सर्दियों की धूप...।

 सर्दियों की धूप...।

सर्दियों की धूप

होती है कुछ अलग सी

बिल्कुल मां बाप के आशीष सी

कम मांगों

तो ज्यादा मिल जाती है।


मुट्ठी भर धूप की 

तमन्ना की तो

अंजुरी भर गयी

और भरनी चाही अँजुरी

तो पूरे आँचल में समा गयी।


सर्दियों की धूप

होती है कुछ अलग सी

बिल्कुल मां बाप के आशीष सी।


गर रूठ गयी धूप 

समा गई बादलों के आगोश में

फिर तरसाती है

तड़फाती है

सर्दियों की धूप

बिल्कुल मां बाप के आशीष सी।


मां बाप रुठे

तो रूठ जाती है किस्मत

गर उठ गया आशीष का साया

तो थम सा जाता है

दुआओं का काफ़िला।


न बचता है मुट्ठी भर

न अँजुरी भर

और न ही आँचल भर

आशीष

बिल्कुल सर्दियों की धूप

की तरह


ज़रूरी है सहेजना

धूप भी, आशीष भी

ताकि 

जब न रहें दोनों

फिर भी

महसूस हो गरमाहट

धूप की, आशीष की

दिन भर-जीवन भर।।


सर्दियों की धूप...।

टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

कुछ तो अलग था हमारे वेद में .....!

भारत में महिलाएं कैसे करेंगी पुरुषों के “टायलट” पर कब्ज़ा

बाबा का भ्रम या वास्तव में बरम...!!!