मंगलवार, 5 नवंबर 2019

इस सोच के साथ कैसे करेंगे हम जापान की बराबरी..!!

जापान जैसा मैंने जाना-4

क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि बढ़िया सूट-बूट पहने कोई व्यक्ति साइकिल चला रहा हो या कोई महिला साल-दो साल के बच्चे को लेकर साइकिल पर बाज़ार करने या ऑफिस जाने को निकली हो,वो भी बेखौफ-बिंदास-बेझिझक!..हमारे देश में कोई ऐसा करेगा तो शायद दूसरे दिन अख़बारों में उसकी फोटो छप जाए लेकिन जापान में यह आम बात है. ओसाका,जहाँ जी-20 देशों का शिखर सम्मेलन हुआ था,वहां बड़ी संख्या में महिला/पुरुष/युवा/बच्चे सभी बड़े आराम से साइकिल पर घूमते नजर आते थे और वहां के लोगों से बातचीत में पता चला कि पूरे जापान में साइकिल के प्रति इसीतरह का प्रेम है.
न गाड़ियों की कर्कश चिल्लपों, न बेतहाशा भागते लोग एवं वाहन और न ही रेड लाइट पर हमारे जैसी चीख-पुकार...सब कुछ सुकून/शांति/आराम और सम्मान से....सम्मान पैदल यात्रियों का और सम्मान साइकिल सवारों का. जापान साइकिल की सवारी के मामले में भले ही दुनिया मे नीदरलैंड,डेनमार्क और जर्मनी जैसे देशों से पीछे हो लेकिन शायद हम से बहुत आगे है. हमारे देश में दुनिया भर में कुल साइकिल उत्पादन का 10 फीसदी हिस्सा बनता है लेकिन साइकिल चलाना हमें गंवारा नहीं है. जापान के सिर्फ ओसाका शहर में ही 10 लाख से ज्यादा साइकिल हैं जबकि आबादी हमारे भोपाल जैसी ही मतलब 18-20 लाख के आसपास है. यदि हम ओसाका की तुलना भोपाल से करें तो साइकिल को लेकर मानसिकता साफ़ जाहिर हो जाती है. भोपाल में साइकिल चलाने के लिए आम लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए स्मार्ट साइकिल सर्विस शुरू की गयी थी. अब तक इसके लिए महज 65 हजार लोगों ने ही रजिस्ट्रेशन कराया है और प्रतिदिन औसतन 1200 लोग ही साइकिल चलाते हैं. वैसे इसमें निजी तौर पर साइकिल चलाने वालों की संख्या शामिल नहीं है लेकिन वो भी कितनी होगी? दरअसल साईकिल चलाने के लिए मानसिकता चाहिए और हमारे यहाँ तो साइकिल गरीबी की पहचान है. अब भले ही मोटापे से मुक्ति,तोंद से छुटकारे और डाक्टर की सलाह पर मन मारकर साइकिल चलाने लगे हैं लेकिन वे भी बस पार्क या घर के आसपास तक ही सीमित हैं तभी तो जब कोई सांसद/विधायक साइकिल पर संसद/विधानसभा पहुँच जाता है तो वह खबर बन जाता है जबकि जापान जैसे देशों में यह सामान्य बात है.
जापान में हर व्यक्ति दिनभर में औसतन 15 प्रतिशत यात्राएँ साइकिल से ही करता है और यक़ीनन जापानियों की छरहरी काया का राज भी यही है। ओसाका में मुझे तो कोई तोंद वाला और बेढब काया वाली महिला नज़र नहीं आयी। अब आप कह सकते हैं सूमो पहलवान भी तो जापानी हैं लेकिन वह एक अलग नस्ल है और यहां हम जापान के सामान्य लोगों की बात कर रहे हैं। हाल के वर्षों में यहां 10 लाख से अधिक बाइक(साइकिल) हर साल बेची जाती हैं। जापान में मोटरसाइकिलों के विकल्प के रूप में साइकिल का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। बहुत सारे लोग ट्रेन स्टेशनों पर सवारी करने के लिए उनका उपयोग करते हैं। आजकल अधिक से अधिक जापानी ट्रैफिक जाम और भीड़ वाली ट्रेनों से बचने के लिए साइकिल चला रहे हैं। हर जगह साइकिल खड़ी करने के लिए बाकायदा साईकिल स्टैंड बने हुए हैं- माल में,ऑफिसों में,आम बाज़ारों में,फुटपाथ पर,बस स्टाप पर सभी जगह आधुनिक साइकिल स्टैंड हैं. लोग नियम से साइकिल पार्क करते हैं और ज़ेबरा क्रासिंग पर लोग लालबत्ती होने का इंतजार नहीं करते बल्कि साइकिल और पैदल यात्रियों को सुकून और शांति से निकलने देते हैं. वाहनों की लाइन होने के बाद भी कोई हार्न बजा-बजाकर पूरे इलाक़े को सर पर नहीं उठाता बल्कि आगे बढ़ने के लिए चुपचाप अपनी बारी का इंतज़ार करता है।
...और अंत में सबसे सुखद अहसास..यहाँ लड़कियां और महिलाएं अपने मन मुताबिक कपड़े पहनकर मन चाहे समय तक पैदल और साइकिल पर घूमती हैं लेकिन उन पर कोई फब्ती नहीं कसता,कोई आंख फाड़ फाड़कर नहीं देखता,कपड़ों की आड़ लेकर कोई बलात्कार नहीं करता और उन्हें नारीत्व को लेकर कोई शर्म का अहसास नहीं कराता...बस यहीं हम बहुत पीछे हैं और शायद कभी जापान की बराबरी भी न कर पाएंगे।
#Japan #G20 #Osaka #Bicycle #Car #Cycle

जब पनीर समझकर सुअर सेंडविच खा गए एक बाईट-वीर...!!!

जापान जैसा मैंने जाना-3

जी-20 देशों के शिखर सम्मेलन को कवर करने जापान पहुंचे दुनियाभर के पत्रकारों के लिए ओसाका में बने इंटर-नेशनल मीडिया सेंटर में एप्पल सेंडविच और पाइन-एप्पल पेटिस पर हाथ साफ़ करते हुए हमारे एक पत्रकार साथी ने पनीर-क्रीम सेंडविच का बड़ा सा पीस मुंह में ठूंसते हुए कहा-बहुत ही जोरदार है,आप भी लीजिए! अपन ठहरे लकीर के फ़क़ीर...हर डिश को समझकर-पढ़कर खाने वाले,इसलिए उनकी सलाह पर अमल से पहले एक चक्कर लगाकर उस सेंडविच का नाम तलाशा तो उस पर जो लिखा था उसका मतलब पूछने पर पता चला कि वह सेंडविच सुअर के मांस की है!! अब उन पत्रकार मित्र का हाल मत पूछिये क्योंकि तब तक वे आधी से ज्यादा सेंडविच हलक से नीचे उतार चुके थे और अब न उगलते बन रहा था और न ही निगलते.
हालाँकि, इसमें उस बेचारे की भी कोई गलती नहीं थी क्योंकि यदि मैं आपसे कहूँ कि सुशी, साशिमी, टेम्पुरा,याकीतोरी,उडोन,सोबा,कैसेकी,सुकीआकी, सुकमोनो अचार और मिसो सूप...इन नामों को सुनकर कुछ समझ आया..तो आप भी आश्चर्य से पलकें झपकाते रह जाएंगे क्योंकि जब मुझे जापान जाने के बाद भी समझ नहीं आया तो आप खाली नाम पढ़कर कैसे समझ सकते हैं...चलिए इस पहेली को आसान बनाते हैं..दरअसल ये सभी नाम जापान के सबसे लोकप्रिय और लज़ीज़ व्यंजनों के हैं और बड़ी संख्या में तमाम देशों के लोग इनका स्वाद चखने के लिए जापान जाते हैं. जी-20 देशों के महारथियों को भी ये और इनके साथ दर्जनों अन्य व्यंजन परोसे गए थे. व्यंजन तो छोड़िये, दुनिया के इन सबसे ताकतवर मुल्कों के प्रतिनिधियों के लिए 100 से ज्यादा प्रकार के शेक,24 प्रकार की चाय, 8 प्रकार की काफ़ी, दर्जन भर से ज्यादा प्रकार की बीयर,17 प्रकार की वाइन,12 तरह के साफ्ट ड्रिंक,30 प्रकार की देशी मदिरा-शोचु परोसी गयी. शोचु गन्ना, शकरकंद, ज्वार,चावल जैसे कई अनाज और फलों से बनती है. तक़रीबन दौ सौ से ज्यादा व्यंजनों और ड्रिंक्स की सूची में मुझे बस चावल, दार्जिलिंग टी, आइस टी,काफ़ी जैसे कुछ नाम ही समझ आए.
वैसे, शायद कम ही लोग जानते होंगे कि जापानी भोजन दुनिया में काफी लोकप्रिय है और इसका कारण यह है कि पारंपरिक जापानी खाने में पाँच नियमों को ध्यान में रखकर विविधता और संतुलन पर जोर दिया जाता है। इन नियमों के अंतर्गत खाने में पांच रंगों (काला, सफेद, लाल, पीला और हरा), खाना पकाने की पांच तकनीकों (कच्चा भोजन, ग्रिलिंग, स्टीमिंग, उबालना और तलना) के साथ साथ पांच स्वाद (मीठा, मसालेदार, नमकीन, खट्टा और कड़वा) का खास ध्यान रखा जाता है। यहाँ तक कि सूप और चावल बनाते समय भी इन नियमों का पालन किया जाता है। इसके अलावा ताज़ी और उच्च गुणवत्ता वाली मौसमी कच्ची सामग्री का इस्तेमाल के साथ साथ नफ़ासत के साथ परोसने के कारण भी जापानी खान-पान के मुरीद बढ़ रहे हैं।
अब यदि आप हिन्दू वेजीटेरियन (जैसा कैथी पैसिफिक एयरलाइन्स में पूछा गया था) जैसे किसी खूंटे से नहीं बंधे हैं तो जापान में आपकी जीभ के लिए भरपूर गुंजाइश है जो मछली-मटन-चिकन से आगे बढ़कर सुअर,गाय और सी फूड में ऑक्टोपस-केंकड़े और कई प्रकार के कीड़े मकोड़े का भी स्वाद ले सकती है. ऐसा भी नहीं है कि शाकाहारियों के लिए जापान में भूखे मरने की नौबत आ सकती है क्योंकि ब्रेड-बटर तो सामान्य रूप से हर जगह उपलब्ध है. फिर तमाम नुडल्स,जूस,फल का आनंद भी लिया जा सकता है. अब तो अनेक भारतीय रेस्तरां यहाँ खुल गए हैं जो आपको भारतीय स्वाद में भारतीय खाना परोस रहे हैं और कई जापानी भी इस खाने के दीवाने हैं. यहाँ तक कि कुछ होटलों में पहले से बता दिया जाए तो जैन भोजन भी मिल जाता है इसलिए यदि जापान जाने का मन बना लिया है तो बेख़ौफ़ और बेझिझक जाइए क्योंकि दाल-चावल-रोटी तो घर में मिल ही जाती है लेकिन जब देश से बाहर आये हैं तो सुशी, साशिमी, टेम्पुरा,याकीतोरी का भी लुत्फ़ उठाया जाए क्योंकि ये सब थोड़ी हमारे देश में आसानी से मिलेंगे.
#G20 #Japan #FoodofJapan #Osaka #Sushi #Sashimi #Rice #DalChawal

आर यू सिंपल वेजीटेरियन या हिन्दू वेजीटेरियन?

जापान जैसा मैंने जाना-2

कैथी पैसिफिक एयरलाइन्स के विमान में खाना परोसते हुए एयर होस्टेस ने पूछा- यू आर वेजीटेरियन? मेरे हाँ कहते ही उसने तत्काल दूसरा सवाल दागा- विच टाइप आफ वेजीटेरियन....मीन्स सिंपल वेजीटेरियन या हिन्दू वेजीटेरियन? अपनी लगभग ढाई दशक की नौकरी में यह सवाल चौंकाने वाला था क्योंकि अब तक तो शाकाहारी का एक ही प्रकार अपने को ज्ञात था। अब शाकाहार भी हिन्दू-मुस्लिम टाइप होता है इसकी जानकारी जापान यात्रा के दौरान ही मिली। खैर मैंने बताया कि हिन्दू वेजीटेरियन तो उसने कहा कि आपको 20 मिनट इंतज़ार करना होगा क्योंकि मुझे आपके लिए खाना पकाना पड़ेगा ! अब सोचिए विदेशी विमान में कोई विदेशी व्योमबाला (एयर होस्टेस) कहे कि मैं आपके लिए खाना बनाकर लाती हूँ तो दिल में लड्डू फूटना स्वाभाविक है। लगभग 20-25 मिनट के इंतज़ार के बाद वह बटर में बघारी हुई खिचड़ी,चने की दाल और रोटी के नाम पर ब्रेड के टुकड़े लेकर हाज़िर हुई। उसने भरसक प्रयास किया था कि खाना स्वादिष्ट रहे और अपन ने भी दबाकर खा लिया ताकि उसे भी महसूस हो कि खाना स्वादिष्ट ही था।..खैर इस एक किस्से से यह तो साफ़ हो गया था कि जापान में शाकाहार के लिए संघर्ष करना पड़ेगा और दूसरा यह कि यात्रा पर रवानगी से पहले इष्ट मित्रों की बात सही लग रही थी जो उन्होंने अपने और अपनों के अनुभव के आधार पर बताई थी कि जापान में तुम्हें उपवास करना पड़ सकता है।
अब जब मैदान में कूद पड़े तो फिर जंग से क्या डरना इसलिए जो जैसा मिलेगा-काम चला लेंगे, के अंदाज़ में मन बना लिया...अब निश्चित ही आप सभी के मन में यह सवाल उछल रहे होंगे कि फिर वहां क्या खाया तो सबसे पहले तो सुन और जान लीजिए कि हमने वहां शाही पनीर, दाल मखनी, रसगुल्ला, गुलाब जामुन, खिचड़ी, सोन-पापड़ी, आलूबंडा, पोहा,उत्पम और इडली सहित वो सब कुछ खाया जो यहाँ भारत में खाने को मिलता है और उतना ही स्वादिष्ट क्योंकि...‘मोदी है तो मुमकिन है।’
जी हाँ,इसमें जरा भी गलत नहीं है क्योंकि जापान में प्रधानमंत्री श्री मोदी के कारण ही यह मुमकिन हुआ। दरअसल हमारे प्रधानमंत्री ठहरे हम से ज्यादा शाकाहारी इसलिए जापान की जिस होटल में हम लोग ठहते थे, उसने भारत से खासतौर पर रसोइए बुलाए थे और जब रसोइए भारतीय थे तो स्वाद भी भारतीय था और अंदाज़ भी, लेकिन जापान में खाने का मामला इतना सीधा भी नहीं था क्योंकि इस कहानी का दूसरा हिस्सा भी है जिसमें ज़रूर जापान में शाकाहारी खाने के संकट का अहसास होता है। दरअसल होटल में तो भारतीय रसोइए की मेहरबानी से शाकाहारी भोजन मिल गया लेकिन अंतरराष्ट्रीय मीडिया सेंटर में तो दुनियाभर के लोगों का ध्यान रखा गया था इसलिए वहां शाकाहार और विशेष तौर पर हिन्दू शाकाहार(!) कहीं पीछे रह गया। मीडिया सेंटर में अपना खाना तो दूर अपनी चाय (वही दूध-शक्कर और पत्ती की जुगलबंदी से भरपूर खौलने के बाद तैयार) के लिए भी तरसना पड़ा। वैसे तो जापान में वीआईपी मेहमानों को 24 प्रकार की चाय उपलब्ध थी जिसमें कई अबूझ नामों के बीच हमारी दार्जिलिंग चाय और आइस टी जैसे कुछ जाने माने नाम भी शामिल थे लेकिन वही अपनी असल कड़क-खौलती चाय नहीं थी। चाय के अलावा कॉफ़ी के भी दर्जन भर प्रकार थे जिनमें ओसाका के स्थानीय ब्रांड के अलावा ‘20 देशों के 20 दाने’(20 beans of 20 countries) जैसी उत्तम किस्म की कॉफ़ी भी थी लेकिन दिक्क़त यहाँ भी दूध की थी और बिना दूध के कड़वी कॉफ़ी को हलक से नीचे उतारना अपने लिए तो किसी सज़ा की तरह है। हालाँकि यहाँ कॉफ़ी के एक प्रकार कॉफ़ी लैटे ने मदद की क्योंकि इसमें पर्याप्त दूध होता है और इसतरह कुछ हद तक चाय- कॉफ़ी का संकट दूर हुआ।
अगली कड़ी में बात जापान के खान-पान की।

अलौलिक के साथ आधुनिक बनती अयोध्या

कहि न जाइ कछु नगर बिभूती।  जनु एतनिअ बिरंचि करतूती॥ सब बिधि सब पुर लोग सुखारी। रामचंद मुख चंदु निहारी॥ तुलसीदास जी ने लिखा है कि अयोध्या नगर...