शनिवार, 19 मार्च 2011

आप हुरियारे हैं या हत्यारे!


आप होली की अलमस्ती में डूबने वाले हुरियारे हैं या फिर हत्यारे,यह सवाल सुनकर चौंक गए न?दरअसल सवाल भी आपको चौकाने या कहिये आपकी गलतियों का अहसास दिलाने के लिए ही किया गया है.त्योहारों के नाम पर हम बहुत कुछ ऐसा करते हैं जो नहीं करना चाहिए और फिर होली तो है ही आज़ादी,स्वछंदता और उपद्रव को परंपरा के नाम पर अंजाम देने का पर्व.होली पर मस्ती में डूबे लोग बस “बुरा न मानो होली है” कहकर अपनी ज़िम्मेदारी से मुक्त हो जाते हैं पर वे ये नहीं सोचते कि उनका त्यौहार का यह उत्साह देश,समाज और प्रकृति पर कितना भारी पड़ रहा है.साल–दर-साल हम बेखौफ़,बिना किसी शर्मिन्दिगी और गैर जिम्मेदाराना रवैये के साथ यही करते आ रहे हैं.हमें अहसास भी नहीं है कि हम अपनी मस्ती और परम्पराओं को गलत परिभाषित करने के नाम पर कितना कुछ गवां चुके हैं?..अगर अभी भी नहीं सुधरे तो शायद कुछ खोने लायक भी नहीं बचेंगे.
अब बात अपनी गलतियों या सीधे शब्दों में कहा जाए तो अपराधों की-हम हर साल होलिका दहन करते हैं और फिर उत्साह से होली की परिक्रमा,नया अनाज डालना,उपले डालने जैसी तमाम परम्पराओं का पालन करते हैं पर शायद ही कभी हम में से किसी ने भी यह सोचा होगा कि इस परंपरा के नाम पर कितने पेड़ों की बलि चढा दी जाती है.पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि अमूमन एक होली जलाने में डेढ़ से दो वृक्षों की जरुरत होती है तो सोचिये देश भर में होने वाले करोड़ों होलिका दहन में हम कितनी भारी तादाद में पेड़ों को जला देते हैं.यहाँ बात सिर्फ पेड़ जलाने भर की नहीं है बल्कि उस एक पेड़ के साथ हम जन्म-जन्मांतर तक मिलने वाली शुद्ध वायु,आक्सीजन,फूल,फल,बीज,जड़ी बूटियाँ,नए पेड़ों के जन्म सहित कई जाने-अनजाने फायदों को नष्ट जला देते हैं.इसके अलावा उस पेड़ के जलने से वातावरण में कार्बन डाईआक्साइड जैसी विषैली गैसों की मात्रा बढ़ा लेते हैं.होली जलने से दिल्ली सहित देश के सभी नगरों-महानगरों का पहले से ही प्रदूषित वातावरण और भी ज़हरीला हो जाता है.इससे सांस एवं त्वचा की बीमारियों सहित कई रोग होने लगते हैं.
यह तो महज प्राकृतिक नुकसान है आम लोगों को होने वाला शारीरिक और भावनात्मक नुकसान तो और भी ज्यादा होता है.सरकारी तौर पर प्रतिबन्ध के बाद भी हम राह चलते लोगों पर रंग भरे गुब्बारे(बैलून) फेंकते हैं और ऐसा करने में अपने बच्चों का उत्साह भी बढ़ाते हैं.यहाँ तक की गुब्बारे भी हम ही तो लाकर देते हैं.इन गुब्बारों से कई बार वाहन चलाते लोग गिर कर जान गवां देते हैं,आँख पर बैलून लगने से देखने की क्षमता,कान पर लगने से बहरापन और अनेक बार सदमे में हृदयाघात तक हो जाता है.होली पर रासायनिक रंगों के इस्तेमाल से त्वचा पर संक्रमण,जलन,घाव हो जाना तो आम बात है.इसके अलावा इन रंगों के उपयोग से वर्षों पुराने सम्बन्ध तक खराब हो जाते हैं और रंग छुड़ाने में हर साल देश का लाखों लीटर पानी बर्बाद होता है सो अलग.बूंद-बूंद पानी को तरस रहे लोगों-खेतों के लिए यह पानी अमृत के समान है जिसे हम अपने एक दिन के आनंद के लिए फिजूल बहा देते हैं.यह प्राकृतिक संसाधनों की हत्या नहीं तो क्या है?
होली पर शराब का सेवन अब फैशन बन चुका है.होली ही क्या अब तो लोग दिवाली जैसे त्योहारों पर भी शराब को सबसे महत्पूर्ण मानने लगे हैं.होली पर शराब पीकर हम अपनी जान तो ज़ोखिम में डालते ही हैं सड़क पर चलने वाले अन्य लोगों की जान के लिए भी ख़तरा बने रहते हैं.नशे में की गई कई गलतियाँ जीवन भर का दर्द बन जाती हैं.इससे रिश्तों पर असर पड़ता है और सार्वजानिक रूप से हमारी और हमारे परिवार की छवि भी बिगड़ती है.अब सोचिये महज एक दिन के आनंद के लिए मानव और प्राकृतिक संसाधनों को नुकसान पहचाना,अपनी प्रतिष्ठा को दांव पर लगाना और अपनी एवं अपने करीबी लोगों की जान गंवाना कहाँ तक उचित है?अब आप ही तय कीजिये कि आप हुरियारे हैं या हत्यारे?

8 टिप्‍पणियां:

  1. होली पर शराब का सेवन अब फैशन बन चुका है.होली ही क्या अब तो लोग दिवाली जैसे त्योहारों पर भी शराब को सबसे महत्पूर्ण मानने लगे हैं.होली पर शराब पीकर हम अपनी जान तो ज़ोखिम में डालते ही हैं सड़क पर चलने वाले अन्य लोगों की जान के लिए भी ख़तरा बने रहते हैं.नशे में की गई कई गलतियाँ जीवन भर का दर्द बन जाती हैं.इससे रिश्तों पर असर पड़ता है और सार्वजानिक रूप से हमारी और हमारे परिवार की छवि भी बिगड़ती है.अब सोचिये महज एक दिन के आनंद के लिए मानव और प्राकृतिक संसाधनों को नुकसान पहचाना,अपनी प्रतिष्ठा को दांव पर लगाना और अपनी एवं अपने करीबी लोगों की जान गंवाना कहाँ तक उचित है?अब आप ही तय कीजिये कि आप हुरियारे हैं या हत्यारे?

    bahut sahi kaha-----
    jai baba banaras.

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  2. आपके विचारों से पूर्णतः सहमत... होली की हार्दिक शुभकामनाये

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  3. आपको परिवार सहित होली की बहुत-बहुत मुबारकबाद... हार्दिक शुभकामनाएँ!

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  4. जो भी आपका नाम है ... हुजूरे आला.... क्या आपको ये भी नहीं पता की होलिका दहन के लिए वृक्षो को काटकर सुखाकर नहीं जालाया जाता बल्कि टूटी हुयी सुखी लकड़ियो को इकठ्ठा करके जलाया जाता है....और ये बताओ क्या वृक्ष सिर्फ होलिका दहन के लिए ही काटे जाते है और किसी काम के लिए नहीं क्या?...पूरे साल फेक्टरियों के लिए, या बसावट के लिए या अन्य कार्य के लिए जो लाखो करोड़ो वृक्षा काटे जाते है उनके लिए तो आपके मुंह से दो शब्द नहीं निकले.....होली की सुखी लकड़िया दिल पर इतनी ठेस पाहुचा गयी?....दुनिया भर की फेकटारिया जो दिन भर धुया छोडती है ....ये गाड़िया शायद आप भी बैठकर उड़ती होंगी...दिन भर रात भर धुया उड़ाती है ... इनसे प्रदूषण नहीं होता ...सिर्फ होलिका दहन की वजह से ही तो ओज़ोन परत नष्ट होने के कगार पर है ?....कितनी मूर्खता की बाते की है आपने .... शराब क्या सिर्फ होली वाले दिन ही पीते है लोग?...बाकी के 394 दिन किसी भी गाँव या शहर के ठेके के आगे जाके देख लीजिएगा भीड़ ही मिलेगी ....ईद वाले दिन क्या शराब नहीं बिकती ? लेकिन बस सेकुलर होने का तमगा तभी तो मिलेगा न जब हिन्दुओ या हिन्दुओ से संबन्धित किसी चीज का दुसप्रचार करोगे..... ईद वाले दिन जब करोड़ो निरमूक असहाय बकरो को काटकर भून कर खाकर उनकी अंतड़िया सड़कों पर फेंक दी जाती है .....उससे कुछ नहीं होता.... उसके बारे में दो शब्द मुंह से नहीं निकलेंगे आपके से । .... वृक्षो को होली के लिए काटे या न काटे....आपको आपत्ति है ....पर त्योहार के नाम पर एक दिन मे ही करोड़ो बकरे कट जाये उससे कोई आपत्ति नहीं है आपको.... इसे दोगलापन कहते है

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  5. सोच देखो इनकी कितनी विकृत और निष्कृष्ट है .... लेख इस तरह से लिख दिया है ...मानो सारा प्रदूषण,दुर्घटनाए,अत्याचार,बलात्कार,शराब-सेवन सिर्फ होली वाले दिन ही होता है..... बाकी तो और दिन कुछ होता ही नहीं है ..... ईद वाले दिन हॅप्पी ईद हॅप्पी ईद कहकर बिरियानी गटकने वाले धूर्त पाखंडी दोगले लोग हिन्दुओ को या उनके त्योहारो को बदनाम करने के लिए इतने गिर जाते है ....इस तरह से दिखाया है मानो समस्त पापाचार,दुराचार की जड़ सिर्फ ये त्योहार वाला दिन ही है ......मुसलमानो से पूछा तुमने कभी ....की "ए मुसलमानो तुम ईदवारे हो या हत्यारे "....... होली वाले दिन कितनी हतयाए होती है ? इतनी तो साल के अन्य डीनो मे भी होती रहती है ....पर ईद वाले दिन तो प्रत्यक्ष करोड़ो निरमूक जीवो की हत्या कर दी जाती है ....उस बारे में नहीं लिखोगे कुछ...... शर्म करो कुछ

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  6. क्या हुआ बुद्धिजीवी लेखिका जी.....मेरा पहला कमेंट हटा क्यो दिया ???? शर्म आ गयी क्या खुद पर..... ??? हा शर्म ही आई होगी..... ऐसी निष्कृष्ट सोच गर्व करने लायक तो हो नहीं सकती ...

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  7. आपसे किसने कह दिया की वृक्ष काटे जाते है होली वाले दिन ? अथवा वृक्ष काटकर उन्हे सुखाकर होलिका दहन किया जाता है ? .... कुछ लिखने से पहले जानकारी भी प्राप्त कर लिया करो न ..... टूटी हुयी सुखी लकड़िया खरीदकर होलिका दहन किया जाता है .....विशेषतः होलिका दहन के लिए वृक्ष काटकर काही भी लकड़िया सुखाई नहीं जाती है ....आपने तो ऐसे कहा जैसे सारे वृक्ष होली की वजह से ही काट दिये जाते है ...बाकी जो फेकटरी बनाने के लिए ...बसावट के लिए पूरे साल वृक्षो को काटा जाता है .....उस बारे मे तो दो शब्द नहीं इलखे आपने..... शराब क्या सिर्फ होली वाले दिन ही बिकती है ....बाकी दिन लोग नहीं पीते क्या......किसी भी शहर या गाँव के किसी भी ठेके को कभी भी जाकर निहार लीजिएगा..भीड़ ही मिलेगी .....पर आपने तो लेख सिर्फ और सिर्फ शांति ,प्रेम ,उल्लास और हर्ष के एक त्योहार को बदनाम करने के लिए ,और अपनी निष्कृष्ट सोच का एक बलिस्थ नमूना पेश करने के लिए ये लेख लिख डाला है .... इस तरह से लिखा है जैसे सारी दुर्घटनाए,हतयाए,बलात्कार,चोरी ,डाकेतिया,शराब-सेवन,,,सिर्फ होली के कारण होता है अथवा होली वाले दिन ही होता है ..... ईद वाले दिन जो करोड़ो बकरो को काटकर या हत्या कर ...अंतड़िया सड़कों पर फेक दी जाती है ...आपकी नजरो में वो हत्या या प्रदूषण कुछ भी नहीं है क्या????...... सिर्फ और सिर्फ दोगलापन भरा है इस लेख मे..... दोहरी परवर्ती...शर्म करो कुछ

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