ऐसे बनेगा भारत भ्रष्टाचार मुक्त...!!
एक मशहूर हिंदी फिल्म का गाना है-“ जिसने
पाप न किया हो, जो पापी न हो..”, यदि इसे
हम अपने देश में भ्रष्टाचार के सन्दर्भ में मामूली फेरबदल के साथ कुछ इसतरह से
लिखे -“जिसने
भ्रष्टाचार न किया हो,जो भ्रष्ट न हो..”, तो कोई
अतिसयोंक्ति नहीं होगी क्योंकि हम सब भ्रष्ट है और हम में से कोई भी ऐसा नहीं होगा
जो कभी भ्रष्टाचार में लिप्त न रहा हो. मेरी इस बात पर कई लोगों को आपत्ति हो सकती
है और होनी भी चाहिए लेकिन यदि वे भ्रष्टाचार की सही-सही परिभाषा को समझ ले तो वे
भी न केवल मेरी बात से सहमत हो जाएंगे बल्कि समाज को बदलने से पहले स्वयं को बदलने
में जुट जाएंगे.
दरअसल भ्रष्टाचार का मतलब अपने व्यक्तिगत लाभ के
लिए किसी व्यक्ति द्वारा अधिकारों का दुरूपयोग करना या वित्तीय लाभ लेना भर नहीं
है बल्कि नैतिक रूप से जो भी गलत है वह भ्रष्टाचार के दायरे में आएगा. मसलन आप से
मिलने घर आए किसी व्यक्ति से मिलने से बचने के लिए पत्नी/बच्चे से यह कहलवाना कि
आप घर में नहीं है, भी उसीतरह का भ्रष्टाचार है, जैसे
दूध में पानी मिलाना या मिर्च-धने में व्यापारी द्वारा मिलावट करना. बिजली चोरी
करना भी भ्रष्टाचार है तो आफिस के सरकारी फोन से व्यक्तिगत काल करना भी. स्कूल में
बच्चे को प्रवेश दिलाने के लिए डोनेशन देना/लेना भ्रष्टाचार है तो आयकर बचाने के
लिए फर्जीवाड़ा करना भी. सरकारी कर्मचारी का रिश्वत लेना/देना भ्रष्टाचार है तो
फर्जी बिल बनाकर कम बिक्री दिखाना भी. हम में से शायद ही कोई होगा जिसने ‘मैं घर
में नहीं हूँ’ जैसा भ्रष्टाचार नहीं किया होगा. यह तो
इसलिए भी ज्यादा गंभीर अपराध है क्योंकि इस भ्रष्टाचार में पत्नी/बच्चों को शामिल
कर हम-आप नई पीढ़ी को भी इस कला में महारत बना देते हैं और फिर ‘बोया
बीज बबूल का, तो आम कहाँ से होएं’.
यह देश का दुर्भाग्य है कि हमने सरकारी विभागों
में काम के लिए पैसे के लेनदेन को ही भ्रष्टाचार मानकर इतिश्री कर ली है. किसान का
आर्गनिक के नाम पर रासायनिक खाद मिलाकर पैदा की गयी फसल बेचना भी भ्रष्टाचार है तो
कार्यालय समय पर नहीं आना भी. इसीतरह कार्यालयीन समय में काम की बजाए गप्प
मारना/चाय-पान के नाम पर समय बर्बाद करना भी भष्टाचार है. हाँ यह हो सकता है कि इन
कामों में भ्रष्टाचार की मात्रा कम-ज्यादा हो या इनका प्रभाव सीधे तौर पर न दिखता
हो लेकिन हम ‘ तेरी कमीज से ज्यादा सफ़ेद मेरी कमीज’ की तर्ज
पर यह कहकर बच तो नहीं सकते न कि मैं आपसे या आप मुझसे कम भ्रष्ट हैं.
कल्पना कीजिए यदि हम सभी इन छोटी-छोटी
बातों या छोटे-छोटे भ्रष्टाचार को त्याग दें अर्थात् समय पर कार्यालय पहुंचें,निर्धारित
अवधि में पूरा काम करें, स्कूल में बच्चे के शिक्षक या स्कूल
प्रबंधन को खुश करने के लिए डोनेशन न दे,काम वाली बाई को इंसान समझकर
उसके अधिकारों का सम्मान करें, दूकानदार को सही बिल देने के
लिए मजबूर करें,कर बचाने के लिए सीए के चक्कर काटने से
ज्यादा निर्धारित कर देने में रूचि लेने जैसी बातों को अपनी दिनचर्या का हिस्सा
बना लें तो न केवल हम देश के प्रति अपने कर्तव्य जिम्मेदारी से निभा सकेंगे बल्कि
अपने से जुड़े लोगों को भी प्रेरित कर सकेंगे और यहीं से होगी भ्रष्टाचार मुक्त
भारत के निर्माण की शुरुआत.
ईमानदारी और नैतिकता बिलकुल उसीतरह से छूत
की बीमारियाँ हैं जैसे भ्रष्टाचार,यदि एक बार हम-आप ने इन्हें
अपना लिया तो फिर इन्हें फैलने से कोई नहीं रोक सकता. इसका फायदा यह होगा कि जब
सभी अपने अपने हिस्से का काम सही ढंग,ईमानदारी और नैतिकता को ध्यान
में रखते हुए समय पर करेंगे तो न सड़कें ख़राब होंगी और न ही उनकी बार-बार मरम्मत
होगी,बिजली-पानी
घर घर में होगा, परिवेश साफ़-सुथरा होगा तो बीमारियाँ भी कम
हो जाएँगी और अस्पतालों में डाक्टर और दवाइयां दोनों की उपलब्धता अपने आप बढ़
जाएगी. किसान ऋण चुकाने से लेकर उर्वरक के इस्तेमाल में ईमानदारी बरतेगा तो बैंक भी
ऋण देने में पीछे नहीं रहेंगे,व्यापारी समय पर ईमानदारी से
कर (अब जीएसटी) देगा तो विकास को रफ़्तार मिलेगी और तभी होगी भ्रष्टाचार मुक्त भारत
की स्थापना.
अभी क्या स्थिति है किसी से भी छिपी नहीं
है. देश की कुल आबादी में करदाताओं की
संख्या सिर्फ एक प्रतिशत हैं। मात्र, 5,430 लोग ही
ऐसे हैं जो सालाना एक करोड़ रुपये से अधिक का टैक्स देते हैं। कुल मिलाकर 2.87 करोड़
लोग आयकर रिटर्न दाखिल करते हैं। इनमें से 1.62 करोड़ ने कोई टैक्स नहीं
देते। इस तरह करदाताओं की कुल संख्या 1.25 करोड़ रही, जो देश
की सवा करोड़ की आबादी का महज एक प्रतिशत है।
इससे अंदाज लगाया जा सकता है कि देश में कर चोरों की तादाद कितनी बड़ी
होगी. देश के केवल वेतन भोगी ही मजबूरी में सबसे ईमानदारी से आयकर देते हैं. लेकिन
छोटे कारोबारी, प्रोफेशनल वकील, डॉक्टर, सीए, कोचिंग, शिक्षक
आयकर विभाग को चकमा देने में कामयाब हो जाते हैं. भारत में कृषि आय पर कोई कर नहीं
लगता है. यह आयकर चुराने का सबसे बड़ा जुगाड़ है. क्या आपने कभी किसी हलवाई, पानवाले
या पंसारी को आयकर देते सुना है जो हर मोहल्ले में फैले हुए हैं. इन सभी को कर की
मुख्य धारा में लाये बिना भारत भ्रष्टाचार मुक्त नहीं हो सकता.
पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गाँधी ने तो बेहिचक कहा था विकास व जन
कल्याण के लिए केंद्र सरकार द्वारा भेजे गये 100 रुपए में मात्र 15 रुपये
ही जनता तक पहुंचते हैं शेष 85 रुपये बीच का भ्रष्ट तंत्र
हजम कर लेता है। शायद यही कारण है कि सत्ता में आने के बाद ही प्रधानमंत्री श्री
नरेंद्र मोदी को यह कहना पड़ा था कि ‘वंचितों, गरीबों
और किसानों को उनके अधिकार दिये जा सकते हैं, युवाओं को आत्मनिर्भर और
महिलाओं को सशक्त बनाया जा सकता है, लेकिन इसके लिए भ्रष्टाचार से
निपटना होगा.’ छठे
‘ग्लोबल
फोकल प्वाइंट कॉन्फ्रेंस ऑन एसेट रिकवरी’ का उद्घाटन करते हुए
प्रधानमंत्री ने कहा था कि उनकी सरकार भ्रष्टाचार से कड़ाई से निपटने के लिए
प्रतिबद्ध है और अफसरशाही को बेहतर बनाने का प्रयास कर रही है. सत्ता में आने से
पहले उन्होंने ईमानदार भारत के लिए ‘मिनिमम
गवर्नमेंट एंड मैक्सिमम गवर्नेंस’ का लोकप्रिय नारा भी दिया था
और जन-धन खातों से लेकर सब्सिडी के डिजीटल ट्रांसफर जैसे कदम उठाए.
ऐसा भी नहीं है देश में भ्रष्टाचार की
रोकथाम के लिए कानून नहीं है. हमारे देश में भारतीय दण्ड संहिता, 1860,भ्रष्टाचार
निवारण अधिनियम, 1988, बेनामी लेनदेन (निषेध) अधिनियम, अर्थशोधन
निवारण अधिनियम, 2002 तथा आयकर अधिनियम 1961जैसे
दर्जनों कानून है लेकिन कोई भी कानून तभी काम कर सकता है जब उसे लागू कराने वाले
और उसके अंतर्गत आने वाले लोग ईमानदार हो.
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल नामक संस्था द्वारा कुछ समय पहले किये गये एक
अध्ययन में पाया गयाथा कि 62% से
अधिक भारतवासियों को सरकारी कार्यालयों में अपना काम करवाने के लिये रिश्वत या
प्रभाव का इस्तेमाल करना पड़ता है. अब ये 62 फीसदी लोग कौन(!), हम आप
ही तो हैं जो एक दफ्तर में में काम कराने के लिए रिश्वत देते हैं और दूसरे में काम
करने के लिए लेते हैं. यह लेनदेन का सिलसिला सालों साल से बस यूँ ही चला आ रहा है.
इस बात को कुछ इसतरह से भी समझा जा सकता है कि हम खुद व्यापारी होकर चंद रुपए
बचाने के लिए ऑनलाइन खरीददारी करते हैं और फिर खुद अपनी दुकान पर ग्राहक न पाकर
कहते हैं कि बाज़ार में मंदी है या सरकार की नीतियों ने कमर तोड़ दी. सीधी सी बात है
यदि हर व्यक्ति आत्मकेंद्रित होकर सोचेगा तो फिर बाज़ार का पहिया कैसे घूमेगा.
इसीतरह यदि हम खुद ईमानदार न होकर दूसरे से ईमानदार होने की अपेक्षा करेंगे तो फिर
देश कैसे भ्रष्टाचार मुक्त होगा.
अपनी बात का समापन मैं एक छोटी परन्तु
लोकप्रिय कहानी से करता हूँ. इस कहानी के मुताबिक एक राजा ने अपनी राजधानी में
संगमरमर का खूबसूरत तालाब बनवाया. अब इतने सुन्दर तालाब को पानी से भरना तो शोभा
नहीं देता इसलिए उसने सोचा कि तालाब को दूध से भर दिया जाए. एक साथ इतना दूध
जुटाना नामुमकिन था तो उसने अपनी प्रजा से अनुरोध किया कि सभी रात को अपने अपने घर
से एक एक गिलास दूध इस तालाब में डाले ताकि सुबह तक तालाब दूध से भर जाए.अब लाखों
गिलास दूध तालाब में जायेगा तो उसे भरना ही था और प्रजा पर भी अतिरिक्त बोझ नहीं
पड़ता. लेकिन असली कहानी यहीं से शुरू होती है –एक व्यक्ति ने सोचा कि लाखों
लोग तो दूध डालेंगे ही यदि मैं दूध की जगह चुपचाप एक गिलास पानी डाल दूँ तो किसी
को पता भी नहीं चलेगा और मेरा दूध भी बच जायेगा. कुछ यही विचार दूसरे के मन में भी
आए और जनता तो समान सोच रखती है बस इसका परिणाम यह हुआ कि वह तालाब सुबह दूध की
बजाए पानी से भरा था क्योंकि सभी ने यही सोचा कि मेरे एक गिलास पानी से क्या फर्क
पड़ेगा? तो
सोचिये,
देश को
भ्रष्टाचार मुक्त बनाने के प्रयासों में क्या हम भी दूध के स्थान पर चुपचाप पानी
तो नहीं डाल रहे हैं?....ऐसी स्थिति में सरकार डिजीटल लेनदेन,नोटबंदी, प्रतिदिन
के लेनदेन को सीमित करने जैसे कितने भी कदम उठा ले,मौजूदा
कानूनों को कड़ा कर दे और सीबीआई नुमा दर्जनों जांच एजेंसियां गठित कर दे, तब भी
देश भ्रष्टाचार मुक्त नहीं हो सकता क्योंकि कोई भी देश/समाज कानूनों के सहारे
ईमानदार नहीं बनाया जा सकता बल्कि उसे नैतिक रूप से मजबूत बनाना होगा तभी भारत
भ्रष्टाचार मुक्त हो सकता है इसलिए जब भी हमारी-आपकी बारी आए तो हमें कम से कम
अपने हिस्से की नैतिकता दिखानी चाहिए और पानी नहीं दूध ही डालना होगा तभी बनेगा
भारत भ्रष्टाचार मुक्त!!
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