“ब्लॉग पर लगने वाला है प्रतिबन्ध” पढकर चौंकना लाजिमी है क्योंकि अभी तो देश में ब्लॉग और ब्लागिंग ने ठीक से अपने पैरों पर खड़े होना भी नहीं सीखा है.अंग्रेजी के ब्लागों की स्थिति भले ही संतोषजनक हो पर हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओँ के ब्लॉग तो अभी मुक्त हवा में साँस लेना सीख रहे हैं और उन पर प्रतिबन्ध की तलवार लटकने लगी है.दरअसल बिजनेस अखबार ‘इकानॉमिक्स टाइम्स’ के हिंदी संस्करण में पहले पृष्ठ पर पहली खबर के रूप में छपे एक समाचार के मुताबिक सरकार ब्लाग पर प्रतिबन्ध लगाने का प्रयास कर रही है.यह प्रतिबन्ध कुछ इस तरह का होगा कि आपके ब्लॉग के कंटेन्ट(विषय-वस्तु) पर आपकी मर्ज़ी नहीं चलेगी बल्कि सरकार यह तय करेगी कि आप क्या पोस्ट करें और क्या न करें.सरकार ने इसके लिए आईटी कानून में बदलाव जैसे कुछ कदम उठाये हैं. खबर के मुताबिक सरकारी विभाग सीधे ब्लॉग पर प्रतिबन्ध नहीं लगाएंगे बल्कि ब्लॉग बनाने और चलाने का अवसर देने वालों की नकेल कसी जायेगी. नए संशोधनों के बाद वेब- होस्टिंग सेवाएं उपलब्ध करने वालों,इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर और इसीतरह के अन्य मध्यस्थों को कानून के दायरे में लाया जा रहा है.प्रतिबंधों की यह सूची बीते माह जारी की गई थी और इसपर आम जनता,ब्लागरों और अन्य सम्बंधित पक्षों की राय मांगी गई थी.
सरकार की इस कवायद पर लोकतंत्र के पहरुओं की भवें तनना लाजिमी है.वैसे देखा जाये तो ब्लॉग और सोशल नेटवर्किंग वेबसाइटों ने इन दिनों दुनिया भर में क्रांति सी ला दी है. कई देशों में तो ब्लॉग और ब्लागर समुदाय ने सत्ता परिवर्तन में महत्वपूर्ण भूमिका से मुख्य धारा के मीडिया दिग्गजों तक को हैरत में डाल दिया है. ट्यूनीशिया,मिस्त्र,लीबिया जैसे तमाम देशों में ब्लॉग और सोशल नेटवर्किंग साइट परिवर्तन के वाहक बन गए हैं. आलम यह है कि ट्यूनीशिया जैसे देश में तो नए चुनाव कराने के लिए गठित अंतरिम सरकार में एक ब्लागर तक को स्थान दिया गया है.विद्रोह की आंधी में उड़ रहे बाकी देशों में भी ब्लागर महत्वपूर्ण भूमिका में हैं. सामाजिक आदान-प्रदान के सहज उद्देश्य के साथ शुरू हुए इन माध्यमों ने अपनी पहुँच,जनता की नब्ज़ पर पकड़ और लोकप्रियता के जरिए ऐसा समां बाँधा कि इन्हें कभी ‘न्यू मीडिया’ तो कभी लोकतंत्र का ‘पांचवा स्तंभ’ तक कहा जाने लगा. मेरी नज़र में तो ब्लॉग या सोशल नेटवर्किंग पर किये गए ‘ट्विट’ और ‘पोस्ट’ छोटे-छोटे पर बिलकुल स्वतंत्र समाचार पत्र हैं. इन्हें हम क्षेत्रीय/आंचलिक समाचार पत्रों के जिला/तहसील/नगर संस्करणों के भी आगे के अखबार कह सकते हैं, जिन पर न तो किसी सेठ का मालिकाना प्रभाव चलता है, न विज्ञापनों का दबाव और न किसी नामवर संपादक की सम्पादकीय नीति. ब्लॉग के मोडरेटर अपनी मर्जी के मालिक/संपादक हैं और वेबसाइट के ट्विट पर किसी की रोक नहीं है.अब तो ‘ट्विट’ वास्तव में समाचार का आधार बन गए हैं तभी तो तमाम अखबार किसी न किसी सेलिब्रिटी के ट्विट और ब्लॉग पर कही गई बात को न्यूज़ बनाकर प्रतिदिन परोस रहे हैं.इसीतरह नामी-गिरामी समाचार पत्रों में ब्लॉग नियमित स्तंभ बन गए हैं.
प्रजातंत्र के चौथे स्तंभ से पहले ही परेशान सत्ता नहीं चाहती कि इस ‘पांचवें स्तंभ’ को मजबूत होने दिया जाए? क्योंकि चौथे स्तंभ को तो विज्ञापनों के लालच में काबू में किया जा सकता है परन्तु न्यू मीडिया या पांचवा स्तंभ तो पूरी तरह से स्वतंत्र है और यदि एक बार इसने अपनी जड़ें जनमानस के मन में गहरे तक जमा ली तो फिर उसे किसी तरह रोक पाना/डराना/धमकाना असंभव हो जायेगा.वैसे भी अरब देशों के उदाहरण सत्ता-प्रतिष्ठान की आँखे खोलने के लिए पर्याप्त हैं.यही कारण है कि इन नए माध्यमों के पुष्पित-पल्लवित होने से पहले ही इनकी जड़ों में मट्ठा डाला जा रहा है ताकि वे पारंपरिक समाचार माध्यमों की तरह रीढ़ विहीन हो जाएँ और सत्ता अपना काम बिना किसी डर/विरोध/विद्रोह के करती रहे.