देश में इकलौता और दुनिया में सबसे अलग..क्या है ये !!
लकड़ी और पत्थर से बनी इस इमारत में कुछ तो खास बात है कि दुनिया भर से लोग इसे पैसे देकर देखने आते हैं। यहां भारतीय लोग 100 रुपए देकर और विदेशी 200 रुपए देकर अन्दर से देख सकते हैं। अचरज की बात यह है कि यह इमारत आगरा के ताजमहल या अयोध्या के राम मंदिर जैसा स्थान भी नहीं है कि दुनिया में और कहीं न हो। दुनिया भर के कई देशों में अपने हम नाम और समान आर्किटेक्चर शैली के भाई बंधुओं के बाद भी इसका आकर्षण बरकरार है। शायद इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि इसके समकालीन साथी समय के साथ दम तोड़ चुके हैं और दूसरा कारण यह भी है कि विदेशी पर्यटक और खासकर ब्रिटेन के लोग इसे अपनी विरासत से जोड़कर देखते हैं।
हम बात कर रहे हैं हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला के मशहूर गैटी/गेयटी थिएटर (Gaiety Theatre) की । जिसे अब गेयटी हेरिटेज कल्चरल कॉम्प्लेक्स के नाम से जाना जाता है।
जैसा कि हम जानते हैं कि अंग्रेजों ने लंबे समय तक शिमला का इस्तेमाल अपनी सत्ता के शीर्ष केंद्र की तरह किया है और इसीलिए अपने मनोरंजन के कई ठिकाने भी यहां बनाए। इनमें से मॉल रोड अंग्रेजों की शिमला को सबसे खूबसूरत देन है और इसी मॉल रोड पर स्थित है ब्रिटिश हुकूमत का एक तौर नायाब तोहफा-गेयटी थियेटर ।
30 मई 1887 से देशी विदेशी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र यह थियेटर आज भी उसी शान-ए-शौकत के साथ लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचता है। शिमला में रिज पर स्थित चर्च के बाद गेयटी थियेटर लोकप्रियता में संभवतः दूसरे स्थान पर है। अंग्रेज साहबों और मेम साहब के आमोद प्रमोद का पूरा ध्यान रखते हुए इसका डिजाइन गॉथिक व विक्टोरियन शैली के जानकार अंग्रेज आर्किटेक्ट हेनरी इरविन ने तैयार किया था। वैसे भी, उस दौर में अंग्रेज अफसरों और उनके परिवारों के अलावा किसी और का मॉल रोड पर आना प्रतिबंधित था।
बताया जाता है शिमला की शान यह गैटी या गेयटी थियेटर मूल रूप से पांच-मंज़िला इमारत थी, जिसमें थिएटर के साथ-साथ बैले रूम, शस्त्र भंडार, पुलिस कार्यालय, बार और गैलरी थीं। इसके निर्माण के लगभग दो दशकों बाद 1911 में इमारत की ऊपरी मंज़िलों को खतरनाक संरचनात्मक स्थिति के कारण गिरा दिया गया । फिर 2003 में करीब साढ़े 11 करोड़ रुपये की लागत से इसकी मरम्मत का काम शुरू हुआ और छह साल बाद 2009 में यह मौजूदा वैभव के साथ लौटा। इस मरम्मत की खासियत यह थी कि इसमें तमाम आधुनिकीकरण के बाद भी यहां के पुरानी शैली के परदे,परदे खोलने बंद करने की पारंपरिक व्यवस्था (रस्सी, पुली) जैसी कई वास्तुशिल्पीय एवं पुरातात्विक विशेषताओं से छेड़छाड़ नहीं की गई।
गॉथिक शैली में बनाई गई यह इमारत पत्थर और लकड़ी की पारंपरिक डिजाइन से सुसज्जित है। दरअसल, गॉथिक शैली 18वीं से 19वीं सदी में विकसित एक वास्तुशिल्प शैली है। इसकी मुख्य विशेषताओं में नुकीले मेहराब, ऊँची छतें,आर्च जैसी खूबियां शामिल हैं। यह शैली इमारतों में भव्यता के साथ साथ ऐतिहासिकता का बोध भी कराती है और खासतौर पर चर्चों, विश्वविद्यालयों एवं सरकारी भवनों के निर्माण में लोकप्रिय थी। ब्रिटेन का हाउस ऑफ पार्लियामेंट तथा संयुक्त राज्य अमेरिका का सेंट पैट्रिक कैथेड्रल इस शैली के लोकप्रिय उदाहरण हैं ।
शिमला में स्थित गेयटी थिएटर करीब 300 लोगों के बैठने की क्षमता रखता है। इसके पास एक ओपन-एयर एम्फीथिएटर भी है। थिएटर में आधुनिक स्टेज लाइटिंग और साउंड सिस्टम सहित तमाम सुविधाएं हैं। गेयटी थियेटर को हम मौजूदा समय में दिल्ली के मंडी हाउस और भोपाल के भारत भवन की तरह शिमला का सांस्कृतिक केंद्र कह सकते हैं क्योंकि यहां भी नाटकों, संगीत कार्यक्रमों, लोक व शास्त्रीय नृत्य, कवि सम्मेलनों और व्याख्यान जैसे विभिन्न कार्यक्रम होते रहते हैं। इसलिए इसे गेयटी विरासत सांस्कृतिक परिसर भी कहा जाता है।
शिमला का गेयटी थिएटर इस मामले में किस्मत का धनी है कि दुनिया भर के नामचीन लोग यहां अपनी कला का प्रदर्शन कर चुके हैं जिनमें रुडयार्ड किपलिंग, पृथ्वीराज कपूर, बलराज साहनी, अनुपम खेर एवं नसीरुद्दीन शाह जैसे कई बड़े नाम शामिल है। बताया जाता है मौजूदा दौर के लोकप्रिय गायक अरिजीत सिंह का एक लोकप्रिय गाना 'पछताओगे.. ' भी यहीं फिल्माया गया है। कहने का आशय यह है कि इस थियेटर ने पृथ्वीराज कपूर से लेकर अरिजीत सिंह तक को अपने मोहपाश में बांध रखा है।
जब हम गूगल गुरू एवं इनकी नई पीढ़ी के एआई साथियों की मदद से गेयटी थियेटर का इतिहास खंगालने की कोशिश करते हैं तो अलग अलग तथ्य सामने आते हैं। मसलन कुछ स्रोतों में कहा गया है कि दुनिया में इसतरह के केवल छह थियेटर हैं लेकिन इस नाम से मिलती जुलती कुछ अन्य संस्थाएँ भी हैं।
यदि हम शिमला की तरह दुनिया में अन्य स्थानों पर निर्मित एवं लोकप्रिय गेयटी थियेटर की बात करें तो आयरलैंड के डबलिन में स्थित गेयटी थिएटर शिमला से कुछ साल पहले 27 नवम्बर 1871 को शुरू हुआ था। विक्टोरिया शैली में बना यह थियेटर अभी भी चालू है। ब्रिटेन के डगलस में भी गेयटी थिएटर सह ओपेरा हाउस है। विक्टोरियन के साथ साथ फ्रेंच शैली में बना यह थियेटर शिमला के गेयटी थियेटर के एक दशक बाद 1899 में शुरू हुआ था और यह आज भी अपना जलवा बिखेर रहा है।ऑस्ट्रेलिया के तस्मानिया में भी एक गेयटी थियेटर है जो 9 अक्टूबर 1898 को प्रारम्भ हुआ था। यह 19वीं सदी के ऑस्ट्रेलियाई हिस्टोरिक थिएटर भवन शैली में बना है और 2006 में पुनर्निर्माण के बाद से सिनेमा और लाइव-इंटरटेनमेंट का प्रमुख केंद्र है।
लेकिन कुछ गेयटी थियेटर ऐसे भी हैं जो प्राकृतिक आपदाओं और रखरखाव के अभाव में समय के साथ इतिहास के पन्नों में दर्ज होकर रह गए जैसे जापान के याकोहामा में स्थित पश्चिमी-शैली का वुडन स्टेज शैली वाला गेयटी थिएटर 1908 में शुरू हुआ था लेकिन 1923 में आए विनाशकारी भूकंप में पूरी तरह नष्ट हो गया और इसे फिर से बनाने का कोई प्रयास भी नहीं हुआ। लंदन में 1864-68 के दरम्यान शुरू हुआ विक्टोरियन शैली का गेयटी थियेटर भी वक्त के झंझावतों के साथ खुलता बंद होता रहा और अंततः 1956 में अपना मूल स्वरूप गंवा बैठा। कुछ यही हाल इंग्लैंड के मैनचेस्टर में 1884 में शुरू हुए और स्कॉटलैंड के ग्लासगो में 1899 में बने गेयटी थियेटर का हुआ। ये थियेटर भी वक्त की मार बर्दाश्त नहीं कर पाए और समय के साथ अपना अस्तित्व खो बैठे।
वैसे, गेयटी थियेटर के नामकरण की कहानी भी हमारी जीवनशैली से जुड़ी है। Gaiety का अर्थ होता है- उल्लास, खुशी, प्रसन्नता, या मौज-मस्ती। मतलब गेयटी थियेटर एक ऐसा स्थान है जिसका उपयोग किसी उत्सव और आनंद के लिए किया जाता है। ब्रिटिश हुकूमत के समय से लेकर आज तक यह थियेटर अपनी इस पहचान को क़ायम रखे हुए है। शायद, यही कारण है कि शिमला सहित दुनिया में कम संख्या में शेष बचे गेयटी परिवार के सदस्य आज भी लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचने में कामयाब हैं।
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