एक अनूठा मंदिर…जहां प्रसाद की जगह चढ़ते हैं घोड़े!!
अरे रुको जरा…आपकी बड़ी होती आंखों को थोड़ा छोटा कर लीजिए और कंफ्यूज मत होइए। हम बात कर रहे हैं खिलौने वाले घोड़ों की, न की असल की..आखिर, कितना भी बड़ा मंदिर हो वहां सैकड़ों घोड़े कैसे बन पाएंगे? लेकिन असलियत यही है कि कहानी असल घोड़ों से ही शुरू हुई थी..जो बदलते वक्त के साथ जरूर खिलौने वाले घोड़ों में तब्दील हो गई है।
तो पहले जानते हैं असल घोड़ों की कहानी…महाभारत का युद्ध शुरू होने में बस कुछ ही दिन बचे थे। कौरवों की विशाल सेना और तैयारियों को देखकर पांडवों का मन भय से भरा था और वे कुछ विचलित नज़र आ रहे थे। यह बात युद्ध भूमि में गीता उपदेश के भी पहले की है। भगवान श्रीकृष्ण पांडवों के मन को पढ़कर मुस्कुराते हुए बोले- “जाओ, पहले माँ भद्रकाली के दर्शन कर आओ और हां, वहां घोड़ा चढ़ाना मत भूलना क्योंकि जिसने यहाँ घोड़ा चढ़ाया, वह कभी पराजित नहीं हुआ है।” पांडव भला भगवान कृष्ण का कहना कैसे टाल सकते थे इसलिए पाँचों भाई कुरुक्षेत्र से सटे थानेसर की पिहोवा रोड पर स्थित उस पवित्र भूमि पर पहुँचे जहाँ आज भी माँ भद्रकाली का मंदिर पूरी भव्यता और दिव्यता के साथ मौजूद है। मां दुर्गा के 51 शक्तिपीठों में से एक भद्रकाली पीठ में पांडवों ने पांच घोड़े अर्पित किए और महाभारत युद्ध का नतीजा तो सब जानते हैं कि पांडवों की ही विजय हुई। कहा जाता है कि तभी से यहां मां भद्रकाली को मनोकामना पूरी होने पर घोड़े चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई।
जहां तक मंदिर की स्थापना से जुड़े इतिहास की बात है तो हम सभी जानते हैं कि शिवजी के अपमान से सती हुई मां भगवती से जुड़ी पौराणिक कथा के मुताबिक जब शिवजी माँ सती के पार्थिव शरीर को कंधे पर लेकर तांडव कर रहे थे, तब भगवान विष्णु ने उनका क्रोध शांत करने और ब्रह्मांड को विनाश से बचाने के लिए सुदर्शन चक्र से सती की पार्थिव देह के 51 टुकड़े कर दिए थे। जिस जिस स्थान पर माता सती के अंग गिरे, वे सभी स्थान पवित्र शक्तिपीठ कहलाते हैं। हरियाणा का यह इकलौता शक्तिपीठ कुरुक्षेत्र में स्थित है। माना जाता है कि यहां माँ का दाहिना टखना (ankle) गिरा था। इसे देवीकूप, सावित्रीपीठ, देवीपीठ, कालीपीठ और आदिपीठ जैसे विभिन्न नामों से भी जाना जाता है।
आमतौर पर शक्तिपीठ पहाड़ों और दुर्गम स्थानों पर हैं लेकिन यह ऐसा मंदिर है जो समतल स्थान पर है और आप सीधे मंदिर की पार्किंग तक आसानी से पहुंच जाते हैं। मंदिर में प्रवेश करते ही सन्नाटा, घंटियों की मधुर ध्वनि और सुगंध एक साथ महसूस होते हैं। गर्भगृह में माँ भद्रकाली की काले पत्थर की प्राचीन अष्ट भुजा वाली प्रतिमा है जिसे देखकर ऐसा लगता है मानो मां अभी बोल पड़ेंगी। उनके सामने विशाल कमल की प्रतिकृति और राम सीता, राधा कृष्ण सहित विभिन्न प्रतिमाएं हैं।
भद्रकाली मंदिर की सबसे अनूठी विशेषता यहां मौजूद सैकड़ों घोड़े और मन्नत के धागों से बना विशाल नारियल है। जो बरबस ही श्रद्धालुओं का ध्यान अपनी ओर खींच लेता है। घोड़ों का तो यह हाल है कि आप जहां दृष्टि दौड़ाएं आपको घोड़े ही नज़र आते हैं..मिट्टी,चीनी मिट्टी और अन्य सामग्री से बने छोटे छोटे रंग बिरंगे आकर्षक घोड़े। वैसे यहां सोने और चांदी के घोड़े भी बड़ी संख्या में अर्पित किए जाते हैं। इसका कारण वही पांडव कालीन मान्यता है कि यदि आपकी कोई मन्नत है या पूरी हुई है तो मां भद्रकाली को घोड़े अर्पित करें जिससे वे प्रसन्न होती हैं और आपकी तमाम मनोकामनाएं पूरी करती हैं।
इसी तरह मन्नत का लाल-पीला धागा बांधने की प्रथा भी है। मन्नत पूरी हुई नहीं कि लोग दौड़े चले आते हैं – कोई घोड़ा चढ़ाने, कोई नारियल फोड़ने और कोई धागा खोलने। आज भी यहां परीक्षा में पास करने, संतान प्राप्त,व्यापार में लाभ और परिवार रक्षा जैसी मुरादों को लेकर बड़ी संख्या में भक्त आते हैं।
भद्रकाली मंदिर तक पहुंचना बहुत आसान है। कुरुक्षेत्र दिल्ली से सिर्फ 160 किमी और चंडीगढ़ से करीब 100 किमी दूर है। यहां आप अपने वाहन से आ सकते हैं। वैसे कुरुक्षेत्र दिल्ली चंडीगढ़ रेलमार्ग से सीधे जुड़ा है और कुरुक्षेत्र रेलवे स्टेशन से मंदिर महज 3 किमी दूर है। यदि आप हवाएं मार्ग से आना चाहते हैं तो चंडीगढ़ या दिल्ली कहीं भी उतर कर टैक्सी से कुछ घंटे में यहां पहुंच सकते हैं। इसलिए जब भी कुरुक्षेत्र जाएँ, ब्रह्मसरोवर, ज्योतिसर, बाण गंगा जैसे महाभारत कालीन स्थलों के साथ यहाँ जरूर आएँ।


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