शनिवार, 12 जून 2010

चंद बूंदे ज़िन्दगी की.....

एक चीनी कहावत है-यदि आपको एक दिन की खुशी चाहिए तो एक घंटा ज्यादा सोएं. यदि एक हफ्ते की खुशी चाहिए तो एक दिन पिकनिक पर अवश्य जाएँ.यदि एक माह की खुशी चाहिए तो अपने लोगों से मिलें.यदि एक साल के लिए खुशियाँ चाहिए तो शादी कर लें और जिंदगी भर की खुशियां चाहिए तो किसी अनजान व्यक्ति की सहायता करें.....मेरे मुताबिक किसी अनजान व्यक्ति की सहायता करने का सबसे अच्छा तरीका है –रक्तदान.
वैसे भी “रक्तदान को महादान” माना जाता है और आपके खून की चंद बूंदे किसी व्यक्ति को नया जीवन दे सकती हैं, उसके परिवार को आसरा तथा आपको जीवन भर के लिए दुआएं मिल सकती हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक हमारे देश में हर साल एक करोड़ यूनिट खून की जरुरत है पर तमाम प्रयासों के बाद भी मात्र ७५ लाख यूनिट रक्त ही जमा हो पा रहा है. खून की इसी कमी के कारण भारत में हर साल १५,००,००० लोग जिंदगी से हाथ धो बैठते हैं. हमारे देश में हर तीन सेकेण्ड में किसी न किसी को रक्त चाहिए पर हमारे मन में बसे डर के कारण हम रक्तदान से पीछे हट जाते हैं और कई लोग हमारे इस बे-फ़िजूल के डर के कारण जान गवां देते हैं. रक्तदान नहीं करने के पीछे डर भी कैसे कैसे हैं-कोई कहता है शरीर में कमजोरी आ जाती है जो फिर कभी नहीं मिट पाती, तो किसी को डॉक्टर की मंशा पर शक रहता है कि पता नहीं कितना खून निकाल ले? कोई सोचता है कि रक्तदान में घंटों समय जाया करना पड़ेगा तो किसी को लगता है कि दान किया गया रक्त उसके काम तो पड़ेगा नहीं इसलिए दान करने से क्या फायदा. इन धारणाओं के विपरीत डॉक्टरों का कहना है कि रक्तदान करना दान तो है ही खुद के शरीर के लिए भी अत्यधिक ज़रुरी है. मसलन रक्तदान करने से कम-से-कम छः माह तक ह्रदयाघात का खतरा टल जाता है.इसीतरह नियमित रक्तदान से शरीर की प्राकृतिक रूप से सफाई होती रहती है जिससे कई तरह के संक्रामक रोगों से बचा जा सकता है. रही शारीरिक कमजोरी की बात तो वह भी बमुश्किल घंटे भर की ही होती है और फिर शरीर नया खून बना लेता है इसलिए कोई कमी भी नहीं रह पाती. एक स्वस्थ व्यक्ति में उसके शरीर के कुल वजन के १/७ हिस्से के बराबर खून रहता है...अब ज़रा सोचिये इतने खून में से यदि ४५० मिलीलीटर रक्त निकल गया(कभी भी एक बार में इससे ज्यादा खून नहीं निकाला जाता) तो उसका क्या बिगड़ेगा. यदि मामूली खून निकलने से कुछ हो रहा होता तो ज़रा महिलाओं के बारे में सोचिये जिन्हें हर माह मासिकधर्म के ज़रिये इस दौर से गुज़ारना पड़ता है पर न तो वे कमज़ोर होती हैं और न बीमार, तो फिर पुरुष होकर हम रक्तदान के नाम पर फालतू के बहाने क्यों बनाने लगते हैं?
इसलिए आइये, बहाने और बे-मतलब के डर छोड़कर किसी अनजान व्यक्ति को नया जीवन देने का सार्थक काम करें. बाबा-बैरागियों को दान देकर पुण्य कमाने के लिए हम अपना हाथ खोल देते हैं और जिससे वास्तव में पुण्य मिल सकता है उस रक्तदान से बचने के लिए बहाने बनाते हैं. रक्तदान के प्रचार-प्रसार और जागरूकता के कारण अब असमय मौत का शिकार बनने वाले २५ फीसद लोगों का जीवन बचाया जा सकता है. यदि हम बढ़-चढ़कर एवं उत्साह के साथ रक्तदान करने लगें तो न केवल कई अनजान लोगों का जीवन बचा सकेंगे बल्कि वक्त पर अपने लिए भी खून की कमी से नहीं जूझना पड़ेगा और पुण्य कमायंगे सो अलग. तो चलिए दान करते हैं चंद बूंदे ज़िन्दगी की....

5 टिप्‍पणियां:

  1. रक्तदान-महादान का संदेश देती सार्थक रचना......किसी के काम आना ही सच्चा जीवन है....आपका कथ्य और संदेश वर्तमान परिवेश में स्व के दायरे में कैद मानव के लिए और भी महत्वपूर्ण हो जाता है।

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  2. सही विषय, सही बात, सही प्लेटफ़ार्म, आज के युवाओं को इसके लिए प्रेरित करना ही होगा, रक्त दान सिर्फ दान न होकर एक विचार है जो हर मानव में पनपना चाहिए, इससे किसी और का जीवन ही नहीं स्वयं का जीवन भी सुधरता है, साथ में ही आता है एक खरा आत्मविश्वास जो जीवन में हर कदम पर सफलता सुनिश्चित करता है....अर्थात इसके शारीरिक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक लाभ हैं, सभी कुछ तो है एक रक्तदान में..

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  3. रक्‍तदान के लिए प्रेरित करता सुंदर आलेख !!

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  4. शर्मा जी आप की बात से में सहमत हु. लेकिन आपको पता है हमारे सिविल अस्पतालों के क्या हाल हैं? एक गरीब आदमी की पहुँच वहीँ तक ही होती है ना. और ये गरीब ना जाने किन किन मजबूरियों में रक्त दान करने भी जाते हैं. लेकिन हमारे अस्पतालों का ये हाल है की रक्त संचयन तो काफी है लेकिन उसे सँभालने के लिए इनके पास मशीने नहीं हैं और ना ही उत्तम स्थान हैं जहाँ पर ब्लड ग्रुप के हिसाब से ब्लड रखा जा सके और अधिक समय के लिए रखा जा सके. और ये जीती जगती सच्चाई है हमारे सरकारी महकमो की जहाँ लाखो - करोडो खर्च ककरने की बात की जाती है सुविधाए मुहईय करने के लिया...लेकिन पैसे कहाँ जाते हैं ....पता नहीं?

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