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यार हद होती है चापलूसी की भी....

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क्या होता जा रहा है हमारे मीडिया को? खबरें खोजने की बजाये हमारे पत्रकार महिमामंडन या कटु परन्तु सीधी-सपाट भाषा में कहें तो चापलूसी पर उतर आये हैं.क्या राहुल गाँधी का एक पोलीथीन का टुकड़ा उठाकर कचरापेटी में डालना इतनी बड़ी खबर है जिसे घंटों तक आम आदमी को झिलाया जाये? आप पूछ सकते हैं कि मुझे क्या पड़ी थी लगातार उस खबर को देखने की? तो साहब सभी न्यूज़ चैनलों का यही हाल है.जब पूरी दाल ही काली हो तो फिर बेस्वाद दाल खाना मज़बूरी हो जाती है.यह माना जा सकता है कि चैनल राहुल कि सादगी को आम लोगों को प्रेरित करने के लिए दिखा रहे थे तो इतनी प्रेरणा किस काम की, कि देखने वाले को ही खीज होने लगे. शायद इसीलिए लोग चिडकर यह कहते सुने गए कि राहुल गाँधी ने कौन सा अलग काम किया है-अरे वे अपने पिता की समाधि को ही तो साफ़-सुथरा कर रहे थे और यह परंपरा तो सदियों से हमारे समाज का हिस्सा है कि हम अपना घर/पूर्वजों का स्थान/आस-पास का क्षेत्र साफ़ रखते हैं. वैसे भी राहुल गाँधी देश के सांसद (जनप्रतिनिधि) हैं इसलिए यह उनका दायित्व है कि वे देश को साफ़-सुथरा रखने में अपना योगदान दे. मै एक बात यहाँ साफ़ कर देना चाहता हूँ कि मेर...

मिला वो चीथड़े पहने हुए मैंने पूछा नाम तो बोला हिन्दुस्तान

प्रख्यात कवि दुष्यंत कुमार किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं.समय पर कटाक्ष करती उनकी कविताएँ आज भी उतनी ही मौजूं हैं.देश के  स्वतन्त्रता दिवस की ६३ वीं वर्षगांठ पर दुष्यंत जी के गुलिश्तां से पेश हैं चंद सशक्त और समयानुकूल कविताएँ: १ एक गुडिया की कई कठपुतलियों में जान है, आज शायर ये तमाशा देख कर हैरान है. ख़ास सड़कें बंद हैं तब से मरम्मत के लिए, यह हमारे वक्त की सबसे सही पहचान है एक बूढा आदमी है मुल्क में या यों कहो, इस अँधेरी कोठारी में एक रौशनदान है. मस्लहत-आमेज़ होते हैं सियासत के कदम, तू न समझेगा सियासत, तू अभी नादान है. इस कदर पाबंदी-ए-मज़हब की सदके आपके जब से आज़ादी मिली है, मुल्क में रमजान है कल नुमाइश में मिला वो चीथड़े पहने हुए, मैंने पूछा नाम तो बोला की हिदुस्तान है. मुझमें रहते हैं करोड़ों लोग चुप कैसे रहूँ, हर ग़ज़ल अब सल्तनत के नाम एक बयान है. २ आज सड़कों पर लिखे हैं सैकड़ों नारे न देख, पर अंधेरा देख तू आकाश के तारे न देख। एक दरिया है यहां पर दूर तक फैला हुआ, आज अपने बाज़ुओं को देख पतवारें न देख। अब यकीनन ठोस है धरती हकीकत की तरह, यह हक़ीक़...

कब सुधरेंगे हमारे माननीय...?

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देश के जनप्रतिनिधि अपनी कारगुजारियों के लिये कम बदनाम नहीं हैं.कभी पैसा लेकर सवाल पूछने को लेकर तो कभी संसद में लात-घूंसे चलने को लेकर वे चर्चा में बने रहते हैं.संसद से गायब रहना तो अधिकतर जन्प्रतिनिधियों की फितरत बन गए है.लेकिन अभी तक ये बातें सिर्फ सुनी-सुनाई थी पर हाल ही में आये एक रिपोर्ट ने ऐसे ही कई रहस्यों को सार्वजनिक कर दिया है. स्वयंसेवी संगठन मास फॉर अवेयरनेस के “वोट फार इंडिया” अभियान द्वारा १५ वीं लोकसभा के २००९-१० के पहले एक साल के काम-काज पर आधारित रिपोर्ट “रिप्रेजेंटेटिव एट वर्क” में लोकसभा के प्रत्येक सांसद के साल भर के कार्यों का लेखा जोखा दिया गया है. रिपोर्ट में लोकसभा के काम-काज को दस भागों में बांटा गया है.पहले भाग ‘उपस्थिति’ में कुल सात सांसद ने सौ फीसद उपस्थित रहकर लोकसभा के प्रति गंभीरता का प्रदर्शन किया है. इनमें छः सांसद कांग्रेस के हैं. खास बात यह है कि लोकसभा की कुल ८६ बैठकों में ९० फीसद से ज्यादा उपस्थिति वाले सांसदों की संख्या भी लगभग १०० है.राज्यों के हिसाब से मणिपुर के सांसदों कि सदन में उपस्थिति सबसे ज्यादा रही है. रिपोर्ट का दूसरा भाग लोकसभा के प्रश्न...

यदि महिलाएं डायन हैं तो पुरुष कुछ क्यों नहीं?

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पिछले दिनों तमाम अख़बारों में एक दिल दहलाने देने वाली खबर पढ़ने को मिली.इसमें लिखा गया था कि देश में अभी भी महिलाओं को डायन बताकर मारा जा रहा है.दादी-नानी से सुनी कहानियों के मुताबिक डायन वह महिला होती है जो दूसरों के ही नहीं बल्कि अपने बच्चे तक खा जाती है.इन कहानियों के आधार पर बचपन में मेरे मन में डायन कि कुछ ऐसी डरावनी छवि बन गयी थी जैसी कि अंग्रेजी फिल्मों में ड्राकुला की होती है.मसलन लंबे भयानक दांत.कुरूप चेहरा,गंदे व खून से लथपथ नाखून इत्यादि वाली महिला! परन्तु जब भी डायन बताकर मारी गयी महिला की तस्वीर देखता तो वो इस छवि से मेल नहीं खाती थी.कभी दादी-नानी से पूछा तो वे भी संतुष्टिपूर्ण जवाब नहीं दे पायीं.वक्त के साथ समझ आने पर डायन कथाओं और इनके पीछे की हकीकत समझ में आने लगी. ऊपर मैंने जिस खबर का उल्लेख किया है उसमें एक गैर सरकारी संस्था रूरल लिटिगेशन एंड एनटाइटिलमेंट केंद्र द्वारा किये गए अध्ययन के अनुसार बताया गया था कि देश में हर साल 150-200 महिलाओं को डायन बताकर मार डाला जाता है। इस संस्था ने राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो के आंकडों के हवाले से बताया कि इस सूची में झारखंड का स्थान...

बेटियों की बात या देह-दर्शन का बहाना ..?

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महात्मा गाँधी से जुड़ा एक मशहूर किस्सा है.उनके पास एक महिला अपने बच्चे को लेकर आई .महिला ने बताया कि उसका बेटा बहुत ज्यादा गुड़ खाता है और वह उसकी इस आदत को छुड़ाना चाहती है.मैंने सुना है कि यदि गांधीजी किसी को समझा दे तो वह एक ही बार में अपनी बुरी आदत छोड़ देता है इसलिए मैं इसे आपके पास लेकर आयीं हूँ.गांधीजी ने उस महिला से कहा कि वह एक हफ्ते बाद आये.बापू की बात मानकर महिला चली गयी और सप्ताह भर बाद पुनः आई.गांधीजी ने उसके बेटे को गुड़ की अच्छाई और बुराइयां दोनों बताई और ज्यादा गुड़ नहीं खाने की सलाह दी.महिला के जाने के बाद उनके एक शिष्य ने पूछा-बापू यह बात तो आप हफ्ते भर पहले भी बता सकते थे तो फिर आपने महिला को सप्ताह भर बाद क्यों बुलाया था?गांधीजी ने उत्तर दिया-दरअसल हफ्तेभर पहले तक मैं खुद भी गुड़ खाता था.जो काम मैं खुद कर रहा हूँ तो दूसरे को कैसे मना कर सकता हूँ.सप्ताह भर में मैंने अपनी गुड़ खाने की आदत को त्याग दिया इसलिए उस बच्चे को भी ऐसा कर पाने की बात आत्मविश्वास के साथ समझा पाया लेकिन हमारा मीडिया बापू की तरह महान नहीं है.वह जो काम खुद करता है वही दूसरों को करने से रोकता है. आप...

कहीं हम साज़िश का शिकार तो नहीं बन रहे...?

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पिछले कुछ दिनों के दौरान न्यूज़ चैनलों पर आई खबरों से शुरुआत करते हैं: • क्या आप डबलरोटी की जगह पाँव रोटी खा रहे हैं? • ज़हरीले ढूध से बनी चाय पी रहे हैं आप? • आप की लौकी में ज़हर है? • खोवा और पनीर भी मिलावटी? • ज़हरीला करेला खा रहे हैं आप? • ओक्सिटोसिन से पक रहे हैं फल? ये तो महज बानगी है.ऐसी ही कोई न कोई खबर आप रोज न्यूज़ चैनलों या हिंदी-अंग्रेजी के अखबारों में देखते हैं.अगर आप ध्यान से सोचें तो पता लगेगा कि ऐसी ख़बरों की कुछ दिन से बाढ़ सी आ गयी है.क्या एकाएक मिलावट इतनी ज्यादा बढ़ गयी है? या हमारे पत्रकार ज्यादा ही मुस्तैद हो गए हैं? या फिर हम किसी बड़ी साज़िश के शिकार बन रहे हैं? इन ख़बरों का फायदा किसे हो रहा है?और इन ख़बरों से किसे नुकसान हो रहा है? आइये अब इन बातों और कारणों का विश्लेषण करें. देश में बेकरी का खुदरा कारोबार घरेलू तौर पर किया जाता है.कई परिवार पुश्तैनी रूप से यह काम कर रहे हैं.इसीतरह सहकारी आधार पर और छोटी घरेलू कंपनियों द्वारा भी बेकरी का काम किया जाता है.इस क्षेत्र में अब नामी ब्रांड और विदेशी कंपनियों का दखल बढ़ रहा है.कुछ यही हाल स्टेशनों पर मिलने वाली चाय का ह...

आम आदमी का दर्द अभिव्यक्त करते गाने

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कभी कभी कुछ गाने ऐसे बन जाते हैं जो उस दौर का प्रतिनिधित्व करने लग जाते हैं और आम जनता की आवाज़ बनकर सत्ता प्रतिष्ठान की मुखालफत का माध्यम बनकर लोगों के दिल-ओ-दिमाग में खलबली तक पैदा कर देते हैं.जल्द ही रिलीज होने वाली फिल्म ‘पीपली लाइव’ का यह गीत भी महंगाई के खिलाफ राष्ट्रीय गीत बन गया है.इस गाने के बोल-“सखी सैंया तो खूब ही कमात है,महंगाई डायन खाय जात है.”ने भी लोगों को झकझोर दिया है.आलम यह है कि इस गाने को कांग्रेस विरोध की धुरी बनाने के लिए भाजपा ने बकायदा गीत के कापीराईट हासिल करने के प्रयास शुरू कर दिए हैं. यदि आप भूले न हो तो चंद साल पहले भी एक गाना जनता ही नहीं सरकार की उपलब्धियों की आवाज़ बन गया था.यह गाना था फिल्म ‘स्लमडोग मिलिनियर’ में ऑस्कर विजेता संगीतकार ए आर रहमान का स्वर और संगीतबद्ध किया गया “जय हो”.तब कांग्रेस ने बकायदा इस गीत के अधिकार लेकर इसे अपने चुनाव प्रचार का मुख्य हथियार बना लिया था.इस गीत ने आम जनता पर भी जादू किया और कांग्रेस की सत्ता में वापसी हो गई. फिल्म ‘थ्री इडियट्स’ के गीत “आल इज वैल” ने स्कूल-कालेज के छात्रों को स्वर दे दिया था. ऐसा नहीं है कि आज के दौर...

रसोई और बिस्तर के अलावा भी है औरत

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स्त्री पर पुरातन काल से कवियों की कूची चलती रही है.हर कवि/कवियत्री ने स्त्री को अपनी-अपनी आँखों से देखा है और बदलते काल और दौर के साथ स्त्रियों को लेकर अभिव्यक्तियाँ बदलती रही हैं.शायद इसलिए हमें विभिन्न समयों में स्त्री को विविध कोणों से समझने का अवसर मिलता है.पिछले दिनों कर्नाटक महिला हिंदी सेवा समिति,बंगलुरु के तत्वावधान में 'समकालीन महिला लेखन' पर एक संगोष्ठी का आयोजन हुआ.इसमें कई जानी-मानी वक्ताओं ने अपने विषय केन्द्रित संबोधनों में स्त्रियों से जुडी अनेक कविताओं/क्षणिकाओं का उल्लेख किया. मैंने कुछ चुनिन्दा कविताओं को आपके लिए बटोरने का प्रयास किया है.जो बदलती स्त्री से रूबरू कराती हैं. खास बात यह है कि ये महिलाएं "अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी "वाली परिपाटी से हटकर सोचती हैं. प्रज्ञा रावत कहती हैं- जितना सताओगे उतना उठुगीं जितना दबाओगे उतना उगुगीं जितना बाँधोगे उतना बहूंगी जितना बंद करोगे उतना गाऊँगी जितना अपमान करोगे उतनी निडर हो जाउंगी जितना सम्मान करोगे उतनी निखर जाउंगी वहीँ निर्मला पुतुल पूछती हैं- क्या तुम जानते हो एक स्त्री के समस्त ...

कब बदलेगा ‘पाल’ और ‘हीरामन तोते’ का फर्क

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एक बार स्वामी विवेकानंद को नाराज़ करने के लिए एक विदेशी ने पूछा कि यूरोप के लोग दूध की तरह सफ़ेद हैं तो अफ्रीका के लोग कोयले की तरह काले,फिर इंडिया के लोग क्यों आधे-अधूरे रह गए हैं?इसपर विवेकानंद ने उससे पूछा कि तुमने कभी रोटी को बनते देखा है?जब रोटी सफ़ेद रह जाती है तो उसे कच्चा माना जाता है और हम उसे नहीं खाते.इसीतरह जब रोटी जलकर काली हो जाती है तो उसे भी नहीं खाया जाता लेकिन जो रोटी ठीक ठाक चिट लगी होती है तो उसको सभी चाव के साथ खाते हैं.दरअसल हम भारतीय लोग इस बीच वाली रोटी की तरह हैं बिलकुल संतुलित.....अब दुःख की बात यह है कि स्वामी विवेकानंद जैसे तमाम विद्वान चाहकर भी विदेशियों के दिमाग में हम भारतियों को लेकर बने भेदभाव को नहीं मिटा पाए.यही कारण है कि यदि यूरोप का एक ऑक्टोपस विश्व कप फुटबाल की भविष्वाणी करता है तो दुनिया भर का मीडिया और सेलिब्रिटी उसके मुरीद हो जाते हैं जबकि यही काम हमारा हीरामन तोता सदियों से कर रहा है तो उसे पोंगा-पंडित,रुढिवादिता और पोंगापंथी जैसे तमाम विशेषणों से नवाज़ा जाता है.यहाँ तक कि आज भी वे भारत को तांत्रिकों ,बाबा-बैरागियों और गंवारों का देश मानते हैं.क्...

धोनी के घोड़े से एक्सक्लूसिव बातचीत

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भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी के विवाह ने मीडिया जगत में हडकंप मचा दिया है.पत्रकारों और बाईट वीरों(इलेक्ट्रानिक मीडिया) को लग रहा है कि इतना बड़ा स्कूप उनसे छूट कैसे गया?टेस्ट से लेकर वनडे और २०-२० तक में धोनी का धमाल तो समझ में आता है पर शादी में भी उनका खेल दिखाना मीडिया को हजम नहीं हो रहा है.न्यूज़ चैनलों में होड़ मची है कि कौन धोनी के बारे में अन्दर तक की खबरें निकाल पाता है.इसलिए कोई अभिनेत्री विपाशा बासु के घर शादी का जश्न मनवा रहा है तो कोई नृत्य निर्देशक फरहा खान को शादी में भेज रहा है? ये बिचारे रोज इस बात से इन्कार कर रहे है. ऐसे ही एक बाईट वीर 'एक्सक्लूसिव' के चक्कर में उस घोड़े तक पहुँच गए जिसपर बैठकर धोनी ने विवाह रचाया था(हालाँकि कई पत्रकार घोड़े को नकली बता रहे हैं उनका कहना है कि असली घोडा तो विवाह के बाद से घोडा बिरादरी को छोड़कर गायब है.) बाईटवीर ने घोड़े वाले की बजाय सीधे घोड़े से बात कर उसकी पहली प्रतिक्रिया अपने चैनल पर चलाने और उसकी फीलिंग जानने का फैसला किया.पेश हैं बाईट वीर और घोड़े के बीच सवाल-जवाब: बाईट वीर:कैसा लग रहा है धोनी को अपने ऊपर ब...