मंगलवार, 20 फ़रवरी 2024

राम के भाल पर भास्कर

अवधपुरी सोहइ एहि भाँती। प्रभुहि मिलन आई जनु राती॥

देखि भानु जनु मन सकुचानी। तदपि बनी संध्या अनुमानी॥

राम के जन्म के बाद अवधपुरी ऐसे सुशोभित हो रही जैसे मानो रात्रि प्रभु से मिलने आई हो और सूर्य को देख सकुचा गई हो. इस तरह मन में विचारकर वह संध्या बन गई.

अयोध्या में भगवान श्री राम मंदिर निर्माण की भव्यता से दुनिया अचंभित है। मंदिर की शैली से लेकर इसकी दिव्यता की चर्चाएं हो रही हैं। वैसे तो मंदिर विशिष्ट और विविधाओं से परिपूर्ण है लेकिन राम मंदिर की एक अनूठी विशेषता इसका सूर्य तिलक तंत्र है, जिसे इस तरह से डिजाइन किया गया है कि हर वर्ष श्रीराम नवमी के दिन दोपहर 12 बजे लगभग 6 मिनट के लिए सूर्य की किरणें भगवान राम की मूर्ति के माथे पर पड़ेंगी। उन्होंने कहा कि राम नवमी हिंदू कैलेंडर के पहले महीने के नौवें दिन मनाई जाती है। यह आमतौर पर मार्च-अप्रैल में आती है, जो भगवान विष्णु के सातवें अवतार भगवान राम के जन्मदिन का प्रतीक है।

भगवान श्रीराम को सूर्य तिलक में भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान, बेंगलुरु ने सूर्य पथ पर तकनीकी सहायता प्रदान की और ऑप्टिका, बेंगलुरु लेंस और पीतल ट्यूब के निर्माण में शामिल है। सूर्य तिलक के लिए गियर बॉक्स और परावर्तक दर्पण और लेंस की व्यवस्था इस तरह की गई है कि तीसरी मंजिल से सूर्य की किरणें सूर्य पथ का पालन करते हुए भौतिकी के सिद्धांतों के अनुरूप गर्भ गृह तक पहुंचे।

एक और विशेषता यह है कि राम मंदिर के निर्माण में कहीं भी सीमेंट और लोहे का उपयोग नहीं किया गया है। 3 मंजिला मंदिर का संरचनात्मक डिजाइन भूकंप प्रतिरोधी बनाया गया है और यह 2,500 वर्षों तक रिक्टर पैमाने पर 8 तीव्रता के मजबूत भूकम्पीय झटकों को बर्दाश्‍त कर सकता है।

राम मंदिर के निर्माण में वास्तुकार से लेकर निर्माण कंपनी तक की तो सर्वत्र खूब चर्चा हो रही है लेकिन कुछ ऐसे सरकारी संस्थान भी हैं जिन्होंने बिना किसी प्रचार प्रसार के अहम भूमिका निभाई है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद - सीएसआईआर और विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग-डीएसटी के कम से कम चार प्रमुख राष्ट्रीय संस्थानों द्वारा तकनीकी रूप से सहायता प्रदान की गई है। इसके अलावा, इसरो और आईआईटी जैसे नामी संस्थानों ने भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इन केंद्रीय संस्थानों में भवन अनुसंधान संस्थान- सीबीआरआ रूड़की, राष्ट्रीय भूभौतिकीय अनुसंधान संस्थान-एनजीआरआई हैदराबाद, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स- आईआईए बेंगलुरु और इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन बायोरिसोर्स टेक्नोलॉजी- आईएचबीटी पालमपुर,हिमाचल प्रदेश शामिल हैं।

सीबीआरआई रूड़की ने राम मंदिर निर्माण में प्रमुख योगदान दिया है जबकि एनजीआरआई हैदराबाद ने नींव डिजाइन और भूकंपीय सुरक्षा पर महत्वपूर्ण इनपुट दिए हैं। इसी प्रकार आईआईए बेंगलुरु ने सूर्य तिलक के लिए सूर्य पथ पर तकनीकी सहायता प्रदान की और आईएचबीटी पालमपुर ने 22 जनवरी को अयोध्या में दिव्य राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह के लिए ट्यूलिप खिलाए ।

सबसे दर्शनीय काम  हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में स्थित आईएचबीटी ने किया है।इस संस्थान ने अयोध्या में बेमौसम में भी ट्यूलिप खिला दिए हैं। आमतौर पर इस मौसम में ट्यूलिप में फूल नहीं आते। यह केवल जम्मू-कश्मीर और कुछ अन्य ऊंचे हिमालयी क्षेत्रों में ही उगता है और वह भी केवल वसंत ऋतु में। लेकिन इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन बायोरिसोर्स टेक्नोलॉजी ने हाल ही में एक स्वदेशी तकनीकी विकसित की है, जिसके माध्यम से ट्यूलिप को उसके मौसम का इंतजार किए बिना पूरे वर्ष उपलब्ध कराया जा सकता है। वैसे, राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान-एनबीआरआई, लखनऊ ने भी ‘एनबीआरआई नमोह 108’नाम से कमल की एक नई किस्म विकसित की है। कमल की यह किस्म - नमोह 108- मार्च से दिसंबर तक खिलती है ।

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