केवल गंभीर नहीं, विनोदप्रिय भी थे बापू
हम यह कह सकते हैं कि महात्मा गांधी का व्यक्तित्व जितना गंभीर, त्यागपूर्ण और आदर्शवादी था, उतना ही सहज और विनोदी भी था। उनका हास्य-बोध भी उनके अन्य कार्यों की तरह असाधारण था। अपनी विनोदप्रियता के कारण ही वे कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी सहज भाव बनाए रखते थे ।
गांधीजी अक्सर अपने बारे में ही मजाक करते थे, जो उनकी विनम्रता को दर्शाता है । एक बार, जब किसी ने उनकी पतली काया का मजाक उड़ाया तो गांधीजी ने मुस्कुराते हुए कहा कि मेरे शरीर में हड्डियाँ ही हड्डियाँ हैं, लेकिन मेरी आत्मा में ताकत है। एक अन्य मौके पर, जब किसी ने उनकी सख्त दिनचर्या और कम खाने की आदत पर टिप्पणी की, तो उन्होंने मजाक में कहा कि मैं अपने पेट को ज्यादा काम नहीं देता, ताकि मेरा दिमाग ज्यादा काम कर सके।
इसी तरह, एक बार किसी विदेशी पत्रकार ने उनसे पूछा कि आप इतने बड़े देश का प्रतिनिधित्व करते हुए भी केवल एक धोती क्यों पहनते हैं? तो गांधीजी ने मुस्कराकर उत्तर दिया कि मेरे देश के करोड़ों लोग पूरे कपड़े नहीं पहन पाते। जब वे सब पहनने लगेंगे, तब मैं भी पहन लूंगा। यह उत्तर व्यंग्य के साथ करुणा भी जगाता है ।
बताया जाता है कि सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान जब बापू जेल में थे, तो एक जेलर ने उनसे मजाक में कहा कि गांधीजी, आप बार-बार जेल क्यों आ जाते हैं? इस पर गांधीजी ने हँसते हुए जवाब दिया कि यहाँ का खाना मुझे घर से बेहतर लगता है। यह जवाब न केवल हास्यपूर्ण था, बल्कि उनकी निर्भीकता को भी दर्शाता है।
गांधीजी बच्चों के साथ विशेष रूप से विनोदप्रिय हो जाते थे। वे बच्चों के साथ मजाक करते, कहानियाँ सुनाते और उनके सवालों का जवाब हल्के-फुल्के अंदाज में देते थे। एक बार, एक बच्चे ने उनसे पूछा कि बापू, आप इतने पतले क्यों हैं? तो गांधीजी ने हँसते हुए कहा कि मैं अपनी सारी ताकत तुम जैसे बच्चों को देने के लिए बचाता हूँ।
इसी प्रकार, एक बार, जब एक ब्रिटिश पत्रकार ने उनसे पूछा कि आप इतने कम कपड़ों में लंदन की सर्दी में क्या करेंगे? तो गांधीजी ने हँसते हुए जवाब दिया कि मेरे पास तो मेरे देशवासियों से ज्यादा कपड़े हैं, वे तो और भी कम पहनते हैं। यह जवाब न केवल विनोदी था, बल्कि भारत की गरीबी और ब्रिटिश शोषण की ओर भी इशारा करता था।
एक अन्य उदाहरण ऐसा भी है जिसमें भूख से भी उन्होंने हास्य पैदा कर दिया था। एक बार अनशन के दौरान किसी ने उनसे पूछा कि बापू भूख तो नहीं लग रही? तो उन्होंने हँसकर कहा कि भूख तो लगती है, पर सोच रहा हूँ कि भूख भी कितनी सहनशील है।
सबसे खास बात यह है कि गांधीजी की विनोदप्रियता कभी किसी को चोट पहुँचाने के लिए नहीं होती थी। वह हास्य में व्यंग्य का सहारा लेते थे, लेकिन उसमें करुणा और आत्मीयता झलकती थी। यही कारण है कि उनका विनोद प्रेरक बन जाता था। महात्मा गांधी की विनोदप्रियता उनकी विनम्रता, बुद्धिमत्ता, और मानवता का प्रतीक थी। उनका हास्य न तो आक्रामक था और न ही अपमानजनक, बल्कि यह विचारशील, प्रेरणादायक और सकारात्मक था। यह उनके व्यक्तित्व का एक ऐसा पहलू था, जो उन्हें न केवल एक महान नेता, बल्कि एक सहज और प्रिय इंसान बनाता था। महात्मा गांधी का जीवन इस बात का प्रमाण है कि गंभीरता और विनोद साथ-साथ चल सकते हैं और समाज को नई दिशा दे सकते हैं।

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