आपके पास महज एक दिन का वक्त है, पता नहीं फिर ये मौका कब नसीब होगा…मेले,ठेले, शापिंग फेस्टिवल, मॉल और हाट बाजारों की रौनक तो हम अक्सर देखते हैं लेकिन यहां कुछ अलग तरह का हुनर है…यहां पत्थर बोल उठे हैं,अपने अलग अलग रंग, आकार प्रकार और पहचान के बाद भी ये एकरूप होकर दुनिया के सबसे बड़े महामानव के आम इंसान से अहिंसा के पुजारी बनने की गाथा गुनगुना रहे हैं। हम बात कर रहे हैं - भोपाल के स्वराज भवन में 14 से 16 अक्टूबर के बीच आयोजित Anita Dubey की प्रस्तर प्रदर्शनी यानि पत्थरों पर जादूगरी की।
अब तक, हम-आपने महात्मा गांधी को विविध कैनवासों और तस्वीरों में देखा है लेकिन इस प्रस्तर प्रदर्शनी में बापू अलग ही रूप में नजर आते हैं। युवा गांधी, बैरिस्टर गांधी,असहयोग करते,चरखा चलाते, बा के साथ, गोलमेज सम्मेलन में, दांडी यात्रा करते और न जाने कितने रूपों में छोटे बड़े पत्थरों के जरिए प्रतिबिंबित होते गांधी। 45 फ्रेम्स और 15 कोटेशन में अनीता दुबे ने साबरमती आश्रम से लेकर चंपारण तक और गांधी टोपी से लेकर उनके तीन बंदरों और बकरी निर्मला तक महात्मा गांधी से जुड़े हर अहम किस्से को अपने पत्थरों से साकार कर दिया है। खास बात यह है कि अनीता जी पत्थरों को बिना तरासे उनके प्राकृतिक रूप में ही इस्तेमाल करती हैं और इसके लिए वे 30 साल से साधना/तपस्या कर रही हैं । अनीता दुबे ने बताया कि गांधीजी पर केंद्रित इस प्रदर्शनी के लिए वे तीन साल से दिनरात एक किए थीं तब जाकर पत्थरों ने बोलना शुरू किया और अब तो वे पूरा गांधीवाद बयान कर रहे हैं।
गांधीजी को एक अलग नजरिए से, नए रूप में और अनूठे अंदाज में देखने का यह अवसर छोड़िए मत..जरूर देखिए क्योंकि ऐसे कलाकारों के हुनर को हमारा समर्थन बहुत जरूरी है ।
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