शनिवार, 15 जून 2024

मिशन दिव्यास्त्र: हर दुश्मन तक सटीक निशाना

छोटे पर्दे पर धार्मिक कथाओं पर आधारित धारावाहिकों एवं फिल्मों में हम देखते हैं कि युद्ध के दौरान कोई भी अस्त्र शस्त्र अदृश्य हो जाता है और कभी स्मरण करते ही योद्धा के हाथ में आ जाता है, कोई बाण आग बरसाने लगता है तो कोई पानी से उसे बुझाने की क्षमता रखता है,कोई तीर एकसाथ सैकड़ों तीरों की बारिश कर देता है तो कोई पत्थरों की। ये सभी दिव्यास्त्र हैं। 'दिव्यास्त्र' मतलब दिव्य अस्त्र…ऐसे अस्त्र, जो, उनका इस्तेमाल करने वाले के इशारों पर काम करते हों और एक ही बार में दुश्मन के तमाम ठिकानों को नेस्तनाबूद करने की क्षमता रखते हों। ‘दिव्यास्त्र’ शब्द का उल्लेख आमतौर पर प्राचीन भारतीय पौराणिक ग्रंथों और कथाओं विशेषकर महाभारत और रामायण में मिलता है। नई पीढ़ी को इस शब्द से रूबरू कराने में इन ग्रंथों पर बने धारावाहिकों ने अहम भूमिका निभाई है। 


ऐसा बताया जाता है कि देवताओं और ऋषियों द्वारा प्रदत्त ये अस्त्र विशिष्ट देवताओं से जुड़े होते थे और दिव्य शक्तियों से सज्जित ये हथियार काम पूरा करने के बाद ही वापस लौटते थे। एक बार दिव्यास्त्र छोड़ने के बाद उन्हें रोकना भी मुश्किल होता था इसलिए दिव्यास्त्र का उपयोग निर्धारित नीति के अनुरूप, दिशा निर्देश का पालन करते हुए और पूरी  जिम्मेदारी के साथ किया जाता था। सामान्य भाषा में समझे तो ऐसे अकाट्य अस्त्र शस्त्र जो किसी भी व्यक्ति के सर्वशक्तिशाली होने का पर्याय होते हैं।


अब बात भारत के ‘मिशन दिव्यास्त्र’ की। दरअसल,दुनिया के चुनिंदा देशों के इलीट क्लब में शामिल होने के लिए और आर्थिक एवं वैश्विक पटल पर अपनी धमक बनाने के लिए अपनी ताक़त का प्रदर्शन करना भी जरूरी है। संपूर्ण विकास के लिए देश का सर्व शक्तिशाली होना भी उतना ही जरूरी है इसलिए भारत ने ‘मिशन दिव्यास्त्र’ की शुरुआत की। इसका उद्देश्य एक ऐसा अस्त्र तैयार करना था जो एक साथ कई अस्त्र शस्त्रों की अकल ठिकाने लगाने का माद्दा रखता हो। सबसे खास बात यह है कि दिव्यास्त्र के विकास का जिम्मा शक्ति स्वरूपा महिला वैज्ञानिकों को सौंपा गया। वैसे भी, हमारी पौराणिक कथाओं के अनुसार शक्ति के हाथ में ही देवताओं ने अपनी तमाम दिव्य शक्तियां सौंप दी थी ताकि वे शत्रुओं का सर्वमूल विनाश कर सकें।


भारत ने इस साल 11 मार्च को न्यूक्लियर बैलेस्टिक मिसाइल अग्नि-5 का पहला सफल फ्लाइट परीक्षण कर इतिहास रच दिया है। अग्नि-5 मिसाइल को मेक इन इंडिया पहल के तहत रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन -डीआरडीओ द्वारा विकसित किया गया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अग्नि-5 मिसाइल को 'मिशन दिव्यास्त्र' नाम दिया है। 


डीआरडीओ ने सफल प्रक्षेपण के बाद आधिकारिक रुप से बताया कि ‘मिशन दिव्यास्त्र’ नामक यह उड़ान परीक्षण ओडिशा के डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम द्वीप से किया गया। विभिन्न टेलीमेट्री और रडार स्टेशनों ने अनेक री-एंट्री व्हीकल्‍स को ट्रैक और मॉनिटर किया। इस मिशन ने निर्दिष्‍ट मानकों को सफलतापूर्वक पूरा किया।


इस मिसाइल के सफल परीक्षण के साथ ही अब भारत की पहुँच चीन और पाकिस्तान सहित विश्व के लगभग आधे देश या आधी दुनिया तक हो चुकी है। यह मिसाइल 5 हजार किलोमीटर से भी अधिक दूर के लक्ष्य को भेद सकती है। यह, मल्टीपल इंडिपेंडेंटली टारगेटेबल री-एंट्री व्हीकल- एमआईआरवी तकनीक के साथ स्वदेशी रूप से विकसित अग्नि-5 मिसाइल का पहला उड़ान परीक्षण था। इस मिसाइल के सफल परीक्षण के साथ ही भारत ने एक ही मिसाइल के माध्यम से विभिन्न स्थानों पर कई लक्ष्यों को भेद सकने की क्षमता विकसित कर ली है। आमतौर पर एक मिसाइल में एक ही वॉरहेड होता है और ये एक ही लक्ष्य को मार करता है जबकि अग्नि 5 इस मामले में सबसे अलग है और कई लक्ष्यों को साध सकती है ।


एमआईआरवी एक ऐसी अत्याधुनिक तकनीक है जो किसी मिसाइल को एक ही बार में एक से अधिक परमाणु हथियार ले जाने की क्षमता प्रदान करती है। इससे दुश्मन के विभिन्न लक्ष्यों को एक साथ निशाने पर लेकर नष्ट किया जा सकता है।एमआईआरवी तकनीक का विकास सबसे पहले अमेरिका ने 1970 के आसपास किया था। इसके बाद सोवियत संघ ने यह प्रौद्योगिकी हासिल कर ली। 20वीं सदी  तक अमेरिका और सोवियत संघ दोनों ही इस प्रौद्योगिकी से सुसज्जित कई  अंतर महाद्वीपीय और पनडुब्बी से मार करने वाली बैलिस्टिक मिसाइलें विकसित कर लीं थीं।​​​​​ 


अग्नि सीरीज की यह पांचवी मिसाइल 5000 किलोमीटर से अधिक दूरी की मारक क्षमता वाली है। अग्नि 5 मिसाइल को देश की दीर्घकालिक सुरक्षा जरूरतों को देखते हुए विकसित किया गया है। यह मिसाइल यूरोप के कुछ क्षेत्रों सहित लगभग पूरे एशिया तक  मारक क्षमता रखती है। 


अग्नि 5 जमीन से जमीन पर मार करने वाली और करीब डेढ़ टन तक न्यूक्लियर हथियार  ले जाने में सक्षम मिसाइल है। इस मिसाइल की रफ्तार आवाज की रफ्तार से करीब 24 गुना अधिक है। दिव्यास्त्र यानि इस भारतीय मिसाइल की एक अन्य खासियत यह है कि इसके लॉन्चिंग सिस्टम में कैनिस्टर टेक्नोलॉजी का उपयोग किया गया है। इस प्रौद्योगिकी के फलस्वरूप मिसाइल को कहीं भी आसानी से ले जाया सकता है। गौरतलब है कि भारत के पास पहले से ही अग्नि 1 से अग्नि 4 तक की मिसाइलों का जखीरा है। इन विभिन्न मिसाइलों की मारक क्षमता 700 किलोमीटर से 3,500 किलोमीटर तक है और ये पहले ही देश की सुरक्षा में अहम भूमिका निभा रही हैं। अब भारत, पृथ्वी की वायुमंडलीय सीमा के अंदर और बाहर दुश्मन देशों की बैलिस्टिक मिसाइलों को रोकने की क्षमता भी विकसित कर रहा है। मिशन दिव्यास्त्र की सफलता भारत की बढ़ती तकनीकी शक्ति की प्रतीक है और इसने भविष्य में और उन्नत प्रौद्योगिकी के विकास का रास्ता प्रशस्त किया है ।

 

मिशन दिव्यास्त्र ने देश में विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं की बढ़ती भूमिका को दर्शाते हुए, कार्यक्रम निदेशक शीना रानी के नेतृत्व में मिशन दिव्यास्त्र की सफलता में बड़ी संख्या में महिला वैज्ञानिक शामिल थीं। वरिष्ठ वैज्ञानिक शीना रानी पहले भी कई सफल मिसाइल परीक्षणों में शामिल रही हैं। कार्यक्रम की परियोजना निदेशक डॉ. शंकरी एस ने इस मिशन की सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अग्नि-5 मिसाइल के लिए मल्टीपल इंडिपेंडेंट टारगेटेबल री-एंट्री व्हीकल तकनीक विकसित करने में उनकी और उनकी टीम की महत्वपूर्ण भूमिका है। इस कार्यक्रम में बड़ी संख्या में अन्य महिला वैज्ञानिकों ने भी भरपूर सहयोग किया है । इनमें उषा वर्मा, नीरजा, विजय लक्ष्मी और वेंकटमणि जैसे नाम प्रमुख हैं। 


उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने मिशन दिव्यास्त्र की सफलता पर बधाई दी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस जटिल मिशन के संचालन में भाग लेने वाले डीआरडीओ के वैज्ञानिकों के प्रयासों की सराहना की है। प्रधानमंत्री ने कहा कि, ‘मिशन दिव्यास्त्र के लिए डीआरडीओ के हमारे वैज्ञानिकों पर गर्व है ।’ वहीं, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी इसे असाधारण कामयाबी बताते हुए संबंधित वैज्ञानिकों और पूरी टीम को बधाई दी है। उन्होंने कहा कि डीआरडीओ की यह अभूतपूर्व उपलब्धि भारत के समग्र विकास पथ के अनुरूप है। मल्टीपल इंडिपेंडेंटली टारगेटेबल री-एंट्री व्हीकल तकनीक के साथ अग्नि-5 मिसाइल का पहला उड़ान परीक्षण भारत की स्वदेशी रक्षा क्षमताओं और नवाचार की भावना का प्रमाण है।


कुल मिलाकर कहा जाए तो मिशन दिव्यास्त्र की सफलता ने भारत को उपलब्धियों के ऐसे नए पंख प्रदान कर दिए हैं जो भविष्य में नित नई ऊंचाइयों को छूने का अवसर दे दिया है। इससे दुनिया के सामने देश की सशक्त छवि बनी है और उसे विश्व के चुनिंदा देशों के क्लब में शामिल होने का मौका मिला है। इससे देश का सम्मान बढ़ा है और वैज्ञानिक पथ पर आगे कदम बढ़ाने का रास्ता खुल गया है जो भविष्य में ऐसे और भी दिव्यास्त्रों के निर्माण का मार्ग प्रशस्त करेगा।




बदलाव का भी लीजिए भरपूर आनंद…!!

पीपल लाल-गुलाबी हो रहा है। अब यह बगल में खड़ी हरी भरी जामुन का असर है या फिर फागुन का…होली और रंग पंचमी का..जो भी इन दिनों पीपल महाराज रंग बदल रहे है, जवान हो रहे हैं। आखिर मौसम के बदलाव से पीपल भी कैसे अछूता रह सकता है..चारों तरफ आम की बौर की मादक गंध फैल रही है..सुनहरी रंगत में बौराये आम के वृक्ष ‘..यों गंधी कुछ देत नहीं,तो भी बास सुबास’ की तर्ज पर पूरे वातावरण को अपनी गंध से महका रहे हैं तो पीपल कैसे इस आनंद से पीछे रह सकता है। रही-सही कसर कोयल की कूक से पूरी हो जा रही है..मीठी तान गूंज रही हो,मादक हवा हो तो पीपल का झूमना,नए रंग में रंगना लाज़िमी है..और पीपल ही क्यों, कहीं पतझड़ और कहीं हरे भरे पेड़ों के बीच पलाश भी तो दहक रहा है। अपने सुर्ख लाल रंग से पेड़ों के बीच वह ऐसा दिखाई देता है जैसे विवाह की जमघट में भी कोई नई नवेली दुल्हन अपने सुर्ख जोड़े के कारण दूर से ही नज़र आ जाती है। जहां पलाश का प्रभाव कम होता है वहां गुलमोहर अपने केसरिया पीले रंगों का जादू फैला देता है…वहीं,पीले,लाल, नीले,सफेद,केसरिया जैसे तमाम रंगों से सजी धजी गुलदाऊदी की लताएं दुल्हन की सहेलियों की तरह अपनी सुंदरता से सब का ध्यान खींच रही हैं तो कहीं अपराजिता के मोरपंखी फूल,परिजात और मधु मालती की भीनी भीनी खुशबू परिवेश को महका रही है…ऐसे में पीपल महाराज पर प्रकृति का रंग क्यूं न चढ़े। 


कहने का आशय यह है कि समय के साथ बदलाव जरूरी है और प्राकृतिक भी। फिर चाहे वह धार्मिक कथाओं में संत सा स्थान पाने वाला पीपल हो या अपनी पत्तियों के वंदनवार से घर को शुद्ध करने वाल आम या भगवान विष्णु को प्रिय अपराजिता या फिर होली में सबसे उपयोगी पलाश…सब बदलते हैं और बदलना भी चाहिए क्योंकि जो बदलाव के प्रति निरपेक्ष हो जाते हैं..वे या तो वक्त के दौर में पीछे रह जाते हैं या फिर बदलाव की गर्त में दबकर समाप्त हो जाते हैं। कोई भी इससे अछूता नहीं है…न व्यक्ति, न संस्थान और न राजनीतिक दल।


 बजाज ने स्कूटर से भरपूर माल बनाने के बाद बदलती हवा को भांप लिया और मोटर साइकिल में नया इतिहास रच दिया लेकिन वेस्पा ने सबक नहीं लिया और आज उसका कोई नामलेवा नहीं है। अब वह किस्से कहानियों तक सिमट गई है। भोपाल में नब्बे के दशक तक एक अख़बार की तूती बोलती थी लेकिन उसने वक्त के साथ करवट नहीं ली और वह नए दौर की कदमताल में पीछे रह गया। 


हमारे आपके आसपास ऐसे अनेक उदाहरण मिल जाएंगे जो किसी समय प्रसिद्धि के चरम पर थे,सफलता के शिखर को छू रहे थे, पर दबे पांव आकर उनके पास से गुजर रहे बदलाव को नहीं समझ सके और अब इतिहास का हिस्सा हैं। इसलिए,खुद को समय के साथ रखिए,मांझते रहिए, तराशिये और मजबूत कदमों से आगे बने रहिए क्योंकि पतझड़ के बाद ही कोपल आती हैं और फिर फूल-फल…साथ ही प्रकृति के बदलाव का भी भरपूर आनंद लीजिए…रंगों का, विविध खुशबुओं का,फूलों-पत्तियों का,फलों का और पूरे वातावरण का,गुलाबी होते पीपल का,लाल होते पलाश का और पीले गुलमोहर का, बौर के कैरी और फिर आम बनने का और सबसे ज्यादा खुद का,अपने अंदर-बाहर के बदलावों का…क्योंकि, जीना इसी का नाम है।

आइए, मेघा रे मेघा रे...के कोरस से करें मानसून का स्वागत

मेघा रे मेघा रे...सुनते ही आँखों के सामने प्रकृति का सबसे बेहतरीन रूप साकार होने लगता है, वातावरण मनमोहक हो जाता है और पूरा परिदृश्य सुहाना लगने लगता है। भीषण गर्मी और भयंकर तपन, उमस, पसीने की चिपचिपाहट के बाद मानसून हमारे लिए ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण प्रकृति,जीव जंतु और पक्षियों के लिए एक सुखद अहसास लेकर आता है। मई की चिल्चालाती गर्मी के साथ ही पूरा देश मानसून की बात जोहने लगता है और जैसे जैसे मानसून के करीब आने का संदेशा मिलता है मन का मयूर नाचने लगता है। पहली बारिश की ठंडक भरी फुहारों में भीगते लोग, पानी में धमा-चौकड़ी करती बच्चों की टोली, झमाझम बारिश के बीच गरमागरम चाय पकौड़े, कोयले की सौंधी आंच पर सिकते भुट्टे....क्या हम इससे अच्छे और मनमोहक दृश्य की कल्पना कर सकते हैं। वैसे भी,भारत में मानसून आमतौर पर 1 जून से 15 सितंबर तक 45 दिनों तक सक्रिय रहता है और देश के ज्यादातर राज्यों में दक्षिण-पश्चिम मानसून ने दस्तक दे दी है।

 समुद्र की ओर बढ़ते मेघ जल की लहरों के साथ मिल जाते हैं, जो एक स्थल की खूबसूरती को दोगुना कर देते हैं। उनके संगम पर सूरज की किरणों का खेल, उनकी तेज रोशनी और चांद की रोशनी के साथ एक अद्वितीय और अविस्मरणीय दृश्य बनाता है। मेघों की सुंदरता को वर्णित करना कठिन है, क्योंकि वे प्राकृतिक रूप से बेहद आकर्षक, खूबसूरत और चमकीले होते हैं। मेघों का गगन में आवरण, उनकी बृहत्ता, और उनके रूपांतरण की रौनक देखकर आत्मा को अद्वितीय सुंदरता का अनुभव होता है। मेघों की उच्चता, गहराई, और उनकी चलने की गति से हमें व्यापकता का अनुभव होता है, जो हमें अद्भुतता का अनुभव देता है।मेघों के रंग, आकार और आकृति उन्हें एक अनूठी पहचान देती है। मेघों की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व भी है, क्योंकि वे वर्षा की सूचना देते हैं और प्राकृतिक प्रक्रियाओं का एक अभिन्न हिस्सा हैं। इसके अलावा, मेघों शांति और संतोष की भावना पैदा करता है।

 मानसून के आगमन से धरती का चेहरा बदल जाता है। यह एक ऐसा अवसर होता है जब वायु में ठंडक आ जाती है और वातावरण प्राकृतिक सौंदर्य से भर जाता है। मानसून भारतीय समाज के लिए एक महत्वपूर्ण प्राकृतिक प्रक्रिया है, जो जीवन को नई ऊर्जा और उत्साह से भर देती है। मानसून के दौरान  धरती खूबसूरत हो जाती है क्योंकि वर्षा से प्राकृतिक रंग-बिरंगी वनस्पतियों की खूबसूरती और बढ़ जाती है। पेड़-पौधों का हरा रंग और फूलों की विविधता धरती को विशेष रूप से आकर्षक बनाती है। इसके साथ ही, मानसून के समय में धरती पर बरसने वाली वर्षा से प्राकृतिक जल स्रोतों की चमक बढ़ जाती है, जो नदियों और झीलों को जीवंत करती है। इस प्रकार, मानसून के समय में धरती की सुंदरता और जीवनशैली में विविधता बढ़ जाती है।

 मानसून हमेशा ही फिल्मों,कवियों और संगीतकारों का पसंदीदा विषय रहा है। हिंदी फिल्मों में किसी समय में बारिश के गीत के बिना फिल्म पूरी ही नहीं होती थी। सुपर स्टार अमिताभ बच्चन से लेकर हेमा मालिनी तक और माधुरी दीक्षित-श्रीदेवी से लेकर रवीना टंडन तक ने बारिश पर केन्द्रित सुपरहिट गीत प्रस्तुत किये हैं। इन गीतों ने मानसून के उल्हास व उन्माद को सुन्दर शैली में प्रदर्शित किया है। उनमें प्रदर्शित भावनाएं हमारे हृदय को छू जाती हैं। बचपन में वर्षा के बीच छप-छप से लेकर प्रेम में सराबोर प्रेमीजोड़ों की एक दूसरे से मिलने की तड़प तक और  मानसून की बाट जोहते किसानों के बूंदे देखते ही उल्हास में परिवर्तित होते भावों को हिंदी फिल्मों के गीतों में मनमोहक चित्रण देखने को मिलता है।

इन सदाबहार गीतों से तन के साथ-साथ मन भी भीग जाता है। जैसे गीत प्यार हुआ इकरार हुआ..., हाय हाय ये मजबूरी ये मौसम और ये दूरी..,इक लड़की भीगी भागी..,जिंदगी भर नहीं भूलेगी वो बरसात की रात..., काटे नहीं कटते, ये दिन ये रात...,लगी आज सावन की फिर वो झड़ी है.., रिमझिम रिमझिम, रूमझुम रूमझुम...,कोई लड़की है जब वो हंसती है .., अब के सावन.., घनन घनन जब घिर आये बदरा.., बरसों रे मेघा मेघा..., आज रपट जाएं तो हमें न उठइयो..., भीगी भीगी रातों में..., टिप टिप बरसा पानी.. और जो हाल दिल का, इधर हो रहा है.. जैसे लोकप्रिय, कर्णप्रिय, दर्शनीय और मनमोहक गीतों के बिना इन फिल्मों की कल्पना की जा सकती है।

बारिश पर कविताएँ हमेशा ही रोमांटिक होती हैं और तमाम नामी कवि भी बारिश के आकर्षण से बच नहीं सके हैं जैसे हरिवंश राय बच्चन ने बादल घिर आए कविता में लिखा है:

बादल घिर आए, गीत की बेला आई।

आज गगन की सूनी 

छाती भावों से भर आई, 

चपला के पांवों की आहट 

आज पवन ने पाई, 

बादल घिर आए, गीत की बेला आई।


वहीं,बारिश की बूंदे कविता में कंचन अग्रवाल लिखती हैं:

छम छम पड़ती बारिश की बूंदे,

भले ही बैरंग होती हैं l

लेकिन जब धरती पर पड़ती हैं,

तो उसका रंग निखार देती हैं l

टप टप पड़ता बारिश का पानी,

जब धरती की मिट्टी को गले लगाता है l

इस अदृश्य मिलाप से धरती का रंग,

कुछ ही दिनों में हरा भरा हो जाता है।


वहीँ, सुप्रसिद्ध गीतकार कवि गुलज़ार बारिश होती है तो कविता में कहते हैं:

बारिश होती है तो 

पानी को भी लग जाते हैं पाँव

दर-ओ-दीवार से टकरा के गुज़रता है गली से

और उछलता है छपाकों में

किसी मैच में जीते हुए लड़कों की तरह

मानसून भारतीय मौसम का एक महत्वपूर्ण अवधारणा है। यह वर्षा के मौसम को संदर्भित करता है जो भारतीय उपमहाद्वीप में जुलाई से सितंबर तक चलता है। मानसून भारत जैसे कृषि प्रधान देश के लिए तो और भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह फसलों के लिए पानी प्रदान करता है और खेती को समृद्धि प्रदान करता है। मानसून देश के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग समय में प्रारंभ होता है और उसकी उस इलाके के हिसाब से अलग अलग विशेषताएं भी होती हैं। मानसून के आने से पहले, हवा ऊपरी समुद्री सतह पर संग्रहित गर्म होती है, और जब यह हवा स्थलीय तापमान से ठंडी होती है, तो वह वर्षा के रूप में गिरती है। मानसून दो प्रकार के होते हैं: उत्तरी मानसून और दक्षिणी मानसून। भारत में, उत्तरी मानसून गर्मियों में होता है जबकि दक्षिणी मानसून शीतकाल में होता है। भारत में बारिश की मात्रा क्षेत्र और समय के आधार पर भिन्न होती है। कुछ क्षेत्रों में अधिक बारिश होती है जबकि कुछ में कम। विभिन्न क्षेत्रों में वर्षा की सामान्य मात्रा 500 मिमी से 3000 मिमी तक हो सकती है। उत्तर पश्चिमी और पूर्वी भारत में, बारिश का समय और मात्रा भी अलग-अलग होता है।

हालांकि, मानसून के साथ हादसे भी आते हैं, जैसे की बाढ़ और चक्रवात। इन हादसों से नुकसान होता है, जिससे लोगों को पीड़ा और परेशानी का सामना करना पड़ता है। पूर्वी भारत और खासतौर पर बिहार,असम में तो मानसून जीवन मरण का कारण बन जाता है। लेकिन मानसून के न होने से खेतों में पानी की कमी हो सकती है, जिससे फसलों का प्रभावित हो सकता है और खेती पर असर पड़ सकता है। इसी तरह, मानसून के न होने से पानी की कमी हो सकती है, जो पीने के पानी और सामान्य उपयोग के लिए अधिकतम विपरीत प्रभाव डाल सकती है। मानसून के न होने से जलवायु परिवर्तन हो सकता है, जैसे कि तापमान में वृद्धि, सूखा, और वनों में पेड़ों की असामयिक मृत्यु। मानसून के न होने से सबसे ज्यादा असर अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है, क्योंकि खेती, पर्यटन, उत्पादन और अन्य क्षेत्रों में व्यापार पर नकारात्मक प्रभाव हो सकता है। जिसका असर देश की अर्थव्यवस्था और विकास पर भी पड़ सकता है...इसलिए मानसून हमारे लिए सबसे जरुरी है तो आनंद लीजिये मानसून का,रिमझिम फुहारों का और प्रकृति के बदलते नजारों का।

मंगलवार, 20 फ़रवरी 2024

अलौलिक के साथ आधुनिक बनती अयोध्या

कहि न जाइ कछु नगर बिभूती। 

जनु एतनिअ बिरंचि करतूती॥

सब बिधि सब पुर लोग सुखारी।


रामचंद मुख चंदु निहारी॥


तुलसीदास जी ने लिखा है कि अयोध्या नगरी के ऐश्वर्य का वर्णन ही नहीं किया जा सकता है। ऐसा जान पड़ता है, मानो ब्रह्मा जी की कारीगरी बस इतनी ही है। श्रीरामचन्द्र जी के मुखचन्द्र की छटा देखकर सभी नगरवासी हर प्रकार से सुख की अनुभूति कर रहे हैं।



अयोध्या हर भारतीय की सांस्कृतिक चेतना को जागृत करने वाला शहर है । मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम की जन्म भूमि और सनातन धर्म की आस्था का केंद्र अयोध्या अपने नए भव्य राम मंदिर की दिव्यता के साथ साथ वर्तमान की आवश्यकता और सुनहरे भविष्य को नई दिशा देने में भी जुटी है। अयोध्या में मंदिर के साथ-साथ कई और विकास योजनाओं और कार्यक्रमों का संचालन किया जा रहा है और इन परियोजनाओं के जरिए अयोध्या को अंतर राष्ट्रीय पटल पर प्रमुखतम आध्यात्मिक और सांस्कृतिक केंद्र की पहचान दिलाने के लिए तमाम प्रयास किया जा रहे हैं।

 उत्तर प्रदेश सरकार का कहना है कि आत्मनिर्भर भारत की परिकल्पना को साकार करते हुए अयोध्या में करीब 60,000 करोड रुपए के निवेश से तमाम विकास कार्य किया जा रहे हैं। सदियों  के संघर्ष के बाद अपने विकास और पुरुद्धार से नई कहानी लिख रही सप्तपुरियों में प्रथम अवधपुरी विकास का नया मॉडल बन रही है। 

अयोध्या के चहुंमुखी विकास के लिए आठ परिकल्पनाओं के आधार पर विकास कार्य किया जा रहे हैं जिससे एक बार फिर साकेत पुरी को एश्वर्य पूर्ण नगरी बनाने का सपना साकार हो सके। इन आठ परिकल्पनाओं को सांस्कृतिक अयोध्या, सक्षम अयोध्या, आधुनिक अयोध्या, सुगम्य अयोध्या, सुरम्य अयोध्या, भावात्मक अयोध्या, स्वच्छ अयोध्या और आयुष्मान अयोध्या का नाम दिया गया है। अयोध्या को भारत की सांस्कृतिक राजधानी के रूप में तैयार किया जा रहा है । यहां मौजूद मठ-मंदिरों और आश्रमों को भव्य रूप प्रदान किया जा रहा है। वहीं, 15 करोड रुपए की लागत से वैभवशाली नगर द्वारों का निर्माण और मंदिर संग्रहालय जैसे तमाम कार्य इस परिकल्पना को नया रूप दे रहे हैं। अयोध्या को सक्षम अयोध्या के रूप में भी तैयार किया जा रहा है। जहां आत्मनिर्भर नगरी के रूप में यह रोजगार, पर्यटन, धर्म और सांस्कृतिक गतिविधियों के जरिए आजीविका का बड़ा केंद्र बनेगी। अयोध्या को आधुनिक शहर के रूप में विकसित करने के लिए स्मार्ट सिटी, सेफ सिटी, सोलर सिटी और ग्रीन फील्ड टाउनशिप जैसी तमाम योजनाएं आकार ले रही है। अयोध्या का सुगम्य अयोध्या के रूप में भी विकास जारी है। इसके लिए करीब 1400 करोड रुपए की लागत से बना महर्षि वाल्मीकि अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा बनाया गया है। यहां से उड़ान सेवाएं शुरू हो गई हैं। इसी तरह करीब ढाई सौ करोड रुपए में अयोध्या धाम रेलवे स्टेशन का विकास किया गया है जहां पर्यटकों को नवीनतम और आधुनिकतम ट्रेन एवं रेल सुविधाएं मिलेंगी। इनलैंड वॉटरवे जैसे परिवहन के साधनों के जरिए हर व्यक्ति के अयोध्या तक पहुंचने को सुगम बनाया जा रहा है अयोध्या को सुरम्य अयोध्या के रूप में भी तैयार किया जा रहा है । इसके लिए अयोध्या के विभिन्न कुंडों, तालाबों और प्राचीन सरोवरों के सौंदरीकरण के साथ-साथ उनका कायाकल्प भी किया जा रहा है । नए उद्यानों का निर्माण हो या फिर हेरिटेज लाइट्स के जरिए शहर को सुंदर स्वरूप प्रदान करना हो, सड़कों को फसाड लाइटिंग से जगमग करना हो या फिर अन्य इलाकों का सौंदरीकरण… अवधपुरी को हर तरह से मनमोहन नगरी के रूप में विकसित किया जा रहा है। अयोध्या के भावनात्मक पक्ष का खासतौर पर ध्यान रखते हुए इसे सजाया और संवारा जा रहा है। जैसा कि हम सब जानते हैं कि अवधपुरी के कण कण में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम से जुड़ने का भाव बसा हुआ है इसलिए शहर की दीवारों, सड़कों के किनारे और चौक-चौराहों तक को सांस्कृतिक रूप से सुसज्जित किया जा रहा है। अयोध्या की पहचान स्वच्छ अयोध्या के रूप में भी कायम की जा रही है इसलिए यहां साफ सफाई से लेकर ड्रेनेज और सीवर सिस्टम पर भी विस्तार से काम हो रहा है । अयोध्या को आयुष्मान अयोध्या बनाने की भी तैयारी है । यहां आम लोगों को गुणवत्तापूर्ण और आसान सुविधा के साथ चिकित्सकीय सेवाएं प्रदान करने के लिए स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे को मजबूत किया गया है। यहां के राजर्षि दशरथ स्वशासी राज्य चिकित्सा महाविद्यालय में 246 करोड रुपए खर्च कर आपातकालीन चिकित्सा की तमाम सुविधाएं उपलब्ध कराई गई हैं। अयोध्या में मंदिर के अलावा भी आम लोगों के देखने के लिए बहुत कुछ होगा। यहां के मंदिर संग्रहालय में प्रसिद्ध भारतीय मंदिरों के इतिहास की झलक देखने को मिलेगी तो मोम संग्रहालय में रामायण के प्रमुख पात्रों की मूर्तियां भी हो मूर्तियां होगी। 2 एकड़ में फैला यह मोम संग्रहालय अपने आप में अनूठा होगा। अयोध्या आने वाले पर्यटक अयोध्या हाट के जरिए सरयू नदी के किनारे तमाम आध्यात्मिक और पारंपरिक सामग्री की खरीदारी कर सकेंगे । वहीं संध्या सरोवर में खुली हवा के साथ वोटिंग, जिप लाइनिंग और स्लैकलाइनिंग जैसी सुविधाओं और लजीज व्यंजनों का आनंद उठा सकेंगे । इसके अलावा टेंट सिटी भी होगी जहां पर्यटक खुली हवा में सितारों से भरे आसमान का नजारा ले सकेंगे। अयोध्या को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तकनीक पर आधारित पहला शहर बनाने के प्रयास भी जारी है । यह शहर अपने भव्य दीपोत्सव के जरिए पहले ही गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में अपना नाम दर्ज कर चुका है इसलिए अब यहां दीपोत्सव के साथ-साथ सभी मेलो को राजकीय दर्जा दिया गया है । अयोध्या में अंतरराष्ट्रीय शोध संस्थान की स्थापना भी की जा रही है । इसके अलावा 84 कोसी परिक्रमा मार्ग को राष्ट्रीय राजमार्ग घोषित किया गया है ताकि आम लोग आसानी से ईश्वर की आराधना कर सकें। भविष्य में यहां करीब 4400 करोड रुपए की लागत से बन रहे 147 किलोमीटर लंबे राम वन गमन पथ का नजारा भी लोगों को देखने को मिलेगा।

सृजनकर्ता के सृजक


बंदउँ बालरूप सोइ रामू। सब सिधि सुलभ जपत जिसु नामू॥
मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवउ सो दसरथ अजिर बिहारी॥

भावार्थ- मैं उन्हीं राम के बाल रूप की वंदना करता हूँ, जिनका नाम जपने से सब सिद्धियाँ सहज ही प्राप्त हो जाती हैं। मंगल के धाम, अमंगल के हरनेवाले और दशरथ के आँगन में खेलने वाले (बालरूप) राम मुझ पर कृपा करें

महीनों तक बस एक ही धुन…राम नाम की धुन, न भोजन की परवाह और न ही आराम की। परिवार को तो वह लगभग भूल ही गए थे। दिन नहीं, हफ्तों तक परिवार से बात नहीं की। बस ध्यान में था तो यही कि पूर्ण पवित्रता का पालन करते हुए भगवान श्रीराम की ऐसी दिव्य,अलौकिक,मनमोहक और अद्भुत मूर्ति का निर्माण करना था जो पहले कभी नहीं बनी हो। हम बात कर रहे हैं अयोध्या में प्रतिष्ठित हुई राम लला की प्रतिमा को बनाने वाले मूर्तिकार अरुण योगीराज की।

भगवान श्रीराम के बालरूप वाली इस मूर्ति की ऊंचाई 51 इंच अत्यधिक चिंतन,मनन और अध्ययन के बाद रखी गई है। दरअसल, हमारे देश में 5 वर्षीय बच्चे की लंबाई औसतन लंबाई 51 इंच के आसपास होती है। भारतीय पूजा पद्धति में 51 अंक बहुत शुभ माना जाता है। इन्हीं सब बातों के मद्देनजर  गर्भगृह में स्थापित होने वाली मूर्ति का आकार भी 51 इंच रखा गया है। राम लला की इस मूर्ति का निर्माण खासतौर पर पवित्र और भारतीय देवी देवताओं के निर्माण में होने वाले शालीग्राम पत्थर को तराशकर किया गया है। शालीग्राम एक प्रकार का जीवाश्म पत्थर है, जो आमतौर पर नदियों की तलहटी में पाया जाता है। 

अयोध्या में राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के लिए चयनित रामलला की दिव्य, अलौकिक और मनमोहक श्याम रंग की मूर्ति को मूर्तिकार अरुण योगीराज ने बनाया है। दरअसल,श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने व्यापक सर्वेक्षण और चर्चा के बाद, प्राण प्रतिष्ठा के लिए तीन अलग अलग कलाकारों से तीन मूर्तियों का निर्माण कराया गया था। मूर्तिकार सत्यनारायण पांडेय ने राजस्थानी संगमरमर शिला से प्रतिमा बनाई थी। वहीं, मूर्तिकार गणेश भट्ट और मूर्तिकार अरुण योगीराज ने शालीग्राम शिला से मूर्तियों का निर्माण किया था। तीनों ही मूर्तियां बेहद ही अलौकिक, मनमोहक और अद्वितीय हैं।  ट्रस्ट के विशेषज्ञों की टीम ने तीनों मूर्तियों को हर पैमाने पर देखने और परखने के बाद, गर्भगृह में स्थापना के लिए अरुण योगीराज की बनाई मूर्ति का चयन  किया। इस प्रतिमा का वजन करीब 200 किलो है। ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने भी प्राण प्रतिष्ठा से कुछ दिन पहले ही पत्रकारों से बातचीत में अरुण योगीराज की मूर्ति के चयन की जानकारी दी थी। उन्होंने यह भी बताया था कि बाकी दोनों मूर्तिकारों की प्रतिमाओं का भी यथोचित उपयोग किया जाएगा। 

खूबसूरत और दिव्य प्रतिमाओं के निर्माण में अरुण योगीराज का कोई मुकाबला नहीं है। वे पहले भी कई अनूठी और सजीव प्रतिमाओं का निर्माण कर चुके हैं फिर चाहे वह केदारनाथ धाम में स्थापित आदि शंकराचार्य की प्रतिमा हो, रामकृष्ण परमहंस की या फिर दिल्ली में कर्तव्य पथ पर स्थापित की गई नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा।  अरुण योगीराज के परिवार में पांच पीढ़ियों से मूर्तिकला को  पेशे के तौर पर अपनाया जाता रहा है। अरुण के पिता योगीराज और उनके दादा बसवन्ना शिल्पी भी मशहूर मूर्तिकार हैं। कर्नाटक मूल के अरुण मैसूर के प्रसिद्ध मूर्तिकारों की पांच पीढ़ी से ताल्लुक रखते हैं। अरुण योगीराज के हुनर की सराहना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी की है । नेताजी की प्रतिमा के निर्माण के दौरान उन्होंने प्रधानमंत्री को इसकी एक छोटी प्रतिकृति भेंट की थी। एमबीए की पढ़ाई कर चुके अरुण योगीराज का मन कारपोरेट जगत में नहीं लगा और निजी कंपनी की नौकरी छोड़कर वापस अपने पारिवारिक पेशे में लौट आए और फिर उनके हाथ ने ऐसी कमाल की मूर्तियां सृजित की कि लोग वाह वाह कर उठे।  

योगीराज की मां सरस्वती ने कहा कि यह बहुत खुशी की बात है कि उनके बेटे द्वारा बनाई गई मूर्ति को चुन लिया गया है। अरुण योगीराज की पत्नी विजेता भी अपने पति की इस उपलब्धि से बहुत खुश हैं। उन्होंने बताया कि  मूर्ति बनाते समय पत्थर का एक टुकड़ा अरुण की आंख में चला गया था और उसे आपरेशन से बाहर निकाला गया लेकिन उन्होंने अपने काम पर आंच नहीं आने दी। लगातार बारह-12 घंटे काम करके उन्होंने इस जिम्मेदारी को पूरा किया है। देश भले ही अरुण की उपलब्धि पर झूम रहा है लेकिन अरुण को देश से फीडबैक का इंतजार है। उन्होंने कहा कि मूर्ति के चयन से ज्यादा मेरे लिए यह महत्वपूर्ण है कि ये लोगों को पसंद आनी चाहिए. सच्ची खुशी मुझे तब होगी जब लोग इसकी सराहना करेंगे.''

अविस्मरणीय अयोध्या

कोसलो नाम मुदित: स्फीतो जनपदो महान।

निविष्ट: सरयूतीरे प्रभूत धनधान्यवान् ॥

अयोध्या नाम नगरी तत्रासील्लोकविश्रुता |

मनुना मानवेन्द्रेण या पुरी निर्मिता स्वयम् ||

 

सरयू नदी के तट पर संतुष्ट जनों से पूर्ण धनधान्य से भरा-पूरा, उत्तरोत्तर उन्नति को प्राप्त कोसल नामक एक बड़ा देश था। इसी देश में मनुष्यों के आदिराजा प्रसिद्ध महाराज मनु की बसाई हुई तथा तीनों लोकों में विख्यात अयोध्या नामक एक नगरी है।


जिस धरा पर भगवान श्री राम ने जन्म लिया हो और जहां की माटी में तीनों लोक के स्वामी खेलकर बड़े हुए हों… उस जगह से पवित्र भूमि इस दुनिया में कोई और नहीं हो सकती । अयोध्या को यह सौभाग्य मिला है कि उसने रामलला की जन्म से लेकर उनके राज्य सिंहासन संभलाने तक के दौर को जिया है । आज एक बार फिर अयोध्या विश्व पटल पर चर्चा में है। इसका कारण भी भगवान श्री राम का दिव्य,भव्य और नवनिर्मित मंदिर है। हो सकता है आज की युवा पीढ़ी अयोध्या को मौजूदा स्वरूप में और इस नए मंदिर के कारण ही जाने  लेकिन असलियत यह है कि अयोध्या का अस्तित्व हजारों सालों से है। हमारे वेदों में, धार्मिक ग्रंथों में और अंग्रेजों से लेकर मुगलो द्वारा लिखे गए इतिहास की पुस्तकों में भी इस पावन नगरी का व्यापक उल्लेख मिलता है। माना जाता है कि अयोध्या की स्थापना वैवस्वत मनु महाराज ने की थी। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार वैवस्वत भगवान सूर्य के पुत्र थे और उनके पूर्वज भगवान ब्रह्मा के वंशज थे। बाल्मीकि रामायण में भी अयोध्या को वैवस्वत द्वारा स्थापित नगरी बताया गया है । वहीं, सनातन धर्म में सबसे पवित्रम चार वेदों में से एक अथर्ववेद में भी अयोध्या का भरपूर उल्लेख मिलता है। अथर्ववेद में अयोध्या को स्वर्ग के समान नगरी का दर्जा दिया गया है। अथर्ववेद के दसवें मंडल के दूसरे सूक्त में बताया गया है कि अयोध्या आठ चक्र और नौ द्वारों वाली देवताओं की नगरी है। सनातन संस्कृति की धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भारत में सात शहरों को सबसे पवित्र माना गया है और इन्हें सप्तपुरी के नाम से वर्णित किया गया है। सप्तपुरियों में सबसे पहला नाम अयोध्या का  है। अयोध्या के अलावा मथुरा, हरिद्वार, काशी, कांचीपुरम, उज्जैन और द्वारका शामिल हैं। इसमें उज्जैन को अवंतिका और हरिद्वार को माया नगरी के नाम से दर्शाया गया है।  इसका तात्पर्य यह है कि अयोध्या युगों युगों से धार्मिक महत्व के लिहाज से सनातन संस्कृति का प्रमुख गढ़ रहा है। हिंदू धर्म के अलावा, जैन धर्म के तीर्थंकरों की जन्मस्थली के लिए भी अयोध्या देशभर में प्राचीनकाल से मशहूर है। जैन धर्म के अनुसार कुल 24 तीर्थंकरों में से पांच का जन्म अयोध्या में हुआ है। इनमें पहले तीर्थंकर ऋषभनाथ, दूसरे अजितनाथ, चौथे अभिनंदननाथ, पांचवें सुमित नाथ और 14वें तीर्थंकर अनंतनाथ का जन्म अयोध्या में माना जाता है। अयोध्या को भगवान श्री राम की जन्मस्थली के अलावा भगवान विष्णु के साथ अन्य स्वरूपों के लिए भी याद किया जाता है। प्राचीन ग्रन्थों के मुताबिक सप्त हरि के नाम से विख्यात भगवान विष्णु के सात रूप-गुप्तहरि, विष्णुहरि, चक्रहरि, पुण्यहरि, चंद्रहरि,धर्महरि और बिल्वहरि नामक सात स्वरूप अयोध्या में ही प्रकट हुए थे। प्राचीन काल में अयोध्या न केवल काफी संपन्न थी। रामायण और रामचरितमानस के अनुसार यहां के लोग भी काफी खुश और संतुष्ट थे। इस धन-धान्य से भरे-पूरे कोसल देश के नाम से जाना जाता था। यदि हम बाल्मीकि रामायण के बालकांड में शामिल श्लोकों  के अनुसार समझे तो अयोध्या 52 योजन लंबी और तीन योजन चौड़ी थी। आज के संदर्भ में देखें तो उस समय अयोध्या या कोसल देश की लंबाई-चौड़ाई 5 हजार वर्ग किलोमीटर से ज्यादा थी जबकि मौजूदा अयोध्या शहर करीब 120 वर्ग किलोमीटर में बसा है। इस हिसाब से हम कह सकते हैं कि कोसल देश आज की अयोध्या से कई गुना बड़ा और संपन्न शहर था। अयोध्या में 22 जनवरी को हुई भगवान राम लला की प्राण प्रतिष्ठा से उम्मीद है कि इस नगर को अपना पुराना गौरव और प्रतिष्ठा पुनः हासिल होगी और यह पहले की तरह धन-धान्य, सुख संपदा और धार्मिक मान्यताओं के लिहाज से देश के सबसे प्रमुख शहर के रूप में उभर कर सामने आएगी। सरकार द्वारा अयोध्या में संचालित की जा रही विभिन्न योजनाओं और विकास की ओर बढ़ते कदमों से भी यह लगने लगा है कि अयोध्या को अपना पुराना गौरव मिलने वाला है।


राम लला हुए विराजमान

लोचन अभिरामा, तनु घनस्यामा,निज आयुध भुजचारी ।

भूषन बनमाला, नयन बिसाला, सोभासिंधु खरारी ॥


प्रभु के दर्शन नेत्रों को आनंद देने वाले हैं, उनका शरीर मेघों के समान श्‍याम रंग का है तथा उन्होंने अपनी चारों भुजाओं में आयुध धारण किए हैं, दिव्य आभूषण और वन माला धारण की हैं। प्रभु के नेत्र बहुत ही सुंदर और विशाल है। इस प्रकार शोभा के समुद्र और खर नामक राक्षक का वध करने वाले भगवान प्रकट हुए हैं।



चंहुओर घंटे-घड़ियाल,शंख, मंजीरे,खड़ताल, ढोल नगाड़े, मृदंग, बांसुरी, वीणा और चिमटा सहित तमाम वाद्य यंत्र अपनी अलग अलग स्वर लहरियों के बाद भी बस एक ही धुन सुना रहे थे…वह थी राम नाम की धुन। घरों में कोई थाली बजा रहा था तो कोई घंटी,किसी ने तालियों की रफ्तार कम नहीं होने दी तो किसी की अंगुलियां माला के मनकों पर नाच रही थीं…हर कोई मस्त था,अलमस्त, मग्न और आतुर…आखिर, पांच सौ सालों की तपस्या एवं इंतज़ार का फल मिल रहा था और हजारों सालों से हमारी आस्था,विश्वास,संस्कृति और मर्यादा के शिखर पुरुष भगवान श्रीराम पधार रहे थे।


राम की शक्ति और भक्ति का यह आलम था कि कई दिनों से बादलों में छिपकर अयोध्या को कड़ाके की ठंड से तड़फा रहे सूर्यदेव भी राम लला के दर्शन के लिए प्रकट हो गए और पूरी अयोध्या चमकदार धूप और आस्था की गरमाहट से सराबोर हो गई। दोपहर 12 बजकर 29 मिनट पर सर्वोत्तम मुहूर्त में राम लला के चलित और अचल विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा शुरू हुई और 84 सेकेंड में सतत मंत्रोचार,साधना, आराधना और जय जयकार के बीच प्रभु श्री राम विराजमान हो गए। स्वर्ण आभूषणों और पूरे साज श्रृंगार के बाद जब राम लला ने पहले दर्शन दिए तो लोग भाव विव्हल हो उठे, उनकी आंखों से झर झर आंसुओं की धार बह निकली और बस,सब अपलक निहारते रह गए। 



 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के तमाम लोगों की इच्छा आकांक्षा का नेतृत्व करते हुए श्री राम जन्मभूमि गर्भगृह के भीतर रामलला की मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा की। इस दौरान उनके साथ उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, राज्यपाल आनंदी बेन,राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत समेत मंदिर के पुजारी और आचार्य गण मौजूद थे।  मंत्रोच्चारण और विधि-विधान के साथ रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा संपन्न हुई। इस दौरान मंदिर परिसर में सभी संप्रदायों के 4 हजार से ज्यादा संत, कला और उद्योग सहित तमाम विधाओं के ढाई हजार चुनिंदा अतिथि और हजारों लोग मौजूद थे। इस अवसर प्रधानमंत्री ने उल्लासित जनसमुदाय से कहा- ‘हमारे राम आ गए हैं। मुझे पक्का विश्वास है कि आज जो घटित हुआ है उसकी अनुभूति दुनिया के कोने कोने में हो रही होगी। गुलामी की मानसिकता को तोड़कर उठ खड़ा हुआ राष्ट्र ऐसे ही नव इतिहास का सृजन करता है। हजार साल बाद भी लोग इस पल की चर्चा करेंगे।’


 प्राण प्रतिष्ठा के बाद जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने कहा कि ‘मैं अभी भी भावुक हूं। आज मेरी स्थिति गुरु वशिष्ठ के जैसी है जब भगवान राम वनवास के बाद लौटे थे।’ तो जाने माने गायक गायक-संगीतकार हरिहरन ने कहा, 'मेरी आंखों में खुशी के आंसू थे...मैं इस पल को शब्दों में बयां नहीं कर सकता, यहां हर कोई बहुत खुश है।'


भाव, श्रद्धा और आस्था से परिपूर्ण इस आयोजन को लेकर देश भर में महापर्व का सा आयोजन हुआ। घर घर दीपावली और होली मनाई गई । दुनिया भर के अन्य देशों ने भी इस जश्न में भारत के साथ सुर मिलाए। अमेरिका से लेकर ब्रिटेन तक और नेपाल से लेकर भूटान तक उत्सव और उल्लास में डूबे रहे। इसके साथ ही सन 1528 से चले आ रहे विवाद का सुखद पटाक्षेप हो गया और धर्म संस्कृति के नए युग का सूत्रपात हुआ।



रावण के बहाने समाज की बात…!!

समाज में एक बार फिर रावण ‘आकार’ लेने लगा है। हर साल इन्हीं दिनों में देश के तमाम शहरों में रावण जन्म लेने लगता है और धीरे-धीरे उसका आकार विश...