मंगलवार, 5 नवंबर 2019

आर यू सिंपल वेजीटेरियन या हिन्दू वेजीटेरियन?

जापान जैसा मैंने जाना-2

कैथी पैसिफिक एयरलाइन्स के विमान में खाना परोसते हुए एयर होस्टेस ने पूछा- यू आर वेजीटेरियन? मेरे हाँ कहते ही उसने तत्काल दूसरा सवाल दागा- विच टाइप आफ वेजीटेरियन....मीन्स सिंपल वेजीटेरियन या हिन्दू वेजीटेरियन? अपनी लगभग ढाई दशक की नौकरी में यह सवाल चौंकाने वाला था क्योंकि अब तक तो शाकाहारी का एक ही प्रकार अपने को ज्ञात था। अब शाकाहार भी हिन्दू-मुस्लिम टाइप होता है इसकी जानकारी जापान यात्रा के दौरान ही मिली। खैर मैंने बताया कि हिन्दू वेजीटेरियन तो उसने कहा कि आपको 20 मिनट इंतज़ार करना होगा क्योंकि मुझे आपके लिए खाना पकाना पड़ेगा ! अब सोचिए विदेशी विमान में कोई विदेशी व्योमबाला (एयर होस्टेस) कहे कि मैं आपके लिए खाना बनाकर लाती हूँ तो दिल में लड्डू फूटना स्वाभाविक है। लगभग 20-25 मिनट के इंतज़ार के बाद वह बटर में बघारी हुई खिचड़ी,चने की दाल और रोटी के नाम पर ब्रेड के टुकड़े लेकर हाज़िर हुई। उसने भरसक प्रयास किया था कि खाना स्वादिष्ट रहे और अपन ने भी दबाकर खा लिया ताकि उसे भी महसूस हो कि खाना स्वादिष्ट ही था।..खैर इस एक किस्से से यह तो साफ़ हो गया था कि जापान में शाकाहार के लिए संघर्ष करना पड़ेगा और दूसरा यह कि यात्रा पर रवानगी से पहले इष्ट मित्रों की बात सही लग रही थी जो उन्होंने अपने और अपनों के अनुभव के आधार पर बताई थी कि जापान में तुम्हें उपवास करना पड़ सकता है।
अब जब मैदान में कूद पड़े तो फिर जंग से क्या डरना इसलिए जो जैसा मिलेगा-काम चला लेंगे, के अंदाज़ में मन बना लिया...अब निश्चित ही आप सभी के मन में यह सवाल उछल रहे होंगे कि फिर वहां क्या खाया तो सबसे पहले तो सुन और जान लीजिए कि हमने वहां शाही पनीर, दाल मखनी, रसगुल्ला, गुलाब जामुन, खिचड़ी, सोन-पापड़ी, आलूबंडा, पोहा,उत्पम और इडली सहित वो सब कुछ खाया जो यहाँ भारत में खाने को मिलता है और उतना ही स्वादिष्ट क्योंकि...‘मोदी है तो मुमकिन है।’
जी हाँ,इसमें जरा भी गलत नहीं है क्योंकि जापान में प्रधानमंत्री श्री मोदी के कारण ही यह मुमकिन हुआ। दरअसल हमारे प्रधानमंत्री ठहरे हम से ज्यादा शाकाहारी इसलिए जापान की जिस होटल में हम लोग ठहते थे, उसने भारत से खासतौर पर रसोइए बुलाए थे और जब रसोइए भारतीय थे तो स्वाद भी भारतीय था और अंदाज़ भी, लेकिन जापान में खाने का मामला इतना सीधा भी नहीं था क्योंकि इस कहानी का दूसरा हिस्सा भी है जिसमें ज़रूर जापान में शाकाहारी खाने के संकट का अहसास होता है। दरअसल होटल में तो भारतीय रसोइए की मेहरबानी से शाकाहारी भोजन मिल गया लेकिन अंतरराष्ट्रीय मीडिया सेंटर में तो दुनियाभर के लोगों का ध्यान रखा गया था इसलिए वहां शाकाहार और विशेष तौर पर हिन्दू शाकाहार(!) कहीं पीछे रह गया। मीडिया सेंटर में अपना खाना तो दूर अपनी चाय (वही दूध-शक्कर और पत्ती की जुगलबंदी से भरपूर खौलने के बाद तैयार) के लिए भी तरसना पड़ा। वैसे तो जापान में वीआईपी मेहमानों को 24 प्रकार की चाय उपलब्ध थी जिसमें कई अबूझ नामों के बीच हमारी दार्जिलिंग चाय और आइस टी जैसे कुछ जाने माने नाम भी शामिल थे लेकिन वही अपनी असल कड़क-खौलती चाय नहीं थी। चाय के अलावा कॉफ़ी के भी दर्जन भर प्रकार थे जिनमें ओसाका के स्थानीय ब्रांड के अलावा ‘20 देशों के 20 दाने’(20 beans of 20 countries) जैसी उत्तम किस्म की कॉफ़ी भी थी लेकिन दिक्क़त यहाँ भी दूध की थी और बिना दूध के कड़वी कॉफ़ी को हलक से नीचे उतारना अपने लिए तो किसी सज़ा की तरह है। हालाँकि यहाँ कॉफ़ी के एक प्रकार कॉफ़ी लैटे ने मदद की क्योंकि इसमें पर्याप्त दूध होता है और इसतरह कुछ हद तक चाय- कॉफ़ी का संकट दूर हुआ।
अगली कड़ी में बात जापान के खान-पान की।

अपना सा ही लगता है जापान

जापान जैसा मैंने जाना -1
भोपाल के श्यामला और अरेरा हिल्स और दिल्ली में रायसीना हिल्स की तरह के पहाड़ी इलाक़े,सफाई में हमारे इंदौर से भी आगे और परिवहन व्यवस्था में मुंबई से कई गुना बेहतर व्यवस्थित मेट्रो-बस-टैक्सियां, सड़कों पर सुकून से साइकिल चलाते महिला-पुरुष और हर अजनबी का हल्की मुस्कराहट से स्वागत करते लोग...ये ओसाका है-जापान का दूसरा सबसे बड़ा शहर और 28-29 जून को हुए दुनिया की 20 सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के समूह जी- 20 शिखर सम्मेलन का मेजबान शहर।
ओसाका (Osaka) का अर्थ ही है ‘बड़ी सी पहाड़ी और ढलान’। जैसा कि मैंने ऊपर लिखा है कि अपने इन्हीं उतार चढाव के कारण ओसाका हमें भोपाल और दिल्ली का सा आभाष देता है।
अपनी जापान यात्रा पर कुछ लिखने की शुरुआत किसी शहर के परिचयात्मक उल्लेख से ? यह बात कई लोगों को शायद रास न आए लेकिन ऐसा करने का उद्देश्य यह है कि कम से कम वे लोग भी जापान के ओसाका शहर को और इसके महत्व को समझ सकें जिनके लिए जापान का मतलब बस टोकियो है और वह भी हमारी ‘लव इन टोकियो’ मार्का फिल्मों के जरिये मिले ज्ञान से या फिर हिरोशिमा-नागासाकी बमबारी की घटना के सन्दर्भ में…. जापान को पहचानते हैं।
खुद सोचिए, जापान जैसा तकनीकी संपन्न और विकसित देश यदि दुनिया की 20 महाशक्तियों की मेजबानी का गौरव टोकियो से इतर अपने किसी शहर को देता है तो ज़ाहिर सी बात है कि वह शहर अपने आप में खास होगा और जब बात ओसाका शहर की हो तो मामला खासमखास हो जाता है।
ओसाका वास्तव में जापान का एक बड़ा बंदरगाह शहर और वाणिज्यिक केंद्र है। जब हम जापान के कंसाई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से बाहर निकले तो एक ओर जापानियों के स्वभाव की तरह शांत और विशाल समुद्र था तो दूसरी ओर घर और कल- कारखाने। हवाई अड्डे की लंबाई चौड़ाई का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि यहाँ एक गेट से दूसरे गेट तक जाने के लिए भी ट्रेन का सहारा लेना पड़ता है। एक और खास बात यह है कि हवाई अड्डे से ओसाका शहर तक का लगभग पूरा सफर समुद्र के ऊपर बने फ्लाईओवर पर ही करना पड़ता है। इसे मानव निर्मित सबसे बड़ा द्वीप भी कहते हैं क्योंकि इसके जरिये यहाँ समुद्र का बेहतर उपयोग भी हो रहा है।
यह अपनी आधुनिक वास्तुकला, नाइट-लाइफ़, ऊँची-ऊँची इमारतों,रौशनी से नहाई सड़कों और लज़ीज़ स्ट्रीट फूड के लिए भी जाना जाता है। ओसाका दुनिया के अग्रणी शहरों में शामिल है और वैश्विक अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। वैसे तो ओसाका जापान के केंद्र में स्थित है और यहाँ के अहम महानगरों और जिलों में से एक है। लेकिन यह अपने आप में एक प्रान्त है जो लगभग 33 शहरों तथा 9 क़स्बों में विभाजित है। ओसाका प्रान्त की आबादी लगभग 80 लाख है और यहाँ तक़रीबन 2 लाख विदेशी नागरिक है जिनमें लगभग 3 हजार भारतीय हैं। वैसे ओसाका शहर की आबादी भी तक़रीबन 18 लाख है।
हम यहाँ जून माह के आखिरी दिनों में थे और तब भी यहाँ के लोग गर्मीं से बचने के लिए हाथ में बैटरी से चलने वाला छोटा सा पंखा लेकर घर से निकलने लगे थे। हालाँकि तापमान 26 से 27 डिग्री के बीच था और जापानियों के हिसाब से गर्मी शुरू हो रही थी । उन्हें क्या पता कि हम 45 डिग्री तापमान में भी घर से बाहर रहने वाले देश से आये हैं और 27-28 डिग्री तापमान तो हमारे लिए ठण्ड में रहता है। वैसे यहाँ लोग बताते हैं कि ओसाका में ठंड आम तौर पर कम पड़ती है और जनवरी के सबसे ठंडे महीने में भी तापमान 9.3 डिग्री सेल्सियस रहता है। बारिश का मौसम जून से जुलाई तक और गर्मियों में अधिकतम तापमान 33 डिग्री सेल्सियस तक जाता है। कुल मिलाकर ओसाका के जरिये हम जापान की जीवनशैली,आधुनिकता,विकास और विरासत को काफी हद तक समझ सकते हैं।
अगली किस्तों में बात करेंगे जापान की कुछ और जानी-अनजानी खूबियों की।
#Osaka #Japan #G20 #Bhopal #Delhi #KansaiAirport #Metro Swissotel Nankai Osaka

दोनों हाथ नहीं, फिर भी किया मतदान...!!!


दोनों हाथ न होने के बावजूद दृढ़ इच्छाशक्ति और एक-एक वोट का महत्व समझते हुए मप्र में संस्कारधानी के नाम से मशहूर जबलपुर की एक बेटी ने अपने संस्कारों से न केवल शहर का नाम रोशन कर दिया बल्कि हम जैसे हाथ-आँख-कान वाले लोगों को लोकतंत्र के महापर्व का महत्त्व भी समझा दिया।
लोकतंत्र की सच्ची पहरेदार बिटिया भवानी ने दोनों हाथ नहीं होने के बाद भी मतदान कर एक बेहतरीन मिसाल पेश की है।
ज़ाहिर है यह हमारे लोकतंत्र का सुखद, अविस्मरणीय और खूबसूरत पहलू है। जबलपुर के श्री राम इंजीनियरिंग कालेज की छात्रा भवानी यादव, जिसके दोनों हाथ नहीं है, ने आज अपनी माँ के साथ अन्जुमन स्कूल के पोलिंग बूथ में पहुँचकर मतदान किया। जहां पीठासीन अधिकारी ने तमाम सरकारी औपचारिकताओं को पीछे छोड़कर जमीन पर बैठ कर भवानी के पैर की उंगली में अमिट स्याही का निशान लगा कर ऐसे गर्व की अनुभूति की जो उन्हें ताउम्र अपने इस कार्य के लिए गौरवान्वित करती रहेगी । इसके बाद, अपने नाम को चरितार्थ कर लोकतंत्र की इस दुर्गा (भवानी) ने अपनी पसंद का सांसद चुनने के लिए मां के सहयोग से अपना अमूल्य मतदान किया।
इसे केवल एक चित्र के तौर पर न देखे बल्कि अपने लिए एक सबक/नसीहत और सीख समझे और अपनी नई पीढ़ी को भी दिखाएं-समझाएं कि हमारा लोकतंत्र ऐसी ही वीरांगनाओं के कारण मजबूत हो रहा है,संवर है तो क्यों न हम भी भवानी की ताक़त बने,लोकतंत्र की शक्ति बने और मिल जुलकर ऐसे ही जीवंत लोकतंत्र की नई कहानी के सूत्रधार बने।

अलौलिक के साथ आधुनिक बनती अयोध्या

कहि न जाइ कछु नगर बिभूती।  जनु एतनिअ बिरंचि करतूती॥ सब बिधि सब पुर लोग सुखारी। रामचंद मुख चंदु निहारी॥ तुलसीदास जी ने लिखा है कि अयोध्या नगर...