हंगामा है क्यों बरपा..शादी ही तो की है!!
दरअसल,हिमाचल प्रदेश में हाटी समुदाय के दो भाइयों द्वारा एक ही लड़की के साथ विवाह करने के मामले ने ऐसा तूल पकड़ा कि देश तो देश, विदेशी मीडिया हाउस भी इसमें दिलचस्पी दिखाने लगे। सामान्य रूप से सामाजिक परंपराओं के लिहाज से यह विवाह अलग और अनूठा भी है लेकिन उस क्षेत्र और समुदाय के लिए सामान्य बात है।
यही वजह है कि जब मीडिया ने उस गांव या समुदाय के लोगों से इस विवाह पर प्रतिक्रिया मांगी तो अधिकतर का यही उत्तर था कि इसमें नई बात क्या है? इनका कहना गलत भी नहीं है क्योंकि उस समुदाय और उस क्षेत्र के लिए यह वर्षों पुरानी सामान्य परंपरा है। वैसे तो यह वाकया हिमाचल प्रदेश में सिरमौर जिले के शिलाई इलाके का था लेकिन सिरमौर क्या, किन्नौर और लाहौल-स्पीति सहित कई जिलों में विभिन्न समुदायों में बहुपति या बहु पत्नी जैसी प्रथाएं पीढ़ियों से चली आ रही हैं।
यदि हम देश के तमाम राज्यों में खासतौर पर आदिवासी और पारंपरिक संस्कारों के पोषक समाज में प्रचलित संस्कृतियों को देखें तो आज उन्हें जानकार हमें अचरज ही होगा मसलन मध्यप्रदेश में भील आदिवासियों में दूल्हे को ससुराल में रखने वाली घर जंवाई प्रथा, अपनी पसंद का जीवन साथी चुनने की नाता प्रथा, विवाह पूर्व यौन संबंध वाली लामसेना प्रथा जैसी तमाम परंपराएं प्रचलित हैं।
वहीं, इसी प्रदेश के झाबुआ जिले का भगोरिया मेला युवक युवतियों के जीवन साथी चुनने की आजादी के लिए विख्यात है। मणिपुर में मैतेई समाज में लुंहोंगबा प्रथा आज भी चलन में है इसमें लड़का अपनी पसंद की लड़की को समाज और परिवार की स्वीकृति से भगाकर ले जाता है और फिर उनकी सहमति के आधार पर परिवार उनकी शादी कर देता है। वहीं,ढूकु विवाह प्रथा में लड़का लड़की आज के लिव इन की तरह साथ रहने लगते हैं, बाद में समाज कुछ जुर्माना लगाकर उनके विवाह को स्वीकृति देता है।
जहां तक बहुपति (Polyandry) प्रथा का प्रश्न है तो विभिन्न अध्ययनों से पता चलता है कि उत्तराखंड के कुछ समुदायों, दक्षिण भारत के नीलगिरी के टोडा आदिवादियों और त्रावनकोर के नांजनाद समाज में,केरल के नायर और थियास समाज में यह परंपरा प्रचलित रही है। मुस्लिम समाज में बहु पत्नी (polygamy) प्रथा तो सामान्य बात है।
अब बात हिमाचल प्रदेश के उस बहुचर्चित विवाह और वहां की परंपराओं की, तो बहुपति प्रथा यहां सिरमौर, किन्नौर और लाहौल-स्पीति में सामान्य बात है। ताजा मामला सिरमौर जिले के हाटी समुदाय का है। हाटी समुदाय अपनी विशिष्ट सामाजिक और सांस्कृतिक पहचान के लिए जाना जाता है।
हम सभी जानते हैं कि बहुपति प्रथा का सबसे उल्लेखनीय प्रसंग महाभारत में है जिसमें द्रौपदी का विवाह पांच पांडव भाइयों से हुआ था। हाटी समुदाय में भी बहु पति प्रथा को जोड़ीदारां या द्रौपदी प्रथा जैसे विभिन्न नामों से नाम से जाना जाता है।
स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, यह प्रथा पांडवों की परंपरा से ही प्रेरित है। उल्लेखनीय बात यह है कि हाटी समुदाय में बहुपति प्रथा मुख्य रूप से भाइयों के बीच सामूहिक विवाह की प्रणाली है, जहां एक महिला कई भाइयों (आमतौर पर सगे भाइयों) की साझा पत्नी होती है।
हाटी समुदाय में बहुपति प्रथा के पीछे कई सामाजिक और आर्थिक कारक हैं मसलन पहाड़ी भूभाग और सीमित उपजाऊ भूमि के कारण परिवारों के लिए संपत्ति का बंटवारा चुनौतीपूर्ण है। बहुपति प्रथा के माध्यम से, परिवार की संपत्ति और भूमि एक इकाई के रूप में बनी रहती है, जिससे आर्थिक स्थिरता बनी रहती है।
इसी तरह, इस प्रथा से भाइयों के बीच एकता और सहयोग बना रहता है। परिवार के सभी पुरुष सदस्य एक साथ मिलकर खेती, पशुपालन, और अन्य आर्थिक गतिविधियों में योगदान देते हैं। हाटी समुदाय के लोगों का कहना है कि यह प्रथा परिवार और समुदाय की संरचना को मजबूत करती है।
हिमाचल के वरिष्ठ पत्रकार और हाटी समुदाय के प्रवक्ता रमेश सिंगटा बताते हैं कि हमारे समुदाय में बहुपति प्रथा में एक महिला का विवाह एक परिवार के सभी भाइयों से होता है, चाहे उनकी संख्या दो हो या अधिक। विवाह के बाद, पत्नी परिवार की सामूहिक जिम्मेदारी बनती है। बच्चों को सभी भाइयों की साझा संतान माना जाता है, और सबसे बड़े भाई को सामान्यतः पिता के रूप में स्वीकार किया जाता है।
इस प्रथा में पत्नी को परिवार में सम्मानजनक स्थान प्राप्त होता है, और वह घरेलू निर्णयों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इस प्रथा में कुछ नियम और परंपराएं भी हैं, जैसे कि भाइयों के बीच समय का बंटवारा और पारस्परिक सहमति। जो यह सुनिश्चित करता है कि परिवार में सामंजस्य बना रहे।
हाटी समुदाय की अनुमानित जनसंख्या लगभग 2 लाख है जो हिमाचल के सैकड़ों गांवों और करीब डेढ़ सौ से ज्यादा पंचायतों में फैली है। यहां तकरीबन हर गांव और परिवार में बहुपति प्रथा के तहत विवाह हुआ है और वे पीढ़ियों से मिल जुलकर सहज भाव से रह रहे हैं। हाल में सिरमौर जिले में दो भाइयों प्रदीप और कपिल नेगी द्वारा सुनीता नामक युवती से धूमधाम से किए गए विवाह ने भले ही बहुपति प्रथा को पुनः चर्चा में ला दिया है लेकिन इससे उलट हकीकत यह है कि आधुनिकता, शिक्षा, और शहरीकरण के प्रभाव से हाटी समुदाय में भी बहुपति प्रथा धीरे-धीरे कम हो रही है।
युवा पीढ़ी, विशेष रूप से शिक्षित युवा, इस प्रथा को अपनाने में कम रुचि दिखा रहे हैं। इसका कारण व्यक्तिगत स्वतंत्रता और एकल विवाह की अवधारणा के साथ साथ नई पीढ़ी की खेती के अलावा अन्य पेशों में रुचि बढ़ना भी है। इससे संपत्ति के बंटवारे की आवश्यकता भी कम हो रही है।
हाटी समुदाय की बहुपति प्रथा हालांकि सामुदायिक एकता और संसाधनों के संरक्षण पर आधारित है लेकिन यह प्रथा आधुनिक समाज में कई सामाजिक और कानूनी सवाल भी उठाती है, विशेष रूप से लैंगिक समानता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के संदर्भ में। कुछ आलोचकों का मानना है कि यह प्रथा महिलाओं की स्वायत्तता को सीमित करती है, जबकि समुदाय के भीतर इसे एक सहमति-आधारित व्यवस्था के रूप में देखा जाता है।
वैसे इस प्रथा को समझने के लिए हमें इसे केवल आधुनिक और कानूनी दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि इसके ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संदर्भ में भी देखना होगा तभी हम इसके सभी पहलुओं को समझ सकते हैं।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें