संदेश

सितंबर, 2025 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

जिंदगी के खट्टे मीठे अनुभवों का खजाना है ‘थैंक यू यारा’

चित्र
‘थैंक यू यार’ एक ऐसा कहानी संग्रह है, जिसमें दस भावनात्मक और संवेदनशील कहानियाँ शामिल हैं, जो हमारे आसपास की रोज़मर्रा की जिंदगी, मानवीय रिश्तों और सामाजिक परिस्थितियों को गहराई से उकेरती हैं। यह संग्रह पाठकों को भावनाओं के एक गहरे समुद्र में ले जाता है, जहाँ प्रेम, दुख, संघर्ष, और उम्मीद की बारीकियां हर कहानी में स्पष्ट रूप से झलकती हैं। #थैंकयूयारा की कहानियाँ सामान्य लोगों के जीवन, उनके छोटे-छोटे सपनों, और रोज़मर्रा के संघर्षों को केंद्र में रखती हैं। ये कहानियाँ न केवल भावनात्मक गहराई लिए हुए हैं, बल्कि सामाजिक और मनोवैज्ञानिक परतों को भी उजागर करती हैं। ‘कटघरे’ से लेकर ‘यूं भी होता है’ तक संग्रह की हर कहानी एक अलग रंग और स्वाद लिए हुए है, फिर भी सभी में एक सामान्य सूत्र है—मानवीय संवेदनाओं का चित्रण और जीवन की साधारण परिस्थितियों में छिपी असाधारणता । ‘थैंक यू यारा’ संग्रह की तमाम कहानियाँ सीधे हमारे दिल को छूती हैं। चाहे वह ‘कटघरे’ कहानी में एक शिक्षक शबनम में अपने छात्र विजय भूषण के प्रति अपने बच्चे जैसी तड़प हो, ‘दूर्वा’ में शिक्षक और छात्रा रुचिरा के बीच मार्गदर्शन की गर्माहट ह...

हिमाचल में फलों का गोविंदा...!!

चित्र
न न, यह टमाटर नहीं है और न ही तेंदू है। रंग भले ही नारंगी है परन्तु संतरा भी नहीं है। यह है हिमाचल का अमर फल या चीनी सेब…जो स्वाद और सेहत का खजाना है। फिल्मों में जैसे पहले मिथुन चक्रवर्ती और बाद में गोविंदा को गरीबों का अमिताभ बच्चन कहा जाता था इसी तरह इस फल को भी पहले गरीबों का सेब कहा जाता था लेकिन धीरे धीरे इसने अपने स्वाद,कीमत और सेहत से भरपूर गुणों के कारण अलग पहचान कायम कर ली है..और अब यह सेब का विकल्प बन रहा है। स्थानीय भाषा में इसे 'जापानी फल' या 'काकी' कहा जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम Diospyros kaki है और पहली बार 1940 के दशक में शिमला के नारकंडा इलाके में इसका पदार्पण माना जाता है।  वैसे, अपने जन्मस्थान जापान में इसका मूल नाम काकी है, जिसका अर्थ होता है देवताओं का फल। अंग्रेजी में इसे पर्सिमन (Persimmon) के नाम से जाना जाता है। इजराइल में इसे शैरॉन फ्रूट तो कुछ देशों एबेन फ्रूट कहा जाता है। हिमाचल में इसे लंबे समय तक खराब नहीं होने के कारण अमर फल और सेब से सस्ता और उसका विकल्प होने के कारण चीनी सेब भी कहा जाता है। दूर से टमाटर की तरह दिखने वाला यह चमकीला नारंग...

ये Gen Z- जेन जी क्या है..ये जेन जी?

चित्र
जब से नेपाल में आंदोलन और सत्ता में बदलाव की खबरें मीडिया में दौड़ रही हैं तब से ‘जेन जी’ और ‘नेपो किड्स’ जैसे शब्द घर-घर में सुनाई देने लगे हैं। हालांकि नेपो किड्स हमारे देश में नया शब्द नहीं है क्योंकि मनोरंजन जगत और खासतौर पर बॉलीवुड, खेल, व्यवसाय एवं राजनीति जैसे तमाम क्षेत्रों में इसका भरपूर इस्तेमाल होता आ रहा है।   सामान्य रूप से समझे तो नेपो किड्स  (Nepo Kids) शब्द नेपोटिज्म (Nepotism) से लिया गया है, जिसका सामान्य अर्थ है भाई-भतीजावाद। यह तमगा उन युवाओं के लिए इस्तेमाल होता है जो अपने परिवार के प्रभाव के कारण राजनीति,मनोरंजन, फिल्म, खेल, व्यवसाय जैसे विभिन्न क्षेत्रों में आसानी से अवसर प्राप्त कर लेते हैं। इन पर यह आरोप लगता है कि वे प्रतिभा या मेहनत के बजाय अपने परिवार के नाम पर सफलता हासिल कर रहे हैं। हालांकि कई मामलों में यह बात सही नहीं है क्योंकि नेपो किड्स में कई युवा वाकई प्रतिभाशाली होते हैं और वे अपनी लगन, मेहनत और कौशल से लंबी रेस का घोड़ा साबित होते हैं।   जहां तक मौजूदा वक्त के सबसे चर्चित शब्द ‘Gen Z’ या जेनरेशन Z की बात है तो यह शब्द आमतौर...

और हमने नलिनी के ‘गुलाब जामुन’ खा ही लिए..!!

चित्र
हिल क्वीन शिमला में आमद दर्ज कराने के बाद से ही दोस्तों/परिचितों और शुभ चिंतकों ने सुझाव देना शुरू कर दिया था कि शिमला में क्या करना है और क्या नहीं, कहां घूमना है और पता नहीं क्या क्या। खाने पीने को लेकर भी आमतौर पर सुझाव मिलते रहते हैं। सेव और ताजे पहाड़ी फलों का स्वाद लेने के साथ एक सुझाव दो तीन जगह से आया कि  शिमला में नलिनी के गुलाब जामुन जरूर खाना। अब तक तो हम नलिनी को साड़ी के मशहूर ब्रांड के तौर पर जानते थे, लेकिन गुलाब जामुन का ब्रांड..!!  गुलाब जामुन का ज़िक्र हो और मुंह में पानी न आए,ऐसा संभव ही नहीं है। यह छोटा-सा सुनहरा गोला अपने अंदर स्वाद और नफासत का पूरा रुतबा समेटे है। यह न केवल स्वाद की दुनिया का कोहिनूर है, बल्कि भारतीय पर्वों, घरेलू आयोजनों और शादी ब्याह जैसे आयोजनों का अनिवार्य हिस्सा भी है इसलिए, सोशल मीडिया के इन्फ्लुएंसर्स की मीठे से परहेज करने की तमाम चेतावनियों को नजरअंदाज करते हुए हम नलिनी तक पहुंच ही गए।   माना जाता है कि गुलाब जामुन की जड़ें भारतीय उपमहाद्वीप में खोया और चाशनी की परंपरा में पगी और बढ़ी हैं। हालांकि कुछ इतिहासकार मानते हैं कि यह...

देवभूमि में क्यों बेखौफ नाच रहीं हैं डायन…!!

चित्र
देवभूमि में डायनों का क्या काम? तो फिर हिमाचल में इन दिनों डायन या चुड़ैल क्यों नाच रही हैं ? और ऐसा क्या है कि आम लोग भी उनका रंग रूप धरकर नाचने गाने में मशगूल है? क्यों महिलाएं घर में बैठकर कभी डायन की नाक तो कभी हाथ पैर काट रही है ? और डायनों के इतने खुले प्रदर्शन के बाद भी देवता क्यों चुप है? आप भी यह सब सवाल पढ़कर चौंक रहे होंगे और अचरज में पड़ना लाजमी भी है क्योंकि देवभूमि हिमाचल प्रदेश में जहां पग पग पर देवताओं का वास है ऐसे में किसी भी बुरी आत्मा की मौजूदगी की कल्पना ही नहीं की जा सकती। लेकिन भाद्रपद मास की अमावस्या पर करीब दो दिन तक राज्य के कई इलाकों में कथित तौर पर डायनों का बोलबाला रहता है।कहीं यह स्थिति जन्माष्टमी के हफ्ते भर बाद बनती है तो कहीं रक्षाबंधन के पखवाड़े भर बाद।   दरअसल,हिमाचल प्रदेश की धरती अपनी प्राकृतिक सुंदरता के साथ साथ समृद्ध लोक संस्कृति के लिए भी जानी जाती है। यहां के पर्व, मेलों और परंपराओं में पहाड़ के लोगों की आस्था, डर, विश्वास और सामूहिक जीवन की झलक मिलती है। इन्हीं लोकपर्वों में से एक है डगैली पर्व, जो इन दिनों मनाया जाता है। इसे डगयाली, ...

सौम्य सूरज का मतवाला अंदाज़

चित्र
लगातार कई दिन की घनघोर और तबाही भरी बारिश के बाद शिमला में आज शाम को सूरज ने बादलों का सीना चीरकर अपनी आमद दर्ज करा ही दी।  जब देशभर में सूरज ढल रहा हो तब पहाड़ों की रानी के माथे पर सूरज निकलना प्रकृति का जादू ही है।  बादलों और बूंदों में जकड़े पहाड़ भी सूरज की शह पाकर जकड़न को तोड़कर चमक उठे।  सूरज की किरणें अपनी सुनहरी तूलिका से पाइन और देवदार के पेड़ों के साथ साथ लाल हरी छतों पर हल्के-हल्के रंग बिखेर रहीं हैं। गीली मिट्टी की सोंधी खुशबू हवा में तैर रही है, और कोहरे की पतली चादर धीरे-धीरे हट रही है, मानो सूरज के स्वागत में रास्ता दे रही हो।  कई दिन बाद सूरज भी पूरी सौम्यता से बादल और बूंदों के रथ पर सवार मतवाला होकर अपने प्रिय पहाड़ों से मिलने आ गया है। पेड़ों की पत्तियों पर कब्जा जमाए बूंदों की लड़ियां भी चमकने लगी हैं जैसे सूरज के स्वागत में वंदनवार सज गए हो । रिज (आम बोलचाल में मॉल रोड) पर खड़े होकर देखो, तो लगता है सूरज ने बादलों के साथ लुकाछिपी का खेल खत्म कर दिया है।  कल तक बारिश की मोटी और ढीठ बूंदे में छिपी दूर हिमालय की चोटियाँ अब सुनहरे और गुलाबी रंग...