सोमवार, 1 जनवरी 2024

सुनो वोटर…कि अब गए दिन चुनाव (बहार) के..!!

जब टीन के बने सांचे पर कभी 'हलधर किसान' तो कभी 'गाय बछड़ा' या फिर 'पंजा' और 'कमल' के फूल की छाप दीवार पर लगाने के लिए जब रंग के साथ लोग आते थे तो हम बच्चों में यह काम करने की होड़ लग जाती थी। पार्टी पॉलिटिक्स से परे छीना झपटी के बाद बच्चे दीवारें रंगने में तल्लीन हो जाते थे और यह काम करने आए लोग मस्त बीड़ी पीने में।

जब पार्टी के कार्यकर्ता झंडे/बिल्ले/ बैनर और पोस्टर लेकर आते थे तो टीन और गत्ते के बने बिल्लों को लेने और कमीज़ पर लगाने के लिए मारामारी हो जाती थी। जिसको रिबन के साथ या रिबन के फूल वाला बिल्ला मिल जाता था वो स्वयंभू बॉस बन जाता था। झंडे और बैनर तो बच्चों को मिलना दूर की कौड़ी थी।
चुनाव के बाद पार्टियों के बैनर और झंडे कई घरों में पोंछे के कपड़े, खिड़कियों के परदे और इसी तरह के दर्जनों दीगर कामों में खुलकर इस्तेमाल होते थे। गरीब परिवारों में तो वे बुजुर्गों की चड्डी और तकिए के कवर तक बन जाते थे।
शहर मानो रंग बिरंगे पोस्टरों,बैनर और झंडों से पट जाता था और आज की चुनावी तिथियों के संदर्भ में कहें तो दीपावली पर भी होली का सा रंगीन नजारा दिखाई पड़ने लगता था।
शहर से लेकर गांवों तक में लगे भोंपू/चोंगे,रिक्शों पर चलता अनवरत प्रचार और लगभग रोज होने वाली छोटी-बड़ी चुनावी सभाएं यह अहसास करा देती थीं कि चुनाव के दिन आ गए हैं। किसी को कोई शिकवा शिकायत नहीं और न ही दौड़-दौड़ कर चुनाव आयोग में चुगली करने जाने की जरूरत। सब अपनी अपनी हैसियत से भाईचारे के साथ चुनाव लड़ते थे। तब चुनाव राजनीतिक जंग नहीं बल्कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया थे।
अब हालात बदल गए हैं और कुछ बदलाव वाकई सराहनीय भी है मसलन दीवारें लिखाई से और शहर पोस्टर बैनर से बदरंग नहीं होते। चुनावी खर्च की सीमा और चुनाव आयोग की सख़्त निगरानी ने सभी उम्मीदवारों को 'लेबल प्लेइंग फील्ड' दे दी है। भोंपूओ का कर्कस शोर नहीं है और न दिन रात की चिल्लपों…अब चुनाव होते नहीं, लड़े जाते हैं और चुनाव की 'तैयारियां' नहीं 'प्रबंधन' होता है। पोस्टर,बैनर और झंडों का स्थान सोशल मीडिया ने लिया है और आमसभाओं की जगह टीवी चैनलों पर होने वाली बहसों या चुनाव केंद्रित कार्यक्रमों ने।
अब चुनाव की रणनीतियां बनती हैं,पार्टियां मुद्दे चुनती हैं,विवाद पैदा करती हैं,एजेंडा सेट करती हैं और फिर सोशल मीडिया और यूट्यूबर की हुल्लड़ ब्रिगेड उसे आगे बढ़ाकर व्यापक बनाती है। छोटे-छोटे चुनाव कार्यालयों का स्थान भव्य और कॉरपोरेट शैली में बने पार्टी ऑफिस ने लिया है। अब स्थानीय नेताओं द्वारा स्थानीय मुद्दों पर चर्चा की जगह बड़े और मंझे राष्ट्रीय प्रवक्ता बैठने लगे हैं और अब राष्ट्रीय मुद्दे स्थानीय स्तर पर प्रभाव डालने लगे हैं । विधानसभा क्षेत्र में सड़क, बिजली, पानी, पार्क और स्कूल जैसे बुनियादी विषयों की जगह हमास-इजराइल संघर्ष जैसे अंतर राष्ट्रीय विषयों ने ले ली है। इसी तरह, जाति/प्रभाव/धर्म के मुताबिक बड़े नेताओं की बड़ी सभाएं होती हैं और वहां जनता की सुनी नहीं बल्कि अपनी बात कही जाती है।
अब चुनाव व्यवस्थित,शांत,खर्चीले, तकनीकी संपन्न और कौशल पूर्ण जरूर हो गए हैं लेकिन उनकी आत्मा यानि उल्लास और उत्साह के साथ जनभागीदारी कम हो गई है लेकिन उसे गुपचुप तौर पर कुछ मिलने की उम्मीद बढ़ गई हैं। कहते हैं न कि समय एक सा नहीं रहता और बदलाव ही विकास का सूचक है। जैसे, हम कागज़ के मतपत्र और मतपेटियों के दौर से वोटिंग मशीन तक आ गए,हो सकता है भविष्य में मतदान केंद्र जाने की जरूरत ही नहीं पड़े और अभी हमें उंगलियों पर नचाने वाला मोबाइल फोन ही हमारा मतपत्र और लोकतंत्र का सबसे बड़ा साधन बन जाए तब तक तो यही कहना ठीक है कि…अब गए दिन चुनावी बहार के !! (4 Nov 2023)

भेज रहे हैं स्नेह निमंत्रण

 


भेज रहे हैं स्नेह निमंत्रण

मतदाता तुम्हें बुलाने को

17 नवंबर भूल न जाना

वोट डालने आने को।'
आमतौर पर विवाह समारोह के निमंत्रण कार्ड पर छपने वाली ये पंक्तियां इस बार मध्य प्रदेश में मतदाताओं को बुलाने और मतदान के लिए जागरूक करने में इस्तेमाल की जा रही हैं। भोपाल में जिला प्रशासन ने मतदाताओें को मतदान केंद्र तक बुलाने के लिए वैवाहिक कार्ड की तर्ज पर आकर्षक निमंत्रण पत्र तैयार किए हैं। ये कार्ड मतदाता पर्चियों के साथ घर घर पहुंचाए गए हैं। जिस प्रकार वैवाहिक कार्ड में दिनांक,समय और कार्यक्रम स्थल का उल्लेख होता है,उसी प्रकार इस कार्ड में भी मतदान की तिथि 17 नवंबर, समय सुबह 7 बजे से लेकर शाम 6 बजे तक और आयोजन स्थल की जगह आपका मतदान केंद्र लिखा गया है।
कार्ड में स्वागत कर्ता की जगह बूथ लेबल अधिकारी,निवेदक जिला निर्वाचन अधिकारी और दर्शनाभिलाषी में पीठासीन अधिकारी सहित मतदान दल के सभी सदस्य शामिल हैं। वोटवीर की ओर से जारी इन कार्ड का समापन सभी निमंत्रण पत्रों की लोकप्रिय बाल मनुहार पंक्तियों 'हमारे कार्यक्रम में जरूर जरूर आना'... की तर्ज पर किया गया है। इसमें लिखा गया है कि -'हमारे विधानसभा चुनाव में मतदान करने जरूर जरूर पधारना।'
आम लोग भी इस नवाचार की सराहना कर रहे हैं। अब देखना यह है कि वोट डालने कितने लोग घर से निकलते हैं।
"वोट जरूर डालिए,यह अधिकार ही नहीं हमारा कर्त्तव्य भी है।" (16 Nov 2023)

"हम भारत के लोग…!!"



हमारे संविधान की प्रस्तावना की शुरुआत ही इन शब्दों से होती है, ‘हम भारत के लोग’..। हम भारत के लोग वाकई अद्भुत हैं और अलग भी। हमें समझना आसान नहीं है पर हमसे जुड़ना बहुत सरल है क्योंकि हम सहज हैं। शायद तभी ‘फिर भी दिल है हिंदुस्तानी’ फिल्म में गीतकार ने लिखा है:

“हम लोगों को समझ सको
तो समझो दिलबर जानी
जितना भी तुम समझोगे
उतनी होगी हैरानी”
हम भारत के लोग… वाकई दुनिया से अलग हैं और शायद इसी वजह से पूरी दुनिया में कभी भी-कहीं भी घुल मिल जाते हैं और मौका मिलते ही उस देश के रंग में पूरी तरह मिलकर वहीं बस तक जाते हैं लेकिन फिर भी अपनी पहचान का सबसे गाढ़ा रंग सहेजकर रखते हैं यह रंग है भारतीयता का और उदघोष है हम भारत के लोग का। हम, अमेरिका में भी भारतीय बने रहते हैं और कई बार भारत में भी ‘मेड इन यूएसए’ (उल्लासनगर सिंधी एसोसिएशन) जैसा कारनामा कर दिखाते हैं। हम इतने बेफिक्र हैं कि कारगिल पर पाकिस्तानी घुसपैठियों को नजर अंदाज़ करते रहते हैं लेकिन जब उन्हें मारकर बाहर निकालने की ठान लेते हैं तो फिर ‘ये दिल मांगे मोर’ को जयघोष बनाकर उन्हें कारगिल की उन्हीं बर्फीली चोटियों पर दफन करके ही छोड़ते हैं। हम हफ्तों तक सुरंग में दिन गुजारने का हौंसला रखते हैं और इसके उलट मामूली सी परेशानी में भी घबराकर पूरे परिवार के साथ आत्महत्या करने जैसा दुस्साहस भी कर डालते हैं।
हम भारत के लोग..दुनिया भर के लोगों से वाकई अलग हैं। यही वजह है कि कोरोना संक्रमण के भीषण दौर में भी हम बिंदास होकर बीमारी से नहीं बल्कि पुलिस से बचने के लिए मास्क लगाते थे जैसे आज भी बाइक पर हेलमेट और कार में सीट बेल्ट बस पुलिस को दिखाने के लिए लगाते हैं। हम हेलमेट भी सुरक्षा की दृष्टि से कम फैशन के लिहाज से ज्यादा खरीदते हैं। लेकिन हमारा यही खिलंदड़पन हमें कोरोना के भीषणतम संक्रमण से भी बचा ले जाता है। यह हमारी सहजता ही है कि हम वायरस को ताली,थाली और दिए से भी भगाते हैं और फिर वैक्सीन लगवाने में भी दुनिया में रिकार्ड बना देते हैं। हम देशसेवा से लेकर समाजसेवा का ज्ञान देने में कभी पीछे नहीं रहते लेकिन जब उस पर अमल करने की बारी आती है तो हम उम्मीद करते हैं कि शुरुआत पड़ोसी के घर से हो।
हम भारत के लोग…वाकई,सबसे अलग हैं तभी तो स्वच्छता अभियान में जी जान से जुट जाते हैं और अपने शहर को नंबर वन बनाने में भी पीछे नहीं रहते लेकिन अगले ही पल उस दीवार को पान गुटखे की पीक से जरूर रंगते हैं जहां लिखा होता है कि ‘यहां थूकना मना है’। दीवारों को गीला करने में तो हमारा कोई सानी नहीं है। हम अन्न की बरबादी पर ज्ञान पेलने में सबसे आगे रहते हैं लेकिन किसी शादी-ब्याह में प्लेट भरकर खाना लेकर छोड़ देना हमारी फितरत का हिस्सा है। हम अपनी बेटी की शादी में दहेज के विरोधी हैं लेकिन बेटे की शादी में भरपूर दहेज की उम्मीद करते हैं। आपदा के समय हम घर के जेवर तक दे देते हैं, जरूरतमंदों के लिए खाने-पीने से लेकर जूते चप्पल तक जुटा लेते हैं और फिर स्थिति सामान्य होते ही मनमाना मुनाफा कमाने से भी नहीं चूकते। तभी तो फिल्म ‘फिर भी दिल है हिंदुस्तानी’ के गीत की पंक्तियां आगे कहती है:
“अपनी छतरी तुमको दे दे
कभी जो बरसे पानी
कभी नए पैकट मे बेचे
तुमको चीज पुरानी।”
हम भारत के लोग…सबसे जुदा हैं तभी तो एक सौ चालीस करोड़ की आबादी में महज तीन फ़ीसदी लोग ही टैक्स देना जरूरी समझते हैं और यहां चार्टर्ड एकाउंटेंट का काम वित्तीय लेनदेन में ईमानदारी से ज्यादा टैक्स बचाने के नुस्खे बांटना है लेकिन सार्वजनिक सुविधाओं में कमी के लिए सरकार को कोसने में सबसे आगे रहते हैं। हम क्रिकेट पर जान छिड़कते हैं और विश्व कप में हार पर ‘राष्ट्रीय मातम’ मनाते हैं लेकिन अगले ही दिन मिली जीत पर पटाखे चलाने से भी नहीं चूकते। हम प्रदूषण के खिलाफ़ खुलकर बोलते हैं पर अंधेरे में सड़क पर कचरा फेंकने या फिर सड़कों पर कानफोडू हॉर्न बजाने को अपना अधिकार समझते हैं। हम बच्चों को आदर्श नागरिक बनाना चाहते हैं लेकिन अगले ही पल ‘कह दो पापा घर पर नहीं हैं’ जैसे झूठ बोलने से या बच्चों के सामने सिग्लन जंप करने से परहेज नहीं करते।
हम भारत के लोग… सब कुछ हो सकते हैं झूठे,मक्कार,लालची,बिकाऊ,स्वार्थी सब कुछ,लेकिन जब बात लोकतंत्र की मजबूती की हो तो हम पंचायत से लेकर विधानसभा और लोकसभा चुनाव में अपनी समझ से अच्छे अच्छे राजनीतिक पंडितों के होश उड़ा देते हैं।..और जब बात देश की आन-बान-शान की हो तो ‘विजयी विश्व तिरंगा प्यारा,झंडा ऊंचा रहे हमारा’ का नारा देश का मंत्र बन जाता है। फिल्म ‘फिर भी दिल है हिंदुस्तानी’ के गीत की ये पंक्तियां हम भारत के लोगों पर सटीक बैठती हैं:
“थोड़ी मजबूरी है लेकिन
थोड़ी है मनमानी
थोड़ी तू तू मै मै है
और थोड़ी खींचा तानी
हम में काफी बाते हैं
जो लगती है दीवानी।”
हम भारत के लोग…वाकई,दीवाने हैं, विरले हैं, सबसे अलग हैं पर जैसे भी हैं सबसे अच्छे हैं। (28 Nov 2023)

मैं, मुख्यमंत्री निवास हूं…प्रदेश के मुखिया का आधिकारिक निवास…!!


मैं, मुख्यमंत्री निवास हूं…प्रदेश के मुखिया का आधिकारिक निवास। फिलहाल मेरी पहचान भोपाल के ‘6-श्यामला हिल्स’ के तौर पर है जहां मौजूदा मुख्यमंत्री रह रहे हैं। यह बंगला शायद मेरा अब तक का सबसे आदर्श पता है। श्यामला हिल्स की ऊंची और हरियाली की चादर ओढ़े खूबसूरत पहाड़ी पर बना मेरा यह घर मुख्यमंत्री पद की आन-बान-शान के बिल्कुल अनुरूप है। मेरे सामने मौजूद बड़ा तालाब अपनी उछलकूद करती लहरों के बाद भी शांत रहकर मुझमें भी धैर्य का संचार करता है और दिन भर की राजनीतिक सरगर्मियों के बाद भी मेरे अंदर ठहराव का कारण यही है। बड़ा तालाब अपने विस्तार और प्रवाह से मेरे अंदर के बड़प्पन का स्मरण कराता रहता है। आखिर,मुख्यमंत्री की मेजबानी,उनकी चिंताओं, खुशियों, दुःख, राजनीतिक उठा पटक, साज़िश और पद के सुकून सहित इतना कुछ सहने के बाद भी बड़े तालाब सा शांत रहने के लिए बड़प्पन तो चाहिए ही।
अब एक बार फिर सभी की निगाह मुझ पर टिकी हैं…राजनीति के उद्भट खिलाड़ियों से लेकर गुणा भाग में माहिर नेताओं तक,मीडिया के सीधे तने सिद्धांत प्रिय पत्रकारों से लेकर रीढ़ विहीन कलमकार और बाइट वीर तक मेरी ओर टकटकी लगाकर देख रहे हैं। आम जनता के साथ साथ मुझे भी हर चुनाव के साथ अपने नए ‘किरायेदार’ का बेसब्री से इंतज़ार रहता है। किरायेदार इसलिए,क्योंकि मैं और मेरी पहचान तो कमोवेश अब स्थाई हो गई है लेकिन मेरा आतिथ्य स्वीकार करने वाले जरूर अस्थाई होते हैं। कोई पांच साल,कोई ढाई साल तो कोई पंद्रह महीने..और किसी की तो बस कल्पना का हिस्सा ही बन पाता हूं मैं। शिवराज जी जैसे कुछ ही भाग्यशाली हैं जिन्होंने सालों साल मुझे भोगा है,मुझे संवारा है और खुद को भी निखारा है।
ऐसा नहीं है कि मुझे अपने जन्म के साथ ही श्यामला हिल्स का यह भव्य और गरिमामय ठिकाना मिल गया था बल्कि यहां तक पहुंचने के लिए मैंने भी प्रदेश की राजनीति की तरह लंबा फासला तय किया है। अब कहा तो यह भी जा सकता है कि प्रदेश का मुखिया जहां रहेगा वह अपने आप में सबसे बड़ी पहचान है लेकिन मेरी भी तो अपनी कोई हैसियत है न… और इसलिए ठिकाना भी स्थाई होना चाहिए। जब हमारे राज्य मप्र का जन्म हुआ और प्रदेश को पंडित रविशंकर शुक्ल के रूप में पहला मुखिया मिला तो पुराने शहर का आइना बंगला मेरी पहचान बन गया जिसे आज आप स्टेट गेस्ट हाउस के तौर पर जानते हैं। पंडित शुक्ल के बाद डॉ कैलाश नाथ काटजू और भगवंत राव मंडलोई को भी मुझमें कोई खोट नज़र नहीं आया लेकिन पंडित द्वारिका प्रसाद मिश्र पता नहीं क्यों मुझसे कुछ खफा हो गए और मेरा ठिकाना बदलकर श्यामला हिल्स स्थित निशात मंज़िल हो गया । पुराना पता बदलने का दुःख तो हुआ लेकिन नया परिवेश शानदार लगा तो फिर यहीं मन लग गया। प्रकाश चंद सेठी मुझे प्रोफेसर कालोनी ले गए लेकिन मुझे इस बात की खुशी थी कि मैं श्यामला हिल्स के इर्द गिर्द ही हूं ।
फिर आए पंडित रविशंकर शुक्ल के पुत्र और उस कालखंड में प्रिंस चार्मिंग कहे जाने वाले श्यामाचरण शुक्ल। उनका दिल मेरे वर्तमान ठिकाने ‘6 श्यामला हिल्स’ पर आ गया और उनके साथ ही मेरे सजने संवरने के दिन भी शुरू हो गए। अब तक गेस्ट हाउस बनकर जमाने भर के प्रिय-अप्रिय लोगों की सेवा से मैं भी आजिज आ चुका था इसलिए श्यामा भैया की संगत में मैंने भी रुतबा हासिल करना शुरू किया। अरे, जब दुनिया भर में बड़े नेताओं के स्थाई पते हो सकते हैं तो देश के दिल मध्यप्रदेश के मुखिया का भला स्थाई पता क्यों नहीं होना चाहिए? श्यामा भैया,चाय के शौकीन थे और अपने करीबी लोगों को खुद विलायती रवायत से चाय बनाकर पिलाते थे। उनकी चाय की खुशबू से मेरा भी रोम रोम महकने लगता था। मैंने, अर्जुन सिंह का रूआब भी देखा है तो दिग्विजय सिंह की जिंदादिली भी, उमा भारती की अध्यात्मिकता से लेकर कैलाश जोशी का संतत्व,मोतीलाल वोरा की सादगी, शिवराज का संपर्क, सुंदरलाल पटवा और वीरेंद्र कुमार सखलेचा की गंभीरता भी। मैंने कमलनाथ के छोटे से दौर में खुद को बड़ा होते हुए भी देखा है। वैसे, कमलनाथ और मेरे बीच एक संबंध और भी है। वे इन दिनों जिस बंगले में रह रहे हैं वह गोविंद नारायण सिंह के दौर में कभी मुख्यमंत्री निवास रह चुका है।
अब,एक बार फिर विधानसभा चुनाव मेरे लिए भी पहेली बन गए हैं। जब एक्जिट पोल को भी अपने एक्जैक्ट होने पर शक है तो फिर मैं तो ईंट पत्थर का ढांचा बस हूं। मैं, न तो अपना नया किरायेदार तय कर सकता हूं और न ही कोई भविष्यवाणी। दशकों से मुख्यमंत्रियों का आवास होने का मतलब यह तो नहीं है न, कि मैं राजनीति की उलझी हुई गुत्थियों को सुलझा लूं । मैं,राजनीति के खेल का मूक दर्शक भर हूं जो महसूस तो सब कर लेता है पर कर कुछ भी नहीं सकता। हां,मैं बस इतना चाहता हूं कि प्रदेश का मुखिया कोई भी बने लेकिन मेरे रुतबे में कोई कमी नहीं आए बल्कि मेरी भव्यता दिन ब दिन और निखरती जाए ताकि मैं भी गर्व के साथ कह सकूं कि मैं 6 श्यामला हिल्स हूं, मप्र के मुख्यमंत्री का आधिकारिक निवास। (3 Dec 2023)

शनिवार, 7 अक्तूबर 2023

भोपाल में क्यों मंडरा रहे हैं खौफनाक गर्जना के साथ लड़ाकू विमान...!!


आमतौर पर अपनी शांत तासीर के लिए मशहूर भोपाल का आसमान इन दिनों लड़ाकू विमानों की गड़गड़ाहट से गूंज रहा है, बिल्कुल युद्ध सा माहौल है…सुखोई,जगुआर,मिराज जैसे दुश्मन के कलेजे में खौफ पैदा कर देने वाले 50 से ज्यादा लड़ाकू एवं परिवहन विमान और हेलीकाप्टर भोपाल के ऊपर मंडरा रहे है। उनकी गर्जना से पूरे शहर और खासतौर पर मुख्यमंत्री निवास,भारत भवन, श्यामला हिल्स और न्यू मार्केट सहित तमाम इलाक़े इन विमानों की गर्जना से थरथरा रहे हैं। आलम यह है कि नए जमाने की तकनीक संपन्न कारें इन विमानों की गर्जना से पिपयाने लगती हैं और जैसे ही वे किसी तरह शांत होती हैं फिर कोई विमान गड़गड़ाहट के जरिए अपनी आन-बान और शान का मुजाहरा पेश करते हुए गुजर जाता है और फिर बेचारी कारें डर के कारण घिघयाने लगती हैं।

हालांकि,बच्चों और महिलाओं को यह गर्जना अचंभित कर रही है तो युवाओं के लिए यह किसी जयघोष के समान है,देश की शक्ति संपन्नता का जयकार और सुरक्षित भविष्य का विजयनाद है। वहीं,बुजुर्ग हो चली पीढ़ी के लिए आसमान में मंडरा रहे ये विमान पुराने युद्धों पर यादों की जुगाली का मसाला प्रदान कर रहे हैं।

विमानों की यह चहलकदमी बीते कुछ दिनों से जारी है और 30 सितंबर तक इसी तरह अपने अट्टाहस से आसमां को गुंजायमान रखेगी। भोपाल के बतोलेबाज कभी इसे प्रधानमंत्री की भोपाल यात्रा की ड्रिल करार देते हैं तो कभी इसे चुनावों से तो कभी पाकिस्तान से युद्ध की तैयारी बना देते हैं। असलियत यह है कि, भारतीय वायुसेना इस साल वायुसेना दिवस के अवसर पर इसे जनभागीदारी का और जनता का उत्सव बनाने में जुटी है इसलिए दिल्ली में सालाना तौर पर होने वाला फ्लाईपास्ट देश के अलग अलग शहरों में हो रहा है।

भोपाल को जरूर पहली बार इतने बड़े पैमाने पर हो रहे फ्लाईपास्ट यानि लड़ाकू विमानों के कारनामों की मेजबानी का अवसर मिला है इसलिए लोग अचंभित है और उल्लासित भी। वायुसेना द्वारा दी गई आधिकारिक जानकारी के मुताबिक फ्लाईपास्ट में विभिन्न किस्म के 50 के करीब विमान शामिल होंगे और वे 30 सितंबर को रक्षामंत्री राजनाथ सिंह सहित कई सैन्य-असैन्य दिग्गजों की मौजूदगी में सुबह 10 बजे से क़रीब घंटे भर तक भोपाल के आकाश में हैरतअंगेज अठखेलियां करेंगे। इनमें लड़ाकू विमानों के साथ सूर्यकिरण और सारंग नामक हेलीकाप्टर टीमों के कारनामे तो दांतों तले अंगुली दबाने पर मजबूर कर देते हैं। 30 तारीख को फाइनल प्रदर्शन से पहले 28 सितंबर को फुल ड्रेस रिहर्सल यानि सौ टका टंच अभ्यास होगा और उसके पहले कुछ दिन तक सामान्य अभ्यास जिससे तमाम कौशल के बाद भी चूक की कोई गुंजाइश न रहे…इसलिए भोपाली दिल धड़का देने वाली गर्जना के लिए कुछ और दिन अपने कान और कलेजा मजबूत किए रहें और फिर पूरे जोश,उल्लास और देश प्रेम के साथ सपरिवार आनंद लें अनूठे एयर शो का..जो शायद वर्षों तक उनके दिलो दिमाग पर छाया रहेगा।

#AirForceDay. #airforce #bhopal 

#चारदेशचालीसकहानियां 

 #chardeshchaliskahaniyan

चार देश चालीस कहानियां

 पुस्तक: चार देश चालीस कहानियां


लेखक:संजीव शर्मा

विधा: यात्रा वृतांत/रिपोर्ताज

पृष्ठ: 164

मूल्य: 200 रुपए

प्रकाशक: लोक प्रकाशन, भोपाल

समीक्षक: प्रवीण दुबे,वरिष्ठ पत्रकार

इन दिनों अपने नए काम की व्यस्तता में इतना उलझा हूँ कि कुछ पढने लिखने का वक्त ही नहीं मिल पा रहा है..इस बीच संजीव शर्मा जी की नई किताब "चार देश चालीस कहानियां" की प्रति प्राप्त हुई... अमूमन मैं कोई भी किताब निरंतरता में ही पढ़ता हूँ यानी जब तक ख़त्म नहीं होती,तब तक छोड़ता नहीं... इसके साथ वैसी संभावना मेरी नई ज़िम्मेदारियों के चलते नहीं थी लेकिन जैसे ही मैंने पढ़ना शुरू किया तो इतनी रोचक और इतने प्रवाह के साथ इसमें तथ्यों को पिरोया गया है कि वही पाठक वाली निरंतरता इसमें भी बनी रही... पूरा पढने के बाद खुद तय नहीं कर पाया कि इसे किस श्रेणी में रखा जाए...ये यात्रा संस्मरण है....रिपोर्ताज है..सांस्कृतिक संकलन है...या फिर किसी यायावरी का दस्तावेज...चूंकि संजीव जी खुद बेहतरीन पत्रकार हैं..भाषा पर नियंत्रण उनका बहुत अच्छा है...दूसरे, वे उस इलाके से आते हैं जहाँ भगोने का पका हुआ एक चावल देखना हो तो ओशो और यदि दूसरा चावल देखना हो तो दादा आशुतोष राणा... कहने का आशय ये है कि उस इलाक़े में मां सरस्वती की कृपा कैसे बरसती है, ये दो नाम ही उसे झलकाने के पर्याप्त है.... संजीव शर्मा जी ने भी अपने उस इलाकाई गौरव को जीवंत रखा है... जब वे जापान में रहने वालों की देहयष्टि का जिक्र करते हैं तो, जो उनके अपने क्षेपक होते हैं,वे बेहद लाजवाब होते हैं... नार्थ ईस्ट के बारे में इतने रोचक तरीक़े से तथ्यों का प्रतुतिकरण मैंने नहीं पढ़ा कहीं और....मैं उस इलाके में जाने का इच्छुक बहुत हूँ लेकिन अब तक कोई ऐसा संयोग उपस्थित नहीं हो पाया...इनकी किताब के ज़रिए मैंने वहां की यात्रा सी कर ली..वो भी घर बैठे बैठे... बेहतरीन संग्रह है यदि आप अलग अलग जगह के लोगों की तासीर समझने के इच्छुक रहते हैं तो इसे पढ़ना 

चाहिए।

फ्लाईपास्ट और आलू की सब्जी-पूरी…

हालांकि, बीच में एक दौर ऐसा भी आया था जब हवाई यात्रा के दौरान भी कभी-कभार पूरी-सब्जी महकने लगी थी। यह वह दौर था, जब केंद्र सरकार ने सरकारी कर्मचारियों के लिए पूर्वोत्तर राज्यों, कश्मीर और लद्दाख की यात्रा के दौरान हवाई यात्रा के दरवाजे खोल दिए थे। तब, पहली बार परिवार के परिवार इस उड़न खटोले की यात्रा का स्वप्न लेकर अचार-पूरी के साथ हवाई अड्डों पर नजर आने लगे थे। हवाई जहाज़ में सीट पर पालती मारकर आलू की सब्जी और पूरी के साथ चूड़ा/नमकीन खाते परिवारों ने 'इलीट क्लास' या संपन्न वर्ग को नाक-मुंह सिकोड़ने पर मजबूर कर दिया था। हालांकि, अब तो ट्रेन में भी घर की बनी आलू-पूरी का स्थान जोमेटो, स्वीगी और इस तरह के ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के जरिए सुविधा के साथ मिलने वाले गर्मागर्म चाइनीज और पिज़्ज़ा-बर्गर ने ले लिया है, बिल्कुल वैसे ही, जैसे पानी के लिए घर की खूबसूरत छोटी सी सुराही की जगह ट्रेन में प्लास्टिक की बॉटल काबिज हो गई है।

खैर, विषय पर लौटते हैं और फ्लाईपास्ट में आलू-पूरी की गुत्थी सुलझाते हैं। भारतीय वायुसेना इस साल अपना 91 वा स्थापना दिवस मना रही है और आम लोगों को वायुसेना से जोड़ने के लिए अलग-अलग शहरों में विविध कार्यक्रम किए जा रहे हैं। जनभागीदारी के साथ उत्सव की इस श्रृंखला में भोपाल के हिस्से में वायुसेना का फ्लाईपास्ट आया और 30 सितंबर को हैरत अंगेज प्रदर्शन से पहले ही लड़ाकू विमानों की गर्जना ने भोपालियोँ को नींद से जगा दिया था। सोशल मीडिया में छाई तस्वीरों, इंस्टाग्राम रील,वीडियो और आसमान में गूंजती गड़गड़ाहट ने भोपालियों को पहले ही मुख्य इवेंट के लिए तैयार कर दिया था। इस शहर के लोग तो सौ रुपए टिकट देकर भी घण्टे भर के नाटक के लिए घंटों लाइन में लगने से भी परहेज नहीं करते तो फिर ये तो फ्लाईपास्ट था और वो भी मुफ़्त। ऐसा फ्लाईपास्ट, जो इस शहर में पहली बार हो रहा था…बस,फिर क्या था हो गई तैयारी शुरू और फिर परिवार कुटुंब में बदले और एकल फैमिली कालोनी में। कहने का आशय यह है कि भोपाल के लोगों के लिए यह पिकनिक का दिन था,उत्सव का दिन था,उल्लास का और एकजुट होकर मस्ताने का मौका था। अल सुबह से ही बड़े तालाब के रास्तों पर भीड़ उमड़ने लगी। प्रशासन ने मुख्यमंत्री निवास से बोट क्लब तक 'पास' अनिवार्य किया तो भोपाल के लोगों ने उसका भी रास्ता निकाल लिया । वे पास की अनिवार्यता लागू होने के पहले ही दरी-चटाई और सब्जी-पूरी के साथ आयोजन स्थल पर जम गए। जैसे ही आसमान में विमानों की अठखेलियां शुरू हुई, तो धरती पर चटाई दरी बिछ गई…धीरे-धीरे थैलों से डिब्बे और फिर डिब्बों के अंदर से डिब्बे तथा थर्मस निकलने लगे और अचार से लेकर चाय तक की खुशबू से बोट क्लब और वीआईपी रोड महकने लगी।

तेज़ धूप में डेढ़ घंटे के फ्लाईपास्ट के बाद जब पासधारी तबका भीड़ से किसी तरह निकलने की जद्दोजहद में जुटा था, वीआईपी कारें अपने हूटर के जरिए अपने ख़ास होने के दर्जे के बाद भी हजारों लोगों की भीड़ में छटपटा रही थीं और उनके प्रोटोकाल/सुरक्षा कर्मी ढंग से खुद निकलने का रास्ता भी नहीं बना पा रहे थे तब स्मार्ट भोपाली पूरी तरह से बोट क्लब पर फैल पसर चुके थे और तल्लीनता के साथ आलू की सब्जी पूरी, अचार के साथ चाय की चुस्कियां ले रहे थे। हम जैसे भीड़ में फंसे लोगों के साथ साथ कार में एसी की ठंडक में कैद वीआईपी लोगों को भी भोपालियों के इस मज़े से पक्का जलन हो रही होगी। इन लोगों को न जाम की परवाह थी, न आराम की और न ही घर जाने की। चार घंटे की भरपूर पिकनिक, तसल्ली से पेटपूजा और बच्चों की जीभर के धमा-चौकड़ी के बाद यहां से वापसी शुरू हुई। तब तक जाम भी खुल गया था और रास्ते भी…इसलिए लोग सुकून से घर लौटे और फिर किसी नए आयोजन की तैयारी में जुट गए क्योंकि कल इतवार है और सोमवार को बापू की मेहरबानी से एक और छुट्टी।

अलौलिक के साथ आधुनिक बनती अयोध्या

कहि न जाइ कछु नगर बिभूती।  जनु एतनिअ बिरंचि करतूती॥ सब बिधि सब पुर लोग सुखारी। रामचंद मुख चंदु निहारी॥ तुलसीदास जी ने लिखा है कि अयोध्या नगर...