ किसी महिला का ‘प्रवेश निषेध’ वाले क्षेत्र में आना लगभग नामुमकिन था. हालांकि धीरे धीरे हम सभी इस छनछन के आदी हो गए.वह सुशीला थी बाल विवाह की जीवंत मिसाल, जो मध्यप्रदेश के छतरपुर से अपनी जड़ों को छोड़कर इन भव्य इमारतों के बीच अपने परिवार के साथ ठेके पर मजदूरी करने आई थी.गर्भवती सुशीला जब अपने पति और सास के साथ कंधे से कंधा मिलाकर बोझा उठाती तो उसकी जीवटता को देखकर मेरे दफ़्तर की सहकर्मी महिलाओं के दिल से भी आह निकल जाती थी. वे गाहे-बेगाहे अपना टिफिन उसे खाने के लिए दे देतीं और इस मानवता के फलस्वरूप उस दिन उन्हें गोल मार्केट के खट्टे-मीठे गोलगप्पों और चाट-पकौड़ी से काम चलाना पड़ता. कुछ हफ्ते बाद ही इस निषेध क्षेत्र में एक नन्ही परी की किलकारियों ने घुसपै...

‘महालेखन’ पर महाबातचीत की महाशैली का महाज्ञान

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महाबहस,महाकवरेज, महास्नान,महारैली,महाशतक,महाजीत और महाबंद जैसे शब्द इन दिनों हमारे न्यूज़ टीवी चैनलों  पर खूब गूंज रहे हैं.लगता है हमारे मीडिया को “ महा ” शब्द से कुछ ज्यादा ही प्रेम हो गया है. यही कारण है कि आजकल तमाम न्यूज़ चैनल इस शब्द का धड़ल्ले से इस्तेमाल कर हैं लेकिन कई बार यह प्रयोग इतने अटपटे होते हैं कि एक तो उनका कोई अर्थ नहीं होता उल्टा कोई पूछ बैठे तो उसे समझाना मुश्किल हो जाता है कि यहाँ ‘महा’ लगाने की जरुरत क्या आन पड़ी थी. मसलन न्यूज़ चैनलों पर रोजमर्रा होने वाली बहस को महाबहस कहने का क्या तुक है? क्या बहस में दर्जनों विशेषज्ञों का पैनल है? या फिर चैनल पहली बार ऐसा कुछ करने जा रहा है जो ‘महा’ की श्रेणी में आता है. रोज के वही चिर-परिचित चार चेहरों को लेकर किसी अर्थहीन और चीख पुकार भारी बहस आखिर महाबहस कैसे हो सकती है? इसीतरह किसी राजनीतिक दल की रैली को महारैली या चंद शहरों तक केंद्रित बंद को महाबंद कहने का क्या मतलब है. यदि मामूली सा बंद महाबंद हो जायेगा तो वाकई भारत बंद जैसी स्थिति का बखान करने के लिए क्या नया शब्द गढ़ेंगे? महाकुम्भ तक तो ठीक है लेकिन महास्नान...

महाकुंभ से कम नहीं है बंगलुरु का हवाई जहाजों का कुंभ

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प्रयाग में गंगा के तट पर लगे आस्था के महाकुंभ   और दिल्ली में ज्ञान कुंभ ' राष्ट्रीय   पुस्तक मेले ' के साथ साथ देश की सिलिकान सिटी बंगलुरु में भी एक अनूठा   महाकुंभ   लगा। इस   कुंभ का नाम था   एयरो इंडिया   । इस कुम्भ का आस्था से तो कोई सरोकार नहीं था   लेकिन ज्ञान के लिहाज से यह सर्वथा उपयोगी था   क्योंकि यहाँ    पिद्दी से ज़ेफायर विमान से लेकर तेजतर्रार तेजस और   भीमकाय ग्लोबमास्टर विमान     तक न    केवल मौजूद थे   बल्कि हवा में अपने करतब भी दिखा रहे थे। जेफायर देखने में तो नन्हा सा है परन्तु यह दुश्मन के इलाके में अन्दर तक जाकर जासूसी कर सेनाओं के लिए आँख कान का काम करता है। ग्लोबमास्टर को तो हम चलती फिरती सेना कह सकते   हैं।इस   विशालकाय   विमान   में   सैनिक , टैंक , टॉप   और   मिसाइल   तक   समा   जाती   हैं।   तेजस   त...