और हमने नलिनी के ‘गुलाब जामुन’ खा ही लिए..!!

हिल क्वीन शिमला में आमद दर्ज कराने के बाद से ही दोस्तों/परिचितों और शुभ चिंतकों ने सुझाव देना शुरू कर दिया था कि शिमला में क्या करना है और क्या नहीं, कहां घूमना है और पता नहीं क्या क्या। खाने पीने को लेकर भी आमतौर पर सुझाव मिलते रहते हैं। सेव और ताजे पहाड़ी फलों का स्वाद लेने के साथ एक सुझाव दो तीन जगह से आया कि  शिमला में नलिनी के गुलाब जामुन जरूर खाना। अब तक तो हम नलिनी को साड़ी के मशहूर ब्रांड के तौर पर जानते थे, लेकिन गुलाब जामुन का ब्रांड..!!


 गुलाब जामुन का ज़िक्र हो और मुंह में पानी न आए,ऐसा संभव ही नहीं है। यह छोटा-सा सुनहरा गोला अपने अंदर स्वाद और नफासत का पूरा रुतबा समेटे है। यह न केवल स्वाद की दुनिया का कोहिनूर है, बल्कि भारतीय पर्वों, घरेलू आयोजनों और शादी ब्याह जैसे आयोजनों का अनिवार्य हिस्सा भी है इसलिए, सोशल मीडिया के इन्फ्लुएंसर्स की मीठे से परहेज करने की तमाम चेतावनियों को नजरअंदाज करते हुए हम नलिनी तक पहुंच ही गए।

 

माना जाता है कि गुलाब जामुन की जड़ें भारतीय उपमहाद्वीप में खोया और चाशनी की परंपरा में पगी और बढ़ी हैं। हालांकि कुछ इतिहासकार मानते हैं कि यह मिठाई मध्यकालीन भारत में फारस से आई थी और मुगल काल में गुलाब जल और केसर के उपयोग ने इसे और लज़ीज़ बना दिया। 


खैर, अपने को इतिहास से ज्यादा इसके स्वाद से सरोकार था इसलिए इतिहास में ज्यादा सिर नहीं खपाया लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि नरम,मुलायम और मुंह में घुल जाने वाला गुलाब जामुन बनाना वाकई एक कला है, जिसमें मीठे से धैर्य और खोया जैसे मुलायम प्यार के बीच संतुलन की जरूरत होती है। इनके बीच सौ फीसद तालमेल से ही बनता है अतुलनीय स्वाद से भरा गुलाब जामुन..एकदम नरम, रसीला और हर टुकड़े में मिठास एवं स्वाद का संसार समेटे हुए ।


स्वाद के ऐसे ही सपने संजोए हम भी पहुंच गए शिमला में मॉल रोड स्थित नलिनी के पास। यदि आप रिज से लिफ्ट की ओर जाएंगे तो आपके बाएं हाथ पर और लिफ्ट से चर्च की ओर आयेंगे तो दाहिने हाथ पर खुशबू बिखेरती यह दुकान मिल जाएगी। वैसे, हमारे यहां गुलाब जामुन को रंग रूप एवं आकार प्रकार के कारण काला जामुन, लाल मोहन, मावा बाटी, बंगाली में पंतुआ, कहीं खीर मोहन तो कहीं रसगुल्ला जैसे कई नामों से जाना जाता है। दरअसल उत्तर भारत में आम बोलचाल में गुलाब जामुन अपने ठंडे और श्वेत वर्णी बिरादर रसगुल्ला के नाम से मशहूर हैं… आखिर है तो यह भी रस का गोला, भले ही सांवला सलोना है।


अब गुलाब जामुन सिर्फ एक मिठाई नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति का हिस्सा है। दीवाली हो, राखी हो, जन्मदिन या शादी का भोज, खाने पीने की सूची में गुलाब जामुन का स्थान अडिग है। जब इसे गर्म परोसा जाता है तो यह जीभ पर मिठास बिखेरता हुआ होले से पिघल सा जाता है और ठंडा खाएं तो चाशनी की मिठास तालू पर रच-बस जाती है। आजकल पार्टियों में इनकी जोड़ी वनीला आइसक्रीम के साथ भी खूब जम रही है जो ठंडे और गर्म के सम्मिश्रण से अलग स्वाद रचता है।


नलिनी पर गुलाब जामुन का स्वाद और आकार तो बेजोड़ है ही, मूल्य की भी अलग कहानी है। यदि आप नलिनी के काउंटर पर ही खड़े होकर गुलाब जामुन खाते हैं तो यह 50 रुपए में मिल जाता है लेकिन यदि आप इनके रेस्तरां में बैठकर सुकून से कतरा कतरा इसका स्वाद लेना चाहते हैं तो आपको 80 रुपए चुकाने पड़ते हैं। हालांकि हमें तो काउंटर पर खाना ज्यादा अच्छा लगा क्योंकि आप मॉल रोड की ठंडी बयार के बीच गरमागरम गुलाब जामुन का आनंद ज्यादा बेहतर ढंग से महसूस कर सकते हैं। इस रसीले जादूगर का जादू अब सिर्फ भारत तक सीमित नहीं रहा है बल्कि यह अब वैश्विक मंच पर भी पहचान बना रहा है। अमेरिका से लेकर आस्ट्रेलिया तक और ब्रिटेन से लेकर कनाडा तक यह भारतीय रेस्तरां से लेकर मिठाई की दुकानों तक, लोकप्रियता का नया मुकाम बना रहा है। 


कुल मिलाकर गुलाब जामुन सिर्फ एक मिठाई नहीं, बल्कि खुशियों का प्रतीक है। शायद, सबसे तेजी से डोपामिन भी यही बढ़ाता होगा। इसका हर टुकड़ा आपको प्यार भरे स्वाद, मिठास की परंपरा और उत्सव की याद दिलाता है। चाहे आप इसे नलिनी जैसी आपके शहर की किसी भी मशहूर मिठाई की दुकान से खरीदें या घर पर बनाएं, इसका स्वाद हमेशा मन को मिठास से भर देता है। 


तो अगली बार जब आप कहीं भी गुलाब जामुन के स्वाद का आनंद लें और वह आपको अच्छा लगे तो इसके पीछे की कहानी और कारीगरी को भी जानने का प्रयास करिए ताकि गुलाब जामुन की मिठास की स्मृतियां जीभ भर के लिए नहीं, दिल और दिमाग के लिए भी अमिट हो जाएं ।


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