अपनों और अपनेपन का अहसास कराती है ‘आरसी अक्षरों की’

कविता महज कुछ शब्दों को लिपिबद्ध करना या मन में आए विचारों को लयात्मक रूप देना भर नहीं है बल्कि यह समाज के प्रति जिम्मेदारी है। कविता के जरिए या कहें की साहित्य की किसी भी विद्या के जरिए रचनाकार समाज से रूबरू होने और समाज को आइना दिखाने जैसे दोनों ही काम करते हैं । कभी वह अपने लेखन से समाज को उसकी असलियत से वाकिफ कराता है तो कभी समाज में व्याप्त रूढ़ियों को सामने लाकर बदलाव का वाहक बनने का प्रयास करता है। सत्तर के दशक में जन्मी हमारी पीढ़ी इस मामले में सौभाग्यशाली है कि उसने सामाजिक परंपराओं को भी जिया है तो सतत बदलाव की प्रक्रिया की साक्षी भी रही है। इस पीढ़ी को कंडे और चूल्हे का भान भी है तो गैस से लेकर इंडक्शन और उसके बाद तक के आविष्कारों के उपयोग का तरीका भी आता है। यही कारण है कि पेशे से हिंदी की सम्मानित शिक्षिका और कवियत्री डॉ मोना परसाई का कविता संग्रह ‘आरसी अक्षरों की’ हमें अपने और अपनेपन के इन्हीं अहसासों से जोड़ती है । यह हमें गांव, घर, चौपाल से लेकर महानगरों तक की प्रवाहमान यात्रा कराता है। ‘आरसी अक्षरों की’ सही मायने में भूत\भविष्य\वर्तमान के बीच का सेतु है। खुद लेखिक...