कैसा हो यदि सुरीला हो जाए वाहनों का कर्कस हार्न...!!!
कल्पना कीजिये यदि
सड़क पर आपको पीछे आ रही कार से कर्कस और कानफोडू हार्न के स्थान पर गिटार की मधुर
धुन सुनाई दे तो कैसा लगेगा? ट्रैफिक जाम को लेकर आपका गुस्सा शायद काफूर हो जाएगा
और आप भी उस मधुर धुन का आनंद उठाने लगेंगे. इसीतरह आपकी कार या सड़कों को रौंद रहे
तमाम वाहन भी यदि दिल में डर पैदा कर देने वाले विविध प्रकार के हार्न के स्थान पर
संतूर, हारमोनियम या फिर बांसुरी की सुरीली तान छेड़ दें तो सड़कों का माहौल ही बदल
जाएगा और फिर शायद सड़कों पर आए दिन लगने वाला जाम हमें परेशान करने की बजाए सुकून
का अहसास कराएगा. पता नहीं हमारे वाहन
निर्माताओं ने अभी तक भारतीय सड़कों को सुरीला बनाने के बारे में क्यों नहीं सोचा? जब
हम मोबाइल फोन में अपनी पसंद के मुताबिक संगीत का उपयोग कर स्वयं के साथ-साथ हमें
फोन करने वालों को भी मनभावन धुन सुनाने का प्रयास करते हैं तो ऐसा कार या अन्य
वाहनों में क्यों नहीं हो सकता. धुन न सही तो लता जी, मुकेश, किशोर दा, भूपेन
हजारिका से लेकर पंडित भीमसेन जोशी या गुलाम अली जैसी महान हस्तियों का कोई मुखड़ा,
कोई अलाप या कोई अंतरा ही उपयोग में लाया जा सकता है. इससे इन दिग्गजों की कालजयी
शैली को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में ले जाने में मदद मिलेगी और सड़कों, इनसे गुजर
रहे लोगों, यहाँ रहने वालों और दिनभर ट्रैफिक को सँभालने वाले उस अदने से ट्रैफिक
हवलदार को भी ध्वनि प्रदूषण से लेकर बहरेपन तक से राहत मिलेगी.
वैसे देखा जाए तो कारों
में संगीत का कुछ हद तक इस्तेमाल होने लगा है लेकिन फिलहाल यह कार पीछे करने के
लिए बजाए जाने वाले ‘रिवर्स हार्न’ तक सीमित है. यही कारण है कि जब कार बैक होती
है तो वह सड़क पर दौडती कार की तरह कर्कस अंदाज में नहीं चीखती बल्कि होले से पीछे
से हट जाने की गुजारिश करती है. बस इसी प्रयोग को और परिष्कृत ढंग से इस्तेमाल में
लाने की जरुरत है और सड़कों से शोर कम हो जाएगा. हालांकि इसके कुछ खतरे भी हैं
क्योंकि कार कंपनियों ने यदि युवाओं की पसंद के मद्देनजर मौजूदा दौर के हनी सिंह
मार्का या मुन्नी बदनाम छाप गीतों को ‘हार्न’ में बदल दिया तो समस्या कम होने की
बजाए बढ़ भी सकती है. देखा जाए तो सड़क पर गाड़ियों की चिल्लपों से परेशान होना अब हम
महानगरों के लोगों की दिनचर्या का हिस्सा बन गया है. जरा आप सड़क पर रुके नहीं कि
पीछे से हार्न की कर्कश आवाजें सिरदर्द पैदा कर देती हैं. दिल्ली-मुंबई जैसे शहरों
में तो आए दिन जाम की स्थिति बनी रहती है और चाहे आप कार में हो या बस में,आपको
कानफोडू और कई बार तो बहरा बना देने की हद तक के शोर को बर्दाश्त करना ही पड़ता है.वैसे
अब इस दिशा में कुछ प्रयास शुरू हुए हैं. अभी हाल ही में एक खबर पढ़ने में आई कि भविष्य
में सड़कों पर ‘टाकिंग कार’ दौड़ेगी जो न केवल आपस में बात करेंगी बल्कि कार चलाने
वाले को भी किसी गलती की स्थिति में सावधान भी करेंगी. इससे दुर्घटनाओं पर तो रोक
लगेगी, शोर-गुल कम होगा और हर साल दुनिया भर और खासकर भारत में सड़कों पर मरने वाले
लाखों लोगों के प्राण बचाए जा सकेंगे. खास बात यह है कि इस आविष्कार के पीछे भी भारतीय
मूल के वैज्ञानिक प्रोफ़ेसर जगदत्त सिंह का दिमाग है और यह आइडिया भी उन्हें
दिल्ली-मुंबई जैसे शहरों में ट्रैफिक से दो-चार होने के बाद आया. डेडिकेटेड शार्ट
रेंज कम्युनिकेशन(डीएसआरसी) नामक इस डिवाइस को कार में लगाने के बाद यह तक़रीबन एक
किलोमीटर की दूरी तक की कार की हरकतों को भांपकर उसके मुताबिक बचाव का तरीका तलाश
लेगी.यही नहीं,वह अपने चालक को भी पहले से आगाह कर देगी.
इस सोच को अमलीजामा
पहनाने में तो समय लगेगा क्योंकि इसमें भी सबसे पहले कंपनियां अपना नफा-नुकसान
देखेंगी, सरकारी नियम आड़े आएंगे, फिर दफ्तरों में फाइलें रेंगेगी,अदालतों का कीमती
वक्त जाया किया जाएगा और तब कहीं जाकर कोई नतीजा सामने आ पाएगा.तब तक आपकी-हमारी
पीढ़ी सहित कई पीढियां इसीतरह सड़कों के शोर में बहरी होकर दम तोडती रहेंगी.
तर्कसंगत आलेख.................
जवाब देंहटाएंवाह क्या बात! बहुत ख़ूब!
जवाब देंहटाएंइसी मोड़ से गुज़रा है फिर कोई नौजवाँ और कुछ नहीं