'वर्क फ्रॉम होम' से रचा इतिहास और लिख दी भरोसे की नई इबारत

आकाशवाणी के समाचार सेवा प्रभाग के राज्य संवाददाता के तौर पर हमारे पास नेशनल न्यूज़ रुम से केवल खबरों और वॉयस ओवर के लिए ही फोन आते हैं लेकिन यदि आकाशवाणी समाचार की प्रमुख महानिदेशक का फोन आए तो चौंकना लाज़िमी है और संदेशा भी ऐसा कि ‘आप तत्काल प्रभाव से प्रादेशिक समाचार एकांश (आरएनयू), भोपाल का प्रसारण 14 दिन के लिए बंद कर दिए दीजिए और अपनी पूरी टीम के साथ क्वारंटाइन हो जाइए.....’।

वैसे तो किसी भी कार्यालय और कर्मचारियों के लिए बिन मांगे एक पखवाड़े की छुट्टी मिलना लाटरी निकलने जैसा था लेकिन हुआ उल्टा....हमारे न्यूज़ रूम में मुर्दैनी सी छा गयी,सभी के चेहरे लटक गए और मुझे लगा कि ज्यादा बात की तो दिन रात धुंआधार समाचार बनाने-टाइप करने-पढने वाली हमारी टीम के कई सदस्य रो पड़ेंगे...।

आखिर जब प्रदेश के लोगों को सबसे ज्यादा हमारी और आकाशवाणी से प्रसारित होने वाले विश्वसनीय समाचारों की जरूरत थी तब यदि हम चुपचाप घर बैठ जाएँ तो ये हमारे काम और सबसे ज्यादा हमारे साथ सालों से जुड़े श्रोताओं के साथ नाइंसाफी होगी और एक तरह का धोखा होगा।  मैंने जून 2018 में भोपाल में राज्य संवाददाता के साथ साथ एकांश प्रमुख का कार्यभार संभाला था जबकि डीजी के आदेश वाली यह बात है साल 2000 में मार्च के आखिरी हफ्ते की, तब कोविड-19 महज एक बीमारी नहीं बल्कि खौफ़ था, साक्षात् यमराज से साक्षात्कार के समान था और एक ऐसा डर था जिसने आम लोगों, समाज, प्रदेश और देश को हिलाकर रख दिया था। 

भय तो आज भी है लेकिन अब हम इस बीमारी से निपटने में सक्षम हैं और हमारे पास बेहतरीन चिकित्सा सुविधाओं के साथ साथ कोविड वैक्सीन भी हैं। अब भारत ही नहीं दुनिया भर में कोरोना संक्रमण से निपटने के तमाम तरीके तैयार कर लिए गए हैं लेकिन तब बस लॉक डाउन ही एक सहारा था और आज की नवजवान पीढ़ी के साथ पहले की कई पीढ़ियों को भी महीनों के ऐतिहासिक लॉक डाउन से रूबरू होना पड़ा था। 

याद कीजिये, किसी शहर-कालोनी में एक भी कोरोना संक्रमित मिल जाता था तो पूरा इलाक़ा सील कर पुलिस का सघन पहरा बिठा दिया जाता था और जानकारी के अभाव में लोग उस इलाके के आसपास से निकलने से भी डरते थे क्योंकि तब संक्रमण को खतरनाक और छूत की बीमारी जैसा समझा जाता था।  ये वो दौर था, जब सैनेटाइजर किसी चमत्कारी जड़ी-बूटी और मास्क हमारी कारों में लगे एयर बैग से ज्यादा सुरक्षा देने वाले कवच बन रहे थे और अफवाहों, भ्रम फैलाने वाली ख़बरों और अनजाने डर से भयभीत आम लोगों को सत्य, बिना मिलावट के और सौ टका विश्वसनीय समाचारों की सबसे ज्यादा जरुरत थी तब आकाशवाणी के नियमित समाचार बुलेटिन को बंद करना मतलब अफवाहों और सोशल मीडिया पर फ़ैल रही भ्रामक जानकारियों को बढ़ावा देने जैसा था। इसलिए, ऊपर से मिले आदेश के बाद भी हम समाचार बुलेटिन बंद कर आराम से घर बैठ जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे। 

वैसे भी बतौर स्टेट कॉरेस्पॉन्डेंट मेरी यह अनिवार्य ड्यूटी थी कि रेडियो के श्रोताओं तक सही जानकारी पहुंचाकर उनका भ्रम और डर दोनों दूर करूं।    वैसे, दुनिया की इस सबसे बड़ी आपदा के समय भी नियमित समाचारों का प्रसारण बंद कर घर बैठ जाने की इस हिदायत के पीछे भी एक रोचक (तब डरावनी) कहानी है। एक ऐसी गाथा जिसने आकाशवाणी ही नहीं बल्कि भोपाल-प्रदेश और देश के तमाम समाचार पत्र समूहों और न्यूज़ चैनलों को हिला डाला था। 

 दरअसल मध्यप्रदेश में तत्कालीन सत्तारूढ़ कांग्रेस सरकार के मुखिया कमलनाथ ने बहुमत खो देने के कारण अपनी 15 माह पुरानी सरकार के इस्तीफे की जानकारी देने के लिए मुख्यमंत्री निवास पर पत्रकारों को आमंत्रित किया था। इस सबसे बड़ी और राज्य की राजनीति में बदलाव लाने वाली खबर की पल पल की जानकारी हासिल करने के लिए प्रदेश और देश के मीडिया समूहों का प्रतिनिधित्व करने वाले 200 से ज्यादा पत्रकार मुख्यमंत्री निवास में जुटे थे। 

खबर मिलने, छपने और सरकार बदलने तक तो सब ठीक था लेकिन उसके दो-तीन दिन बाद आई जानकारी ने मीडिया जगत में भूचाल ला दिया और दूसरों की नींद उड़ाने वाले पत्रकारों की भी कई दिनों तक नींद उड़ी रही।  हुआ यह कि पत्रकार वार्ता के बाद पता चला कि वहां मौजूद एक पत्रकार साथी में कोरोना संक्रमण की पुष्टि हुई है। जैसा मैंने ऊपर लिखा है कि तब कोरोना किसी भूत या काल जैसा था।  ये पत्रकार साथी भोपाल के उन शुरूआती लोगों में शामिल थे जो इस संक्रमण का शिकार बने।

  ....बस फिर क्या था आनन फानन में पत्रकार होम क्वारंटाइन होने लगे और जांच कराने लगे। यह खबर टेलीविजन चैनलों और हवा के घोड़े पर सवार सोशल मीडिया के जरिये हमारे दिल्ली स्थित मुख्यालय तक भी पहुँच गयी और हमें यह बताना पड़ा कि मुख्यमंत्री निवास की उस पत्रकार वार्ता में हमारे एक समाचार सहयोगी भी थे। हालाँकि कोरोना संक्रमण की यह जानकारी सामने आने के बाद बाकी पत्रकारों की तरह वे भी होम क्वारंटाइन में चले गए थे, लेकिन लगभग हफ्ते भर तक हमारे समाचार विभाग की पूरी टीम और लगभग पूरा स्टाफ उनके संपर्क में रहा इसलिए प्रशासन के नियमों, सलाह और मुख्यालय के निर्देश पर सभी को 14 दिन के लिए घरों में अलग थलग कैद होना अनिवार्य था । 

ऐसी सूरत में एक ही रास्ता था कि भोपाल से समाचारों का प्रसारण 14 दिन के लिए बंद कर दिया जाए और यही हम सभी नहीं चाहते थे।  ऐसे में रास्ता क्या था और इतना समय भी नहीं था कि सोच विचारकर फैसला लिया जाए क्योंकि आकाशवाणी के प्राइमरी चैनल के साथ साथ विविध भारती जैसे लोकप्रिय चैनल पर दिन में तीन बार समाचारों का लाइव प्रसारण और एफएम चैनल पर घंटे भर के अन्तराल में हेडलाइन्स का प्रसारण तो करना ही था। कुछ देर की ‘ब्रेन स्टार्मिंग’, अपनी जिम्मेदारी का अहसास और आकाशवाणी भोपाल के उस समय के प्रमुख धर्मेन्द्र कुमार श्रीवास्तव के आगे बढ़कर दिए गए तकनीकी सहयोग ने हमें ‘आपदा में अवसर’ तलाशने और ‘संकट में समाधान’ ढूंढने का हौंसला दिया और फिर हमने उस शुरुआत को अंजाम दिया जो बाद में ‘वर्क फ्राम होम’ के नाम से हर ऑफिस और हर कंपनी का मंत्र बन गया।    

खास बात यह है कि आकाशवाणी भोपाल ही नहीं बल्कि पूरे आकाशवाणी नेटवर्क के लिए यह पहली, अनूठी,अभिनव और नई शुरुआत थी.. मतलब हम लोगों के पास एक तरह से सरकारी क्षेत्र में नयी शुरुआत का, इतिहास रचने का अवसर था और हमने यह कर भी दिखाया। कारपोरेट सेक्टर में तो वर्क फ्राम होम आसान है लेकिन आकाशवाणी में लाइव समाचार प्रसारण में इसे आजमाना न केवल जोखिम भरा था बल्कि ‘बूमरैंग’ का ख़तरा भी था और इससे आपदा में अवसर के स्थान पर आपदा में हादसे में बदलने की आशंका भी थी । 

 आकाशवाणी भोपाल से समाचारों के प्रसारण में  'वर्क फ्रॉम होम'  का मतलब था कि संपादक अपने घर में रहकर बुलेटिन बनाएं, समाचार वाचक अपने घर में रहकर उस तैयार बुलेटिन को लाइव पढ़े और श्यामला हिल्स स्थित आकाशवाणी भोपाल के स्टूडियो से उसका लाइव प्रसारण किया जाए। समाचार बुलेटिन के लिए खबरों का चयन, संपादन, टाइपिंग, संयोजन, हेडलाइन का चयन जैसे कामों के लिए हमने कार्यालय के अल्पविकसित लैपटाप और रेंगते इंटरनेट के साथ काम शुरू किया। 

समयाभाव में यह भी संभव नहीं था कि मेरी संपादित खबरों को कोई और देख ले या मैं ही किसी और की खबरों को मुख्य संपादक या समाचार प्रमुख के नाते प्रसारण के पहले उन समाचारों की समीक्षा और संशोधन कर सकूं। इसके अलावा, राज्य संवाददाता के तौर पर दिल्ली के समाचारों के लिए दिन भर खुराक उपलब्ध कराना तो अनिवार्य था ही क्योंकि कोरोना संक्रमण ने उनके न्यूज़ स्त्रोत भी सुखा दिए थे । वैसे घर से समाचारों के लाइव प्रसारण का यह काम इतना आसान नहीं था जितना अब पढ़ने में लग रहा है क्योंकि आकाशवाणी में समय की पाबंदी और विश्वसनीयता दो अनिवार्य पाबंदियां हैं और जरा सी चूक किए कराए पर पानी फेर सकती थी। 

समाचार वाचक के लिए घर बैठकर समय की पाबंदी का ख्याल रखना आसान नहीं था और मेरे लिए संवाददाता-सह समाचार संपादक-सह आरएनयू हेड की तिहरी जिम्मेदारी के साथ यह समन्वय और भी दुष्कर क्योंकि दिल्ली स्थित आकाशवाणी के नेशनल न्यूज़ रुम के पास भी खबरों का संकट था और हम संवाददाता उनके एकमात्र संकट मोचक थे। 

वैसे भी, मध्यप्रदेश न केवल बड़ा राज्य है बल्कि खबरों का गढ़ भी है इसलिए बतौर मध्यप्रदेश संवाददाता दायित्व और भी बढ़ गया था। पहले इंदौर में आरएनयू और अलग संवाददाता होने के कारण जिम्मेदारी आधी हो जाती थी लेकिन इंदौर ऑफिस बंद होने के बाद तो यह जिम्मेदारी और खासकर कोविड काल में काम तो कई गुना बढ़ गया था।   

खैर, हमने अपने पूरे अनुभव, साख और टीम भावना का इस्तेमाल कर घर से समाचारों का प्रसारण शुरू किया और पहली ही बुलेटिन की फूल प्रूफ सफलता ने कमाल कर दिया। फिर क्या था हमारी समाचार वाचक संयुक्ता बैनर्जी और दीपा सिंह ने अपनी सधी  आवाज,स्पष्ट उच्चारण और कल कल बहते झरने जैसे अंदाज में वर्क फ्राम होम को ऐसा अपनाया कि श्रोताओं तो क्या आकाशवाणी के अन्य सहयोगियों को भी पता नहीं चल पाया कि समाचारों का प्रसारण कहां से हो रहा है।  

जब हमने समाचार प्रेषण, संपादन, प्रस्तुतीकरण का यह नया अंदाज पेश किया तो जमकर सराहना भी मिली। प्रदेश के मीडिया ने जमकर आशीष लुटाया तो आकाशवाणी मुख्यालय ने भी इसे हाथों हाथ लिया। आरएनयू भोपाल के इन प्रयासों की समाचार सेवा प्रभाग की तत्कालीन प्रमुख महानिदेशक और प्रसार भारती के सीईओ ने भी जमकर सराहना की है। उन्होंने ट्वीट के जरिये इसे देश भर में न केवल प्रचारित किया बल्कि प्रसार भारती ने इस पर बाकायदा एक वीडियो बनवाकर भोपाल के प्रयासों को सोशल मीडिया में साझा करते हुए इसे समाचार प्रसारण का ‘भोपाल मॉडल’ नाम दे दिया। 

यह नाम और काम इतना चर्चित हुआ कि अनेक आरएनयू के साथियों ने मदद मांगी और तत्कालीन सूचना और प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने तो मंत्रालय की मीडिया इकाइयों से संवाद के दौरान सबसे पहले यही पूछा कि भोपाल वाले यहां हैं न?   मुझे 2014 से लेकर 2025 तक करीब 11 साल तक लगातार संवाददाता और राज्य संवाददाता का दायित्व संभालने का मौका मिला। इसमें लगभग चार साल असम के सिलचर की दुर्गम परिस्थितियों में और सात साल देश के हृदय स्थल मध्यप्रदेश में। असम में स्थानीय भाषा की अज्ञानता और दुष्कर परिस्थितियों ने रास्ता मुश्किल बनाया तो मैंने स्थानीय पत्रकारों से मित्रता कर इसे सहज कर लिया। 

रिपोर्टिंग के इन ग्यारह सालों में से भी करीब सात साल संवाददाता के साथ साथ समाचार एकांश के प्रमुख की जिम्मेदारी भी शामिल रही। असम में कार्यकाल के दौरान बंगलादेश से लगी सीमा पर स्थित बराक घाटी से बेहतर समाचार प्रेषण और प्रबंधन के लिए हमें ‘देश के सर्वश्रेष्ठ समाचार एकांश’ का सम्मान भी मिला और तत्कालीन उप राष्ट्रपति डॉ हामिद अंसारी के साथ ईस्ट अफ्रीकी देशों की यात्रा के कवरेज का स्वर्णिम अवसर भी। इस यात्रा के खट्टे मीठे और अनूठे अनुभवों पर मैने ‘चार देश चालीस कहानियां’ नामक पुस्तक भी लिखी है और उसे पाठकों के साथ साथ वरिष्ठ अधिकारियों की सराहना भी मिली। इस पुस्तक में अनजान देशों में  सांस्कृतिक संघर्ष, विकास की पहल, स्वच्छता के प्रयास और खाने पीने के अनुभवों पर कई दिलचस्प किस्से हैं। 

इसी तरह, भोपाल में बेहतर रिपोर्टिंग के कारण  मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ जापान में जी 20 देशों के सम्मेलन को कवर करने का अवसर मिला। भोपाल से दिल्ली, फिर हांगकांग और ओसाका तक की अविस्मरणीय यात्रा और कवरेज का अनुभव वाकई परिपक्व बनाने वाला रहा। फिर तो देश के तकरीबन हर राज्य में चुनाव कवरेज,संसदीय एवं विधानसभा रिपोर्टिंग और भारत में हुए जी 20 सम्मेलन के कवरेज की टीम का मैं अनिवार्य हिस्सा बन गया..और राज्य संवाददाता का दर्जा एक तरह से राष्ट्रीय संवाददाता का हो गया।  इस दौरान यह भी पता चला कि आकाशवाणी को भले ही एक तबका ‘डाइंग मीडियम’ कह रहा हो लेकिन समाचारों का प्रभाव इतना ज्यादा है कि हमारी अच्छी रिपोर्ट पर आज भी देश भर से फोन आ जाते हैं और किसी त्रुटि पर शिकायतों का अंबार लग जाता है। 

एक रिपोर्ट में गणेश चतुर्थी पर ऐच्छिक अवकाश को गलती से अवकाश कह देने पर उसकी पुष्टि के लिए इतने फोन आ गए थे कि कान दर्द करने लगा और फोन करने/ करवाने वालों में कलेक्टर, प्राचार्य और कई उच्च पदस्थ लोग थे। इसी तरह जब  मैने आकाशवाणी भोपाल के समाचारों में हर रविवार को सकारात्मक समाचारों पर केंद्रित ‘अच्छी खबर’ नामक नया प्रयोग किया तो खूब वाहवाही मिली और प्रसार भारती से अनेक पुरस्कार भी। संवाददाता के रूप में मेरे एक अन्य प्रयास ‘मध्यप्रदेश में महात्मा’ को तो देश भर में आकाशवाणी में हुईं अभिनव पहल में सबसे पहला स्थान मिला। इसमें महात्मा गांधी की मध्यप्रदेश की यात्राओं की रोचक अंदाज में रिपोर्टिंग की गई थी । फिर तो  समान नागरिक संहिता पर ‘जानना जरूरी है’, देश एवं प्रदेश के चुनावों पर ‘आपका वोट आपका फैसला’ और समसामयिक कार्यक्रम ‘सुखियों में’ जैसे समाचार कवरेज आधारित सेगमेंट ने हमारी लोकप्रियता को नई ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया।  

कुल मिलाकर आकाशवाणी के साथ एक दशक से ज्यादा का यह सफर उपलब्धियों, नई शुरुआत और सराहना से सराबोर रहा। इस दौरान इतना कुछ देखने, सीखने, लिखने के साथ साथ कवरेज के अवसर मिले कि उन पर कई किताबें लिखी जा सकती हैं। मैं, अपने अनुभव के आधार पर दावे से यह बात कह सकता हूं कि यदि आप सूचना और प्रसारण मंत्रालय की सूचना सेवा के अधिकारी हैं और आपने यदि आकाशवाणी में संवाददाता का दायित्व नहीं निभाया तो समझिए आपने इस सरकारी सेवा का एक स्वर्णिम अवसर खो दिया।

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