महबूब शहर भोपाल की चुटीली दास्तां है- ‘भोपाल टॉकीज_शहर की किस्सागोई’
जाने माने संचार कर्मी, लेखक और व्यंग्यकार संजीव परसाई की नई किताब ‘भोपाल टॉकीज: शहर की किस्सागोई’ भी भोपाली बिरयानी की तरह लज़ीज़ है। यह हमें इस महबूब शहर के हर जायके से रूबरू कराती है। जब भी भोपाल की बात चलती है तो इस शहर को न केवल अपनी खूबसूरती के लिए बल्कि यहां के लोगों की जिंदादिली और स्वभाव की सहजता के लिए जाना जाता है।
संजीव ने इसी सरलता को केंद्र में रखकर करीने से तानाबाना बुना है। मूल भोपाली अपनी चटकारेदार भाषा,चुटीली शैली और हंसी मज़ाक में करारा व्यंग्य करने के लिए मशहूर हैं इसलिए जब आप ‘भोपाल टॉकीज: शहर की किस्सागोई’ किताब के पन्ने पलटना शुरू करते हैं तो धीरे-धीरे आप शहर की संस्कृति, किस्सागोई की परंपरा और शहर की आबोहवा में गोता लगाने लगते हैं।
यह किताब और इसके लेख शहद की मिठास और कालीमिर्च के पाउडर के मिश्रण की तरह हैं जो गले में मिठास के साथ होले से झटका देते हुए निकलते हैं और आप बिना वक्त गंवाए एक के बाद एक पन्ने पलटते जाते हैं। करीब 200 पन्नों की यह किताब मोटे तौर पर चार भागों में हमें भोपाल की गलियों, घरों, लोगों, इतिहास, परंपरा और संस्कार से जुड़ी कहानियों की सैर पर ले जाती है।
‘रानी कमलापति से बेगमों तक भोपाल के किस्से’ नामक चैप्टर में हमें रानी कमलापति के दौर, बेगम और उनके शासन, भोपाल रियासत का भारत में विलय और रानी कमलापति के साथ हुई गद्दारी से जुड़ी गंभीर बातें हल्के-फुल्के कहानी के अंदाज में पढ़ने को मिलती हैं। वहीं, ‘भोपाल बन बिगड़ रिया है खां’ चैप्टर में लज्जतदार भाषा में भोपाल के इतिहास से लेकर मौजूदा दौर तक की यात्रा पर जाने का मौका मिलता है। खास तौर पर जीप पर सवार सूअर, जर्दा पर्दा, नामर्दा और अब ना मुराद गैस, यह सूरमा भोपाली कौन है मियां, गुप्त रोगों की डिस्पेंसरी जैसे लेख बिना रुके पढ़ने के लिए मजबूर कर देते हैं।
किताब का सबसे मजेदार हिस्सा ‘और सुनाओ और बताओ की जंग से निकले किस्से’ है। यहां हमें एक नहीं बल्कि दर्जनों सूरमा भोपालियों से मिलने, उनके डींगे हांकने के अनूठे अंदाज, चुटीले किस्सों और भोपाली लोगों के मूल स्वभाव से परिचित होने का मौका मिलता है। यहां संजीव परसाई भोपाली का ईगो, मोर पकड़ने की उस्तादी, गोबर के बतोले, मुजरा भोपाल का, मियां शेर अलट पलट हो लिया जैसे मनमोहक शीर्षकों के जरिए भोपाल की नब्ज पकड़ने का प्रयास करते हैं। खास तौर पर ‘यह किताब और कल्लन’ अध्याय में वे सीधे तौर पर समाज को आज पुस्तकों के प्रकाशन, हिंदी के लेखकों की स्थिति और पाठकों की घटती संख्या जैसी स्थितियों को कल्लन मियां के व्यंग्य के जरिए आईना दिखाने का प्रयास करते हैं ।
किताब का आखिरी हिस्सा ‘आज भोपाल कैसा है मियां’ चैप्टर है। इसमें भोपाल का ताल, गैस कांड के बाद का भोपाल और पढ़ने लिखने वालों का भोपाल जैसे अध्यायों के माध्यम से संजीव बदलते-संवरते भोपाल को कलम के हुनर के जरिए विनोदी अंदाज़ में परोसते हैं। जैसा कि हम सब जानते हैं भोपाल नगर निगम भोपाल को ‘यूनेस्को सिटी आफ लिटरेचर’ का दर्जा दिलाने के लिए लगातार कोशिश कर रहा है, संजीव परसाई भी ‘पढ़ने लिखने वालों का भोपाल’ अध्याय में हमें शहर की इसी पहचान से जोड़ते हैं।
वे हमें दुष्यंत कुमार से लेकर कैफ भोपाली तक और जावेद अख्तर से लेकर बशीर बद्र तक साहित्य के गलियारों में घुमाते हैं। वह मौजूदा दौर के सशक्त हस्ताक्षर राजेश जोशी की बात करते हैं तो गिरजा भैया (वरिष्ठ पत्रकार गिरिजा शंकर जी) के योगदान की चर्चा भी। वे रूमी जाफरी को भोपाल से जोड़ते हैं तो पद्मश्री से सम्मानित विजय दत्त श्रीधर के अवदान का भी पूरे सम्मान से स्मरण करते हैं। वे व्यंग्यकार ज्ञान चतुर्वेदी, खोजी पत्रकार राजकुमार केसवानी और मध्य प्रदेश की राजनीति की गहरी समझ रखने वाले हमारे अपने दौर के दीपक तिवारी से भी अपने अंदाज में हमारी पहचान कराते हैं।
संजीव परसाई ने इस किताब की भूमिका में खुद लिखा है कि यह भोपाल का इतिहास नहीं है बल्कि भोपाल का कर्ज चुकाने का एक प्रयास है। उन्हीं के शब्दों को दोहराएं तो वे वाकई भोपाल का कर्ज सूद समेत चुकाने में कामयाब रहे हैं । भोपाल को इतने अलग अंदाज में एक किताब के तौर पर देखने या पढ़ने का मौका मुझे तो अब तक नहीं मिला इसलिए यदि आप भोपाल से हैं या भोपाल को जानना चाहते हैं तो ‘भोपाल टॉकीज: शहर की किस्सागोई’ किताब जरूर पढ़िए। यह किताब आपको भोपाल के बड़े तालाब से लेकर नए शहर की साफ सुथरी चौड़ी सड़कों पर तफरी कराएगी तो पुराने शहर की भूल भुलैया जैसी गलियों में छिपे कोहिनूरों की चमक भी दिखाएगी। भोपाल पर एक अच्छी,मजेदार,पठनीय किताब के लिए लेखक संजीव परसाई को बधाई।
यह किताब अपने बेहतरीन प्रकाशनों के विख्यात 'लोक प्रकाशन', भोपाल ने प्रकाशित की है । उम्दा छपाई, आकर्षक, साफ सुथरे फोंट और पढ़ने के अनुकूल अक्षरों वाली महज ₹300 की यह किताब पैसा वसूल है। ‘भोपाल टॉकीज: शहर की किस्सागोई’ किताब आपको चंद घंटों में भोपाल के 100 साल का सफर करा देती है और सबसे अच्छी बात यह है कि आप किताब पढ़ते हुए किसी सुपरहिट फिल्म के शो की तरह भरपूर मनोरंजन के साथ इससे बाहर निकलते हैं। सही मायने में यह सूरमा भोपाली का भोपाल है जिसे हम भोपाल टॉकीज के जरिए देख पा रहे हैं।
किताब: भोपाल टॉकीज: शहर की किस्सागोई
पृष्ठ: 194
कीमत: 300 रुपए
प्रकाशक: लोक प्रकाशन, भोपाल
अमेजन लिंक: https://amzn.in/d/0eWPfp9
#किताबीकीड़ा
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