बदलते समाज के साथ साथ बच्चे भी बदलने लगे हैं और खासतौर पर बेटों के बारे में तो ये कहा जाने लगा है कि वे अपने माँ-बाप की सेवा करना भूल गए हैं.आज लड़कों को आवारा,मक्कार,कामचोर और बिगडैल नवाब जैसे संबोधनो से बुलाया जाना आम बात हो गई है परन्तु अब कुछ बेटे ऐसे हैं जिनके लिए माँ-बाप की सेवा से बढ़कर कुछ भी नहीं है और वे माँ-बाप की इच्छा को पूरा करने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं.उनकी राह में न तो मौसम बाधा बन पाता है और न पैसों की तंगी.ऐसा ही एक बेटा है मध्य प्रदेश के जबलपुर का कैलाश.
उसने अपनी बूढ़ी दृष्टिहीन मां को देश के सभी प्रमुख तीर्थ स्थलों की यात्रा कराने की ठानी है। उसने बद्रीनाथ की कठिन पैदल यात्रा तय कर अपनी मां को बद्रीविशाल के दर्शन कराए। कैलाश कहते हैं कि बड़े बुजुर्गों की सेवा ही सबसे बड़ा धर्म है और वह अपना धर्म निभाते हुए पिछले 14 सालों से अपनी मां को एक टोकरी में रखकर श्रवण कुमार की तरह कंधे पर उठाए हुए पैदल ही देश के प्रमुख तीर्थ स्थलों की यात्रा कराने निकले हैं। उन्होंने बताया कि वह अपनी मां को करीब सभी प्रमुख तीर्थ स्थलों की यात्रा करा चुके हैं। इस श्रवण कुमार को यात्रा के मुख्य पड़ावों कर्णप्रयाग, नंदप्रयाग, चमोली, पीपलकोटी और जोशीमठ से गुजरते हुए जिसने भी देखा वह अचरज में पड़ गया। कैलाश और उनकी माता कीर्ति देवी ने कहा कि भगवान बद्रीविशाल के दरबार में पहुंचने से जीवन सफल हो गया। कैलाश इसके पहले अपनी माँ को इसीतरह देश के सभी प्रमुख तीर्थों की यात्रा करा चुके हैं और ये उनकी यात्रा का अंतिम पड़ाव नहीं है बल्कि ये सिलसिला माँ की इच्छा के साथ-साथ चलता रहेगा.
क्या नियति के क्रूर पंजों में इतनी ताकत है कि वो हमसे हमारा वेद छीन सके? या फिर काल इतना हठी हो सकता है कि उसे पूरी दुनिया में बस हमारा वेद ही पसंद आए? सब कह रहे हैं कि वेद हमारे बीच नहीं रहा,हमारा प्यारा वेद अब ईश्वर के दरबार में अपना रंग जमाएगा. हम में से कोई भी यह सोच भी नहीं सकता था कि ईश्वर के कथित ‘पैरोकारों’ से हमेशा दो-दो हाथ करने वाले वेद की जरुरत खुद ईश्वर को पड़ सकती है.शायद ईश्वर सीधे वेद से ही यह जानना चाहता होगा कि समस्याओं,चिंताओं और परेशानियों से भरी मेरी दुनिया में तुम इतने बेफ़िक्र-बेलौस और खिलंदड कैसे रह सकते हो? वेद यानि वेदव्रत गिरि, एटा के पास छोटे से गाँव की एक ऐसी शख्सियत जिसके लिए कुछ भी नामुमकिन नहीं था.वह पत्रकार भी था और यारों का यार भी,लेखक भी था और दोस्तों का आलोचक भी,कवि भी था और मित्रों का गुणगान करने वाला भी,पटकथा लेखक भी था और अपने ही भविष्य से खेलने वाला अभिनेता भी...क्या नहीं था हमारा वेद और क्या नहीं कर सकता था हमारा वेद. कल ही की बात लगती है जब हम सब यानि कुल जमा ४० युवा भोपाल में माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय में मिले थे औ
अब भी श्रवण कुमार है यह जानकार अच्छा लगा। उस महान शख्स को मेरा प्रणाम।
जवाब देंहटाएंऐसे "पुत्र" को मेरा नमन...
जवाब देंहटाएंसच्चाई और इमानदारी अभी जिन्दा हैं और ऐसे लोगो के कारण ही अभी धर्म का नाश नही हुआ है
जवाब देंहटाएंआभार लेख के लिए
आप ने इतनी बढ़िया खबर हमें बताई ---बहुत बहुत धन्यवाद
जवाब देंहटाएंक्या लिखते हो खां....आज भी वैसा ही लिखते हो, कि पढ़ने मे मजा आ जाए।
जवाब देंहटाएंएक प्रेरित करने वाली पोस्ट!इस जानकारी के लिए आभार!परमात्मा कैलाश को उसकी माँ की इच्छा पूरी करने का सामर्थ्य दे,और हर बेटा कैलाश सा बने!
जवाब देंहटाएंकुंवर जी,
प्रेरक प्रसंग....उस बेटे को शुभकामनायें...
जवाब देंहटाएंहकीकत कुछ भी हो, ऐसा लगा श्रवण कुमार की तस्वीर देख ली।
जवाब देंहटाएंहर बेटा कैलाश सा बने!....उस बेटे को शुभकामनायें...
जवाब देंहटाएंआखों को सुकून और दिल को धीरज बंधाती प्रशंसनीय प्रस्तुति - कैलाश जी को सादर नमन
जवाब देंहटाएंअब भी श्रवण कुमार है यह जानकार अच्छा लगा। उस महान शख्स को मेरा प्रणाम।
जवाब देंहटाएं22.05.10 की चिट्ठा चर्चा (सुबह 06 बजे) में शामिल करने के लिए इसका लिंक लिया है।
जवाब देंहटाएंhttp://chitthacharcha.blogspot.com/
कलयुग के श्रवण कुमार को मेरा नमन!
जवाब देंहटाएंओह, आशा है बंहगी से बेहतर विकल्प मिल गया होगा इस जवान को!
जवाब देंहटाएंविस्मित हैं इस आधुनिक श्रवण कुमार को देखकर। ईश्वर इन्हें लम्बी आयु तथा जीवन की सभी खुशियाँ दे।
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