गुरुवार, 20 मई 2010

घी मिलेगा मुज़ियम में और सब्जी हो जायगी चटनी

बचपन ने दादी दो कंजूस भाइयों की कहानी सुनाती थी वह कहानी सार में इस प्रकार थी कि दो भाई बहुत कंजूसी से रहते थे.वे देसी घी को सदैव अलमारी में बंद कर के रखते थे जब रोटी खानी हो तो वे रोटी के ऊपर घी का डिब्बा घुमा लेते थे और मज़ा लेकर खा लेते थे.एक बार बड़ा भाई दो दिन के लिए बाहर गया और घी का डिब्बा अलमारी में बंद कर गया.जब वह लौटकर आया तो दुखी होकर छोटे भाई से कहने लगा कि मेरी वज़ह से तुझे दो दिन बिना घी के रोटी खानी पड़ी?इसपर छोटे भाई ने कहा नहीं भईया में अलमारी के ताले के आस-पास रोटी घुमा लेता था और मज़े से खा लेता था.इतना सुनते ही बड़े भाई ने उसे एक झापड़ लगाते हुए कहा कि तू दो दिन भी बिना घी के रोटी नहीं खा सकता?
यह पढने ने भले ही आश्चर्य जनक लगे पर हमें भविष्य मेंइस स्थिति के लिए तैयार रहना चाहिए क्योंकि घी ही क्या फल,सब्जी,सोना-चाँदी तथा अन्य रोजमर्रा कि चीजों के दम जिस तरह से आसमान छू रहे हैं उससे तो लगता है कि हमारी आने वाली पीढ़ी को देसी घी मुजियम में देखने को मिलेगा और सोने-चाँदी के जेवरात केवल तस्वीरों में नज़र आयेंगे.आज हम जिस तरह चटनी खा रहे हैं उस तरह भविष्य में सब्जी खायी जाएगी और कई सब्जिओं के बारे में बोटनी कि प्रयोगशालाओं में पढाया और दिखाया जायेगा क्यूकि बाज़ार में तो वे मिलेंगी ही नहीं.
ये कई मनगढ़ंत बात नहीं है बल्कि भारत सरकार के आंकड़े ही बताते हैं कि अभी भी मुद्रा स्फीति कि दर सर्कार के काबू से बाहर हो गयी है. सरकार के मुताबिक ढूध कि कीमतों में २१.९५ फीसदी का इजाफा हो चूका है.दल में ३०.४२ प्रतिशत का,सब्जिओं में ३१.९० का,ईंधन में १२.५५ का ,स्टील में ११.४० प्रतिशत का इजाफा हुआ है.यही हाल बाकी वस्तुओं का है.सोने-चाँदी के बारे में कुछ कहना सूरज को दिया दिखने के सामान है क्योंकि इनकी कीमतें तो इनकी कीमतें तो रोज ही नए रिकोर्ड बना रही हैं.खुद वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी मानते हैं कि मुद्रा स्फीति के और भी बढ़ने कि सम्भावना है.इसका मतलब है कि झोला भरकर पैसे (रूपये)ले कर बाज़ार जाओ और जेब में खाने-पीने का सामान रखकर लाओ.

बुधवार, 19 मई 2010

...बेटी हो तो ऐसी

बेटियां अपने साहस से ऐसी मिसाल कायम करती हैं कि आम लोग कह उठते हैं कि बेटी हो तो ऐसी। कुछ ऐसा ही उदाहरण हापुड की मीनू ने पेश किया है। उसने न केवल फेरों से पहले ज्यादा दहेज की मांग कर रहे दूल्हे को ठुकरा दिया बल्कि दहेज लोलुप लोगों के खिलाफ मामला दायर कराकर एक नजीर भी पेश की।

मोहल्ला इंद्रगढी निवासी चरण सिंह की पुत्री मीनू का विवाह दादरी (गौतमबुध्द नगर) के निवासी जूनियर इंजीनियर सुनील पुत्र रामपाल के साथ तय हुआ था। इंद्रगढी पहुंची और विवाह की रस्म शुरू हो गई। आरोप है कि सुनील और उसके पिता ने फेरों से पहले रात करीब दो बजे दुल्हन पक्ष से 42 हजार रूपये की मांग की और चेतावनी दी कि मांग पूरी न होने तक शादी की रस्म नहीं होगी। दहेज में एकाएक 42 हजार रूपये की मांग करने पर और कई घंटों की समझाईश के बाद भी इस शर्त से टस से मस नहीं होने पर मीनू के परिजनों ने दूल्हे, उसके पिता और भाई की जमकर धुनाई कर दी और उन्हें 4 घंटे तक बंधक बनाए रखा। वधु पक्ष के लोग इतने गुस्से में थे कि मौके पर पहुंची पुलिस को भी एक बार खदेड दिया गया। किसी तरह पुलिस बंधकों को मुक्त कराकर थाने ले गई।

जानवरों के इंजेक्शन से बच्चियां बन रहीं जवान

सब्जियों का आकार बढाने और जानवरों से ज्यादा दूध हासिल करने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला ऑक्सीटोसिन का इंजेक्शन अब छोटी बच्चियों को समय से पहले जवान बनाने के लिए लगाया जा रहा है। इससे देशभर के वेश्यावृत्ति के बाजार में नन्हीं लडकियों के शोषण का खतरा बत्रढ गया है।

गौरतलब है कि ऑक्सीटोसिन का इस्तेमाल सामान्य तौर पर जानवरों का दूध बढाने के लिए किया जाता है। इसी तरह सब्जियों का आकार और उनका रंग निखारने के लिए भी आजकल इस इंजेक्शन का इस्तेमाल चोरी-छिपे होने लगा है लेकिन अब वेश्यावृत्ति के धंधे में धकेलने से पूर्व मासूम बच्चियों को बडा करने के लिए ऑक्सीटोसिन इंजेक्शन लगाया जाने लगा है। सूत्रों ने बताया कि छोटी बच्चियों को शुरू से ही अच्छी खुराक दी जाती है। साथ में ऑक्सीटोसिन और अन्य हार्मोन बढाने की दवाइयां भी नियमित खिलाई जाती हैं। दस वर्ष की बालिका इस प्रयोग से जवान नजर आती है। उसके शारीरिक बदलाव की रफ्तार अचानक तेजी से बढती है। इससे लडकियों की त्वचा भी अन्य लडकियों के मुकाबले आकर्षण और मुलायम हो जाती है और ग्राहकों को आकर्षित करने में सफल रहती हैं। उधर ऑक्सीटोसिन के इस तरह लडकियों पर किए जा रहे प्रयोग पर चिंता जताते हुए डॉक्टरों ने कहा कि ऑक्सीटोसिन के सेवन से मानव अंगों पर विपरीत असर पडता है। अधिक सेवन से किडनी, हार्ट, लीवर आदि खराब हो जाते हैं। मासूम लडकियों पर इस तरह इसका प्रयोग अमानवीय और अप्राकृतिक कृत्य है।

मंगलवार, 18 मई 2010

वाकई २०० साल जीने लगा आदमी तो क्या होगा?

बाबा रामदेव का कहना है की यदि लोग नियमित योग करें और खान-पण में मर्यादित व्यव्हार करें तो १५० से २०० तक जीने की कल्पना को साकार किया जा सकता है.रामदेव ने तो आजतक न्यूज़ चैनल के साथ बातचीत में ये दावा भी किया कि वे खुद कम से कम १५० साल तक जीकर दिखायेंगे . आम लोगो के लिए मौजूदा दौर में २०० साल तक जीने की कल्पना किसी स्वप्न जैसी है क्योंकि अभी तो इंसान को ये भरोसा भी नहीं है कि वो कल का सूरज भी देख पायेगा कि नहीं और यदि आप दिल्ली जैसे किसी महानगर में रहते हैं तो फिर आपकी आयु वहां के प्रदूषण,शोर और ब्लू लाइन बसों के चालकों की मर्ज़ी पर निर्भर करेगी.शयद बाबा रामदेव भी ये कारण जानते हैं तभी तो उन्होंने कार बनाने वाली कम्पनिओं की तर्ज़ पर "आदर्श स्थितिओं "वाली शर्त जोड़ दी है.अक्सर कम्पनिया भी तो अपने दावों पर यही तर्क देती हैं कि आदर्श स्थितिओं में ही दावा किया गया माइलेज मिलेगा.वैसे बाबा रामदेव ने अब तक जो भी दावे किये हैं वे बिलकुल सही निकले हैं और अब तो हमारे तथाकथित तर्कवादी और डॉक्टर भी उनके दावो को सही बताकर योग-कपालभाती-अनुलोम विलोम और भ्रामरी करने लगें हैं इसलिए यदि बाबा कह रहे हैं कि इंसान २०० साल तक जी सकता है तो इस बात में भी कुछ न कुछ दम ज़रूर होगा!
सोचिये यदि वास्तव में हम १५०-२०० साल तक जीने लगे तो क्या हाल हो जायेगा जैसे सर्कार को रिटायर्मेंट कि उम्र ६० से बढाकर १२० या १८० साल तक करनी पड़ेगी और फिर नौकरी और छोकरी(विवाह) पाने कि आयु भी बढकर दो गुना से ज्यादा हो जाएगी.फिर लोग कहते सुने जायेंगे कि बिटिया अब साठ कि हो गए है इसलिए जल्दी से कोई अच्छा सा ६५-७० साल का लड़का देखकर उसके हाथ पीले करने हैं. इसीतरह दादा-दादी तथा नाना-नानी नाती-पोते नहीं बल्कि पंती और उसके बाद की कई पीढी के विवाह और बच्चे देखने की बात करेंगे.सबसे ज्यादा मारामारी तो राजनीती में होगी क्योंकि कोई नेता रिटायर ही नहीं होगा.अरे जब आम आदमी ही १५० साल जीने लगेगा तो हमारे नेताओं की उम्र इससे ज्यादा ही होगी.फिर मनमोहन सिंह सालो-साल प्रधानमंत्री बने रहेंगे और सोनिया-गडकरी-लालू और मुलायम जैसे नेता सैकड़ों साल तक अध्यक्ष...कुर्सी की लड़ाई इसी तरह और कठिन होती जाएगी तो तैयार रहिये भविष्य की इस जद्दो-ज़हद के लिए .....

सोमवार, 17 मई 2010

हर साख पे उल्लू बैठा है अंजामे गुलिश्तां क्या होगा..

यात्रिओं को यूँ ही मरने के लिए छोड़ दिया जाता है?मेडिकल शिक्षा का स्तरसुधरने की ज़िम्मेदारी रखने वाले केतन देसाई खुद ही इस स्तर को बिगाड़ने के लिए रिश्वत लेते पकडे जाते हैं ,तकनीकी शिक्षा परिषद् में भी ऐसा ही हो चुका है, दिल्ली के मंत्री को सुरक्षा जांच से गुजरना पड़ा तो उन्होंने होटल पर छापे पड़वा दिए,आई पी एल के आयोजक ही टीमों के साथ मिलकर घोटाला कर रहें हैं और हमारे केन्द्रीय मंत्री कभी चीनी तो कभी दाल के दाम बढवा रहे हैं ,कोई संचार तंत्र को बेचने पर आमादा हैं और कुछ मंत्रिओं के लिए प्रधानमंत्री कोई मायने नहीं रखते इसलिए वे कहीं भी-कभी भी कुछ भी कह बैठते हैं और ये भी नहीं सोचते की इससे देश की प्रतिष्ठा पर क्या असर हो सकता है.इन सब के लिए "में" ज्यादा मायने रखता है बजाय "हम' या अपने देश के! इसलिए कभी-कभी लगता है-क्या होगा हमारे देश का? क्या चुचाप रहते हुए देश को ऐसे लोगों के भरोसे छोड़ देना ठीक है या फिर इन्हें सुधरने के लिए हम सब को मिल-जुलकर कुछ करना चाहिए?आम आदमी आखिर किस पर भरोसा करे?भ्रष्ट नेताओं पर?काली कमाई में जुटे आला अफसरों पर? गरीब जनता के नाम पर पैसा पीट रहे स्वयं सेवी संगठनों पर या फिर आम जनता को लूटने के लिए तैयार बैठे पुलिस विभाग पर?
अस्पताल से डॉक्टर का गायब होना आम बात है?पुलिस का रिश्वत लेना पेशे का हिस्सा हो गया है?नेताओं का आश्वासन देना दर्म बन गया है और दर्म के ठेकेदारों की बैटन में आकर आपस में लड़ना हमारी नियति?देश पर क़र्ज़ बाद रहा है और नेताओं के स्विस बैंकों में खाते...आम आदमी दाल-रोटी के लिए दिन-रत संघर्ष कर रहा है और चंद लोग अपने कुबेर के खजाने के बाद भी आपस में लड़ रहें हैं.महंगी और नई करें रोज सड़कों से बलात्कार कर रहे हैं और बेचारा आम इंसान साईकिल भी नहीं चला पा रहा .महानगरों में लोग बसों में ठुसे जा रहें हैं परचंद फीसदी कार सवारों को बीआरटी से दिक्कत है क्यूंकि यह उनका रास्ता कम कार रहा है उन्हें इस बात की परवाह नहीं है की इससे कुल जनसँख्या के ७० फीसदी बस में चलने वाले आम लोगों को राहत मिलेगी .सब को आपनी पड़ी है ...देश के बारे में सोचना समय की बर्बादी हो मन जाने लगा है?ऐसे में क्या होगा हमारे देश का....?सोचिये..?

गुरुवार, 13 मई 2010

आखिर कुत्तों की भी तो कोई इज्ज़त है?

कुत्ता समाज इन दिनों बहुत नाराज़ है खासतौर पर भाजपा के मुखिया नितिन गडकरी के खिलाफ तो वे मानहानि का मुकदमा दायर करने के मूड में हैं.कुत्ता समाज का कहना है की इन नेताओं ने हमें समझ क्या रखा है.कुत्ता समाज की युवा शाखा ने तो चेतावनी दे डाली है की यदि उनके विरुद्ध यह दुष्प्रचार बंद नहीं किया गया तो वे सीधे कारवाई करने के लिए मजबूर हो जायेंगे.युवा कुत्ते तो अब मरने-मारने(पढ़े काटने)के मूड में हैं पर समाज के बुजुर्गो ने उन्हें समझा बुझाकर रोक रखा है.समाज की आपत्ति उनकी इंसानों से तुलना को लेकर है.कुत्ता समाज का मानना है की इंसानों तक तो फिर भी ठीक था लेकिन नेताओं से तुलना करके तो अब हद हे पर कर दे गए है.नितिन गडकरी के बयान ने कुत्तों की नाराज़गी में आग में घी डालने का कम किया है.यह बताने की ज़रूरत नहीं है की गडकरी ने लालू प्रसाद यादव और मुलायम सिंह को सोनिया गांघी के तलवे चाटने वाले नेता करार दिया है.कुत्तो की राय है की टुच्ची राजनीती में हमारा नाम नहीं घसीटा जाय ,यदि नेताओं को उपमा ही देने है तो किसी और जानवर का इस्तेमाल करें और वैसे भी उन्ही(नेताओं) के बीच में इतने उपमाए/तुलनाए मौजूद हैं की किसी दुसरे से तुलना करने की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी.कुत्ता प्रमुख ने इस बात को स्वीकार किया की हम तलवे चाटते हैं परन्तु यह हमारा पेशा और समाज को मिला प्रकर्ती प्रदत्त गुण है .हम जिसके भी तलवे एक बार चाट लेते हैं जीवन भर उसके साथ वफादारी निभाते हैं नेताओं की तरह बार बार पाला नहीं बदलते.नेता तो मौका पड़ते ही जिस के तलवे चाट रहे हैं उसी की पीठ में छुरा घोंप देते हैं लेकिन हमारे साथी हर हाल में वफ़ादारी निभाते हैं.कुत्ता समाज का कहना है की पहले फिल्मों में नायक खलनायक को कुत्ता कहकर अपमानित करता था .उन्हें फिल्म शोले का वो संवाद भी याद है "कुत्ते में तेरा खून पी जाऊंगा ".अब बताइए पहले तो कुत्ता करकर गाली देते हैं और फिर हमारा ही खून पीने की बात करते हैं...ये कहाँ का न्याय है.कुत्ता समाज नेताओं के अलावा अभिनेता धर्मेन्द्र और उनके बेटे सनी देओल से भी बहुत नाराज़ है क्योंकि इन दोनों ने भी उन्हें सबसे ज्यादा बदनाम किया है.कुत्ता समाज को अपनी इमानदारी,वफादारी और तलवे चाटने की कला पर गर्व है इसलिए वे इनपर कापीरायट लेने की तैयारी कर रहे हैं ताकि कई नेता इसका फायदा उठाकर अपनी नेतागिरी न चमका सके और इन शब्दों का इस्तेमाल किसी को अपमानित करने के लिए न कर सके.आखिर कुत्तों की भी तो कोई इज्ज़त है?

बुधवार, 12 मई 2010

माननीयों को चाहिए बस मकान....फिर क्यों करें काम

हमारे परमपूज्य और आदरणीय "माननीयों" को तो बस मकान चाहिए ,कैसे भी ?किसी भी नियम को तोड़कर या फिर कोई भी नया नियम बनाकर .माननीयों से मेरा आशय हमारे सांसदों और विधायकों से है.चूकिं बार बार संसद-विधायक लिकने में टाइम खर्च होगा और फिर इनका सम्मान भी काम हो सकता है इसलिए माननीय शब्द से काम चला रहा हूँ.मकान के लिए हमारे माननीय काम की भी परवाह नहीं करते फिर वह काम देश की प्रगति से ,सरकार चलने से या आम जनता की भलाई से ही क्यों न जुड़ा हो? यह बात अलग है की जब इनके अपने काम की बारी आती है तो सब मिल-जुलकर सारे गिले शिकवे भूलकर और समय की परवाह न करते हुए भी उसे पूरा करके ही दम लेते हैं मसलन अपना वेतन -भत्ते बढवाना .जहाँ तक हमारे-आपके हितों से जुड़े काम की बात है जैसे महंगाई ,भ्रष्टाचार महिला आरक्षण,नक्सली हमले,आतंकवाद जैसे विषयों पर चर्चा करनी और कानूनी उपाय करना हो तो ये आपस में फिजोल की बहस कर सारा समय ख़राब कर देते हैं.ये मेरी भड़ास नहीं बल्कि संसद के आंकड़े हैं जिनमे बताया गया है की इन माननीयों ने संसद के बजट सत्र का किस तरह बेड़ा गर्क किया.२२ फरवरी से लेकर ७ मई तक चले इस सत्र में कुल३८५ घंटे कारवाई होनी थी पर इनके हंगामे के कारण ११५ घंटे ख़राब हो गए.इसमें से ७० घंटे हमारे चुने हुए जन प्रतिनिधियों ने बर्बाद किये तो ४५ घंटे मनोनीत अर्थात राज्यसभा से सदस्यों ने .इसके फलस्वरूप २७ में से मात्र ६ विधेयक ही सरकार पास करा पाए और बाकी अगले सत्र तक लटक गए.संसद में बर्बाद हुए ११५ घंटों का यदी हिसाब लगाया जाये तो वह करोड़ नहीं अरबों रूपए होता है पर इनका का जाता है इन्हें तो मकान चाहिए और मकान भी ऐसे-वैसे नहीं बल्कि लाखों रूपए की कीमत वाले,शानदार लोकेशन में स्थित मकान चाहिए वे भी सस्ती कीमत पर जैसे कॉमनवेल्थ खेलगांव ,दिल्ली में बन रहे मकान या फिर म्हाडा (मुंबई)के आलिशान मकान.दरअसल सारे माननीय मकान के मामले में दलगत राजनीति से ऊपर उठकर एक साथ हैं इसलिए कोई उनका कुछ बिगाड़ भी नहीं सकता.हिंदी में प्रचलित है न के "चोर-चोर मौसेरे भाई"और "सारे कुयें में ही भंग घुली हो तो फिर किसका दोष" .ऐसा ही एक और मुहावरा है " समरथ को नहीं दोष गुसाईं "...तो फिर आओ सरकारी संपत्ति लुटते देखें !

अलौलिक के साथ आधुनिक बनती अयोध्या

कहि न जाइ कछु नगर बिभूती।  जनु एतनिअ बिरंचि करतूती॥ सब बिधि सब पुर लोग सुखारी। रामचंद मुख चंदु निहारी॥ तुलसीदास जी ने लिखा है कि अयोध्या नगर...