राष्ट्रपति निवास,नाटी किंग और लज़ीज़ धाम
तकरीबन चार घंटे का वक्त किसी मनपसंद फिल्म की तरह कब गुजर गया,पता ही नहीं चला। जब चलने की बारी आई तो मन ने कहा कुछ देर और ठहर जाएं लेकिन जिम्मेदारी ने कहा और ठहरे तो फिर काम का क्या होगा क्योंकि जो देखा है उसे ख़बर बनाकर मीडिया के साथियों को भी तो भेजना है। तभी तो, हिमाचल के लोगों को पता चल पाएगा कि राज्य में सांस्कृतिक मोर्चे पर कितना कुछ हो रहा है।
दरअसल, राष्ट्रपति निवास, शिमला में शनिवार एक नवंबर को सालाना शरद उत्सव का आयोजन किया गया था। यह तारीख हमारे लिए तो वैसे भी खास है क्योंकि यह हमारे राज्य मध्यप्रदेश का स्थापना दिवस है और यदि आज हिमाचल प्रदेश में नहीं होते तो पक्का भोपाल में किसी सांस्कृतिक कार्यक्रम का हिस्सा होते। शायद, मन को पढ़कर यह अवसर खुद चलकर हमारे पास आया क्योंकि रितेश भाई ने आमंत्रण भेजकर आने का आग्रह किया तो प्रकाश भाई ने समय पर कार्यक्रम स्थल तक पहुंचाने का दायित्व उठाया। राष्ट्रपति निवास में मैनेजर संजू डोगरा जी और अजय भारद्वाज जी की गर्मजोशी ने यहां आना सार्थक बना दिया।
वैसे तो,शरद उत्सव में स्कूल-कॉलेज के बच्चों के प्रदर्शन का बोलबाला था लेकिन उनकी युवा ऊर्जा, उत्साह, सांस्कृतिक परिपक्वता और प्रदर्शन इतना दमदार था कि दर्शक उनकी ताल पर ही झूमने लगे। देशप्रेम के गीत से शुरू हुआ यह सिलसिला जब हिमाचल की लोकप्रिय नाटी तक पहुंचा तो संगीत की गरमाहट में ठंड पता नहीं कहां छूमंतर हो गई। फिर तो बस नाटी ही चली..पहले विद्यार्थियों की और उसके बाद नाटी किंग कुलदीप शर्मा ने जब तान छेड़ी तो फिर किसी के लिए भी रुक पाना मुश्किल था।
अब तक स्टेज के सामने कुर्सियों पर जमे लोग एक एक कर स्टेज के सामने आ गए और फिर क्या था..नाटी,नाटी और बस नाटी..स्टेज पर भी एवं स्टेज के चारों ओर भी। वाकई, कुलदीप शर्मा को इसलिए नाटी किंग कहा जाता है क्योंकि वे ऑडियंस से तुरंत कनेक्ट कर लेते हैं तथा सबसे अहम बात..उन्होंने युवाओं से कहा कि नशे से दूर रहो क्योंकि मैं नशे के कारण अपना जीवन तबाह कर चुका था। सही समय पर नहीं संभला होता तो आज शायद होता भी नहीं।
आखिर में, लज़ीज़ भोज का उल्लेख करे बिना कार्यक्रम पूरा नहीं हो सकता। पारंपरिक हिमाचली धाम में सेपू बड़ी, कढ़ी, सरसों के तड़के के साथ काली दाल, बदाने का मीठा और पता नहीं क्या क्या।
बाकी हिमाचल से बाहर के लोगों के लिए नाटी का अर्थ है नृत्य/लोक नृत्य और कुलदीप शर्मा इस कला के सम्राट हैं। उनका नाम आज हिमाचल की नाटी और लोकसंगीत का सबसे बड़ा परिचय है। उनकी आवाज़ में पहाड़ों की मिट्टी की खुशबू, देवभूमि का संस्कार और लोकधुनों की आत्मा बसती है। वे सिर्फ गायक नहीं, बल्कि हिमाचली लोकसंस्कृति के गर्व और पहचान बन चुके हैं। नाटी को देश-विदेश तक पहुँचाने में उनकी भूमिका अद्भुत है। महज बारहवीं तक पढ़े (उनके शब्दों में तीन बार फेल) कुलदीप को हाल ही में लंदन में वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड्स द्वारा ‘इंटरनेशनल एक्सलेंस अवार्ड’ से सम्मानित किया गया है। अब तक सैकड़ों सम्मान हासिल कर चुके कुलदीप एक सशक्त उदाहरण हैं कि मामूली शिक्षा के बाद भी यदि जज़्बा हो तो कैसे लोक संस्कृति की महक राज्य से होते हुए देश और दुनिया में खुशबू बिखेर सकती है।
जहां तक राष्ट्रपति निवास की बात है तो यह शिमला से करीब 13 किलोमीटर दूर मशोबरा नाम की जगह में स्थित है। इसे राष्ट्रपति का समर रिट्रीट भी कहा जाता है। यह जगह ऊँचे पहाड़ों, घने देवदार-चीड़ के जंगलों और ठंडी हवा के बीच बनी है। यहाँ की शांति और ताज़गी भरी हवा इसे बहुत खास बनाती है।
क़रीब 7 हजार फीट की ऊंचाई पर बना यह भवन ब्रिटिश शासन के समय, लगभग 1850 के आसपास बनाया गया था। उस समय इसे गर्मियों में आराम करने और काम करने के लिए इस्तेमाल किया जाता था। आज़ादी के बाद वर्ष 1965 में इस भवन को भारत के राष्ट्रपति का गर्मियों में रहने वाला आधिकारिक निवास घोषित कर दिया गया। अब भी गर्मियों में राष्ट्रपति कुछ दिन यहाँ बिताते हैं और उस समय राष्ट्रपति कार्यालय का एक हिस्सा भी यहीं से काम करता है।
राष्ट्रपति निवास की इमारत लकड़ी और पत्थरों से बनी हुई है। इसे खास पहाड़ी तरीके से बनाया गया है ताकि भूकंप से सुरक्षा मिल सके। घर के चारों तरफ हरे-भरे लॉन, फूलों के बगीचे और सेब के पेड़ हैं। यहाँ से दिखाई देने वाले पहाड़ों और आसमान का नज़ारा बेहद सुंदर लगता है। अब यह स्थान आम लोगों के लिए भी खोल दिया गया है, लेकिन इसके लिए पहले ऑनलाइन या ऑफिस से बुकिंग करनी होती है। यहाँ आने वाले लोग इतिहास, प्रकृति और शांति का सुंदर अनुभव लेते हैं। शिमला घूमने वाले पर्यटकों के लिए राष्ट्रपति निवास एक ऐसा स्थान है जहाँ वे प्रकृति की गोद में बैठकर इतिहास को महसूस कर सकते हैं। यह जगह सच में शांति, सौंदर्य और सम्मान का संगम है।

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