बुधवार, 9 जून 2010

दिल तो बच्चा है जी....


महानायक अमिताभ बच्चन की फिल्म ‘लावारिस’ का एक गाना “मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम है” अस्सी के दशक में काफी लोकप्रिय हुआ था. इस गाने की लाइन कुछ इस तरह थी कि ‘जिसकी बीबी छोटी उसका भी बड़ा नाम है,गोद में उठा लो, बच्चे का क्या काम है..’इस गाने ने उस दौरान छोटे कद की महिलाओं के साथ-साथ उनके पतियों को भी हँसी का पात्र बना दिया था चूँकि इस गाने में सभी कद-रंग-लम्बाई-चौड़ाई के लोगों का मजाक उड़ाया गया था इसलिए कोई किसी को दोष नहीं दे पाया और यह गाना बुराई की बजाय हंसने-हँसाने का जरिया बन कर रह गया, लेकिन अब नाटे कद के लोगों पर हुए एक शोध में हुए खुलासे ने इसी गाने को कुछ इसतरह कर दिया है कि “जिसकी बीबी छोटी उसका तो बुरा हाल है” क्योंकि शोध से पता चला है कि छोटे कद के लोगों में दिल की बीमारी होने और इस बीमारी से मरने का खतरा ज्यादा रहता है.
वैसे दिल की बीमारी के कद से संबंध पर शोध की शुरुआत 1951 में हुए थी. तब से अब तक इस विषय पर 52 अध्ययन व लगभग दो हज़ार शोध पत्र प्रकाशित हो चुके हैं. फिनलैड की यूनिवर्सिटी ऑफ तामपेरे के फॉरेंसिक मेडिसिन के शोधकर्ताओं ने इन्ही शोधों के निष्कर्ष के आधार पर एक रिपोर्ट तैयार की है। शोधकर्ताओं ने 30,12,747 लोगों पर हुए शोध का परिणाम निकालने के लिए लोगों को दो श्रेणियों में बांटा. इसके तहत छोटे कद की श्रेणी में 165.4 सेंटीमीटर से छोटे पुरुषों और 153 सेमी से छोटी महिलाओं को रखा गया.इसीतरह 177.5 सेमी से लंबे पुरुष और 166.4 सेमी से ऊँची महिलाओं को दूसरी श्रेणी में रखा गया। दोनों के तुलनात्मक अध्ययन में छोटे कद वाले समूह में दिल संबंधी बीमारियां 1.5 गुना ज्यादा पाई गई। छोटे कद वाले पुरुषों में दिल की बीमारियों से मरने का खतरा लंबे कद के पुरुषों के मुकाबले 37 फीसद ज्यादा पाया गया.जबकि छोटे कद की महिलाओं में यह खतरा ऊँची महिलाओं के मुकाबले 55 फीसदी अधिक पाया गया।
वैसे अध्ययनों में यह भी पाया गया है कि छोटे कद या सामान्य बोलचाल की भाषा में कहें तो नाटे लोग मानसिक रूप से हीन भावना का शिकार होते हैं. मनोवैज्ञानिक भी तमाम शोधों के जरिये इस बात को समझाते रहे हैं कि व्यक्तित्व की कमियां इंसान को कमजोर बना देती हैं लेकिन यह बात भी उतनी ही सत्य है कि यदि व्यक्ति ठान ले तो शरीर की कोई भी कमजोरी उसके विकास में बाधा नहीं बन सकती.किसी शायर ने ठीक ही फ़रमाया है कि-

“ मैं तो छोटा हूँ झुका लूँगा सर को अपने

पहले सब बड़े तय कर लें, बड़ा कौन है”

.

मंगलवार, 8 जून 2010

आप भी दे सकते हैं कसाब को फांसी

पढकर आश्चर्य में न पड़े ...यह बिलकुल सच बात है कि आप भी मुंबई (Mumbai )को घंटों तक बंधक बनाने वाले और अनेक निर्दोष लोगों के हत्यारे आतंकवादी कसाब(kasab) को फांसी दे सकते हैं और वह भी मनचाही बार, मतलब एक-दो नहीं बल्कि दसियों बार आप कसाब को फांसी पर लटकते हुए देख सकते हैं. कसाब को सार्वजनिक रूप से फांसी की सजा पाते देखना हर भारतीय की ख्वाहिश है. कसाब ही क्या, संसद पर हमले के मामले में जेल में बंद अफज़ल गुरु सहित उन तमाम देशद्रोहियों और नापाक इरादे रखने वाले आतंकवादियों को उनके गुनाहों की सजा हर हाल में और जल्द से जल्द मिलनी ही चाहिए इस बात पर दो राय हो ही नहीं सकती.
पर समस्या यह है कि सरकार भी क्या इन दोषियों को हमारी ही तरह फटाफट सजा देने की इच्छुक है? अभी तक की कवायद और प्रतिक्रिया से तो यह नहीं लगता कि हम भारतीयों की यह तमन्ना आसानी से पूरी हो पायेगी. सरकार भी बेचारी क्या करे? न तो उसके पास पूर्ण बहुमत है और न ऐसा कर पाने की इच्छाशक्ति. उसे अंतरराष्ट्रीय संबंधों के साथ-साथ देश के घरेलू हालातों (सरल शब्दों में वोट बैंक) का ध्यान भी रखना पड़ेगा.आखिर फिर से चुनाव जो लड़ना है. तो क्या हम इसी तरह हाथ पर हाथ रखकर बस इंतज़ार करते रहेंगे....नहीं अब ऐसा करने की कोई ज़रूरत नहीं है और न ही अपने मंसूबों को दबाने की क्योंकि हम-आप सब कसाब को फांसी दे सकते हैं और वह भी अपने समय,जगह और इच्छा के मुताबिक. तो चलो अब इस सस्पेंस को ख़त्म किया जाये दरअसल ऑनलाइन बाज़ार में इन दिनों "हेंग कसाब" नामक एक खेल धूम मचा रहा है इसमें खेलने वालों को निर्धारित अवधि में कसाब को मनमानी बार फांसी की सजा देने का अवसर मिलता है.
इस खेल की नींव भी गुस्से के इज़हार को लेकर ही पड़ी है, जब एक कम्पनी ने सुना कि कसाब को फांसी देने के लिए ज़ल्लाद नहीं मिल रहा है और भारत के लोग उसे जल्द से जल्द सजा पाते देखना चाहते हैं तो उसने इस खेल का इज़ाद कर दिया ताकि आम लोग कसाब को मारकर अपने गुस्से को निकाल सकें और अपनी ऊर्जा को देश के रचनात्मक कामों में लगा सके. तो चलिए सरकार भलेहि डिप्लोमेसी में उलझी रहे हम तो कसाब को बार-बार फांसी पर लटकाकर अपने कलेजे को ठंडा कर ही लें....

सोमवार, 7 जून 2010

चीअर्स...दिल्ली के बिअर बाजो...चीअर्स

मशहूर और कालजयी फिल्म 'शोले' में याद है अभिनेता धर्मेन्द्र पानी की टंकी पर चढ़कर सुसाइड-सुसाइड चिल्लाते हैं और अरे रामगढ वालों जैसा चर्चित डायलोग बोलते हैं.वैसे इस पोस्ट का शोले से कोई सम्बन्ध नहीं है बस शीर्षक को शोले के डायलोग जैसा बनाने की कोशिश की है.हाँ एक समानता ज़रूर है कि धर्मेन्द्र ने शराब पीकर वह सीन किया था और हमारे दिल्ली वाले बिअर पीकर रिकॉर्ड बना रहे हैं.हालाँकि दिल्ली वाले अपने कारनामो के चलते दुनिया और खासतौर पर देश में खूब नाम कमाते रहते हैं. कभी संसद पर हमले के कारण तो कभी बीएमडव्लू जैसी कारों को आम आदमी पर चढ़ाकर और कभी मतदान के दौरान वोट न डालकर.इसके बाद भी बढ़-चढ़कर बोलने में किसी से पीछे नहीं रहते.
अब दिल्ली वालों ने बिअर पीने का नया रिकॉर्ड बनाया है. वे मात्र एक माह में १५ लाख क्रेट से ज्यादा बिअर डकार गए.सरकारी आंकड़ों के मुताबिक मई के महीने में दिल्ली के लोगों ने १५,२२,८२९ क्रेट बिअर पी.अब माय के शौकीनों को यह बताने कि ज़रूरत नहीं है कि एक क्रेट में १२ बोतलें आती हैं.तो ज़रा ऊपर कि संख्या को १२ से गुणा करके देखिये की बिअर पीने में हम राजधानी वालों ने पानी पीने वालों को भी पीछे छोड़ दिया है. वैसे यह कोई पहला मौका नहीं है जब दिल्ली के बिअरबाजो ने एसा रिकॉर्ड बनाया है.इसके पहले अप्रैल के महीने में भी वे १४.८ लाख क्रेट बिअर पी गए थे. यह बात अलग है कि मई में उन्होंने अप्रैल से ३० गुणा ज्यादा बिअर पी हैऔर यह अब तक का सबसे बड़ा रिकॉर्ड है.वैसे बिअर पीने के लिए दिल्ली वालों को दोषी ठहराना उचित नहीं है क्यूंकि जब पारा हमेशा ४६ डिग्री के पार रहेगा और बिजली ज़्यादातर गुल रहेगी तो आदमी बिअर न पिए तो क्या करे!
वैसे कई बिअर बाजों का कहना है कि वे नशे के लिए नहीं बल्कि बिअर को दवाई के तौर पर पीते हैं. उनका कहना है कि बिअर पीने से किडनी का स्टोन(पथरी) ठीक हो जाती है.बिअरबाजों का दावा है कि बिअर से पथरी घुल जाती है. यह बात अलग है कि डॉक्टर इस बात को गलत बताते हैं.डॉक्टरों का तो यहाँ तक कहना है कि बिअर ज्यादा पीने से स्टोन की सम्भावना और भी ज्यादा बढ़ जाती है.अब हुम क्या कहे क्यूंकि पीने वालों को तो पीने का बहाना चाहिए.....

अलौलिक के साथ आधुनिक बनती अयोध्या

कहि न जाइ कछु नगर बिभूती।  जनु एतनिअ बिरंचि करतूती॥ सब बिधि सब पुर लोग सुखारी। रामचंद मुख चंदु निहारी॥ तुलसीदास जी ने लिखा है कि अयोध्या नगर...