मंगलवार, 20 फ़रवरी 2024

भारतीय पराक्रम की स्वर्णिम गाथा है… ‘विजय दिवस’

सोलह दिसंबर दुनिया के इतिहास के पन्नों पर भले ही महज एक तारीख हो लेकिन भारत,पाकिस्तान और बांग्लादेश के इतिहास में यह तारीख कहीं स्वर्णिम तो कहीं काले हर्फो में दर्ज है। भारत में यह तारीख विजय की आभा में दमक रही है तो बांग्लादेश के लिए तो यह जन्मतिथि है । पाकिस्तान के लिए जरूर यह दिन काला अध्याय है क्योंकि इसी दिन उसका एक बड़ा हिस्सा पूर्वी पाकिस्तान से बांग्लादेश बन गया था। वैसे भी,पाकिस्तान के लिए यह दिन किसी बुरे सपने से कम नहीं था क्योंकि उसकी हजारों सैनिकों को सर झुकाकर भारत की सरपरस्ती में इतिहास की सबसे बड़ी पराजय स्वीकार करनी पड़ी थी। 

इतिहास के पन्नों में दर्ज निर्णायक तारीख जरूर 16 दिसंबर 1971 है, लेकिन पाकिस्तान की कारगुजारियों ने उसकी नींव कई साल पहले डाल दी थी । जब उसकी सेना के अत्याचारों से कराह रहे पूर्वी पाकिस्तान के लोगों ने मदद के लिए भारत से गुहार लगाना शुरू कर दिया था। आखिर, तत्कालीन भारत सरकार को हस्तक्षेप करना पड़ा और फिर भारतीय सैनिकों के शौर्य और पराक्रम का स्वर्णिम पन्ना ‘विजय दिवस’ के नाम से इतिहास में दर्ज हो गया ।

16 दिसंबर 1971 को ढाका में पाकिस्तान की ओर से पूर्वी मोर्चे पर कमान संभाल रहे लेफ्टिनेंट जनरल अमीर अब्दुल्ला खान नियाजी ने भारतीय सेना के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा और हजारों उत्साही लोगों की भीड़ के समक्ष आत्मसमर्पण के दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर किए। हस्ताक्षर के बाद जनरल नियाजी ने अपनी रिवाल्वर जनरल अरोड़ा को सौंपकर पराजय स्वीकार कर ली। इस ऐतिहासिक अवसर पर बांग्लादेश सशस्त्र बल के डिप्टी कमांडर-इन-चीफ एयर कमोडोर ए के खांडकर और भारत की पूर्वी कमान के लेफ्टिनेंट जनरल जे एफ आर जैकब ने आत्मसमर्पण के गवाह की भूमिका निभाई जबकि पाकिस्तान की ओर से तो उसकी सेना के सर झुकाए 90 हजार सैनिक इस पराजय के साक्षी थे।

भारतीय सेनाओं के अदम्य साहस, वीरता, बलिदान और पराक्रम के लिए दुनिया के सैन्य इतिहास की इस अमिट तिथि को हर साल विजय दिवस के रूप में याद किया जाता है। इस दिन ऐतिहासिक युद्ध में जीत हासिल करने वाले भारतीय सैनिकों को देशभर में विनम्र श्रद्धांजलि दी जाती है। इन कार्यक्रमों में प्रधानमंत्री,मुख्यमंत्री सहित देश और प्रदेश की शीर्ष हस्तियां भी शामिल होती हैं। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोशल मीडिया पर लिखा 'विजय दिवस पर, हम उन सभी बहादुर नायकों को हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं जिन्होंने 1971 में निर्णायक जीत सुनिश्चित करते हुए कर्तव्यनिष्ठा से भारत की सेवा की. उनकी वीरता और समर्पण राष्ट्र के लिए अत्यंत गौरव का स्रोत है. उनका बलिदान और अटूट भावना हमेशा लोगों के दिलों और हमारे देश के इतिहास में अंकित रहेगी. भारत उनके साहस को सलाम करता है और उनकी अदम्य भावना को याद करता है.' इस साल,रक्षा राज्य मंत्री अजय भट्ट ने नई दिल्ली में विजय दिवस के अवसर पर राष्ट्रीय युद्ध स्मारक पर श्रद्धांजलि अर्पित की। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और अन्य लोगों के साथ नई दिल्ली में आर्मी हाउस में विजय दिवस की पूर्व संध्या पर 'एट होम' रिसेप्शन में शामिल हुईं।

आइए, अब एक नजर इस विजय दिवस की पृष्ठभूमि पर डालते हैं। दरअसल,भारत से बेमेल विभाजन के बाद बने पाकिस्तान में पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान के बीच कभी भी एका नहीं रहा और पश्चिमी पाकिस्तान के प्रभुत्व वाले शासकों ने बंगाली बहुल पूर्वी हिस्से को दबाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। यह खाई जब और चौड़ी हो गई तब 1970 के दौरान हुए आम चुनावों में तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में शेख मुजीबुर रहमान की अवामी लीग पार्टी को जबरदस्त समर्थन मिला और उसने सरकार बनाने का दावा किया, लेकिन पाकिस्तानी हुकूमत को यह बर्दाश्त नहीं हुआ कि उसकी नाफरमानी करने वाली कोई पार्टी वहां सत्ता संभाले। 

इसलिए जुल्फिकार अली भुट्टो के नेतृत्व वाली पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी की सरकार ने येन केन प्रकारेण इस बात के प्रयास शुरू कर दिए कि अवामी लीग को सत्ता न मिले। अपने षड्यंत्र को पूरा करने के लिए उसने सेना को भी मोर्चे पर लगा दिया। पर्याप्त जनसमर्थन के बाद भी सत्ता से दूर रखने की साजिश का अवामी लीग ने राजनीतिक स्तर पर विरोध किया और इससे पूर्वी पाकिस्तान में हालात खराब होते चले गए। लोकतंत्र की आवाज़ को दबाने के लिए पाकिस्तान सरकार ने अवामी लीग के नेता शेख मुजीबुर रहमान को गिरफ्तार कर लिया गया. इस कदम से विरोध हिंसक हो गया और पाकिस्तान के दोनों हिस्सों पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान में हालात बेकाबू होने लगे। पूर्वी पाकिस्तान में हालात बद से बदतर होने के कारण बड़ी संख्या में वहां से शरणार्थी भारत आने लगे।

भारत ने मानवीय आधार पर शरणार्थियों को हरसंभव सहायता प्रदान की। भारत की ओर से मदद देने से पाकिस्तान बौखला गया और उसने भारत को आंख दिखाते हुए हमले करने की धमकियां देना शुरू कर दिया. अपने बिगड़ते अंदरूनी हालात के कारण पाकिस्तानी शासक वास्तव में अपनी सुध बुध खो बैठे और उन्होंने परिणामों और अपने हित अहित की चिंता किए बगैर 3 दिसंबर 1971 को भारत के कई शहरों पर हमला कर दिया. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आधी रात को देश के नाम संबोधन में  पाकिस्तान की ओर से किए गए हमले की जानकारी देते हुए अपनी ओर से भी युद्ध  का ऐलान कर दिया। भारत-पाकिस्तान युद्ध करीब 13 दिन तक चला और 16 दिसंबर को भारत की ऐतिहासिक जीत और बंगलादेश के निर्माण के साथ समाप्त हुआ। युद्ध के समापन पर  93 हजार पाकिस्तानी सैनिकों ने भारतीय सेनाओं के समकक्ष आत्मसमर्पण कर दिया था। इस युद्ध में भारत ने पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी. इस दौरान  करीब 3 हजार 900 भारतीय सैनिकों को अपना सर्वोच्च बलिदान देना पड़ा। पाकिस्तान का तो अंतर राष्ट्रीय बिरादरी के सामने न केवल सर झुका बल्कि उसे भारी नुकसान उठाना पड़ा । 

पाकिस्तान के साथ इस युद्ध में विजयश्री का वरण करने के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पूर्वी पाकिस्तान को एक नया राष्ट्र बनाने का एलान किया, जिससे बांग्लादेश का जन्म हुआ. इस युद्ध में भारतीय सैनिकों ने साबित कर दिया कि परम पराक्रमी होने के बाद भी भारतीय नीति के पालन करते हुए कभी भी किसी देश पर हमला नहीं करते लेकिन यदि किसी देश ने गलत इरादों और दुश्मनी की मंशा से भारत पर हमला किया तो वे मुंहतोड़ जवाब देने में सक्षम हैं ।



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