बकरी...जो बिना पंखे और पलंग के नहीं सोती !!
चाहे मौसम कोई भी हो पर उसे पंखे के बिना नींद नहीं आती है
और सोना पलंग पर ही पसंद है परन्तु अगर चादर में सलवटें पड़ी हो या बिस्तर ठीक नहीं
हो तो वो पलंग पर सोना तो दूर चढ़ना भी पसंद नहीं करती। बच्चों को लेकर इसतरह के नखरे
हम-आप घर घर में सुनते रहते हैं लेकिन क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि हम यहाँ किसी
बच्चे की नहीं, बल्कि एक बकरी की बात कर रहे हैं।
आमतौर पर कुत्ते-बिल्लियों को उनके और उनके मालिकों के
अजीब-गरीब शौक के कारण जाना जाता है लेकिन सिलचर की एक बकरी के अपने अलग ही ठाठ हैं
और अच्छी बात यह है कि उसकी मालकिन भी उसके शौक पूरे करने में पीछे नहीं रहती। इस
बकरी का नाम ‘नशुबाला’ है और यह असम विश्वविद्यालय में सहायक प्राध्यापक दूर्बा देव
की है। खुद दूर्बा बताती हैं कि बिस्तर पर चढ़ने के पहले नशुबाला सिर उठाकर सीलिंग
फैन(पंखे) को देखना नहीं भूलती। यदि पंखा चल रहा है तो वो पलंग पर चढ़ जाएगी और यदि
बंद है तो तब तक नीचे बैठी रहेगी जब तक कि पंखा चालू न कर दिया जाए। इसके अलावा,
उसे बिस्तर भी साफ़-सुथरा चाहिए। यदि चादर अस्त-व्यस्त है तो उसे ठीक कराए बिना नशुबाला
को चैन नहीं मिलता। मजे की बात यह है कि वह दूर्बा के साथ उन्हीं के पलंग पर सोती
है और उसे मच्छरदानी के भीतर सोना पसंद नहीं है इसलिए दूर्बा रोज तीन तरफ से
मच्छरदानी बंद करती हैं लेकिन एक तरफ से खुली छोड़ देती हैं ताकि उनकी बकरी नशुबाला
आराम से सो सके ।
लगभग साढ़े तीन साल की यह बकरी उम्दा खानपान और देखभाल के
कारण कद काठी में अपनी उम्र से बड़ी ही नज़र आती है लेकिन एक ही पलंग पर सोने के बाद
भी आज तक उसने न तो कभी दूर्बा को पैर मारे और न ही कभी बिस्तर गन्दा किया। सोना
ही नहीं,खाने-पीने में भी नशुबाला के अपने मिजाज़ हैं मसलन उसे खाने में ताज़ी हरी
सब्जियां ही चाहिए और वह भी पूरे सम्मान के साथ । यदि घर के किसी सदस्य ने यूँ ही
जमीन पर उसकी खुराक डाल दी तो वह उसे मुंह भी नहीं लगाती। इसीतरह सब्जियों के डंठल
या घर के उपयोग के बाद बाहर फेंकने वाला हिस्सा भी उसकी खुराक में शामिल नहीं होना
चाहिए बल्कि उसे ताज़ी और पूरी सब्जी चाहिए। हरे पत्तों में कटहल के पत्ते उसे सबसे
प्रिय हैं।
एक और आश्चर्यजनक बात यह है कि नशुबाला ने आज तक किसी अन्य
बकरी को नहीं देखा क्योंकि हास्पिटल रोड पर द्वितीय मंजिल पर रहने वाली दूर्बा उसे
कभी भी नीचे नहीं उतारती और कभी नीचे ले जाने की जरुरत हुई तो भी उसे अपनी देखरेख
में ही लाती-ले जाती हैं। दरअसल नशुबाला, उनके घर में तीसरी पीढ़ी की बकरी है । वे
बताती हैं कि नशुबाला की मां की मां एक बरसाती रात में भटककर उनके घर आ गयी थी और
फिर यहीं रह गयी लेकिन नशुबाला की मां को जन्म देने के महज चार माह बाद ही उसकी
मृत्यु हो गयी। कुछ ऐसा ही किस्सा नशुबाला की मां के साथ भी हुआ और उसने भी नशुबाला
को जन्म देने के चार माह बाद प्राण त्याग दिए इसलिए दूर्बा को डर है कि कहीं नशुबाला
मां बनी तो वह भी चार माह बाद ही उनका साथ न छोड़ दे इसलिए उन्होंने इसे बकरियों से
अब तक दूर ही रखा है। अब तो हाल यह है कि नशुबाला और दूर्बा एक दूसरे के ऐसे साथी की
तरह हैं जो किसी भी सूरत में एक दूसरे से अलग नहीं होना चाहते ।
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