मंगलवार, 15 मई 2018

आसान नहीं है पूर्वोत्तर में पीआर..!!


पूर्वोत्तर का नाम लेते ही हमारे सामने हरियाली से भरपूर और वरुण देवता की मेहरबानी से सराबोर ऐसे क्षेत्र की तस्वीर सामने आ जाती है जिसे शायद प्रकृति का सबसे अधिक लाड़ एवं दुलार मिला है । यहाँ आसमान छूने की होड़ करते बांस के जंगल हैं तो घर-घर में फैले तालाबों में अठखेलियाँ करती मछलियाँ । देश के दूसरे राज्यों से यह ‘अष्टलक्ष्मी’ इस मामले में अलग है कि यहाँ धरती के सीने पर गेंहू और चने की फसलें नहीं बल्कि कड़कदार चाय की पत्तियां लहलहाती है और ऊँचे ऊँचे बांस के जंगल इठलाते हैं । यहाँ की धरती कभी अपनी बांहों में पानी समेटकर धान सींचती है तो कहीं मछलियों के लिए तालाब बन जाती है । पूर्वोत्तर अपनी अद्भुत कला और हस्तशिल्प की एक समृद्ध विरासत के लिए भी जाना जाता है जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी यहाँ अब तक निखर रही है ।

भौगोलिक-सामाजिक परिदृश्य
दरअसल किसी भी क्षेत्र में जनसंपर्क की संभावनाएं,स्थिति और चुनौतियों को समझने के लिए उस क्षेत्र की भौगोलिक,सांस्कृतिक और सामाजिक पृष्ठभूमि को जानना भी उतना ही जरुरी है ताकि विषय को समझने में आसानी हो । ऐतिहासिक और समकालीन आयामों की समग्र समझ हासिल करने के बाद ही जनसंपर्क से जुड़ी समस्याओं के विभिन्न पहलुओं का आकलन किया जा सकता हैं । दुर्भाग्य से, इस क्षेत्र के बारे में अब तक पर्याप्त रूप से विश्लेषण नहीं हुआ है।
भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में आठ राज्य असम, नागालैंड, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, त्रिपुरा और सिक्किम  शामिल हैं और यह पूरा क्षेत्र एक गलियारे के जरिए देश की मुख्य धारा से जुड़ा है । पूर्वोत्तर क्षेत्र के अधिकतर राज्य भूटान, म्यांमार, बांग्लादेश और चीन जैसे देशों के साथ अपनी सीमा साझा करते हैं । कुछ समय पहले तक  अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम को छोड़कर इस क्षेत्र में अधिकांश राज्य किसी न किसी तरह के संघर्ष से प्रभावित थे इन संघर्षों के कारणों पर नज़र डाली जाए तो इनमें अलगाववादी आंदोलनों से लेकर अंतर-सामुदायिक, सांप्रदायिक और अंतर जातीय संघर्ष जैसे विभिन्न मुद्दे शामिल रहे हैं लेकिन अब स्थिति में आशानुरूप बदलाव आया है जिससे इस क्षेत्र में स्थिरता, शांति, सद्भाव और सौहार्द्रता बढ़ी है । वैसे भी,यह इलाक़ा जातीय, भाषायी और सांस्कृतिक रूप से भारत के अन्य राज्यों से बहुत अलग है ।
जानकारों की माने तो अब तक आर्थिक और सामाजिक दोनों तरह के विकास के संदर्भ में पूर्वोत्तर की उपेक्षा हुई है । दशकों तक, पूर्वोत्तर को व्यवसाय और उद्यम के अनुकूल नहीं माना गया । निरंतर संघर्ष, आंतरिक कलह और भौगोलिक अलगाव जैसे तमाम मुद्दों ने यहाँ निवेश के सूखेपन को बनाए रखा और इसके फलस्वरूप इस क्षेत्र में आर्थिक और सामाजिक विकास की कमी बरक़रार रही । हालाँकि यह क्षेत्र अपने प्राकृतिक संसाधनों की समृद्धि की वजह से निवेश और इस क्षेत्र में उद्यम की वृद्धि के लिए एक बड़ा अवसर पेश करता रहा है ।

पूर्वोत्तर में जनसंपर्क विभाग
देश के अन्य राज्यों की भांति पूर्वोत्तर में भी जनसंपर्क विभागों को मोटे तौर पर ‘सूचना और जनसंपर्क निदेशालय’ के नाम से जाना जाता  है । यहाँ के सभी राज्यों ने अपने अपने सूचना और जनसंपर्क निदेशालय बनाए हुए हैं और प्रदेश सरकार के क्रियाकलापों के प्रचार- प्रसार की जिम्मेदारी इन्हीं विभागों के पास है । पूर्वोत्तर के आठों राज्यों में तुलनात्मक रूप से देखें तो सबसे पहले असम में जनसंपर्क विभाग की नींव पड़ी । वैसे भी स्वतन्त्रता पूर्व और उसके बाद भी लम्बे समय तक असम ही एकमात्र बड़ा राज्य रहा है और तब यहाँ के कई राज्यों का पृथक अस्तित्व भी नहीं था और उनका गठन बाद में समय समय पर हुए क्षेत्रीय आन्दोलनों तथा भौगोलिक परिस्थितियों के मद्देनजर हुआ है ।

असम में जनसंपर्क विभाग
असम में जनसंपर्क विभाग की स्थापना जून 1940 में राज्य की तत्कालीन राजधानी शिलाँग में हुई थी । स्थापना के समय में इसे प्रचार और ग्रामीण विकास विभाग का नाम दिया गया था । विभाग की स्थापना के पीछे मुख्य उद्देश्य द्वितीय विश्व युद्ध के मद्देनजर मौजूदा सरकार के समर्थन में प्रचार करना और सार्वजनिक मनोबल को बनाए रखना था । उस समय प्रचार विभाग के प्रमुख को प्रचार अधिकारी कहा जाता था और उनके मातहत दो सहायक प्रचार अधिकारी थे इनमें से एक सहायक प्रचार अधिकारी असम घाटी के लिए और दूसरा सुरमा घाटी (अब बांग्लादेश) के लिए था । विभाग के पहले प्रचार अधिकारी असम सिविल सेवा के अधिकारी याहिया खान चौधरी थे । उस समय के विभाग का मुख्य कार्य प्रेस नोट, लेख और पुस्तिकाओं के माध्यम से युद्ध संबंधी समाचारों और सूचनाओं पर ध्यान केंद्रित करना था । स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद, जनसंपर्क निदेशालय की जिम्मेदारी, कद और महत्व कई गुना बढ़ गया । विभाग प्रत्येक पखवाड़े में नियमित रूप से दो रिपोर्ट,एक,  भारत-पाकिस्तान संबंधों के बारे में और दूसरी,राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री को जनता की राय के बारे में भेजता था । बाद में, निदेशालय के अंतर्गत प्रदर्शनी, सांस्कृतिक और फिल्म प्रभाग जैसे अलग-अलग विभाग भी बनाए गए ।

मिजोरम में जनसंपर्क विभाग
मिज़ोरम के केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद में 1972 में यहाँ सूचना विभाग अस्तित्व में आया । विभाग के पहले निदेशक पु आर एल थानजावना थे जो असम सिविल सेवा के अधिकारी थे । उन्होंने 1 मई 1972 को इस विभाग का प्रभार संभाला । उस समय पर्यटन भी इसी विभाग में शामिल था। विभाग ने अपना प्रेस भी शुरू किया गया था जो उस समय शायद बड़ी बात थी । बाद के वर्षों में, पर्यटन और मुद्रण और स्टेशनरी अलग विभाग बन गए और मूल विभाग अंततः सूचना एवं जन संपर्क विभाग बन गया ।

नागालैंड में जनसंपर्क विभाग
नागालैंड में  प्रचार शाखा को अगस्त 1963 में एक पूर्ण निदेशालय का दर्जा दिया गया । सबसे अचरज की बात यह है कि यह काम नागालैंड को राज्य का दर्जा प्राप्त होने के तीन महीने ही कर दिया गया । पहले इसे सूचना और प्रचार विभाग  के रूप में जाना जाता था 1984 में इस विभाग का नामकरण सूचना और जनसंपर्क विभाग के रूप में किया गया ताकि इसे प्रचार से जुड़े कार्यों के अधिक से अधिक अवसर मिल सके ।
इसीतरह एक-एक कर पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों मेघालय,मणिपुर,त्रिपुरा,अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम में जनसंपर्क विभाग की नींव पड़ी और इन विभागों ने अपनी अपनी राज्य सरकारों और कई बार केंद्र सरकार से राज्य के दौरे पर आने वाले मंत्रियों के दौरों से जुड़ी सूचनाओं के प्रचार-प्रसार में कोई कमी नहीं रहने दी ।

जनसंपर्क विभाग के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ
पूर्वोत्तर में जनसंपर्क विभाग का काम देश के अन्य राज्यों की तुलना में काफी चुनौतीपूर्ण और खतरों से भरा भी कहा जा सकता है । यहाँ काम करने वाले जनसंपर्क अधिकारियों को पल पल पर किसी चुनौती का सामना करने के लिए तैयार रहना पड़ता है ।

उग्रवाद
अगर हम विषयवार चुनौतियों की चर्चा करें तो यहाँ जनसंपर्क कर्मियों को सबसे ज्यादा उग्रवाद या हिंसक गतिविधियों का मुकाबला करना पड़ता है । कुछ राज्यों को छोड़ दिया जाए तो आज भी पूर्वोत्तर के अधिकतर अशहरी इलाके कम या ज्यादा मात्रा में उग्रवाद की चपेट में हैं । अलग अलग जातीय-जनजातीय समूहों,भाषागत समूहों और इन सबसे बढ़कर अपने लिए कभी अलग प्रदेश तो कभी स्वायत्तशासी परिषद तो कभी ज्यादा अधिकार की मांग को लेकर हिंसक गतिविधियों में शामिल समूह जनसंपर्क गतिविधियों में बाधक बनते रहते हैं । उदाहरण के तौर पर जब मिजोरम में उग्रवादी गतिविधियाँ शबाव पर थीं उस दौरान विभाग के पहले निदेशक पु आर एल थानजावना उग्रवादियों के घात लगाकर किए गए हमले का शिकार बन गए थे । दरअसल वे उस क्षेत्र में तत्कालीन राज्यपाल  लेफ्टिनेंट गवर्नर श्री एस पी मुखर्जी के काफ़िले का हिस्सा थे और अपने कर्तव्य का निर्वाहन कर रहे थे लेकिन भाग्य ने उनका साथ दिया और वे बाल बाल बच गए । हालाँकि श्री थानजावना के विभागीय प्रमुख होने के कारण यह किस्सा मीडिया में आ गया वरना निचले स्तर के कर्मचारियों के साथ ऐसे हादसे आए दिन होते रहते हैं लेकिन वे उतनी सुर्खियाँ नहीं बटोर पाते । इनमें जनसंपर्क विभाग के कर्मी भी शामिल होते हैं ।
हालाँकि काबिलेतारीफ बात यह है कि मिजोरम में उग्रवाद की आग को शांत करने के लिए जनसंपर्क विभाग ने इन हादसों की परवाह नहीं करते हुए अनेक अनुकरणीय काम किए जिनमें कार्यालयीन कार्यों के अलावा सांस्कृतिक आदान-प्रदान, प्रदर्शनियों, अध्ययन यात्राओं, शीतकालीन एवं क्रिसमस मेलों सहित ऐसे कई कार्यक्रम शामिल थे जिनके आयोजन से समाज में समरसता बढ़ने में मदद मिली और आज मिजोरम पूर्वोत्तर के सबसे शांतिप्रिय राज्यों में शामिल है ।
मिजोरम ही क्यों मणिपुर,नागालैंड,त्रिपुरा और असम में भी हिंसक विद्रोह की अवधि के दौरान, सूचना एवं जनसंपर्क विभाग ने लोगों के दिल-ओ-दिमाग पर विजय प्राप्त करने के लिए अनेक अभियान सफलतापूर्वक संचालित किए, जो धीरे-धीरे भूमिगत तत्वों और सरकार के बीच बातचीत का माहौल बनाने में सहभागी बने । विभाग ने प्रभावित इलाकों में चर्च के प्रमुखों और आम लोगों पर गहरा असर रखने वाले स्वैच्छिक संगठनों सहित समाज के प्रभावशाली तबकों  को शांति प्रक्रिया का हिस्सा बनाया और फिर इसे स्थायी शांति में बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई । शांति स्थापित होने से इन राज्यों में विकास के लिए अनुकूल वातावरण बना और फिर इससे देश के अन्य प्रदेशों की तरह खुशहाली के नए द्वार खुले । जनसंपर्क विभाग के इन प्रयासों के परिणामस्वरूपयहाँ के कई राज्यों शांति समझौते पर हस्ताक्षर हुए । सूचना एवं जनसंपर्क विभाग का काम बस यहीं ख़त्म नहीं हुआ बल्कि उसने शांति स्थापना और परस्पर शांति समझौतों के बाद लगातार विभिन्न मीडिया के माध्यम से लोगों तक अपनी पहुंच कायम रखी ताकि समाज विरोधी तत्वों को फिर सर उठाने का मौका न मिले ।

इंटरनेट कनेक्टिविटी
पूर्वोत्तर के जनसंपर्क अधिकारियों के समक्ष दूसरी बड़ी समस्या इंटरनेट कनेक्टिविटी की है। आमतौर पर यहाँ नेट की गति कछुए जैसी रहती है और उस पर भी बीच बीच में एकाएक गायब ही हो जाती है । समाचार या समाचार परक सूचनाओं के साथ सबसे अहम् बात उनकी तात्कालिकता ही होती है और यदि नेट कनेक्टिविटी नहीं होने के कारण ये सूचनाएं मीडिया हॉउस तक देर से पहुचेंगी तो उनका महत्व और सार्थकता निश्चित ही कम हो जाएगी । इसीतरह बिजली आपूर्ति में कमी के कारण मोबाइल चार्ज करना भी कठिन हो जाता है । जब शहरों में यह हाल है तो अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि जिला स्तर पर कम करने वाले अधिकारियों को और कितने मुश्किल हालात से जूझना पड़ता होगा । वैसे आजकल मोबाइल चार्जिंग के लिए बैटरी बैकअप जैसे विकल्प उपलब्ध हैं लेकिन इंटरनेट की कनेक्टिविटी तो समस्या है ही और यह कई अन्य समस्याओं की जननी भी है ।

सुव्यवस्थित परिवहन व्यवस्था का अभाव
यहाँ जनसंपर्क करने के मार्ग में एक बाधा सुव्यवस्थित परिवहन व्यवस्था का अभाव भी हैं । इसके परिणामस्वरूप किसी भी कवरेज के लिए कार्यक्रम स्थल पर समय से पहुंचना और फिर समय पर ही वापस आकर उसकी रिपोर्ट समाचार माध्यमों तक भेजना वाकई मुश्किल हो जाता है । यदि समय पर समाचार पत्र-पत्रिकाओं तक वांछित जानकारी जानकारी नहीं पहुँचती है तो अनेक बार आधी अधूरी या भरक जानकारी के आधार पर समाचार प्रकाशित होने का खतरा बढ़ जाता है जिसके दूरगामी परिणाम हो सकते हैं ।

बंद से काम में बाधा
सड़क,बिजली,नेट जैसी आधारभूत और संरचनात्मक समस्याओं के अलावा यहाँ आए दिन होने वाले बंद भी एक प्रमुख समस्या हैं । हो सकता है देश के अन्य राज्यों के लोगों के लिए यह आश्चर्यजनक हो परन्तु पूर्वोत्तर में शहर या राज्य बंद होना आम बात है और आए दिन कोई भी छोटा-बड़ा संगठन अपनी समस्या को लेकर बंद करता रहता है । खास बात यह है कि यह बंद केवल शहर तक नहीं बल्कि रेल रोको तक व्याप्त है इससे परिवहन की समस्या और बढ़ जाती है ।

अन्य कारण
इसके अलावा भाषाई समस्या,वित्तीय संसाधनों की कमी,कुशल मानव संसाधन का अभाव,भौगोलिक परिस्थितियां,मौसमीय कारक जैसे अत्यधिक वर्षा,बाढ़, आए दिन होने वाले भूस्खलन,भूकंप,दूरदराज के गांवों तक पहुँच की समस्या,जागरूकता की कमी जैसे तमाम कारण हैं जिनके कारण पूर्वोत्तर में पीआर(पब्लिक रिलेशंस) करना आसान नहीं है ।

जनसंपर्क विभाग की उल्लेखनीय भूमिका
  हालाँकि,इन सभी समस्याओं,बाधाओं और कमियों के बाद भी पूर्वोत्तर में अधिकतर सरकारी-गैर सरकारी जनसंपर्क विभागों ने अब तक सराहनीय भूमिका निभाई है चाहे फिर वह असम में एनआरसी (नेशनल रजिस्टर पर सिटिज़न्स/राष्ट्रीय नागरिकता पंजीयन) जैसा वृहद् अभियान हो या फिर नागा/मार/उल्फा या फिर किसी अन्य उग्रवादी संगठन के साथ समझौते की कवायद । जनसंपर्क विभागों ने सदैव ही जनता के लिए उत्तरदायी, मूल्य आधारित जानकारी प्रदान करने और जनता को हरसंभव सहायता देने में कोई कसर नहीं छोड़ी । विभाग ने सरकार से संबंधित सूचनाओं पर मीडिया के सहयोग से आम जनता या विशेष समूहों, सरकार के अनुकूल पक्षों और प्रतिक्रियाओं को स्थापित करने, दृष्टिकोणों का विश्लेषण करने , प्रक्रियाओं और नीतियों के मूल्यांकन और लोगों तक सरकार के उद्देश्यों को पहुँचाने में सक्रिय भूमिका निभाई  है । वास्तविकता में जवाबदेही और पारदर्शिता का सिद्धांत सुशासन का एक अनिवार्य मानदंड है और पूर्वोत्तर में जनसंपर्क विभाग इस कसौटी पर खरा उतरता नज़र आ रहा है ।




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