मंगलवार, 5 नवंबर 2019

जापान में लियोनार्डो दा विंची से मुलाकात....!!!!

जापान जैसा मैंने जाना-समापन क़िस्त
लगभग एक माह से आपके सहयोग और उत्साहवर्धन के फलस्वरूप मैं अपनी जी-20 शिखर सम्मेलन के कवरेज के लिए हुई जापान यात्रा को एक श्रृंखला में पिरो पाया।आपने भी हर पोस्ट में अपनी प्रतिक्रियाओं से आगे लिखने का हौंसला दिया। अब तक की सात पोस्ट में हमने जापान के खानपान, संस्कृति,सफाई और प्रबंधन सहित तमाम मसलों पर चर्चा की। इस समापन पोस्ट को शब्दों की जुगलबंदी की बजाए कुछ आकर्षक तस्वीरों के जरिए सजाने के प्रयास कर रहा हूँ। दरअसल जापान सरकार ने इस शिखर सम्मेलन में आये विदेशी मेहमानों के लिए एक अनूठी प्रदर्शनी लगायी थी जिसमें यहां की सांस्कृतिक विरासत से लेकर तकनीकी विकास तक को समाहित किया था। इसमें आप मोनालिजा सहित अनेक कालजयी कृतियों के लिए मशहूर चित्रकार लियोनार्डो दा विंची के सजीव स्टेच्यू से भी रूबरू हो रहे हैं।जापान श्रृंखला फिलहाल समाप्त,अगली यात्रा पर फिर कुछ नई जानकारियों के साथ बातचीत होगी। आइए, नज़र डालते हैं इन रोचक तस्वीरों पर….
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ओसाका कैसल: जापानी वास्तुकला का एक सुंदर वसीयतनामा

जापान जैसा मैंने जाना-7

ओसाका कैसल या ओसाका महल निश्चित रूप से जापान में सबसे प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में से एक है। यह जापान के तीन सबसे प्रमुख महलों में से एक है। ओसाका कैसल के बारे में भले ही आपको मेरी जापान यात्रा की आखिरी कड़ियों में पढ़ने को मिल रहा हो लेकिन हक़ीक़त यह है कि मैंने ओसाका में सबसे पहले ओसाका कैसल ही देखा था। दरअसल जापान में हवाई अड्डे से हमारी सहयोगी (गाइड-दुभाषिया) ने इस महल की इतनी तारीफ़ कर दी थी कि हमने होटल जाने के बजाए पहले इस महल को देखने का फ़ैसला किया और अब मैं दावे से कह सकता हूँ कि हमने सबसे पहले ओसाका कैसल जाकर कोई गलती नहीं की।
लगभग 450 साल पुराना यह पाँच मंजिला महल देश के सबसे अधिक और सबसे प्राचीन दर्शनीय रचनाओं में शामिल है। ओसाका कैसल को हम पारंपरिक जापानी वास्तुकला का एक सुंदर वसीयतनामा कह सकते है। महल के अंदर प्रत्येक मंजिल पर ओसाका के व्यापक इतिहास को कलाकृतियों के माध्यम से प्रतिबिंबित किया गया है। स्थानीय लोगों के मुताबिक सदियों से यह महल कई उल्लेखनीय ऐतिहासिक घटनाओं का मंच रहा है। ओसाका कैसल अपनी विशाल आकार वाली पत्थर की दीवार के लिए भी प्रसिद्ध है। बताया जाता है कि इसके निर्माण में लाखों की संख्या में बड़े पत्थरों का उपयोग किया गया है।
यहाँ के इतिहास पर नज़र डाले तो ओसाका कैसल का निर्माण 1583 में जापान में तमाम कबीलों की एकता के पुरोधा टॉयोटोमी हिदेयोशी (Toyotomi Hideyoshi-1536 - 1598) ने किया था लेकिन 1615 के गृह युद्ध के दौरान यह जल गया। इसे तब टोकुगावा बाकुफ़ु (Tokugawa Bakufu-1603 - 1867) के शासनकाल के दौरान फिर से बनाया गया । इस महल और आग के बीच कुछ अज़ीब सा रिश्ता है तभी तो यह महल बार-बार आग का शिकार बनता रहा और फ़ीनिक्स पक्षी की तरह पुनः नवनिर्मित होता रहा है। बताया जाता है कि 1665 में बिजली गिरने के कारण इस महल को फिर काफी नुकसान पहुंचा। इतना ही नहीं, एक बार फिर बने इस महल में 1868 में फिर आग गई। बार बार आग लगने की घटनाओं के कारण इसके फिर से निर्माण का इरादा त्याग दिया गया लेकिन ओसाका के लोगों की प्रबल इच्छाओं के कारण, 1931 में इसे फिर से सजाया-संवारा गया । तब से यह महल बिना किसी क्षति के ओसाका का गौरव गान बन गया है और बार-बार जलने/नष्ट होने के बाद भी यह भव्य महल आज भी अपनी वैभवशाली विरासत को समझाने और दिखाने में कामयाब है। कहा तो यह भी जाता है कि प्रारंभिक काल में लकड़ी से बने इस महल की आंतरिक साज सज्जा सोने की थी।
ओसाका कैसल की सुन्दरता में चार चाँद इसके आसपास बना पार्क लगा देता है । लगभग 10 लाख वर्गमीटर में फैला ओसाका कैसल पार्क भी 1931 में बनाया गया था और यह पार्क चेरी ब्लॉसम फूलने के दौरान दुनियाभर के पर्यटकों को अपनी ओर खींचता है। ओसाका कैसल का एक अन्य आकर्षण,इसके आसपास बनी गहरी खाई है। इसमें चलने वाली रंग-बिरंगी नावों के जरिये भी यहाँ के प्राकृतिक वैभव से रूबरू हुआ जा सकता है। ओसाका कैसल परिसर में नौका विहार के दौरान दिल्ली के पुराने किले ने बोटिंग करने जैसा लगता है,हालाँकि यहाँ वाहनों का शोरगुल नहीं है जो दिल्ली में किसी भी पर्यटन स्थल का सबसे कड़वा सच है।
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ऑलंपिक खेलों की मशाल हाथ में.... एक सपना सच हो गया...!!

जापान जैसा मैंने जाना-6

अपन के हाथ में ऑलंपिक मशाल.. टोक्यो में 2020 में होने वाले ऑलंपिक खेलों की मशाल...वह भी वास्तविक,बिना किसी मिलावट के।इन तस्वीरों के गलियारे में थोड़ा और आगे बढ़ेंगे तो इन खेलों के शुभंकर ‘मिराइतोवा’ को भी आप मेरे साथ देख पाएंगे...लगता है मुझे यहाँ के हैप्पीनेस शुभंकर ‘बिलिकेन’की दुआएं मिल गयी हैं तभी तो सालभर पहले और यहाँ तक कि ऑलंपिक खेलों की आधिकारिक तौर पर मशाल यात्रा शुरू होने के पहले ही मशाल को हाथ में लेने का अवसर मिल गया. बिलिकेन को आप भूले तो नहीं न क्योंकि पिछली एफिल टावर वाली कड़ी में ही तो हमने उनकी चर्चा की थी.
बहरहाल,अब से ठीक साल भर बाद दुनिया भर के दिग्गज खिलाड़ी टोक्यो में 2020 में होने वाले ऑलंपिक खेलों में एक-एक पदक के लिए अपनी पूरी ताक़त दांव पर लगा रहे होंगे।...आखिर खेलों के इस महाकुम्भ में अपना जलवा दिखाने और अपने देश के राष्ट्रध्वज-राष्ट्रगान के साथ गर्व से सीना चौड़ा कर, सैकड़ों कैमरों की चकाचौंध का सामना करने के लिए ही तो वे सालों-साल अपनी यह ऊर्जा संजो कर रखते हैं। वहीँ, खिलाडियों ही नहीं,खेलों से दूर रहने वालों के लिए भी ऑलंपिक खेलों की मशाल थामना गौरव की बात होती है। मैं भाग्यशाली हूँ कि मुझे मशाल थामने के साथ साथ ऑलंपिक शुभंकरों के साथ तस्वीर लेने का मौका भी मिल गया। दरअसल, जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान जापान ने यहाँ आने वाले विदेशी मेहमानों के लिए एक विशाल प्रदर्शनी भी लगायी थी। इस प्रदर्शनी में ऑलंपिक मशाल,शुभंकर और खेलों के आयोजन में सहभागी बनने वाले रोबोट सहित तमाम चीजें उनके वास्तविक रूप-रंग-आकार और प्रकार में प्रदर्शित की गयी थीं ।
जापान की राजधानी टोक्यो में 24 जुलाई से 9 अगस्त 2020 तक ऑलंपिक खेल होंगे और इसके ठीक बाद 25 अगस्त से 6 सितम्बर के बीच पैरा ऑलिम्पक खेलों का आयोजन होगा। एकतरह से इन खेलों का काउंट डाउन शुरू हो गया है। आपको जानकर हैरानी होगी कि टोक्यो दो बार ऑलंपिक खेलों की मेजबानी करने वाला एशिया का पहला शहर है। वहीँ, जापान में चौथी बार ऑलंपिक खेलों का आयोजन हो रहा है ।
तस्वीरों में दिख रही इस गुलाबी-सुनहरे रंग की ओलंपिक मशाल को जापान के मशहूर डिजाइनर तोकुजिन योशीओका ने डिजाइन किया है। मशाल की डिजाइन यहाँ बहुतायत में मिलने वाले चेरी फूल से प्रेरित है। चेरी, अब हमारे देश में शिलांग सहित पूर्वोत्तर के कई शहरों में फूलने लगी है। हालाँकि जापान जैसी विविधता अभी हमारे देश में तो नहीं मिलती लेकिन इसके रंग यहाँ जरुर बिखरने लगे हैं और मेघालय की राजधानी शिलांग में तो जापान की तर्ज पर अब बाकायदा ‘चेरी ब्लोसम’ जैसे आयोजन भी होने लगे हैं।
यह मशाल जापान में अगले साल 26 मार्च से अपनी यात्रा शुरू कर 121 दिनों में पूरे देश का चक्कर लगाकर टोक्यो पहुंचेगी। खास बात यह है कि टोक्यो ओलंपिक खेलों की मशाल सिर्फ धावकों के लिए नहीं है, बल्कि हम-आप जैसे लोगों के लिए भी है । मशाल को लेकर दौड़ने के लिए 10 हजार लोगों का चयन किया जा रहा है और इसके लिए जापान ही नहीं दुनिया भर से लोग आवेदन कर रहे हैं। आप भी चाहे तो इसका हिस्सा बन सकते हैं।
इन ऑलंपिक खेलों का आधिकारिक शुभंकर मिराइतोवा है। जापानी कलाकार रियो तानिगुची द्वारा निर्मित इस शुभंकर को दो हजार से ज्यादा शुभंकरों के बीच से एक प्रतियोगिता के माध्यम से चुना गया है । मिराइतोवा का नाम जापानी शब्दों ‘मिराई’ और ‘तोवा’ को मिलाकर रखा गया है जिसका अर्थ ‘उम्मीदों भरा भविष्य’, वहीँ पैरा ऑलंपिक खेलों के शुभंकर का नाम सोमिटी है जिसका अर्थ है ‘शक्तिशाली’।
इन ऑलंपिक खेलों की एक अन्य खूबी यहाँ खेलों में हाथ बंटाने वाले रोबोट होंगे। ये भविष्य केन्द्रित(फ्यूचरिस्टिक) रोबोट न केवल खेलों में एथलीटों और दर्शकों का स्वागत करेंगे बल्कि खेलों के आयोजन स्थलों तक पहुँचने में भी सहायक बनेंगे। जापान इन खेलों के दौरान चार प्रकार के रोबोट की सहायता ले रहा है...तो तैयार हो जाइये, आधुनिकता और तकनीक के मिश्रण के साथ दुनिया के प्राचीनतम और सबसे प्रतिष्ठित खेल आयोजन का साक्षी बनने के लिए।
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जापान में एफिल टावर और पेरिस..!!!

जापान जैसा मैंने जाना-5

जापान में एफिल टॉवर या पेरिस और न्यूयार्क का सा नज़ारा... सुनकर आश्चर्य होता है न,मुझे भी हुआ जब बताया गया कि ओसाका, जहां जी- 20 शिखर सम्मेलन हुआ था, में एफ़िल टॉवर है!! बस फिर क्या था हमने ओसाका पहुंचकर सबसे पहला काम एफ़िल टॉवर देखने का किया। जब वहां पहुंचे तो एफ़िल टावर तो नहीं उसकी प्रतिकृति जरूर मिली लेकिन आकर्षण और लोकप्रियता के मामले में उससे एक कदम भी पीछे नहीं। दरअसल,ओसाका का सबसे बड़ा आकर्षण यहाँ के शिनसेकाई (Shinsekai) इलाक़े में स्थित यह सुटेनक्कु टॉवर (Tsutenkaku Tower) है। इसे ओसाका का एफिल टावर कहा जाता है और हम समझने के लिए इसे दिल्ली के इण्डिया गेट और जनपथ मार्केट का मिला जुला रूप कह सकते हैं। जापानी शब्द सुटेनक्कु का मतलब स्काई रूट टॉवर है और यहाँ सुबह से लेकर रात तक स्थानीय और हम जैसे विदेशी पर्यटकों का जमावड़ा लगा रहता है। इसका कारण इस इलाक़े की रौनक, सुन्दर-रंग बिरंगी बनावट,सस्ता सामान मिलना और जापान से जुड़े स्मृति चिन्ह मिलने का सर्वप्रमुख स्थान होना है।
जब इस टावर के बारे में जानकारी जुटाई तो पता चला कि मूल टावर का निर्माण 1912 में हुआ था। मूल टॉवर के शीर्ष को पेरिस के एफिल टॉवर के समान ही बनाया गया था। 64 मीटर ऊंचा यह टावर उस समय एशिया की दूसरी सबसे बड़ी संरचना थी । 1943 में आग लगने से यह बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया इसलिए इसे यहाँ से हटा दिया गया था । बाद में, स्थानीय लोगों ने इसी स्थान पर नए टॉवर के निर्माण के लिए अभियान चलाया और तब जाकर 1956 में मौजूदा टावर अस्तित्व में आया। अब 103 मीटर ऊँचें, इस स्मारक को आर्किटेक्ट ताचू नितो ने बनाया था, जिन्होंने टोक्यो टॉवर भी डिजाइन किया था।
टॉवर की 4 और 5 वीं मंजिल तक जाकर पर्यटक ओसाका शहर की स्काई लाइन और पूरे शहर के विहंगम दृश्य का आनंद ले सकते हैं। इसके लिए 500 येन या तक़रीबन 400 रुपए टिकट लगती है। टॉवर में एक संग्रहालय भी है जहाँ ओसाका,इस इलाक़े और जापान की कला संस्कृति पर केन्द्रित भरपूर भंडार है। टॉवर को जब रात में रोशन किया गया है तो यहाँ पूरा इलाक़ा रंगबिरंगी रोशनी से सराबोर हो जाता है। यहाँ लोग बताते हैं कि टावर की रोशनी मौसम के साथ रंग भी बदलती है,साथ ही टॉवर पर लगी घड़ी जापान में सबसे बड़ी है।
शिनसेकाई (Shinsekai) इलाके की भी अपनी एक अलग कहानी है। बताया जाता है कि इसे ओसाका प्रीफेक्चर अर्थात ओसाका संभाग में एक मनोरंजन शहर के रूप में डिजाइन किया गया था, और मूल रूप से इसे न्यूयॉर्क और पेरिस शहरों की रंगीनियत और रूमानियत देने का प्रयास किया गया है। शिनसेकाई का शाब्दिक अर्थ भी है- नई दुनिया और अपनी आधुनिक छवि के कारण यह क्षेत्र वाकई ओसाका के लोकप्रिय स्थानों में से एक है।
शिनसेकाई क्षेत्र के चारों ओर आपको स्थानीय शुभंकर बिलिकेन (Billiken)की मूर्तियाँ और चित्र लगे दिखेंगे और बड़ी संख्या में लोग इन्हें खरीदते भी हैं । बिलिकेन को जापान में गुड लक का प्रतीक या अच्छी किस्मत देने वाला देवता माना जाता है इसलिए कहा जाता है कि बिलिकेन की मूर्ति के पैर छूने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है। हमने भी छुए। बहरहाल सच्चाई जो भी हो लेकिन मेरे लिए तो ओसाका जाकर जी-20 जैसे बड़े कार्यक्रम को कवर करना ही किसी गुडलक से कम नहीं था इसलिए बिलिकेन से जुड़ी कहानी पर भरोसा करने में कोई बुराई नहीं है।

इस सोच के साथ कैसे करेंगे हम जापान की बराबरी..!!

जापान जैसा मैंने जाना-4

क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि बढ़िया सूट-बूट पहने कोई व्यक्ति साइकिल चला रहा हो या कोई महिला साल-दो साल के बच्चे को लेकर साइकिल पर बाज़ार करने या ऑफिस जाने को निकली हो,वो भी बेखौफ-बिंदास-बेझिझक!..हमारे देश में कोई ऐसा करेगा तो शायद दूसरे दिन अख़बारों में उसकी फोटो छप जाए लेकिन जापान में यह आम बात है. ओसाका,जहाँ जी-20 देशों का शिखर सम्मेलन हुआ था,वहां बड़ी संख्या में महिला/पुरुष/युवा/बच्चे सभी बड़े आराम से साइकिल पर घूमते नजर आते थे और वहां के लोगों से बातचीत में पता चला कि पूरे जापान में साइकिल के प्रति इसीतरह का प्रेम है.
न गाड़ियों की कर्कश चिल्लपों, न बेतहाशा भागते लोग एवं वाहन और न ही रेड लाइट पर हमारे जैसी चीख-पुकार...सब कुछ सुकून/शांति/आराम और सम्मान से....सम्मान पैदल यात्रियों का और सम्मान साइकिल सवारों का. जापान साइकिल की सवारी के मामले में भले ही दुनिया मे नीदरलैंड,डेनमार्क और जर्मनी जैसे देशों से पीछे हो लेकिन शायद हम से बहुत आगे है. हमारे देश में दुनिया भर में कुल साइकिल उत्पादन का 10 फीसदी हिस्सा बनता है लेकिन साइकिल चलाना हमें गंवारा नहीं है. जापान के सिर्फ ओसाका शहर में ही 10 लाख से ज्यादा साइकिल हैं जबकि आबादी हमारे भोपाल जैसी ही मतलब 18-20 लाख के आसपास है. यदि हम ओसाका की तुलना भोपाल से करें तो साइकिल को लेकर मानसिकता साफ़ जाहिर हो जाती है. भोपाल में साइकिल चलाने के लिए आम लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए स्मार्ट साइकिल सर्विस शुरू की गयी थी. अब तक इसके लिए महज 65 हजार लोगों ने ही रजिस्ट्रेशन कराया है और प्रतिदिन औसतन 1200 लोग ही साइकिल चलाते हैं. वैसे इसमें निजी तौर पर साइकिल चलाने वालों की संख्या शामिल नहीं है लेकिन वो भी कितनी होगी? दरअसल साईकिल चलाने के लिए मानसिकता चाहिए और हमारे यहाँ तो साइकिल गरीबी की पहचान है. अब भले ही मोटापे से मुक्ति,तोंद से छुटकारे और डाक्टर की सलाह पर मन मारकर साइकिल चलाने लगे हैं लेकिन वे भी बस पार्क या घर के आसपास तक ही सीमित हैं तभी तो जब कोई सांसद/विधायक साइकिल पर संसद/विधानसभा पहुँच जाता है तो वह खबर बन जाता है जबकि जापान जैसे देशों में यह सामान्य बात है.
जापान में हर व्यक्ति दिनभर में औसतन 15 प्रतिशत यात्राएँ साइकिल से ही करता है और यक़ीनन जापानियों की छरहरी काया का राज भी यही है। ओसाका में मुझे तो कोई तोंद वाला और बेढब काया वाली महिला नज़र नहीं आयी। अब आप कह सकते हैं सूमो पहलवान भी तो जापानी हैं लेकिन वह एक अलग नस्ल है और यहां हम जापान के सामान्य लोगों की बात कर रहे हैं। हाल के वर्षों में यहां 10 लाख से अधिक बाइक(साइकिल) हर साल बेची जाती हैं। जापान में मोटरसाइकिलों के विकल्प के रूप में साइकिल का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। बहुत सारे लोग ट्रेन स्टेशनों पर सवारी करने के लिए उनका उपयोग करते हैं। आजकल अधिक से अधिक जापानी ट्रैफिक जाम और भीड़ वाली ट्रेनों से बचने के लिए साइकिल चला रहे हैं। हर जगह साइकिल खड़ी करने के लिए बाकायदा साईकिल स्टैंड बने हुए हैं- माल में,ऑफिसों में,आम बाज़ारों में,फुटपाथ पर,बस स्टाप पर सभी जगह आधुनिक साइकिल स्टैंड हैं. लोग नियम से साइकिल पार्क करते हैं और ज़ेबरा क्रासिंग पर लोग लालबत्ती होने का इंतजार नहीं करते बल्कि साइकिल और पैदल यात्रियों को सुकून और शांति से निकलने देते हैं. वाहनों की लाइन होने के बाद भी कोई हार्न बजा-बजाकर पूरे इलाक़े को सर पर नहीं उठाता बल्कि आगे बढ़ने के लिए चुपचाप अपनी बारी का इंतज़ार करता है।
...और अंत में सबसे सुखद अहसास..यहाँ लड़कियां और महिलाएं अपने मन मुताबिक कपड़े पहनकर मन चाहे समय तक पैदल और साइकिल पर घूमती हैं लेकिन उन पर कोई फब्ती नहीं कसता,कोई आंख फाड़ फाड़कर नहीं देखता,कपड़ों की आड़ लेकर कोई बलात्कार नहीं करता और उन्हें नारीत्व को लेकर कोई शर्म का अहसास नहीं कराता...बस यहीं हम बहुत पीछे हैं और शायद कभी जापान की बराबरी भी न कर पाएंगे।
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जब पनीर समझकर सुअर सेंडविच खा गए एक बाईट-वीर...!!!

जापान जैसा मैंने जाना-3

जी-20 देशों के शिखर सम्मेलन को कवर करने जापान पहुंचे दुनियाभर के पत्रकारों के लिए ओसाका में बने इंटर-नेशनल मीडिया सेंटर में एप्पल सेंडविच और पाइन-एप्पल पेटिस पर हाथ साफ़ करते हुए हमारे एक पत्रकार साथी ने पनीर-क्रीम सेंडविच का बड़ा सा पीस मुंह में ठूंसते हुए कहा-बहुत ही जोरदार है,आप भी लीजिए! अपन ठहरे लकीर के फ़क़ीर...हर डिश को समझकर-पढ़कर खाने वाले,इसलिए उनकी सलाह पर अमल से पहले एक चक्कर लगाकर उस सेंडविच का नाम तलाशा तो उस पर जो लिखा था उसका मतलब पूछने पर पता चला कि वह सेंडविच सुअर के मांस की है!! अब उन पत्रकार मित्र का हाल मत पूछिये क्योंकि तब तक वे आधी से ज्यादा सेंडविच हलक से नीचे उतार चुके थे और अब न उगलते बन रहा था और न ही निगलते.
हालाँकि, इसमें उस बेचारे की भी कोई गलती नहीं थी क्योंकि यदि मैं आपसे कहूँ कि सुशी, साशिमी, टेम्पुरा,याकीतोरी,उडोन,सोबा,कैसेकी,सुकीआकी, सुकमोनो अचार और मिसो सूप...इन नामों को सुनकर कुछ समझ आया..तो आप भी आश्चर्य से पलकें झपकाते रह जाएंगे क्योंकि जब मुझे जापान जाने के बाद भी समझ नहीं आया तो आप खाली नाम पढ़कर कैसे समझ सकते हैं...चलिए इस पहेली को आसान बनाते हैं..दरअसल ये सभी नाम जापान के सबसे लोकप्रिय और लज़ीज़ व्यंजनों के हैं और बड़ी संख्या में तमाम देशों के लोग इनका स्वाद चखने के लिए जापान जाते हैं. जी-20 देशों के महारथियों को भी ये और इनके साथ दर्जनों अन्य व्यंजन परोसे गए थे. व्यंजन तो छोड़िये, दुनिया के इन सबसे ताकतवर मुल्कों के प्रतिनिधियों के लिए 100 से ज्यादा प्रकार के शेक,24 प्रकार की चाय, 8 प्रकार की काफ़ी, दर्जन भर से ज्यादा प्रकार की बीयर,17 प्रकार की वाइन,12 तरह के साफ्ट ड्रिंक,30 प्रकार की देशी मदिरा-शोचु परोसी गयी. शोचु गन्ना, शकरकंद, ज्वार,चावल जैसे कई अनाज और फलों से बनती है. तक़रीबन दौ सौ से ज्यादा व्यंजनों और ड्रिंक्स की सूची में मुझे बस चावल, दार्जिलिंग टी, आइस टी,काफ़ी जैसे कुछ नाम ही समझ आए.
वैसे, शायद कम ही लोग जानते होंगे कि जापानी भोजन दुनिया में काफी लोकप्रिय है और इसका कारण यह है कि पारंपरिक जापानी खाने में पाँच नियमों को ध्यान में रखकर विविधता और संतुलन पर जोर दिया जाता है। इन नियमों के अंतर्गत खाने में पांच रंगों (काला, सफेद, लाल, पीला और हरा), खाना पकाने की पांच तकनीकों (कच्चा भोजन, ग्रिलिंग, स्टीमिंग, उबालना और तलना) के साथ साथ पांच स्वाद (मीठा, मसालेदार, नमकीन, खट्टा और कड़वा) का खास ध्यान रखा जाता है। यहाँ तक कि सूप और चावल बनाते समय भी इन नियमों का पालन किया जाता है। इसके अलावा ताज़ी और उच्च गुणवत्ता वाली मौसमी कच्ची सामग्री का इस्तेमाल के साथ साथ नफ़ासत के साथ परोसने के कारण भी जापानी खान-पान के मुरीद बढ़ रहे हैं।
अब यदि आप हिन्दू वेजीटेरियन (जैसा कैथी पैसिफिक एयरलाइन्स में पूछा गया था) जैसे किसी खूंटे से नहीं बंधे हैं तो जापान में आपकी जीभ के लिए भरपूर गुंजाइश है जो मछली-मटन-चिकन से आगे बढ़कर सुअर,गाय और सी फूड में ऑक्टोपस-केंकड़े और कई प्रकार के कीड़े मकोड़े का भी स्वाद ले सकती है. ऐसा भी नहीं है कि शाकाहारियों के लिए जापान में भूखे मरने की नौबत आ सकती है क्योंकि ब्रेड-बटर तो सामान्य रूप से हर जगह उपलब्ध है. फिर तमाम नुडल्स,जूस,फल का आनंद भी लिया जा सकता है. अब तो अनेक भारतीय रेस्तरां यहाँ खुल गए हैं जो आपको भारतीय स्वाद में भारतीय खाना परोस रहे हैं और कई जापानी भी इस खाने के दीवाने हैं. यहाँ तक कि कुछ होटलों में पहले से बता दिया जाए तो जैन भोजन भी मिल जाता है इसलिए यदि जापान जाने का मन बना लिया है तो बेख़ौफ़ और बेझिझक जाइए क्योंकि दाल-चावल-रोटी तो घर में मिल ही जाती है लेकिन जब देश से बाहर आये हैं तो सुशी, साशिमी, टेम्पुरा,याकीतोरी का भी लुत्फ़ उठाया जाए क्योंकि ये सब थोड़ी हमारे देश में आसानी से मिलेंगे.
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आर यू सिंपल वेजीटेरियन या हिन्दू वेजीटेरियन?

जापान जैसा मैंने जाना-2

कैथी पैसिफिक एयरलाइन्स के विमान में खाना परोसते हुए एयर होस्टेस ने पूछा- यू आर वेजीटेरियन? मेरे हाँ कहते ही उसने तत्काल दूसरा सवाल दागा- विच टाइप आफ वेजीटेरियन....मीन्स सिंपल वेजीटेरियन या हिन्दू वेजीटेरियन? अपनी लगभग ढाई दशक की नौकरी में यह सवाल चौंकाने वाला था क्योंकि अब तक तो शाकाहारी का एक ही प्रकार अपने को ज्ञात था। अब शाकाहार भी हिन्दू-मुस्लिम टाइप होता है इसकी जानकारी जापान यात्रा के दौरान ही मिली। खैर मैंने बताया कि हिन्दू वेजीटेरियन तो उसने कहा कि आपको 20 मिनट इंतज़ार करना होगा क्योंकि मुझे आपके लिए खाना पकाना पड़ेगा ! अब सोचिए विदेशी विमान में कोई विदेशी व्योमबाला (एयर होस्टेस) कहे कि मैं आपके लिए खाना बनाकर लाती हूँ तो दिल में लड्डू फूटना स्वाभाविक है। लगभग 20-25 मिनट के इंतज़ार के बाद वह बटर में बघारी हुई खिचड़ी,चने की दाल और रोटी के नाम पर ब्रेड के टुकड़े लेकर हाज़िर हुई। उसने भरसक प्रयास किया था कि खाना स्वादिष्ट रहे और अपन ने भी दबाकर खा लिया ताकि उसे भी महसूस हो कि खाना स्वादिष्ट ही था।..खैर इस एक किस्से से यह तो साफ़ हो गया था कि जापान में शाकाहार के लिए संघर्ष करना पड़ेगा और दूसरा यह कि यात्रा पर रवानगी से पहले इष्ट मित्रों की बात सही लग रही थी जो उन्होंने अपने और अपनों के अनुभव के आधार पर बताई थी कि जापान में तुम्हें उपवास करना पड़ सकता है।
अब जब मैदान में कूद पड़े तो फिर जंग से क्या डरना इसलिए जो जैसा मिलेगा-काम चला लेंगे, के अंदाज़ में मन बना लिया...अब निश्चित ही आप सभी के मन में यह सवाल उछल रहे होंगे कि फिर वहां क्या खाया तो सबसे पहले तो सुन और जान लीजिए कि हमने वहां शाही पनीर, दाल मखनी, रसगुल्ला, गुलाब जामुन, खिचड़ी, सोन-पापड़ी, आलूबंडा, पोहा,उत्पम और इडली सहित वो सब कुछ खाया जो यहाँ भारत में खाने को मिलता है और उतना ही स्वादिष्ट क्योंकि...‘मोदी है तो मुमकिन है।’
जी हाँ,इसमें जरा भी गलत नहीं है क्योंकि जापान में प्रधानमंत्री श्री मोदी के कारण ही यह मुमकिन हुआ। दरअसल हमारे प्रधानमंत्री ठहरे हम से ज्यादा शाकाहारी इसलिए जापान की जिस होटल में हम लोग ठहते थे, उसने भारत से खासतौर पर रसोइए बुलाए थे और जब रसोइए भारतीय थे तो स्वाद भी भारतीय था और अंदाज़ भी, लेकिन जापान में खाने का मामला इतना सीधा भी नहीं था क्योंकि इस कहानी का दूसरा हिस्सा भी है जिसमें ज़रूर जापान में शाकाहारी खाने के संकट का अहसास होता है। दरअसल होटल में तो भारतीय रसोइए की मेहरबानी से शाकाहारी भोजन मिल गया लेकिन अंतरराष्ट्रीय मीडिया सेंटर में तो दुनियाभर के लोगों का ध्यान रखा गया था इसलिए वहां शाकाहार और विशेष तौर पर हिन्दू शाकाहार(!) कहीं पीछे रह गया। मीडिया सेंटर में अपना खाना तो दूर अपनी चाय (वही दूध-शक्कर और पत्ती की जुगलबंदी से भरपूर खौलने के बाद तैयार) के लिए भी तरसना पड़ा। वैसे तो जापान में वीआईपी मेहमानों को 24 प्रकार की चाय उपलब्ध थी जिसमें कई अबूझ नामों के बीच हमारी दार्जिलिंग चाय और आइस टी जैसे कुछ जाने माने नाम भी शामिल थे लेकिन वही अपनी असल कड़क-खौलती चाय नहीं थी। चाय के अलावा कॉफ़ी के भी दर्जन भर प्रकार थे जिनमें ओसाका के स्थानीय ब्रांड के अलावा ‘20 देशों के 20 दाने’(20 beans of 20 countries) जैसी उत्तम किस्म की कॉफ़ी भी थी लेकिन दिक्क़त यहाँ भी दूध की थी और बिना दूध के कड़वी कॉफ़ी को हलक से नीचे उतारना अपने लिए तो किसी सज़ा की तरह है। हालाँकि यहाँ कॉफ़ी के एक प्रकार कॉफ़ी लैटे ने मदद की क्योंकि इसमें पर्याप्त दूध होता है और इसतरह कुछ हद तक चाय- कॉफ़ी का संकट दूर हुआ।
अगली कड़ी में बात जापान के खान-पान की।

अलौलिक के साथ आधुनिक बनती अयोध्या

कहि न जाइ कछु नगर बिभूती।  जनु एतनिअ बिरंचि करतूती॥ सब बिधि सब पुर लोग सुखारी। रामचंद मुख चंदु निहारी॥ तुलसीदास जी ने लिखा है कि अयोध्या नगर...